400 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता गुलशन ग्रोवर भले ही ‘बैडमैन’ के नाम से परिचित हो, पर वे एक अत्यंत ही सुलझे हुए और संजीदा दिल इंसान है. वे सिंगल फादर है और सिर्फ साढ़े 4 साल की उम्र से अपने बच्चे संजय ग्रोवर की परवरिश की है. इस दौरान उन्हें कई समस्याओं से गुजरना पड़ा, लेकिन उनके माता-पिता, दोस्तों, और शूटिंग टीम के सदस्यों ने उनकी सहायता की, जिसके फलस्वरूप उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया. आज संजय बड़े हो चुके है और अमेरिका में कई सालों से फिल्मों से सम्बंधित विषयों पर पढाई कर लॉस एंजिलस के एम् जी एम् स्टूडियो में फिल्म प्रोड्यूसर है और हॉलीवुड में कई फिल्मों के निर्माण कार्य में लगे है. उनकी इस ग्रोथ में गुलशन ग्रोवर हमेशा साथ रहे और वे हमेशा हर साल अपने बेटे से मिलने अमेरिका जाते रहे. गुलशन ग्रोवर का उनके बेटे के साथ गहरा दोस्ताना सम्बन्ध है, जिसे वे बहुत एन्जॉय करते है.
वे कहते है कि मैंने सिंगल पैरेंट बनने के बारें में कभी सोचा नहीं था. परिस्थितियां ऐसी बनी कि मुझे ये चुनौती लेनी पड़ी. दरअसल एक बच्चे के परवरिश में माता-पिता दोनों का होना जरुरी होता है. हालात कुछ ऐसी बनी कि उसकी माँ हमें छोड़कर चली गयी. मैंने उस समय निर्णय लिया था कि बच्चे को मैं रखूँगा और इसकी परवरिश करूँगा. उस समय कह तो दिया था, पर बाद में काफी परेशानी हुई. मैं उन सब महिलाओं का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे संजय की परवरिश में सहायता की. शूटिंग पर गया और मेरा बेटा उधर आ गया, तो हेयर ड्रेसर से लेकर एक्ट्रेसेस सबने सहायता की. किसी रेस्तरां में गया तो वहां काम करने वालों ने सहायता की. फ्लाइट में गया तो किसी एयर होस्टेज ने और स्कूल में गया तो दूसरे बच्चे की माओं ने गाइड किया. बड़ी अच्छी आया मिली, जो उसकी देखभाल करती रही. इसके बाद जब मेरे माता- पिता ने देखा कि मैं अकेला बहुत मुश्किल में हूं, तो मेरे माता-पिता ने उसकी जिम्मेदारी ली. और बड़ा किया. जब संजय थोडा बड़ा हुआ, तो वह मुंबई आकर मेरे साथ रहने लगा.
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बच्चे की बचपन से अधिक किशोरावस्था महत्वपूर्ण होती है, ऐसे में उसकी देखभाल करने के बारें में पूछे जाने पर गुलशन बताते है कि अधिकतर बच्चे मां के साथ अधिक कम्फ़र्टेबल होते है और उनके साथ रिश्ता भी अच्छा रहता है. हमारे यहां पिता एक सेंटी फिगर होते है, जो शाम को आकर बच्चे की हाल चाल पूछते है और कुछ गलत किया तो डांटते है. उपरी ऑब्जरवेशन होता है. उसमें बच्चे का पिता से डर और औरा भी बना रहता है. बहुत करीब होने से औरा और डर दोनों चला जाता है, फिर उसे समझाना पड़ता है कि क्या गलत और क्या सही है. मैं बस इतना लकी था कि उस समय मेरे अंदर और बच्चे में सद्बुद्धि आई और वह दौर धीरे-धीरे निकल गया. अभी भी मेरा वैसा ही सम्बन्ध है और सिंगल पैरेंटहुड ही चल रहा है. संजय अभी अमेरिका के लॉस एंजिलस में एम जी एम (Mertro Goldwyn Mayer) स्टूडियो में फिल्म प्रोड्यूसर है. अभी लॉक डाउन में मेरे साथ मुंबई आया हुआ है, मुझे अच्छा लग रहा है और मैं अभी उसके फिल्म निर्माण में मदद कर रहा हूं.आगे उसकी फिल्मों में भी एक्टिंग करूँगा. फ़िलहाल मैं एक अनुभवी पिता की तरह उसकी हर संभव मदद कर रहा हूं.
आगे वे सिंगल पेरेंट्स के लिए ये मेसेज देना चाहते है कि जब आप जिम्मेदारी लें, तो पूरी तरह से मानसिक रूप से सोच लें, क्योंकि इसमें समय बहुत लगेगा, काम काज के साथ सामंजस्य के अलावा सोशल लाइफ का पूरी तरह से सैक्रिफाइस करना पड़ेगा. जब आप सिंगल पैरेंट बनते है, तो काम के बाद कहीं रुकने का मन ही नहीं करेगा. बच्चा आपका इंतजार कर रहा होगा या उसके साथ रहने में जो मज़ा आयेगा, वह अद्भुत होता है. इन सब त्याग के पीछे आनंद उस बच्चे को बड़े होते हुए देखने में होगा, जिसमें आपके सहयोग और त्याग से ही उस बच्चे में ग्रोथ, उसका आत्मविश्वास, व्यक्तित्व आदि सबकुछ निखरा है, वह एक स्वैर्गिक आनंद है, जिसे बयां करना संभव नहीं.