अजय अभी भी अपनी बात पर अडिग थे, ‘‘नहीं शोभा, नहीं... जब बेटी के पास हमारे लिए एक दिन का भी समय नहीं है तब यहां रुकना व्यर्थ है. मैं क्यों अपनी कीमती छुट्टियां यहां रह कर बरबाद करूं...और फिर रह तो लिए महीना भर.’’

‘‘पर...’’ शोभा अभी भी असमंजस में ही थीं.

‘‘हम लोग पूरे 2 महीने के लिए आए हैं, इतनी मुश्किल से तो आप की छुट्टियां मंजूर हो पाई हैं, फिर आप जल्दी जाने की बात कहोगे तो रिचा नाराज होगी.’’

‘‘रिचा...रिचा...अरे, उसे हमारी परवा कहां है. हफ्ते का एक दिन भी तो नहीं है उस के पास हमारे लिए, फिर हम अभी जाएं या महीने भर बाद, उसे क्या फर्क पड़ता है.’’

अजय फिर बिफर पड़े थे. शोभा खामोश थीं. पति के मर्म की चोट को वह भी महसूस कर रही थीं. अजय क्या, वह स्वयं भी तो इसी पीड़ा से गुजर रही थीं.

अजय को तो उस समय भी गुस्सा आया था जब फोन पर ही रिचा ने खबर दी थी, ‘‘ममा, जल्दी यहां आओ, आप को सौरभ से मिलवाना है. सच, आप लोग भी उसे बहुत पसंद करेंगे. सौरभ मेरे साथ ही माइक्रोसौफ्ट में कंप्यूटर इंजीनियर है. डैशिंग पर्सनैलिटी, प्लीजिंग बिहेवियर...’’ और भी पता नहीं क्याक्या कहे जा रही थी रिचा.

अजय का पारा चढ़ने लगा, फोन रखते ही बिगड़े थे, ‘‘अरे, बेटी को पढ़ने भेजा है. वह वहां एम.एस. करने गई है या अपना घर बसाने. दामाद तो हम भी यहां ढूंढ़ लेंगे, भारत में क्या अच्छे लड़कों की कमी है, कितने रिश्ते आ रहे हैं. फिर हमारी इकलौती लाड़ली बेटी, हम कौन सी कमी रहने देंगे.’’

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