सिर्फ हम ही नहीं इस कोरोना त्रासदी के चलते पूरी दुनिया में 1 अरब 73 करोड़ से ज्यादा लोग घरों में कैद हैं. लोग घरों में कैद है तो जाहिर है उनकी सोशल मीडिया में सक्रियता भी बढ़ गई है, टीवी देखने का औसत समय भी बढ़ गया है और इसी तरह फोन से होने वाली बातचीत के समय में भी बढ़ोत्तरी हुई है. ये तमाम गतिविधियां यूं तो समय गुजारने की हैं, मगर इनसे दुनियाभर के लोगों के दिलो दिमाग में क्या हलचल मची हुई है, इसका भी पता चलता है. लोगों के अंदर घर करती दहशत और क्या होने वाला है या कि क्या हो सकता है, इसे जानने, इसका अनुमान लगाने की बेचैनी का अंदाजा भी इन दिनों इंटरनेट और टीवी चैनलों में देखी जानेवाली फिल्मों तथा इनके लिए किये जाने वाले अनुरोधों से भी पता चलता है. सोशल मीडिया में जिन उपन्यासों का इन दिनों खूब जिक्र हो रहा है, उनसे भी मालूम पड़ता है कि लोगों के अंदर किस तरह की उथल-पुथल मची हुई है.

पश्चिमी मीडिया के विभिन्न आब्र्जेवेशनों के जरिये यह बात स्पष्ट हो रही है कि कोरोना वायरस के खौफ के चलते घरों में कैद लोग आमतौर पर वे फिल्में देखना पसंद कर रह हैं, जो भयावह ट्रेजडी को पोट्रे करती हैं. ट्रेजडियां भी ऐसी जो हाल के एक दो दशकों में भयानक आतंकवाद और इंसानी हरकतों के चलते पैदा हुई हैं. मसलन- पिछले सप्ताह पूरी दुनिया में जिस फिल्म को लोगों ने इंटरनेट में सबसे ज्यादा ढूंढ़ा, वह एक औसत दर्जे की अंग्रेजी फिल्म ‘इंडिया वर्सेज जापान’ है. यह फिल्म यूं तो जब आयी थी, तब बहुत ज्यादा कामयाब नहीं रही, लेकिन इन दिनों यह फिल्म पूरी दुनिया में हौट डिमांड में है. इस फिल्म की लोगों के बीच इस कदर लोकप्रियता का कारण यह है कि बहुत अप्रत्याशित ढंग से इस फिल्म में कोरोना वायरस की ट्रेजडी दिखायी गई है.

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