चीन के वुहान शहर से दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस से उभरी कोविड-19 बीमारी का क्लियर इलाज उपलब्ध नहीं है. इस बीमारी का अब तक न तो टीका बना है और न ही इलाज के लिए कोई दवा. ऐसे में इलाज कैसे हो? इसी उलझन में कई तरह के उपचारों में लोगों को उम्मीद दिख रही है. मरीजों को मलेरिया वाली दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन देना भी ऐसी ही एक उम्मीदभर है. एक उम्मीद की किरण अब प्लाजमा थेरैपी में दिख रही है.
कोविड-19 का पक्के तौर पर इलाज फ़िलहाल नहीं है. अभी तक जो पक्का है वह यह है कि आदमी का शरीर ही उस दुश्मन वायरस कोरोना से लड़ रहा है. शरीर में इम्यून सिस्टम होता है और यही उस दुश्मन वायरस से लड़ता है. इम्यून सिस्टम यानी बीमारियों से लड़ने की जिस्म की क्षमता. जिस्म के ख़ून में यह क्षमता यानी रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित होती है. आसान शब्दों में कहें तो जिस्म एक देश है तो इम्यून सिस्टम उसका सैनिक. जब वायरस, बैक्टीरिया या कोई फंगस जैसा कोई दुश्मन बाहर से हमला करता है तो जिस्म का यह सैनिक बचाव में उतर आता है. कोरोना वायरस से लड़ाई में अधिकतर मरीज़ों में मौजूद यह मजबूत सैनिक वायरस को ख़त्म कर दे रहा है और कुछ मामलों में, जिनमें यह सैनिक कमजोर है, जिस्म हार जा रहा है और मौत हो जा रही है.
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जानें थेरैपी को :
मरीज़ों में वायरस को ख़त्म करने यानी मार डालने का मतलब है कि जिस्म का इम्यून सिस्टम उस वायरस से लड़ना अच्छी तरह जान जाता है और उस को ख़त्म करने के लिए ख़ुद को तैयार कर लेता है. यहीं पर हम सबको को उम्मीद की किरण दिखती है. यदि इस वायरस से लड़ने में सक्षम इम्यून सिस्टम को कोरोना वायरस से संक्रमित दूसरे मरीज़ को दे दिया जाए तो? अब दूसरे व्यक्ति में जिस प्रक्रिया से इस रोग प्रतिरोधी क्षमता को दिया जाता है उसे ही प्लाजमा थेरैपी कहते हैं.
दरअसल, प्लाजमा एक गैस की तरह की चीज होती है. ख़ून से उसके मूल पदार्थ निचोड़ कर उसे प्लाजमा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस प्लाजमा में ठीक हो चुके कोरोना वायरस मरीज के ख़ून में से निचोड़ी गई रोग प्रतिरोधी क्षमता भी शामिल होती है. इसी प्लाजमा को दूसरे कोरोना पीड़ित मरीज़ के जिस्म में डाला जाता है.
थेरैपी की प्रक्रिया को ऐसे समझें, यह ठीक उस तरह से है जिसमें एक देश के सैनिक अगर तीर-भाले से ही लड़ने में सक्षम हों और दुश्मन गोला-बारूद से हमला कर दे तो वे सैनिक देश को सुरक्षा देने में असफल हो सकते हैं. लेकिन, यदि गोला-बारूद से हमले का मुक़ाबला करने वाले सैनिकों को भी गोला-बारूद दे दिया जाए तो वे सैनिक बेहतर तरीक़े से निपट सकते हैं और दुश्मन को हराने की उम्मीद ज़्यादा हो जाती है. प्लाजमा भी ठीक उसी तरह से है जिसमें कोरोना वायरस से लड़ने में सक्षम रोग प्रतिरोधी क्षमता को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में डाल दिया जाता है.
दिल्ली के एक निजी मैक्स हौस्पिटल में 2 मरीज़ों-पिता और पुत्र पर प्लाज्मा थेरैपी का इस्तेमाल किया गया. दोनों की हालत गंभीर थी और दोनों वेंटिलेटर पर थे. डाक्टरों का कहना है कि इलाज के दौरान 70 वर्षीय पिता की तो मौत हो गई है, लेकिन पुत्र की सेहत में सुधार है. कोरोना से ठीक हो चुकी एक महिला ने इन्हें प्लाजमा डोनेट किया था. डाक्टर का कहना है कि एक व्यक्ति के डोनेट करने पर 2 लोगों को इस प्लाजमा से इलाज किया जा सकता है.
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अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सरकारी अस्पतालों में इसका ट्रायल कर रहे हैं. दिल्ली सरकार को इस बाबत केंद्र सरकार के अधीन इंडियन काउंसिल औफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर से हरी झंडी मिल गई है. अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि उनको उम्मीद है कि इससे इलाज संभव हो सकेगा और मरीज़ ठीक होंगे. मालूम हो कि केंद्र सरकार के प्रोटोकाल के आधार पर दिल्ली सरकार इस तकनीक पर काम करेगी. इसके लिए सभी जरूरी मंजूरियां मिल गई हैं.