लेखक- डौ. अनिल प्रताप सिंह
उस दिन शाम को औफिस से घर आने के बाद मयंक अपने परिवार के साथ कार से टहलने निकल पड़ा. मयंक के साथ उस की पत्नी स्नेह भी थी जो 2 साल के अंशु को गोद में ले कर बैठी थी.
मयंक कार के स्टेयरिंग पर था और उसे बहुत धीमी रफ्तार से चला रहा था. अचानक उस की नजर सड़क पार करती एक जवान औरत पर पड़ी. एकाएक उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. उस ने कार की रफ्तार को और भी धीमा कर दिया और उस औरत को गौर से देखने लगा.
‘‘क्या बात है?’’ स्नेह की आवाज में जिज्ञासा थी, ‘‘क्या देख रहे हैं आप?’’
‘‘मैं उस औरत को देख रहा हूं,’’ मयंक ने उस औरत की ओर इशारा करते हुए कहा.
‘‘क्यों… कोई खास बात है क्या?’’ स्नेह ने पूछा.
‘‘हां है…’’ मयंक ने कहा, ‘‘एक लंबी कहानी है इस की. उस कहानी का एक पात्र खुद मैं भी हूं.’’
‘‘अच्छा…’’ एक अविश्वास भरी हैरानी से स्नेह का मुंह खुला का खुला रह गया.
थोड़ी देर में मयंक ने कार की रफ्तार बढ़ा दी और आगे निकल गया.
मयंक इस शहर में अभी नयानया जिला जज बन कर आया था. उसे यहां रहने के लिए एक सरकारी बंगला मिला हुआ था. वह सपरिवार यानी स्नेह और 2 साल के अंशु के साथ रहने लगा था.
उस रात जब वे खाना खाने बैठे तो स्नेह ने उसी सवाल को दोहराया, ‘‘कौन थी वह औरत?’’
मयंक का दिल ‘धक’ से बैठ गया, पर उस ने खुद पर कंट्रोल कर के मन ही मन बात शुरू करने की भूमिका बना ली. फिलहाल टालने भर का मसाला तैयार कर के उस ने कहा, ‘‘आजकल उस औरत का एक केस मेरी अदालत में चल रहा है. तलाक का मामला है.’’
‘‘लेकिन, आप ने तो कहा था कि उस की कहानी के एक पात्र आप भी…’’
‘‘हां, मैं ने तब जो भी कहा हो, लेकिन इस समय मेरे सिर में दर्द है. मुझे आराम करने दो,’’ मयंक की आवाज में कुछ झुंझलाहट थी.
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स्नेह के मन में मची उथलपुथल को मयंक बखूबी समझ रहा था. औरत के मन में शक की उपज स्वाभाविक होती है. यों स्नेह मयंक के प्यार के आगे मुंह खोल सकने की हालत में नहीं थी.
मयंक टाल तो गया, पर वह औरत अब भी उस की यादों में छाई रही.
आज से तकरीबन 8 साल पहले जब मयंक ग्रेजुएशन का छात्र था तो उस की बड़ी बहन की शादी में दूर के रिश्तेदारों, परिचितों के अलावा बड़े भाई के एक खास दोस्त की बहन रेणु भी आई थी.
मयंक को पहले ही दिन लगा था कि रेणु बहुत ही चंचल स्वभाव की थी और बातूनी भी. रेणु के आते ही सब उस से घुलमिल गए थे. बातबात में हर कोई ‘रेणु, जरा मुझे एक गिलास पानी देना’, ‘जरा मेरे लिए एक कप चाय बना देना’, ‘मुझे भूख लगी है, खाना परोस देना’ जैसी फरमाइशें करने लगा था.
एक दिन मयंक ने पुकारा था, ‘रेणु, मुझे प्यास लगी है.’
अचानक रेणु मयंक के पास आई और फुसफुसा कर बोली, ‘कैसी…’ और इतना कह कर उस ने अपने होंठों पर बड़ी गूढ़ मुसकान बिखेर दी.
मयंक अचकचा सा गया था. उसे रेणु से इस तरह की हरकत की कतई उम्मीद न थी.
मयंक ने अपनी झेंप को काबू में करते हुए कहा, ‘फिलहाल तो मुझे पानी ही चाहिए.’
रेणु ने पानी दिया और उसी दिन थोड़ा एकांत पाते ही उस ने कहा, ‘मयंक, तुम मुझ से इतना कतराते क्यों हो? क्या मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती?’
‘नहीं’ कहने के बजाय मयंक के मुंह से निकला था, ‘क्यों नहीं…’
लेकिन उसी दिन से उन दोनों के बीच ऐसी निजी बातों का सिलसिला चल पड़ा था. लगा कि जैसे सारी दूरियां खत्म होती जा रही थीं. मयंक भी रेणु की बातों में दिलचस्पी लेने लगा था.
रेणु ने एक दिन मयंक के सामने शादी करने का प्रस्ताव रख दिया, ‘मयंक, मैं चाहती हूं कि हम दोनों जीवनभर एकदूसरे के बने रहें.’
‘क्या…’ मयंक की हैरानी लाजिमी थी. क्या रेणु उस के बारे में इस हद तक सोचती है?
‘हां मयंक, अगर मेरी शादी तुम से नहीं हुई तो मैं जिंदगीभर कुंआरी ही रहूंगी,’ रेणु ने कहा. लगा, जैसे उस के आंसू छलक पड़ेंगे.
मयंक थोड़ी देर तो चुप रहा था लेकिन कुछ ही पलों में उस के दिल में रेणु के लिए प्यार उमड़ पड़ा था. वह उसे वचन दे बैठा, ‘अगर तुम में सचमुच सच्चे प्यार की भावना है रेणु, तो मैं जिंदगीभर तुम्हारा साथ निभाऊंगा.’’
यह सुनते ही रेणु मयंक से लिपट गई.
‘मुझे तुम से ऐसी ही उम्मीद थी,’ रेणु बुदबुदाई.
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मयंक का एक दोस्त विनय भी शादी से कुछ दिन पहले ही हाथ बंटाने के लिए वहां आ गया था. एक दिन मयंक की मां ने विनय से शादी का कुछ सामान लाने को कहा. रेणु भी अपनेआप तैयार हो गई.
‘क्या मैं भी विनय के साथ चली जाऊं? इन के रास्ते में ही महमूदपुर पड़ेगा, जहां मेरी एक सहेली ब्याही गई है. अगर एतराज न करें तो मैं उस से मिल लूं? शाम को जब ये शहर से सामान ले कर लौटेंगे तो इन्हीं के साथ आ जाऊंगी,’ रेणु ने मयंक की मां से पूछा.
थोड़ी देर सोच कर मां बोलीं, ‘लेकिन, शाम तक जरूर लौट आना.’
‘हांहां, बस मिलना ही तो है,’ रेणु ने कहा, फिर वे दोनों स्कूटर पर बैठे और चले गए.
शाम हुई और शाम से रात, पर रेणु नहीं आई. मयंक ने सोचा कि आखिर वह अभी तक क्यों नहीं लौटी? विनय भी नहीं आया था.
अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई.
‘कौन…?’ मां ने पूछा.
‘मैं हूं,’ उधर से विनय ने कहा.
मां ने दरवाजा खोला. रेणु भी पीछे खड़ी थी.
‘कहां रह गए थे तुम दोनों?’ मां ने झुंझलाते हुए पूछा.
‘कुछ नहीं… बस, इन का खटारा स्कूटर खराब हो गया था, फिर काफी पैदल चलना पड़ा,’ विनय कुछ बोलता, उस से पहले ही रेणु ने कहा और घर में जा घुसी.
उस समय मयंक को उस की यह हरकत सही नहीं लगी थी, फिर भी वह उस के शब्दजाल में फंस चुका था.
फिर एक दिन रेणु अपने घर चली गई. कई दिनों तक मयंक को कुछ भी अच्छा नहीं लगा था. घर में जाने की इच्छा भी न होती थी. हर जगह उस की यादें बिखरी हुई मालूम पड़ती थीं. उन्हीं यादों के नाते मयंक को लगता था जैसे वह खुद भी बिखर कर रह गया है.
मयंक ने अपनी मां को भी बता दिया था कि वह रेणु से प्यार करता है और शादी भी उसी से करना चाहता है.
‘मयंक, एक सवाल पूछूं तुम से?’ मां ने पूछा.
‘पूछो न मां… एक नहीं, हजार पूछो,’ मयंक ने कहा.
‘तुम्हें रेणु के चरित्र के बारे में क्या लगता है?’ मां ने सीधा सवाल किया.
मयंक बोला, ‘मुझे तो ठीक लगता है. वैसे, क्या आप को…?’
‘नहींनहीं, आजकल की लड़कियों के बारे में कालेज के लड़के ही ज्यादा जानकारी रखते हैं. खैर, ठीक ही है,’ मां ने कहा.
अचानक मां को पिताजी ने बुला लिया था. मयंक ने सोचा कि मां कहना क्या चाहती थीं?
एक दिन जब मयंक ने विनय को रेणु से अपने संबंध की बात बताई तो वह एकदम से बिफर गया, ‘तुम उसे भूल जाओ प्यारे… उस की मधुर मुसकानें बहुत जहरीली हैं.’
‘मैं समझा नहीं…’
‘तुम समझोगे भी कैसे? तुम्हारे दिमाग को तो रेणु नाम की उसी घुन ने चट कर रखा है. अब तुम समझनेबूझने की हालत में रह ही कहां गए हो?’ विनय ने ताना मारा.
‘क्या मतलब…’
‘तुम्हें यह शादी नहीं करनी है…’ विनय हक के साथ बोल पड़ा, ‘और अगर तुम उसे भूल नहीं पाते हो तो मुझे भूलने की कोशिश कर लेना.’
‘ठीक है. मैं भूल जाऊंगा उसे, लेकिन तुम भी इतना जान लो कि मैं जिंदगीभर कुंआरा ही रहूंगा,’ मयंक थोड़ा भावुक हो उठा.
‘आखिर तुम ने उस के अंदर ऐसा क्या देखा है, जो उस के लिए इतना बड़ा त्याग करने को तैयार हो?’
‘सिर्फ बरताव, खूबसूरती नहीं,’ मयंक ने कहा.
‘तो बस यही नहीं है उस में, बाकी सबकुछ हो भी तो क्या?’
‘क्या…?’
‘हां मयंक, उस का चरित्र सही नहीं है. अच्छा बताओ, तुम्हें वह दिन याद है न, जब रेणु मेरे साथ महमूदपुर गई थी?’
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‘हां, याद तो है?’
‘मेरा स्कूटर खराब हो गया था और मैं देर रात वापस लौटा था?’
‘हां, यह भी याद है…’
‘मैं और भी जल्दी आ सकता था, पर वह देरी रेणु ने जानबूझ कर की थी.’
मयंक हैरानी से विनय का मुंह ताकने लगा.
‘लेकिन, उस को भी तो आना था?’ मयंक अपने अंदर हैरानी समेटे बोल रहा था, ‘जबकि तुम दोनों को महमूदपुर में ही रात होने लगी थी.’
‘हां इसलिए, रात का फायदा उठाने के लिए ही ऐसा किया गया था.’
‘क्या मतलब…?’
‘अब इतने नादान तो हो नहीं तुम कि तुम्हें मतलब समझाना पड़े…’
‘तो क्या रेणु ऐसी…?’
‘जी हां, ऐसी ही है रेणु…’ विनय ने आगे कहा, ‘उस की उन गलत इच्छाओं के आगे मुझे मजबूर होना पड़ा था, क्योंकि वह किसी भी हद तक जा चुकी थी…’ वह बोलता जा रहा था, ‘मैं इस के बारे में कभी भी कुछ न कहता, अगर आज अपने सब से अच्छे और एकलौते दोस्त को जिंदगी के इतने बड़े फैसले का धर्मसंकट सामने न आ खड़ा होता.’
विनय की बातें मयंक के कानों में जहर घोल रही थीं और वह खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगा था.
मयंक ने सोचा कि अपने इस सवाल का जवाब वह खुद रेणु से लेगा, पर इस की नौबत ही नहीं आने पाई. उस ने जल्दी ही
सुना कि रेणु का किसी से प्रेम विवाह हो गया है.
इधर मयंक के लिए भी कोई रिश्ता आया. उस ने मांबाप के फैसले को सिर्फ उन की खुशी के लिए अपनी रजामंदी
दे दी.
सुसंस्कारों में पलीबढ़ी स्नेह मयंक के घर में सब को भाती थी. जब वह जिला जज की इस जिम्मेदारी के लिए आने लगा तो मां ने स्नेह से हंसते हुए कहा, ‘मेरे और अपने दोनों बेटों का खयाल रखना है अब तुम्हें.’
‘जी मां,’ स्नेह ने भी हंस कर ही कहा, जो मां के लिए बहू के बजाय उन की लाड़ली बेटी थी.
आज रेणु से मयंक का सामना वक्त ने उस मुकाम पर आ कर कराया जहां वह मयंक की ही अदालत में एक गुनाहगार की तरह खड़ी थी. उस के पति ने ही उस पर किसी और से संबंध होने की बात पर तलाक मांगा था.
रेणु आई, मयंक भी. जिला जज से पहले वह एक नेकदिल इनसान ही था, इसलिए अपनी ही उलझनों की शिकन महसूस करते हुए वह भी उस के सामने अपनी कुरसी पर आ बैठा.
आज रेणु का चेहरा बहुत ही बुझा हुआ था. मयंक को उस का अल्हड़पन याद आया, पर उस की जिंदगी में खुशियों का जरा भी दीदार न हो सका.
बहस के दौरान रेणु ज्यादातर चुप
ही बनी रही और अपनी गलतियों को मान कर आगे से ऐसा कुछ न करने के लिए कहा.
रेणु के पति के पक्ष से पेश किए गए सुबूतों के आधार पर उसे तलाक मिल चुका था. पर रेणु के अदालत में बोले गए ये बोल, ‘आज मैं कहां से कहां होती…’ मयंक के जेहन में गूंजते रहे.
मयंक को बारबार यही अहसास
हो रहा था कि ऐसा रेणु ने उस के और मयंक के संबंधों को याद करते हुए
बोला था.
मयंक को आज उस पर तरस आ रहा था, पर यही तो था एक ‘पतिता का प्रायश्चित्त’.
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