इतिहास और आंकड़े देखें तो लगता है दुनिया को तंबाकू से छुटकारा पाना लगभग असंभव है. दुनिया में तंबाकू का चलन ईसा पूर्व 3000 सालों से जारी है. साल 1987 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे रोकने की एक वैश्विक रूपरेखा बनायी और 1988 से लगातार हर साल इसके लिए विश्व तंबाकू निषेध दिवस तो मनाया ही जाता है, पूरे साल भी धूम्रपान को हतोत्साहित करने के लिए तमाम तरह की कोशिशें की जाती हैं. बावजूद इसके न तो धूम्रपान करने वालों की संख्या में कोई कमी आ रही है और न ही तंबाकू की खपत में. यह तब है जबकि हर साल 80 लाख लोग धूम्रपान के चलते अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं. इनमें करीब 70 लाख लोग सीधे तौरपर तंबाकू और तंबाकू जनित उत्पादों के उपयोेग के कारण अपनी जिंदगी गंवाते हैं. जबकि 10 से 13 लाख के बीच में ऐसे लोग अपनी जान गंवाते हैं, जो खुद तो धूम्रपान नहीं करते, लेकिन धूम्रपान करने वालों के साथ रहते हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि धूम्रपान दुनिया में स्वास्थ्य के नजरिये से कितना खतरनाक है?
सबसे निराशाजनक बात तो यह है कि जब से दुनिया ने 31 मई को नो टोबेको डे यानी धूम्रपान निषेध दिवस मनाना शुरु किया, उसके बाद से भी इसकी खपत में किसी तरह की कोई कमी तो आयी ही नहीं. उल्टे ये दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. साल 2000 में जहां पूरी दुनिया में सालभर में सिर्फ 3 ट्रिलियन के आसपास सिगरेटें पी जाती थीं, वहीं साल 2016 में 5,700,000,000,000 सिगरेटें बिकी थी. जबकि उसी साल सिगरेटों सहित तमाम किस्म के धूम्रपान को हतोत्साहित करने के लिए दुनियाभर में 56 बिलियन डाॅलर खर्च किये गये. दुनियाभर की सरकारों द्वारा इतनी भारी भरकम धनराशि में से एक बड़ी राशि धूम्रपान के विरूद्ध विज्ञापनों पर खर्च की गई थी. लेकिन वक्त गवाह है कि इतनी कोशिशों के बाद भी धूम्रपान में किसी किस्म की कोई कमी नहीं आयी, उल्टे दुनिया में यह लत बढ़ती ही जा रही है.