कुछ नौकरियों में ड्रैसकोड अनिवार्य है. जैसे, एअरहोस्टेस, पुलिस कर्मचारी, होटलों के शैफ, रेलवे के टीटीई आदि को प्रतिदिन यूनिफार्म पहन कर ही जाना होता है. ऐसे में यूनिफार्म का ध्यान रखना जरूरी हो जाता है, विशेषकर लड़कियों को. उन्हें अपनी यूनिफार्म, चाहे वह साड़ी हो, सूट हो या फिर पैंटशर्ट का खास ध्यान रखना चाहिए.
मेरी बेटी सरकारी कार्यालय में कार्यरत है. उसे 26 जनवरी, 15 अगस्त जैसे विशेष आयोजनों के तहत या फिर किसी बड़े अधिकारी के आने पर ही यूनिफार्म पहन कर जाना होता है. ऐसे ही एक दिन मेरी बेटी के साथ काम करने वाली एक लड़की घर आई तो आते ही बोली, ‘‘जल्दी से एक हलकी सी डै्रस दे, इसे (पहनी गई पैंटशर्ट को दिखाते हुए) पहन कर तो दम घुट रहा है. बस में चढ़ कर जाना मुश्किल हो जाएगा.’’
उस की बेतरतीब डै्रस को देख कर मैं उस से पूछ बैठी, ‘‘बेटी, तुम्हारी यूनिफार्म तो बड़ी कसी लग रही है?’’
वह बोली, ‘‘आंटी, रोजाना यूनिफार्म में नहीं जाना होता. आज 3 महीने बाद पहनी है. लगता है, मैं थोड़ी मोटी हो गई हूं, इसलिए कमर में पैंट का बटन ही नहीं लग रहा है, बैल्ट के नीचे उसे खुला ही रखना पड़ा है.’’ उस की बातें सुन कर लगा, सच में शरीर तोे बढ़ताघटता रहता है. ऐसे में रखी हुई यूनिफार्म के बारे में कैसे सोचा जाए कि वह काफी दिनों बाद पहनने पर फिट रहेगी या नहीं.
जब पहनें यूनिफार्म
जिन नौकरियों में रोजाना ड्रैसकोड में नहीं जाना होता है उन के लिए यूनिफार्म बनवा तो ली जाती है, लेकिन उस की उचित देखभाल नहीं की जाती, क्योंकि मन में विश्वास रहता है कि वह बहुत कम पहनी जाती है, इसलिए अच्छी ही रहेगी. फिर जब पहनने की जरूरत पड़ती है तो वह निकाल कर पहन ली जाती है.