बड़े शहर के लोगों के मन में हमेशा छोटे शहर से आए लोगों को लेकर एक मानसिकता देखने को मिली है कि वह उन्हें गंवार मानते हैं. छोटे शहरों से आए लोगों के प्रति यह धारणा भी होती है कि उन्हें ड्रेसिंग का सलीका नहीं होता. वह प्रजेंटेबल नहीं होते. उनमें कॉन्फिडेंस की कमी होती है और उनके कम्युनिकेशन स्किल्स बेहद खराब होते हैं.

साथ ही खासकर लड़कियों के बारे में यह सोचा जाता है कि वह दकियानूसी होती हैं.

1-उदाहरण

एक कंपनी की सीईओ जो कि उत्तर प्रदेश के एक छोटे कस्बे से संबंधित हैं, कहती हैं, "एक छोटे शहर में पलने बढ़ने व 17 की उम्र में दिल्ली जैसे महानगर में शिफ्ट होने के बाद मैं यहां के लोगों में छोटे शहरों व कस्बों में रहने वाले लोगों के बारे में सोच देख कर हैरान रह गई. बहुत जानने व परखने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंच पायी कि लोगों की सोच वैसे ही बन जाती है, जैसे वे टीवी सीरियल्स में छोटे शहर के लोगो को देखते हैं. परंतु ऐसा कुछ भी नहीं है. न तो मैं किसी बन्धन में बंधी हुई हूं और न ही मैं 'अगले जन्म मोहे बिटिया ही किजो' जैसे सीरियल्स के मुख्य किरदार जैसी बेचारी लड़की हूं. हम छोटे शहर वाली लड़कियां भी जींस और शार्ट्स पहनती हैं. हम भी इंग्लिश मीडियम स्कूल से पढ़ीं हुईं हैं. हम में से बहुत सी लड़कियां फैशन, शिक्षा, पुरानी रीति रिवाज, हिस्ट्री व देश दुनिया में क्या हो रहा है उस चीज से अच्छी तरह वाकिफ हैं. हमें भी गुची व फरारी जैसे आधुनिक ब्रांड्स के बारे में भी अच्छे से ज्ञान है. हमारे मोबाइल्स में भी सभी तरह के आधुनिक ऐप्स हैं".

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