"यार मैं तुम्हारे बिना बच्चों को 10-12 दिनों तक अकेले कैसे संभालूंगा? क्या यह टूर इतना जरूरी है? कोई बहाना नहीं बना सकती ?"
"मेरे प्यारे पतिदेव यदि टूर पर जाने के लिए बौस का इतना दबाव न होता तो मैं नहीं जाती. वैसे यह भी सो तो सोचो कि इस तरह के असाइनमेंट्स से ही मेरी स्किल डेवलप होगी और फिर इसी बहाने मुझे बाहर जाने का मौका भी मिल रहा है. बस 10 -12 दिनों की बात है. वक्त कैसे गुजर जाएगा तुम्हें पता भी नहीं चलेगा." नैना ने मुस्कुरा कर कहा पर मैं परेशान था.
"खाना बनाना, बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजना और फिर बच्चों की देखभाल... यह सब कौन करेगा?" मैं ने पूछा.
"देखो खानेपीने की चिंता तो बिल्कुल भी मत करो. मैं ने लाजो से कह दिया है. वह रोज सुबहसुबह आ कर नाश्ताखाना वगैरह बना देगी और बच्चों को तैयार कर के स्कूल भी भेज देगी. बच्चों को स्कूल से ला कर उन्हें खिला कर और फिर रात के लिए कुछ बना कर ही वह वापस अपने घर जाएगी. शाम में तुम आओगे तो सबकुछ तैयार मिलेगा. रही बात बच्चों के देखभाल की तो यार इतना तो कर ही सकते हो. वैसे बच्चे अब बड़े हो रहे हैं. ज्यादा परेशान नहीं करते."
"ओके डार्लिंग फिर तो कोई दिक्कत नहीं. बस तुम्हें बहुत मिस करूंगा मैं." मैं ने थोड़े रोमांटिक स्वर में कहा.
"जब भी मेरी याद आए तो बच्चों के साथ खेलने लगना. सब अच्छा लगने लगेगा." उस ने समझाया
मैं ने नैना को बाहों में भर लिया. वह पहली बार इतने दिनों के लिए बाहर जा रही थी. वैसे एकदो बार पहले भी गई है पर जल्दी ही वापस आ जाती थी.