कहानी- सुवर्णा पाटिल

आ ज नौकरी का पहला दिन था. रिया ने सुबह उठ कर तैयारी की और औफिस के लिए निकल पड़ी. पिताजी के गुजरने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उस पर ही थी. इंजीनियरिंग कालेज में अकसर अव्वल रहने वाली रिया के बड़ेबड़े सपने थे. लेकिन परिस्थितिवश उसे इस राह पर चलना पड़ा था. इस के पहले छोटी नौकरी में घर की जिम्मेदारियां पूरी न हो पाती थीं. ऐसे में एक दिन औनलाइन इंटरव्यू के इश्तिहार पर उस का ध्यान गया. उस ने फौर्म भर दिया और उस कंपनी में उसे चुन लिया गया.

रिया जब औफिस में पहुंची तो औफिस के कुछ कर्मी थोड़े समय से थोड़ा पहले ही आ गए थे. वहीं, रिसैप्शन पर बैठी अंजली ने रिया से पूछा, ‘‘गुडमौर्निंग मैडम, आप को किस से मिलना है?’’

‘‘मैं इस कंपनी में औनलाइन इंटरव्यू से चुनी गईर् हूं. आज से मु झे औफिस जौइन करने लिए कहा गया था, यह लैटर…’’

‘‘ओके, कौंग्रेट्स. आप का इस कंपनी में स्वागत है. थोड़ी देर बैठिए. मैं मैनेजर साहब से पूछ कर आप को बताती हूं.’’

रिया वहीं बैठ कर कंपनी का निरीक्षण करने लगी. उसी वक्त कंपनी में काफी जगह लगा हुआ आर जे का लोगो उस का बारबार ध्यान खींच रहा था. उतने में अंजली आई, ‘‘आप को मैनेजर साहब ने बुलाया है. वे आप को आगे का प्रोसीजर बताएंगे.’’

‘‘अंजली मैडम, एक सवाल पूछूं? कंपनी में जगहजगह आर जे लोगो क्यों लगाया गया है?’’

‘‘आर जे लोगो कंपनी के सर्वेसर्वा मजूमदार साहब के एकलौते सुपुत्र के नाम के अक्षर हैं. औनलाइन इंटरव्यू उन का ही आइडिया था. आज उन का भी कंपनी में पहला दिन है. चलो, अब हम अपने काम की ओर ध्यान दें.’’

‘‘हां, बिलकुल, चलो.’’

कंपनी के मैनेजर, सुलझे हुए इंसान थे. उन की बातों से और काम सम झाने के तरीके से रिया के मन का तनाव काफी कम हुआ. उस ने सबकुछ समझ लिया और काम शुरू कर लिया. शुरू के कुछ दिनों में ही रिया ने अपने हंसमुख स्वभाव से और काम के प्रति ईमानदारी से सब को अपना बना लिया. लेकिन अभी तक उस की कंपनी के मालिक आर जे सर से मुलाकात नहीं हुई थी. कंपनी की मीटिंग हो या और कोई अवसर, जहां पर उस की आर जे सर के साथ मुलाकात होने की गुंजाइश थी, वहां उसे जानबू झ कर इग्नोर किया जा रहा था. ऐसा क्यों, यह बात उस के लिए पहेली थी.

एक दिन रोज की फाइल्स देखते समय चपरासी ने संदेश दिया, ‘‘मैनेजर साहब, आप को बुला रहे हैं.’’

‘‘आइए, रिया मैडम, आप से काम के बारे में बात करनी थी. आज आप को इस कंपनी में आए कितने दिन हुए?’’

‘‘क्यों, क्या हुआ सर? मैं ने कुछ गलत किया क्या?’’

‘‘गलत हुआ, ऐसा मैं नहीं कह सकता, मगर अपने काम की गति बढ़ाइए और हां, इस जगह हम काम करने की तनख्वाह देते हैं, गपशप की नहीं. यह ध्यान में रखिए. जाइए आप.’’

रिया के मन को यह बात बहुत बुरी लगी. वैसे तो मैनेजर साहब ने कभी भी उस के साथ इस तरीके से बात नहीं की थी लेकिन वह कुछ नहीं बोल सकी. अपनी जगह पर वापस आ गई.

थोड़ी देर में चपरासी ने उस के विभाग की सारी फाइलें उस की टेबल पर रख दीं. ‘‘इस में जो सुधार करने के लिए कहे हैं वे आज ही पूरे करने हैं, ऐसा साहब ने कहा है.’’

‘‘लेकिन यह काम एक दिन में कैसे पूरा होगा?’’

‘‘बड़े साहब ने यही कहा है.’’

‘‘बड़े साहब…?’’

‘‘हां मैडम, बड़े साहब यानी अपने आर जे साहब, आप को नहीं मालूम?’’

अब रिया को सारी बातें ध्यान में आईं. उस के किए हुए काम में आर जे सर ने गलतियां निकाली थीं, हालांकि वह अब तक उन से मिली भी नहीं थी. फिर वे ऐसा बरताव क्यों कर रहे थे, यह सवाल रिया को परेशान कर रहा था.

उस ने मन के सारे विचारों को  झटक दिया और काम शुरू किया. औफिस का वक्त खत्म होने को था, फिर भी रिया का काम खत्म नहीं हुआ था. उस ने एक बार मैनेजर साहब से पूछा, मगर उन्होंने आज ही काम पूरा करने की कड़ी चेतावनी दी. बाकी सारा स्टाफ चला गया. अब औफिस में रिया, चपरासी और आर जे सर के केबिन की लाइट जल रही थी यानी वे भी औफिस में ही थे. काम पूरा करतेकरते रिया को काफी वक्त लगा.

उस दिन के बाद रिया को तकरीबन हर दिन ज्यादा काम करना पड़ता था. उस की बरदाश्त करने की ताकत अब खत्म हो रही थी. एक दिन उस ने तय किया कि आज अगर उसे हमेशा की तरह ज्यादा काम मिला तो सीधे जा कर आर जे सर से मिलेगी. हुआ भी वैसा ही. उसे आज भी काम के लिए रुकना था. उस ने काम बंद किया और आर जे सर के केबिन की ओर जाने लगी. चपरासी ने उसे रोका, मगर वह सीधे केबिन में घुस गई.

‘‘सौरी सर, मैं बिना पूछे आप से मिलने चली आई. क्या आप मु झे बता सकेंगे कि निश्चितरूप से मेरा कौन सा काम आप को गलत लगता है? मैं कहां गलत कर रही हूं? एक बार बता दीजिए. मैं उस के मुताबिक काम करूंगी, मगर बारबार ऐसा…’’

रिया के आगे के लफ्ज मुंह में ही रह गए क्योंकि रिया केबिन में आई थी तब आर जे सर कुरसी पर उस की ओर पीठ कर के बैठे थे. उन्होंने रिया के शुरुआती लफ्ज सुन लिए थे. बाद में उन की कुरसी रिया की ओर मुड़ी ‘‘सर…आप…तुम…राज…कैसे मुमकिन है? तुम यहां कैसे?’’ रिया हैरान रह गई. उस का अतीत अचानक उस के सामने आएगा, ऐसी कल्पना भी उस ने नहीं की थी. उसे लगने लगा कि वह चक्कर खा कर वहीं गिर जाएगी.

‘‘हां, बोलिए रिया मैडम, क्या तकलीफ है आप को?’’

राज के इस सवाल से वह अतीत से बाहर आई और चुपचाप केबिन के बाहर चली गई. उस का अतीत ऐसे अचानक उस के सामने आएगा, यह उस ने सोचा भी नहीं था.

आर जे सर कोई और नहीं उस का नजदीकी दोस्त राज था. उस दोस्ती में प्यार के धागे कब बुन गए, यह दोनों सम झे नहीं थे. रिया को वह कालेज का पहला दिन याद आया. कालेज के गेट के पास ही सीनियर लड़कों के एक गैंग ने उसे रोका था.

‘आइए मैडम, कहां जा रही हो? कालेज के नए छात्र को अपनी पहचान देनी होती है. उस के बाद आगे बढि़ए.’

रिया पहली बार गांव से पढ़ाई के लिए शहर आई थी और आते ही इस सामने आए संकट से वह घबरा गई.

‘अरे हीरो, तू कहां जा रहा है? तु झे दिख नहीं रहा यहां पहचान परेड चल रही है. चल, ऐसा कर ये मैडम जरा ज्यादा ही घबरा गई हैं. तू इन्हें प्रपोज कर. उन का डर भी चला जाएगा.’

अभीअभी आया राज जरा भी घबराया नहीं. उस ने तुरंत रिया की ओर देखा. एक स्माइल दे कर बोला. ‘हाय, मैं राज. घबराओ मत. बड़ेबड़े शहरों में ऐसी छोटीछोटी बातें होती रहती हैं.’

रिया उसे देखती ही रह गई.

‘आज हमारे कालेज का पहला दिन है. इस वर्षा ऋतु के साक्षी से मेरी दोस्ती को स्वीकार करोगी.’ रिया के मुंह से अनजाने में कब ‘हां’ निकल गई यह वह सम झ ही नहीं पाई. उस के हामी भरने से सीनियर गैंग  झूम उठा.

‘वाह, क्या बात है. यह है रियल हीरो. तुम से मोहब्बत के लैसंस लेने पड़ेंगे.’

‘बिलकुल… कभी भी…’

रिया की ओर एक नजर डाल कर राज कालेज की भीड़ में कब गुम हुआ, यह उसे मालूम ही नहीं हुआ. एक ही कालेज में, एक ही कक्षा में होने की वजह से वे बारबार मिलते थे. राज अपने स्वभाव के कारण सब को अच्छा लगता था. कालेज की हर लड़की उस से बात करने के लिए बेताब रहती थी. मगर राज किसी दूसरे ही रिश्ते में उल झ रहा था.

यह रिश्ता रिया के साथ जुड़ा था. एक अव्यक्त रिश्ता. उस का शांत स्वभाव, उस का मनमोहता रूप जिसे शहर की हवा छू भी नहीं पाई थी. उस का यही निरालापन राज को उस की ओर खींचता था.

एक दिन दोनों कालेज कैंटीन में बैठे थे. तब राज ने कहा, ‘रिया, तुम कितनी अलग हो. हमारा कालेज का तीसरा साल शुरू है. लेकिन तुम्हें यहां के लटके झटके अभी भी नहीं आते…’

‘मैं ऐसी ही ठीक हूं. वैसे भी मैं कालेज में पढ़ने आई हूं. पढ़ाई पूरी करने के बाद मु झे नौकरी कर के अपने पिताजी का सपना पूरा करना है. उन्होंने मेरे लिए काफी कष्ट उठाए हैं.’

रिया की बातें सुन कर राज को रिया के प्रति प्रेम के साथ आदर भी महसूस हुआ. तीसरे साल के आखिरी पेपर के समय राज ने रिया को बताया, ‘मु झे तुम्हें कुछ बताना है. शाम को मिलते हैं.’ हालांकि उस की आंखें ही सब बोल रही थीं. रिया भी इसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. इसी खुशी में वह होस्टल आई. मगर तभी मैट्रन ने बताया, ‘तुम्हारे घर से फोन था. तुम्हें तुरंत घर बुलाया है.’

रिया ने सामान बांधा और गांव की ओर निकल पड़ी. घर में क्या हुआ होगा, इस सोच में वह परेशान थी. इन सब बातों में वह राज को भूल गई. घर पहुंची तो सामने पिताजी का शव, उस सदमे से बेहोश पड़ी मां और रोता हुआ छोटा भाई. अब किसे संभाले, खुद की भावनाओं पर कैसे काबू पाए, यह उस की सम झ में नहीं आ रहा था. एक ऐक्सिडैंट में उस के पिताजी का देहांत हो गया था. घर में सब से बड़ी होने की वजह से उस ने अपनी भावनाओं पर बहुत ही मुश्किल से काबू पाया.

इस घटना के बाद उस ने पढ़ाई आधी ही छोड़ दी और एक छोटी नौकरी कर घर की जिम्मेदारी संभाली.

इधर राज बेचैन हो गया. सारी रात रिया का इंतजार करता रहा. मगर वह आई नहीं. उस ने कालेज, होस्टल सब जगह ढूंढ़ा मगर उस का कुछ पता नहीं चला. रिया ने ही ऐसी व्यवस्था कर रखी थी. वह राज पर बो झ नहीं बनना चाहती थी. पर राज इस सब से अनजान था. उस के दिल को ठेस पहुंची थी. इसलिए उस ने भी कालेज छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया.

‘‘मैडम, आप का काम हो गया क्या? मु झे औफिस बंद करना है. बड़े साहब कब के चले गए.’’

चपरासी की आवाज से रिया यादों की दुनिया से बाहर आई. उस ने सब सामान इकट्ठा किया और घर के लिए निकल पड़ी. उस के मन में एक ही खयाल था कि राज की गलतफहमी कैसे दूर करे. उसे उस का कहना रास आएगा या नहीं? वह नौकरी भी छोड़ नहीं सकती. क्या करे. इन खयालों में वह पूरी रात जागती रही.

दूसरे दिन औफिस में अंजली ने रिसैप्शन पर ही रिया से पूछा, ‘‘अरे रिया, क्या हुआ? तुम्हारी आंखें ऐसी क्यों लग रही हैं? खैरियत तो है न?’’

‘‘अरे कुछ नहीं, थोड़ी थकान महसूस कर रही हूं, बस. आज का शैड्यूल क्या है?’’

‘‘आज अपनी कंपनी को एक बड़ा प्रोजैक्ट मिला है. इसलिए कल पूरे स्टाफ के लिए आर जे सर ने पार्टी रखी है. हरेक को पार्टी में आना ही है.’’

‘‘हां, आऊंगी.’’

दू सरे दिन शाम को पार्टी शुरू हुई. रिया बस केवल हाजिरी लगा कर निकलने की सोच रही थी. राज का पूरा ध्यान उसी पर था. अचानक उसे एक परिचित  आवाज आई.

‘‘हाय राज, तुम यहां कैसे? कितने दिनों बाद मिल रहे हो. मगर तुम्हारी हमेशा की मुसकराहट किधर गई?’’

‘‘ओ मेरी मां, हांहां, कितने सवाल पूछोगी. स्नेहल तुम तो बिलकुल नहीं बदलीं. कालेज में जैसी थीं वैसी ही हो, सवालों की खदान. अच्छा, तुम यहां कैसे…?’’

‘‘अरे, मैं अपने पति के साथ आई हूं. आज उन के आर जे सर ने पूरे स्टाफ को परिवार सहित बुलाया है. इसलिए मैं आई. तुम किस के साथ आए हो?’’

‘‘मैं अकेला ही आया हूं. मैं ही तुम्हारे पति का आर जे सर हूं.’’

‘‘सच, क्या कह रहे हो. तुम ने तो मु झे हैरान कर दिया. अरे हां, रिया भी इसी कंपनी में है न. तुम लोगों की सब गलतफहमियां दूर हो गईं न.’’

‘‘गलतफहमी? कौन सी गलतफहमी?’’

‘‘अरे, रिया अचानक कालेज छोड़ कर क्यों गई, उस के पिताजी का ऐक्सिडैंट में देहांत हो गया था, ये सब…’’

‘‘क्या, मैं तो ये सब जानता ही नहीं.’’

स्नेहल रिया और राज की कालेज की सहेली थी. उन दोनों की दोस्ती, प्यार, दूरी इन सब घटनाओं की साक्षी थी. उसे रिया के बारे में सब मालूम हुआ था. उस ने ये सब राज को बताया.

राज को यह सब सुन कर बहुत दुख हुआ. उस ने रिया के बारे में कितना गलत सोचा था. हालांकि, उस की इस में कुछ भी गलती नहीं थी. अब उस की नजर पार्टी में रिया को ढूंढ़ने लगी. मगर तब तक रिया वहां से निकल चुकी थी.

वह उसे ढूंढ़ने बसस्टौप की ओर भागा.

बारिश के दिन थे. रिया एक पेड़ के नीचे खड़ी थी. उस ने दूर से ही रिया को आवाज लगाई.

‘‘रिया…रिया…’’

‘‘क्या हुआ सर? आप यहां क्यों आए? आप को कुछ काम था क्या?’’

‘‘नहीं, सर मत पुकारो, मैं तुम्हारा पहले का राज ही हूं. अभीअभी मु झे स्नेहल ने सबकुछ बताया. मु झे माफ कर दो, रिया.’’

‘‘नहीं राज, इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है. उस समय हालात ही ऐसे थे.’’

‘‘रिया, आज मैं तुम से पूछता हूं, क्या मेरे प्यार को स्वीकार करोगी?’’

रिया की आंसूभरी आंखों से राज को जवाब मिल गया.

राज ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उन के इस मिलन में बारिश भी उन का साथ दे रही थी. इस बारिश की  झड़ी में उन के बीच की दूरियां, गलतफहमियां पूरी तरह बह गई थीं.

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