लेखक- अनिता तोमर ‘अनुपमा’
जब-जब पति को वर्क फ्रॉम होम करते देखती तो जलन होने लगती थी. एक बार कुढ़कर ताना मारकर ज़रूर कहती, “अरे! ऐश है भई घर से काम करने वाले लोगों की, जब मन करे काम करो और जब मन करे आराम.
पति घूरकर मेरी ओर देखते और कहते, “तुम्हें जैसा लगता है वैसा बिलकुल भी नहीं है. हमें भी बँधकर काम करना पड़ता है. पता चलेगा जिस दिन खुद वर्क फ्रॉम होम करोगी.
मैं तुनुककर जवाब देती- “वे दिन मेरी ज़िंदगी के सबसे सुहावने दिन होंगे. ना सुबह-सुबह तैयार होने का झंझट होगा, ना खाना पैक करने का. जब मन करेगा उठेंगे और जब मन होगा काम करने लगेंगे. अंधे को क्या चाहिए दो नैन. परंतु हम अध्यापकों की ऐसी किस्मत कहाँ? भई! तुमने पिछले जन्म में मोती दान किए थे जो वर्क फ्रॉम होम कर रहे हो. एक हम हैं लगता है गधे दान किए थे, जो जिंदगी बिल्कुल वैसी ही बन गई है.”
पतिदेव मुस्कुराकर कहते, “तुम लोगों का काम कम से कम स्कूल के घंटों में अनुशासन में रहकर तो हो जाता है. हमें देखो! एक टारगेट मिलता है, उसे पूरा करने में दिन-रात, जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है. केवल नाम ही है कि हम घर से काम करते है, जबकि देखा जाए तो कहीं ज्यादा मेहनत हो जाती है.”
मैं अधीर होकर बीच में ही बात काटते हुए कहती, “कुछ भी कहो, मैं नहीं मानती. स्कूल की नौकरी में सुबह उठना, भागदौड़ करके नाश्ता-लंच तैयार करना, फिर पूरा दिन स्कूल में बच्चों के साथ माथापच्ची करना. क्या जिंदगी बन गई है, ऐसा लगता है हम अध्यापक नहीं आज भी स्कूल में पढ़ने वाले छात्र हैं. घंटी के साथ दिन शुरू होता है और हर घंटे के साथ भागदौड़ चलती रहती है. कभी-कभी तो अनुशासन भी दुश्मन लगने लगता है.”
हमारी इस तरह की नोंकझोंक अकसर चलती रहती थी. कितनी बार स्कूल में भी हँसी-मज़ाक में सहेलियों के सामने मुँह से निकल जाता – “काश! इन मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वालों की तरह हम लोग भी वर्क फ्रॉम होम कर पाते. अपनी इच्छानुसार जब मन करता काम करते. पर यार! हम अध्यापकों के जीवन में तो ऐसा कभी नहीं हो सकता, इसलिए सोचना ही बेकार है.”
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जाने कहाँ बैठे श्रीहरि यह सब सुन रहे थे. कुछ सोचकर वे मंद-मंद मुस्काए और बोले, “हे शिक्षकों! चिंता मत करो. तुम्हारे जीवन में कोरोना काल आएगा तब तुम्हारी यह इच्छा भी अवश्य पूर्ण होगी और तथास्तु कहकर हाथ उठाया.
किसी ने सोचा भी नहीं था कि कोविड-19 की वजह से सारे स्कूल, ऑफिस, कारखानें बसें, ट्रेनें आदि सब कुछ अचानक ही बंद हो जाएँगे. परीक्षाएँ लिए बिना ही पूरे देश में सभी शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए. अब तो बस छुट्टियाँ ही छुट्टियाँ थी. घर ही घर में रहना, दिनभर घर के काम करना अखर ज़रूर रहा था परंतु फिर भी मन ही मन खुश थी. सबसे ज्यादा खुश तो यह देखकर थी कि पतिदेव को तो अब भी वर्क फ्रॉम होम करना पड़ रहा है और हम अब बिलकुल फ्री थे.
पर वाह री किस्मत! मेरी खुशियों को तो मानो ‘ऑनलाइन क्लास माता’ की नज़र लग गई. हमारे विद्यालय ने भी ऑनलाइन क्लास शुरू करने का निश्चय किया. अब भाई जितनी चीनी डालोगे उतनी ही चाय मीठी होगी ना. तो बड़े जोरो-शोरों से हमारे वर्क फ्रॉम होम का भी श्रीगणेश हो ही गया.
अब समस्या यह थी कि हम अपना आसन कहाँ जमाए, जिससे क्लास लेते समय बच्चे भी बीच में बाधा ना डालें. पतिदेव ने साफ़ इंकार कर दिया कि हमारी वजह से वो अपना स्थायी आसन नहीं छोड़ेंगे. हमारे हिस्से में गेस्ट रूम का बेड आया जिस पर हमने अपनी पुस्तकों के साथ आसन जमाया.
विद्यालय द्वारा कक्षाओं का समय निर्धारित कर दिया गया. कभी बी.एड में पढ़ा था कि किसी भी विषय को पढ़ाते समय हमेशा सरल से कठिनाई के स्तर की ओर बढ़ना चाहिए, जिससे छात्रों पर मनोवैज्ञानिक दबाव नहीं पड़ता. कभी सोचा ना था कि यही फ़ॉर्मूला हम अध्यापकों पर भी अपनाया जा सकता है.
शुरू में लगा ऑनलाइन कक्षाएँ लेना उतना कठिन भी ना होगा, इतने सालों का पढ़ाने का अनुभव है. जैसे स्कूल में लेते हैं, बस वैसे ही ले लेंगे. जीवन में सोचे अनुसार कब काम होते हैं? हमारी ऑनलाइन पिक्चर तो अभी शुरू ही हुई थी, सस्पेंस तो अभी बाकी था.
हर रोज़ कक्षाएँ लेने से पहले हमें काफ़ी तैयारी करनी पड़ती, जैसे विषय से संबंधित नोट्स बनाकर स्लाइड तैयार करना, वर्क शीट बनाना, चित्र डाउनलोड करने आदि.
स्कूल द्वारा नियमों की लंबी-चौड़ी लिस्ट जारी कर दी गई. स्कूल के निर्धारित समय पर सभी को ऑनलाइन रहना पड़ता. इस बीच मजाल है हम इधर से उधर हो पाएँ. ऑनलाइन ही कुछ चमचों द्वारा हम पर पैनी नज़र रखी जाती.
अगर कभी नेटवर्क प्रॉब्लम का बहाना बनाते तो स्कूल से तुरंत मैसेज आ जाता कि अगर कोई भी ऑफलाइन है तो उसकी एक दिन की सैलरी काट दी जाएगी. अब भाई, सैलरी काटने वाली तलवार जब सिर पर लटक गई तो मरे क्या ना करें वाली स्थिति खड़ी हो गई. किसी तरह क्लास खत्म होती तो फिर कुछ विराम के बाद फीडबैक सेशन शुरू हो जाता. यह अल्पविराम का समय हमारे क़दमों को खींचकर रसोईघर की ओर ले जाता.
फीडबैक सेशन में करीब-करीब दस टीचर अपने-अपने विचार रखती. यही वो सही समय था जहाँ सबको सच्ची दुश्मनी निभाने का अवसर मिल रहा था. कमियों की इतनी लंबी फेहरिस्त निकल आती कि उस पल ऐसा महसूस होता मानो चीरहरण हो रहा है.
एक कहती- “मैडम आप शुरू में बहुत स्लो जा रही थी. पाठ उबाऊ हो रहा था.”
दूसरी कहती- “सेशन ठीक-ठाक ही था, लेकिन बीच-बीच में आपकी आवाज कट रही थी.”
नहले पे दहला मारते हुए मेरी को-आर्डिनेटर कहती- “पाठ का अंत जब हमें समझ नहीं आया तो बच्चे क्या खाक समझेंगे. देखना, कल ही पेरेंट्स से शिकायतें आनी शुरू हो जाएँगी.”
मैं मन ही मन सोचती – कोई नहीं बच्चू, हर कुत्ते का एक दिन होता है. चिंता मत करो तुम्हें भी ऑनलाइन आना है, फिर देखना मैं भी कैसे तुम्हारी धज्जियाँ उड़ाती हूँ. सबसे माफ़ी माँगकर अगले सेशन में गलतियाँ ना दोहराने का आश्वासन देने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं होता था.
इस सेशन के बाद सिर में जो दर्द होता तो चाय की तलब उठती. गैस पर चाय चढ़ाकर अपने दिल के दुखड़े को हल्का करने के लिए अपनी प्रिय सहेली को फोन लगा देती. कभी-कभी तो बातों-बातों में पता भी नहीं चल पाता और बेचारी चाय जल-भुनकर खाक हो जाती. आराम हराम है- गाँधी जी के नारे पर अमल करते हुए अगले दिन की ऑनलाइन क्लास की तैयारी में जुट जाती. बीच-बीच में लैपटॉप से उठकर रात के खाने की तैयारी भी करती रहती. प्रतिदिन रात आठ से नौ बजे अगले दिन की क्लास का डेमो सेशन होता, जिसमें प्रधानाचार्य के साथ मीटिंग में सभी अध्यापक ऑनलाइन रहते और अपने-अपने टॉपिक डिस्कस करते. हर बार सख्त हिदायतों या यूँ कहिए अगले साल कोई भी इन्क्रीमेंट ना होने की धमकी के साथ इस कार्यक्रम का समापन होता.
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किसने कहा लॉकडाउन में दिन काटे नहीं कटते? हमसे पूछो दिन कब शुरू होता है और कब खत्म, पता ही नहीं चलता. जिस तन लागै, सोई जाने. आज अहसास हो रहा है कि वर्क फ्रॉम होम कितना कठिन होता है.
बहुत पहले एक कहावत सुनी थी – जिसका काम उसी को साजै और करे तो डंडा बाजे. आज यह कहावत हम पर सटीक बैठ रही है. अब हम तो यही कह सकते हैं कि जहाँ का काम वही पर साजै और कहीं करो तो डंडा बाजे.
एक बार फिर प्रभु के सामने हाथ खुद-ब-खुद जुड़ गए. उनसे क्षमा माँगी और कहा, “हे प्रभु! ये वर्क फ्रॉम होम तो किसी दुश्मन को भी ना दीजो. वर्क फ्रॉम होम मृगमरीचिका है, केवल मोहमाया है. कहते हैं ना दूर के ढोल सुहाने लगते हैं……इस माया से हमें बचाओ प्रभु!!!