संध्या की आंखों में नींद नहीं थी. बिस्तर पर लेटे हुए छत को एकटक निहारे जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, जिस से वह आकाश के चंगुल से निकल सके. वह बुरी तरह से उस के चंगुल में फंसी हुई थी. लाचार, बेबस कुछ भी नहीं कर पा रही थी. गलती उस की ही थी जो आकाश को उसे ब्लैकमेल करने का मौका मिल गया.
वह जब चाहता उसे एकांत में बुलाता और जाने क्याक्या करने की मांग करता. संध्या का जीना दूभर हो गया था. आकाश कोई और नहीं उस का देवर ही था. सगा देवर. एक ही घर, एक ही छत के नीचे रहने वाला आकाश इतना शैतान निकलेगा, संध्या ने कल्पना भी नहीं की थी. वह लगातार उसे ब्लैकमेल किए जा रहा था और वह कुछ भी नहीं कर पा रही थी. बात ज्यादा पुरानी नहीं थी. 2 माह पहले ही संध्या अपने पति साहिल के साथ यूरोप ट्रिप पर गई थी. 50 महिलापुरुषों का गु्रप दिल्ली इंटरनैशनल एअरपोर्ट से रवाना हुआ.
15 दिनों की यात्रा से पूर्व सब का एकदूसरे से परिचय कराया गया. संध्या को उस गु्रप में नवविवाहित रितू कुछ अलग ही नजर आई. उसे लगा रितू के विचार काफी उस से मिलते हैं. बातबात पर खिलखिला कर हंसने वाली रितू से वह जल्द ही घुलमिल गई.
रितू का पति प्रणव भी काफी विनोदी स्वभाव का था. हर बात को जोक्स से जोड़ कर सब को हंसाने की आदत थी उस की. एक तरह से रितू और प्रणव में सब को हंसाने की प्रतिस्पर्धा चलती थी. संध्या इस नवविवाहित जोड़े से खासी प्रभावित थी. संध्या और उस के पति साहिल के बीच वैसे तो सब कुछ सामान्य था, लेकिन जब भी वह रितू और प्रणव की जोड़ी को देखती आहें भर कर रह जाती.