सुरेश,जिन्हें वावा सुरेश (1974 में जन्म) के अलावा और भी कई नामों से जाना जाता है-जैसे वसुर और स्नेक मास्टर. लेकिन अगर उनका सबसे अच्छा कोई नाम हो सकता है, जो उनके साथ न्याय करे,तो वह ‘भटकते साँपों का मसीहा’ ही हो सकता है. सुरेश एक ऐसे अद्भुत व्यक्ति हैं,जैसा शायद ही दुनिया में कोई दूसरा हो.वह सांपों से बहुत प्यार करते हैं.सांपों के प्रति उनके इस प्यार में माँ की ममता तथा पिता का संरक्षक भाव एक साथ शामिल है.पूरी दुनिया में अपनी सबसे कीमती पारिस्थितिकीय धरोहर जहरीले साँपों के लिए जाने जाने वाले वेस्टर्न घाट की यह धरोहर शायद लुप्त हो गयी होती या लुप्त हो जाती अगर दुनिया को बावा सुरेश जैसा सांपों का पैदाइशी मसीहा न मिला होता.
बावा सुरेश को भटके हुए सांपों को बचाने का जूनून है.माना जाता है कि अब तक वह कोई 50,000 भटकते साँपों को पकड़कर उन्हें सुरक्षित जगहों तक पंहुचा चुके हैं. उनके इस जूनून के पीछे साँपों की सुरक्षा और संरक्षण के अलावा कोई और लालच नहीं है.यहाँ तक कि उनसे काम से प्रभावित होकर साल 2012 में जब केरल के मंत्री केबी गणेश कुमार द्वारा उन्हें सांप पार्क में एक अस्थायी सरकारी नौकरी की पेशकश की तो सुरेश ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वह नौकरी करते हुए समाज की उस तरह से मदद नहीं कर सकता,जिस तरह से वह करना चाहता है.गौरतलब है कि सुरेश को चिंता है कि अगर सजगता से वेस्टर्न घाट के तमाम लुप्त हो रही सर्प प्रजातियों को न बचाया गया तो वे हमेशा हमेशा के लिए धरती से गायब हो जायेंगी.
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