औरतों के बारे में मर्दों की खीज किस तरह की और कितनी गहरी है यह आधुनिक, तकनीक में सब से आगे, सब से अमीर देश अमेरिका के राष्ट्रपति के महान बोल से साबित होता है. डैमोक्रेटिक पार्टी के जो बायडन द्वारा कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार चुनने पर ट्रंप जनाब ने बोला है कि कुछ पुरु ष इसे अपमानजनक मानेंगे. अमेरिका के व्हाइट हाउस में औरतें सिर्फ  सजावटी बनी रहें यह सोच आज भी अमेरिका में खूब फै ली हुई है और 2016 में हिलेरी क्लिंटन की हार के पीछे उन का एक औरत होना ही था.

कमला हैरिस एक दक्षिण भारतीय मां और जमैका के मूल अफ्र ीकी वंश के पिता की बेटी हैं और पहले खुद राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल थीं पर जब लगा कि यह हो नहीं पाएगा तो जो बायडन के पक्ष में बैठ गई थीं. कैलीफ ोर्निया में कई सालों तक अटौर्नी जनरल और कई सालों तक सीनेटर रहीं कमला हैरिस को अमेरिकी गोरे कट्टरपंथी ऐसी ही पसंद नहीं करेंगे जैसे हमारे यहां 2013 में सुषमा स्वराज को योग्य होते हुए भी भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री का उम्मीदवार नहीं बनाया.

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हमारा देश और डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका फि लहाल एक ही से रास्ते पर चल रहे हैं और तभी इसी साल भारत के अहमदाबाद में डोनाल्ड ट्रंप का भारी भीड़ ने स्वागत करते हए नारे लगाए थे कि एक बार फि र ट्रंप सरकार. कमला हैरिस में भारतीय खून है पर फि र भी अपने को भारतीयों में श्रेष्ठ समझने वाले शायद इसी कारण एक बार फि र गोरे कट्टरपंथियों के साथ डोनाल्ड ट्रंप को वोट दें. वहां भारतीय मूल के अमेरिकी चाहे गुणगान भारतीय कट्टरपंथी रीतिरिवाजों का करते रहें, वे दोयम दरजे नागरिक होते हुए भी  ऊंचों, अमीरों, गोरों की चरणवंदना करते रहते हैं और उन्हें अमेरिका के बराबरी की मांग करने वाले कालों, लैटिनों, औरतों के ग्रुप नहीं भाते.

कमला हैरिस अपना भारतीयन बहुत कम दिखाती हैं और खुद का विशुद्ध अमेरिकी ही मानती हैं पर फिर भी कुछ लगाव तो उस देश से होता ही है जहां की मिट्टी से कुछ संबंध हो. नरेंद्र मोदी के लिए जो बायडन के जीतने पर कुछ दिक्कत होगी क्योंकि वे खुल्लमखुल्ला रिपब्लिकन ऐजेंडे का समर्थन कर चुके हैं, जिस में चीन से 2-2 हाथ भी करने हैं.

अमेरिका की यह खासीयत है कि उस ने हाल में ही अमेरिका में आए योग्य लोगों को भी खुले दिल से अपनाया है. वहां रेसिज्म है, बहुत है, पर फि र भी उदार लोगों की भी कमी नहीं है जो गोरों, कालों, भूरों, पीलों के मर्दों को निरर्थक मानते हैं और जो जैंडर से ऊ पर हैं.

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अगर डैमोक्रेटिक उम्मीदवार 3 नवंबर को होने वाले चुनाव में जीतते हैं तो पटाखे भारत में भी फूटने चाहिए कि एक संपूर्ण देशी मां की बेटी उपराष्ट्रपति बन गई हैं. देश को चाहे आर्थिक या व्यावसायिक लाभ न हो पर फि र भी थोड़ी इज्जत तो बढ़ेगी और इस का असर हमारी कट्टरपंथी राजनीति पर भी पड़ेगी.

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