बंगाल में बसी ये कहानी है 8 साल की बोंदिता की, जो बहुत ही शरारती और चंचल है. जाने-अनजाने में ही सही, पर वो समाज में हो रहे भेद-भाव और कुरीतियों पर अक्सर सवाल उठाती रहती है, जिसे सुन सब लोग दंग रह जाते हैं. कहानी का दूसरा मुख्य किरदार है अनिरुद्ध, जो लंदन से लॉ की पढ़ाई पूरी करके अपने देश वापस आया है. उसने इन सामाजिक कुरीतियों से देश को आज़ाद करने की ठान रखी है.
बोंदिता को बचाने के लिए शादी करता है अनिरूद्ध
अब तक की कहानी में आपने देखा कि बोंदिता को सती होने और उसकी जान बचाने के लिए अनिरुद्ध उससे शादी कर लेता है. लेकिन सभी अनिरुद्ध के फ़ैसले के खिलाफ़ हैं.उसके पिता बिनॉय, बोंदिता को घर से निकालने के लिए वृंदाबन से विधवाओं को बुलाते है,लेकिन अनिरुद्ध बोंदिता को वापस ले आता है. अनिरुद्ध के चाचा, त्रिलोचन बासी बिये रस्म करवाना चाहते हैं पर अनिरुद्ध ये रस्म करने से मना कर देता है क्योंकि वो बोंदिता को पत्नी नहीं, अपनी ज़िम्मेदारी मानता है.
बोंदिता से दोस्ती करती है सौदामिनी
एक तरफ बोंदिता, अनिरुद्ध से रस्म पूरी करने के लिए कहती है ताकि उसकी माँ उसके पास आ सके, तो दूसरी तरफ त्रिलोचन, उसकी माँ को धमकी देते हैं कि अगर वो बोंदिता के पास आई तो इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा. उधर सौदामिनी, जो अनिरुद्ध से प्यार करती है, बोंदिता से मिलने के बाद उसे और अनिरुद्ध को अलग करने की चाल चलती है. सौदामिनी बोंदिता से दोस्ती कर लेती है और उसे घर से निकलवाने के लिए सही मौक़े ढूँढने लगती है. त्रिचोलोचन भी ऐसे ही एक मौक़े की तलाश में है जिससे वो बोंदिता को उसके घर भेज सके और अनिरुद्धके जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दे.
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