लेखिका- नम्रता सरन ‘सोना’

यह-कहानी शुरू होती है एक साधारण सी लड़की से, जिसे शायद कुदरत रंगरूप देना भूल गई थी, या फिर यों कहिए कि कुदरत ने उस साधारण लड़की में कुछ असाधारण गुण जड़ दिए थे जो वक्त के साथ उभरते और निखरते रहे.

3 बहनों में दूसरे नंबर की सांवली का नाम शायद उस के मातापिता ने उस के रंग के कारण ही रखा था. एक तो सांवली ऊपर से दांत भी बाहर निकले हुए, एक नजर में कुरूपता की निशानी. बड़ी और छोटी बहनें गजब की खूबसूरत थीं.

दोनों बहनों में जैसे एक बदनुमा दाग की तरह दिखने वाली, मातपिता की सहानुभूति, रिश्तेदारों, परिचितों से मिली उपेक्षा ने सांवली में एक अद्भुत स्वरूप को उकेरना शुरू कर दिया था. वह था स्वयं से प्यार. बचपन से ही अंतर्मुखी सांवली का दिमाग उम्र से ज्यादा तेज था. छोटीमोटी उलझनों को चुटकी में सुलझा देना उस के नैसर्गिक गुणों से शुमार था. जहां एक ओर उस की दोनों बहनें घरघर खेलतीं, सजतींसंवरतीं, वहीं सांवली गणित के सवालों को हल करती दिखती. वक्त के साथ तीनों जवान हो गईं. सांवली पढ़ाई में हमेशा अव्वल रही. बहनों की खूबसूरती और निखर गई, सांवली अपना संसार बुनती रही, जहां उस के अपने सपने थे. अपने दम पर खुद को सिर्फ खुद के लिए साबित करना, उस की प्रतियोगिता किसी और से नहीं, स्वयं से थी. जूडो और बौक्सिंग उस के पसंदीदा खेल थे. स्कूल और कालेज स्तरीय कई प्रतियोगिताओं के मैडल उस ने अपने नाम कर लिए थे.

मातापिता को चिंता खाए जा रही थी कि तीनों का विवाह करना है और खासकर सांवली को ले कर चिंतित रहते थे कि कैसे होगा इस का विवाह, कौन इसे पसंद करेगा, ज्यादा दहेज देने की हैसियत नहीं है, क्या होगा? लेकिन सांवली इन सब बातों से बेफिक्र थी, उस की डिक्शनरी में अभी विवाह नाम का कोई शब्द नहीं था. उस ने तो ठान लिया था कि मरुस्थल में फूल खिलाना है.

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