लेखक- प्रेमलता यदु
ऑफिस के लिए निकलते वक्त जब भी मोबाइल का रिंग बजता है खीझ सी महसूस होती है ऐसा लगता है जैसे इस छोटे से डिब्बे ने सब को छका रखा है सारे फुरसत के क्षण और प्रायवेसी छीन ली है.कभी भी किसी भी वक्त बज उठता है, बड़बड़ाती और ऑफिस के लिए रेडी होती हुई, मैंने फोन रिसीव कर, स्पीकर ऑन कर दिया.मां का फोन था.
"हां मां बोलो"
"तू कैसी है सुमी"
"मैं अच्छी हुं मां.तुम बताओ तुमने फोन क्यों किया,मैंने तुम से कितनी दफा कहा है इस वक्त फोन मत किया करो,मुझे बीसियों काम होते हैं."
मेरे ऐसा कहते ही मां झुंझलाती हुई बोली-" हां तो यहां मैं कौन सा खाली बैठी हूं.वो तो तेरी बड़ी भाभी ने आज.....
मैं मां को बीच में ही टोकते हुए बोली- "मां...अब तुम सुबह सुबह बहू पुराण शुरू मत करना.मुझे आज ऑफिस जल्दी पहुंचना है.मेरा आज बहुत important presentation है और उसमें अभी कुछ काम बाकी है. मुझे presentation से पहले उसे complete भी करना है.मैं ऑफिस पहुंच कर समय मिलने पर तुम्हें फोन करती हूं.ओ.के.बाय कह मैंने बिना मां की बात सुने और कुशलता पूछे फोन काट दिया.
कार की चाबी और ऑफिस बैग उठा घर से निकल पड़ी सारे रास्ते कभी मां, कभी ऑफिस और कभी presentation के विषय पर सोचती रही.
मैं ऑफिस तो वक्त पर पहुंच गई लेकिन मेरा मन मां के ही पास रह गया. मैं दो भाईयों की इकलौती बहन और अपने माता-पिता की सब से छोटी और लाड़ली बेटी हूं. मां और पापा का मुझसे विशेष स्नेह है. दोनों भैया और भाभियों की भी चहेती हूं.
हमारे बड़े भैया अनुराग जो एक बैंक में P.O.है और अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ भोपाल के हमारे पैतृक मकान में मां और पापा के साथ ही रहते है.बड़ी भाभी शिखा होम मैनेजर है लेकिन बेचारी कुछ भी मेनेज नही कर सकती सारा मेनेजमेंट मां के हाथों में है, वैसे भाभी स्वभाव की बहुत अच्छी है.घर पर सभी का ध्यान रखती है मां के कहे अनुसार ही सारे काम करती है लेकिन मां और भाभी की कभी बनी ही नही,मां हमेशा उनके कामों में मीनमेख निकालती रहती है.
छोटे भैया अनिमेष एक IT Company में जरनल मैनेजर है और Bangalore में अपनी पत्नी पूजा के साथ रहते है पूजा भाभी भी working है.दोनों well Settled है.अक्सर छुट्टी और तीज त्यौहार में ही घर आते है.
मां की छोटी भाभी से खूब पटती है कहते हैं ना दूर के ढोल सुहाने होते हैं .वैसे तो मां के लिए सभी बच्चे एक समान होते हैं क्योंकि मां तो मां ही होती है,लेकिन हर मां को अपनी बेटियों से अत्यधिक प्रेम होता है इसलिए मां सब से ज्यादा जान मुझ पर ही छिड़कती हैं. एक दिन बात ना हो तो पूरा घर सर पर उठा लेती है,या यूं समझ लीजिए जब तक वो मुझे घर की एक एक बात की खबर रोज़ नही दे देती उन्हें चैन नही पड़ता.
मां का मुझ से विशेष लगाव है.पापा, मां की बातों पर ध्यान नही देते.भाईयों के पास वक्त नही है और भाभियों से वो अपने दिल की बात कहना नही चाहती,अब बच जाती हूं मैं जिसे वो अपने दिल की हर छोटी-बड़ी बात बता कर अपना जी हल्का करती है फिर चाहे भाभी की बुराई करनी हो या फिर कोई और बात हो. मैं उनकी बातें कभी धैर्य से सुनती हूं और कभी कभी झुंझला भी जाती हूं उन पर.मां भी कभी मेरी बातों का बुरा मान जाती है और कभी नहीं भी मानती. कुछ ऐसा है हम मां बेटी का रिश्ता.
मैंने सोचा जब तक मैं मां से बात नही कर लूंगी मां परेशान रहेगी और अपना गुस्सा पापा और बड़ी भाभी पर निकालती रहेगी और मैं भी उनसे बगैर बात किये अपना presentation free mind से नही दे पाऊंगी.फिर अभी थोड़ा वक्त भी था presentation में,इसलिए मैं ऑफिस boy को कौफी के लिए बोल मां को उनके नम्बर पर call लगाने लगी.रिंग बजता रहा लेकिन मां ने फोन नही उठाया.फिर मैंने दोबारा फोन भाभी के नम्बर पर लगाया.भाभी से औपचारिक बातचीत के बाद मैंने भाभी से पूछा-" मां कहां है".
भाभी थोड़ी शिकायती लहजे में बोली-"दीदी, अम्मां जी आंगन में है ना जाने क्या हुआ है अब तक पापा जी को कई बार सारा दिन केवल पेपर पढ़ते रहने का उलाहना दे चुकी है और मेरे मना करने के बावजूद खुद ही चांवल के पापड़ बनाने में लगी हुई है.
मैं समझ गई थी बात क्या है मैंने भाभी से कहा-" आप चिंता मत करो.मां से मेरी बात करा दो".
मां फोन पर आते ही बोली-" देख सुमी मेरे पास अभी बहुत काम है. मैं घर पर खाली नहीं बैठी हूं जल्दी बोल क्या बात है."
"हां मां मैं जानती हूं तुम्हारे पास बहुत काम है. अभी presentation में थोड़ा वक्त है और उस समय तुम से बात नहीं हो पाई ना इसलिए फोन किया है."
मेरा बस इतना कहना था कि मां की आवाज़ में खनक आ गई और मुझसे कहने लगी-"सुमी मैं तुझ से सुबह कह रही थी ना कि आज तेरी भाभी ने....."
"क्या किया भाभी ने?"
"अरे कुछ नहीं किया उसने, तुझे तो बस यही लगता है कि तेरी मां तेरी भौजाईयों की शिकायत करने के लिए ही तुझे फोन करती है"
"अच्छा... अच्छा... I am sorry अब बताओ क्या बात है".
अरे आज तेरी बड़ी भाभी मलाई कोफ्ता बनाई है. मैंने उससे कहा थोड़ी ज्यादा बना लेना.राजीव को भी पसंद हैं ना इसलिए".
राजीव, मेरे पति, जिनका मान मेरी मां के लिए सर्वोपरि है.राजीव के आगे घर का हर सदस्य नगण्य है .राजीव रेवेन्यू डिपार्टमेंट में अधिकारी है.हम दोनों पति-पत्नी यहां इसी शहर भोपाल में रहते हैं वैसे तो मेरा ससुराल रतलाम है लेकिन हम दोनों की नौकरी इसी शहर में होने की वजह से हम यहीं रहते है.एक ही शहर में मायका होने के कारण मुझे कभी मायके की कमी महसूस नहीं हुई.
मां ने आगे कहा-" तुम एक काम करना लंच ब्रेक में घर आ जाना और राजीव को भी आने का कह देना हम साथ लंच करेंगें.
"बस यही कहने को तुम मुझे फोन कर रही थी."
"नही अरे सुमी तू सुन ना... मेरी बात, आज जैसे ही मैंने शिखा से मलाई कोफ़्ता बनाने को कहा तो उसका मुंह गुब्बारे की तरह फूल गया, और जब मैंने तेरे पापा से यह सब बात बताई तो वे कहने लगे " तुम बहू को अपने हिसाब से बनाने दिया करो.तुम क्यों फरमाइशें करती रहती हो.अब तू ही बता क्या मैं घर में किसी से कुछ कह भी नही सकती"?.
"ऐसा कुछ नहीं है मां बस भाभी को घर पर बहुत काम होते है, इसलिए पापा ने आप से कहा होगा".
"बस बस अब तू भी अपने पापा की भाषा बोलने लगी.मेरी बात तो किसी को सुनना ही नहीं है.अच्छा सब छोड़ तू ये बता लंच टाइम में आएगी ना?"
"नहीं मां possible नहीं है presentation खत्म होते होते समय लग जाएगा, लेकिन शाम को पक्का मैं और राजीव घर आते है.रात का खाना हम सबके साथ ही खाएंगे.आप अपना ध्यान रखना और पापा से ज्यादा कुछ मत कहना, तुम बोलती ज्यादा हो, इतना कह मैंने फोन रख दिया.
मैं सोचने लगी.भरा पूरा परिवार है.घर पर किसी चीज की कमी नहीं लेकिन मां और बड़ी भाभी की न जाने क्यों नहीं पटती.मां को सास होने का रौब जताना होता है यदि कभी मां भूल भी जाए कि वो सास है तो आस पड़ोस के लोग उन्हें भूलने नही देते कि वो सास है और उनका काम बहू के काम में मीनमेख निकालना है.
"मैडम आप की कौफी ".से मेरी तन्द्रा भंग हुई.कौफी पीने के बाद मैं Presentation के लिए चली गई.
शाम को जब राजीव के संग घर पहुंची तो बड़े भैया और पापा हाल में न्यूज़ देख रहे थे.राजीव भी उनके साथ हो लिए.
मुझे आया देख बंटी और चिंकी बुआ.... कहते हुए मुझसे लिपट गए.मैंने उन्हें अपने बैग से चिप्स और चाकलेट निकाल कर दिया,जिसे लेकर वो अपनी पढ़ाई करने लगे, और मैं सीधे किचन की ओर मुड़ गई.
किचन में मां और भाभी खाना बनाने में लगी हुई थी.मैं भाभी के कांधे पर हाथ रखती हूई बोली-" भाभी ये इतना सबकुछ क्यों बना रही हो, क्या जरूरत है इतने तामझाम की, भाभी कुछ कहती इससे पहले मां कहने लगी-"अरे वाह क्यों जरूरत नहीं है.क्या शिखा दामाद जी को दोपहर का मलाई कोफ्ता ही खिलाएगी ? एक ही तो ननदोई है शिखा के, उनकी भी खातिरदारी नहीं करेगी तो किसकी करेगी और कौन सा तुम लोग रोज़ रोज़ आते हो. मां के ऐसा कहने पर जब मैंने भाभी की ओर देखा तो भाभी मुस्कराने लगी जैसे आंखों ही आंखों में कह रही हो हां दीदी आप लोग कहां रोज़ आते हैं हर दो चार दिन बाद आते हैं.
किचन में मां और भाभी खाना बनाने में लगी हुई थी.मैं भाभी के कांधे पर हाथ रखती हूई बोली-" भाभी ये इतना सबकुछ क्यों बना रही हो, क्या जरूरत है इतने तामझाम की, भाभी कुछ कहती इससे पहले मां कहने लगी-"अरे वाह क्यों जरूरत नहीं है.क्या शिखा दामाद जी को दोपहर का मलाई कोफ्ता ही खिलाएगी ? एक ही तो ननदोई है शिखा के, उनकी भी खातिरदारी नहीं करेगी तो किसकी करेगी और कौन सा तुम लोग रोज़ रोज़ आते हो. मां के ऐसा कहने पर जब मैंने भाभी की ओर देखा तो भाभी मुस्कराने लगी जैसे आंखों ही आंखों में कह रही हो हां दीदी आप लोग कहां रोज़ आते हैं हर दो चार दिन बाद आते हैं.
सहसा ज़ोर से बड़े भैया की मां को पुकारने की आवाज आई .हम तीनों किचन से हाल की ओर दौडे.अचानक पापा की तबियत खराब हो गई थी.उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी,छाती में तेज़ दर्द उठा और पापा बेहोश हो गए.हम पापा को लेकर तुरंत अस्पताल पहुंचे.जहां इमरजेंसी वार्ड में उनका ई सी जी,टी एम टी टेस्ट किया गया और फिर पापा को admit कर लिया गया.
भाभी ने बताया आज सुबह से ही पापा की छाती में हल्का हल्का जलन और दर्द था.शाम को बड़े भैया पापा को check up के लिए ले जाना चाहते थे, लेकिन पापा यह कह कर टाल गए कि गैस, एसीडिटी है ठीक हो जाएगा.पापा दस दिनों तक हास्पिटल में admit रहे और मां उनके साथ हास्पिटल में ही रही.उसके बावजूद मुझे रोज फोन कर यहां वहां की बातें करती, कभी कभी मैं चिढ़ भी जाती और उनसे कहती- "तुम सारा पंचायती छोड़ो पापा के स्वास्थ्य पर ध्यान दो". कभी-कभी मैं सोचती मां ऐसे विषम परिस्थिति में भी अपने आपको इतना सहज और मजबूत कैसे रख पाती है.
पापा ये पहली बार एडमिट नही हुए थे. इससे पहले भी पापा कई बार एडमिट हो चुके थे. रिटायरमेंट के बाद पापा अक्सर बीमार ही रहते हैं.पापा डरते थे कहीं उन्हें कुछ हो गया तो मां का क्या होगा.उन्हें लगता था मां और बड़ी भाभी का निभना मुश्किल है.पापा कभी कभी मां की चिंता करते हुए मुझसे कहते-"सुमी अगर मुझे कुछ हो गया तो तू अपनी मां को अपने साथ ले जाना.तेरी बड़ी भाभी तेरी मां को संभाल नही पाएगी और तेरी छोटी भाभी उसे अपने संग कभी ले के नहीं जाएगी".
पापा की बातें सुन मैं हमेशा पापा से कहती -"आप क्यों बेफिजूल की बातें करते हैं .आप को कुछ नही होगा.ऐसा दिन कभी नही आएगा.
एक दिन अकस्मात ही सुबह सुबह बड़ी भाभी का फोन आया .भाभी रोते हुए बोली- दीदी आप जल्दी हास्पिटल आ जाईए.मां की तबियत खराब हो गई है. हास्पिटल पहुंचने पर मैंने देखा मां निश्चेत अवस्था में पड़ी हुई है.मुझे याद नहीं मैंने कभी मां को इस अवस्था में देखा हो.मैंने मां को मुस्कुराते, खिलखिलाते, अविरल बोलते और सदा उर्जा से लबरेज ही देखा है.
आज मां को इस हालत में देख मेरी आंखें भर आईं.भाभी ने बताया मां को पैरालिसिस अटैक था.शरीर का बायां हिस्सा काम करना बंद कर चुका था.मां का मुंह टेढ़ा हो गया था.जो हरदम बड़-बड़ करती रहती थी अब बोल नही सकती थी.वो पूरी तरह से शांत हो गई थी. डॉक्टरों ने उन्हें घर ले जाने को कह दिया.हम उन्हें घर ले आए. मैं हर सुबह उनके फोन का इंतजार करती.उनकी बातें सुनना चाहती पर अब यह संभव नही था.दिन बीतते चले गए, कैंलेंडर के पन्नें बदलते रहे,साल दर साल गुजर गए लेकिन ना मां ठीक हूई ,ना दूबारा कुछ बोली और एक दिन मां हम सब को छोड़ कर हमेशा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गई.
जब भी मां को स्मरण करती हूं, मुझे पापा से कही अपनी वो बात याद आने लगती है जो मैं अक्सर पापा से कहती - "पापा वो दिन कभी नहीं आएगा". सच में अब वो दिन कभी नही आएगा जब मुझे मां को अपने घर ले जाना पड़ेगा.
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