अतुल एक निजी हौस्पिटल में डाक्टर था. महानगर के रहनसहन के तौरतरीके इतने महंगे थे कि चाह कर भी वह कुछ बचत नहीं कर पाता था. जब परिवार ने विवाह के लिए जोर देना शुरू किया तो उस की बस एक ही इच्छा थी कि उस की पत्नी भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो ताकि आगे का जीवन सुचारु रूप से चल सके. जल्द ही तलाश खत्म हुई और प्रीति उस की प्रीत की डोरी में बंध गई.

प्रीति आई तो गृहस्थी के खर्चे भी बढ़ गए, मगर प्रीति ने घरखर्च या किसी भी और तरह के खर्र्च को बांटने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. नतीजा यह हुआ कि बढ़े हुए कई खर्चे अतुल के सिर पर आ गए.

जब अतुल ने प्रीति को गृहस्थी में योगदान करने के लिए कहा तो वह फूट पड़ी. बोली, ‘‘कैसे मर्द हो जो बीवी की कमाई पर गृहस्थी की गाड़ी खींचोगे?’’

प्रीति के इस रवैए से अतुल हैरान हो उठा.

ऐसा ही हाल पल्लवी और सौरभ के घर का था. लोन की किस्त, बच्चों की पढ़ाई और घरखर्च सब सौरभ की जिम्मेदारी थी, यहां तक कि कभीकभी अगर कोई खर्च और आ जाता था तो सौरभ को दोस्तों से उधार मांगना पड़ता था पर पल्लवी के कान पर जूं नहीं रेंगती थी.

ऐसा नहीं है कि हर पत्नी का रवैया ऐसा ही हो. नितिन और ऋचा के केस में बात कुछ और ही है. ऋचा की नौकरी के बल पर नितिन ने पैसे उलटेसीधे व्यापार में लगा दिए और फिर ठनठन गोपाल. कई बार ऐसा हुआ. तब ऋचा को लगने लगा कि विवाह के बाद पति को बल देने के लिए नौकरी करना उस की सब से बड़ी भूल थी.

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