भारत की शान और प्रेम का प्रतीक ताजमहल को भला कौन नहीं जानता. सच तो यह है कि ताजमहल की वजह से ही उत्तर प्रदेश का आगरा पूरी दुनिया में मशहूर है. इस शहर को ताजनगरी के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन मौजूदा दौर में इस शहर की पहचान लोग दूसरे रूप में करने लगे हैं.

आगरा से हाथरस की दूरी महज 51 किलोमीटर है. अगर आप मैट्रो शहर में रहते हैं तो यह दूरी कोई माने नहीं रखती. आगरा से हाथरस जाने में लगभग 1 या सवा घंटे का वक्त लगता है.

यकीनन आप अभी यही सोच रही होंगी कि आखिर यह सब मैं क्यों लिख रही हूं? तो मैं आप को बता दूं कि एक घटना ने उस शहर का परिचय ही बदल कर रख दिया है.

हैवानियत की इंतहा

जिस शहर को ताजमहल की शोहरत से आंका जाता था, अब वही शहर हाथरस गैंगरेप कांड से जाना जाने लगा है. यह कुछ वैसा ही है जैसे दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को हुए निर्भया कांड के दौरान हुआ था.

23 साल की फिजियोथेरैपिस्टा निर्भया अपने एक दोस्तव के साथ साउथ दिल्ली1 के एक थिएटर से फिल्म ‘लाइफ औफ पाई’ देख कर लौट रही थी. दोनों मुनिरका में औटो रिकशा का इंतजार कर रहे थे. तभी एक चार्टर्ड बस में दोनों को फुसला कर बैठा लिया गया और फिर वह सब हुआ जिसे सुन कर आज भी रौंगटे खङे हो जाते हैं.

इस जगह से आज भी कोई वहां से गुजरता है तो यही कहा जाता है कि देखो, यह वही बस स्टैंड है जहां से निर्भया कांड हुआ था.

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आज कुछ ऐसी ही स्थिति है हाथरस की. जब हाथरस का रहने वाला कोई शख्स दूसरे शहरों में नौकरी करने, पढ़ने या फिर किसी और काम से बाहर जाता था तो वह अपने शहर का नाम हाथरस बताता था. लोग हाथरस के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे. जैसे ही सुनने वाला यह सवाल दागता कि यह कहां है? तो पता बताने वाला शख्स झट बोल पङता,”अरे, आप को पता नहीं? ताजनगरी आगरा के पास ही तो है हाथरस…”

लेकिन अब हाथरस के आसपास रहने वाले लोगों को ताजनगरी की पहचान नहीं बतानी पड़ेगी. अब तो हाथरस का नाम लेते ही सामने वाला शख्स कहने लगता है कि अरे, वही हाथरस न जहां पर एक युवती के साथ गैंगरेप हुआ और बाद में उस की बेरहमी से हत्या कर दी गई?

कटघरे में योगी सरकार

यों इस बात का फैसला अदालत करेगी कि पीङित युवती के साथ क्या हुआ मगर जब इस मामले को मीडिया ने जोरशोर से उठाया तो वहां सियासी जमात उमड़ पड़ी.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का काफिला हाथरस पहुंचा तो उत्तर प्रदेश पुलिस और उन के बीच काफी गहमागहमी देखी गई.

इस मामले को ले कर जितनी मुंह उतनी बातें हो रही हैं. सचाई या तो वह बिटिया जानती थी जोकि अब इस दुनिया में नहीं है या फिर उस के परिवार वाले, मगर आखिरी सांस लेने से पहले पीङिता ने अपने साथ हुई ज्यादती और गैंगरेप होने की बात कही थी.

बढ़ते दबाव के बीच उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने हालांकि सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी है लेकिन इस सचाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस मामले में योगी सरकार पूरी तरह से बैकफुट में नजर आई.

योगी सरकार के आला अधिकारियों का रवैआ निराशाजनक रहा और वहां की सरकार इस मामले को गंभीरता से नहीं ले पाई. ऐसा लग रहा था जैसे सरकार कुछ छिपा रही है.

सवालिया निशान

सरकारी रवैए पर कई सवालिया निशान भी हैं और वह यह कि आखिरकार परिजनों को शव क्यों नहीं सौंपा गया? क्यों आधी रात को शव को जला दिया गया और वह भी पुलिस द्वारा? क्यों मीडिया की ऐंट्री बैन कर दी गई? क्यों नेताओं को परिजनों से नहीं मिलने दिया गया? क्यों उस गांव को छावनी में तबदील कर दिया गया?

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इन सवालों के जवाब शायद किसी के पास नहीं हैं.

फिलहाल, अब सीबीआई तय करेगी कि उस बेटी के साथ क्या हुआ. हम सब भी यही चाहते हैं कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले. लेकिन इस कांड ने ताजमहल की सफेदी पर कालिख जरूर पोत दी है.

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