टैलीविजन अचानक पुराना पड़ गया है, जो भी आज दिखाया जा रहा है यदि उस में कोरोना का नाम नहीं है तो पुराना है जो आज के युग में हकीकत से मेल नहीं खाता. कपिल शर्मा शो में भारी भीड़ अजीब लगती है, क्योंकि पक्का है कि अभी महीनों तक इस तरह की भीड़ नहीं जुटेगी. फिल्मों में डांस बनावटी लगते हैं, क्योंकि अब तो 10 लोगों का एकसाथ नाचना सपनों की तरह लगता है.

अब लोग भरे बाजार में चलना भूल गए हैं और इसलिए फिल्म में भीड़ दिखे तो लगता है कि यह साइंस फिक्शन है, असलियत से दूर. अगर कहीं ट्रैवल शो हो तो ऐसा लगता है मानो नील आर्मस्ट्रांग को चांद की धरती पर उतरते देख रहे हैं. स्विट्जरलैंड तो न जाने कौन से ग्रह पर है. अब तो शिमला और गोवा भी अपने देश के नहीं लगते.

अब टैलीविजन के इंटरव्यू घरों से हो रहे हैं, जिन में स्काइप की पूअर क्वालिटी पर आड़ेतिरछे बैठे पात्र नजर आ रहे हैं और पीछे से उन के मकान उन की चुगली कर रहे हैं. टीवी स्क्रीनों पर शार्पनैस गायब हो गई है.

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फिल्मों का भी यही हाल है. कल की बौक्स औफिस हिट फिल्म चाहे 2019 में ही क्यों न बनी हो लगता है किसी पुराने जमाने की बात कर रही है. जब हमें यह भी नहीं पता कि कोरोना के बाद नया रोमांस कब किस से कैसे होगा फिल्मों में ट्रेन या हवाईजहाज अथवा रेस्तरां में होने वाला रोमांस कैसे अच्छा लगेगा?

कोरोना ने पूरा साहित्य बदल डाला है. मार्च, 2020 से पहले लिखा गया सबकुछ निरर्थक हो गया है. साहित्यिक उपन्यासों पर बनी फिल्मों में बनावटीपन दिखने लगा है. नाचगाने अजीब लगने लगे हैं. अब तो हरेक को अपने घर में नाचना पड़ रहा है, अकेले.

शादियां, शिक्षा, कामकाज सब बदल रहा है और जो कुछ भी इस बदलाव से पहले रचा गया, फिल्माया गया वह सब पुराना पड़ गया है. कोरोना ने टैलीविजन को तो बदल ही दिया है, आप भी ज्यादा कल तक में न चिपकी रहें, पुरानी पड़ जाएंगी.

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