फिल्म ‘चांदनी’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री मीता वशिष्ठ थिएटर,फिल्म और टीवी एक्टर है. नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में स्नातक करने के बाद उन्होंने मणि कौल, गोविन्द निहलानी और कुमार साहनी जैसे बड़े फिल्म निर्माताओं के साथ काम कर अपनी एक अलग छवि बनाई.तीन दशकों से अधिक समय तक काम करने वाली मीता ने हमेशा अपनी शर्तों पर काम किया है, जिसकी वजह से वह खुश है. टीवी शो ‘स्वाभिमान, पचपन खम्भे लाल दिवार, कहानी घर-घरकी आदि कई धारावाहिकों में काम कर वह दर्शकों के बीच अपनी साख जमाई है. उनकी फिल्म ‘कसाई शेमारू मीज बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हो चुकी है, जिसे लेकर वह उत्साहित है. स्वभाव से हंसमुख और स्पष्टभाषी मीता से बात करना रोचक था. पेश है कुछ अंश,

सवाल- ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आपकी फिल्म रिलीज हो चुकी है, कितनी ख़ुश है?

बहुत अच्छा लगता है जब कोई फिल्म बनने के बाद वह काफी लोगों तक पहुंचे, शेमारू सालों से मनोरंजन की दुनिया में काम कर रहे है उनके साथ जुड़ना अच्छा लगा, क्योंकि कसाई जैसी फिल्में मल्टीप्लेक्स में नहीं चल सकती. थोड़ी अलग फिल्म है. कोरोना के समय इसे रिलीज किया जाना भी सही है.

सवाल- आपने एक लम्बी जर्नी तय की है, कितनी संतुष्ट है?

जर्नी जीने का एक सबक सिखाती चलती है. उसे कैरियर की तरह आप नहीं ले सकते. एक्टिंग सांसों, शक्ल और शरीर से जुड़ा हुआ काम है, फ़ाइलों वाला काम नहीं है. यहाँ खुद को पॉलिश करने और अंदर की तारों को ट्यूनिंग करने की जरुरत होती है. मैं जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो सोचती हूं कि ये जर्नी कैसे शुरू हुई, क्या-क्या मैंने सीखा, कैसे आगे बढ़ी आदि. ये एक लम्बा सफ़र है. मैंने कभी ये नहीं देखा कि पिछले 30 सालों में कितनी फिल्में सफल हुई, कितनी नहीं.

शुरुआत में मैं सोचती थी कि 40 साल होने के बाद सब चीजे अलग होगी, लेकिन मैंने पाया कि हर उम्र की एक खूबसूरती होती है और उस समय क्या-क्या गलतियाँ की, जो नहीं करनी चाहिए थी, उसके बारें में सोची. ये एक लम्बा रास्ता है, जिसे मैंने तय किया है. इसमें कोई गणित लाभ या हानि की नहीं है. इसमें आत्मा को मैंने देखा है, जो संतुष्ट है, पर जर्नी अभी कायम है.

सवाल- क्या कोई मलाल रह गया है?

रिग्रेट की अगर बात करें, तो मेरी बहुत पुरानीकॉस्टयूम डिज़ाइनर भानू अथैया कुछ दिनों पहले गुजर गई, जिन्हें गाँधी फिल्म की कॉस्टयूम के लिए आस्कर अवार्ड मिला था. उन्होंने मेरी पहली फिल्म से कॉस्टयूम की डिजाईन की थी. इसके अलावा फिल्म खिलाड़ियों के खिलाडी के लिए भी उन्होंने ड्रेसेस बनायीं थी,जिसे अभिनेत्री रेखा ने किया था. उसे पहले मैं करने वाली थी, जिसके सारे कॉस्टयूम भानू अथैया ने बनायीं थी.मैं रूस जाकर शूटिंग करने वाली थी, ऐसे में वहां कुछ गड़बड़ी होने की वजह से पूरी टीम  नहीं जा सकी और कनाडा जाने का निश्चय किया था. इस बीच केवल 10 दिन का गैप में उस फिल्म को किसी के कहने पर मेरी भूमिका अभिनेत्री रेखा के पास चली गई. उस फिल्म के कॉस्टयूम के साथ-साथ मैंने फोटो शूट भी किय थे. मैं उस ज्ञानी डिज़ाइनर से 10 सालों में एक बार भी नहीं मिली. इसका रिग्रेट मुझे आज है. इसके अलावा मेरा कोई गॉड फादर इंडस्ट्री में नहीं है, मैं अकेली हूं, ऐसे में अगर मुझे किसी बात का धक्का भी लगता था, तो मुझे समझाने वाला कोई नहीं था. आज मैं उन फोटो शूट को देखती हूं तो लगता है कि मुझमें थोडा और कॉन्फिडेंस होना चाहिए था. मैंने अपने आपको कभी अधिक सामने नहीं रखा. उस समय मैं पहली ऐसी अभिनेत्री थी, जिसने मनी कौल और कुमार साहनी की फिल्म में न्यूड सीन्स किये थे और मैंने धडल्ले से उसे किया था. कैमरे के आगे मैं एक कलाकार की तरह खुल जाती हूं, पर रियल लाइफ में मैं चुप रहती हूं. मुझे थोड़ी और चालाक होने की जरुरत थी, तब शायद और अधिक कमर्शियल फिल्म कर पाती. मुझे अपने टैलेंट पर अधिक विश्वास था.

सवाल- इंडस्ट्री में नेपोटिज्म और खेमेबाजी के बारें में आपकी सोच क्या है?

तब सोशल मीडिया नहीं थी. मुझे उस फिल्म में काम करने का मौका नहीं मिला, पर कुछ करना संभव नहीं था. मैंने खुद को समझाया कि मैं आर्ट फिल्में करती हूं, जबकि रेखा कमर्शियल फिल्म करती है. मैंने शोर नहीं मचाया. आज के दौर में लोग शोर-शराबा अधिक करते है. सीनियर जूनियर की जो एक सीमा रेखा है वह अब नहीं रही. अब वैसे सीनियर्स भी कम रह गए है. तब आर्ट, कॉस्टयूम में सब दिग्गज लोग थे. नेपोटिज्म सालों से चला आ रहा है. एक स्टार को बच्चे को 10 मौका मिलता है, जबकि दूसरों को मुश्किल से एक ही मौका मिलता है और उसी में खुद को प्रूव करना पड़ता है. ये कोई नई बात नहीं. हर फील्ड में ये है. पंडित रवि शंकर ने भी केवल अनुष्का शंकर को ही माना. मैं कहना चाहूंगी कि लोग पहले बच्चे की प्रतिभा देखें, फिर उसका रास्ता निर्धारित करें. ये दुर्भाग्य है कि भाई-भतीजावाद हर जगह है.

सवाल- क्या सोशल मीडिया का लोगों पर गलत प्रभाव पड़ रहा है?

आज सोशल मीडिया के पोपुलर व्यक्ति को अधिक मान मिलता है.जरुरी नहीं कि आप अपनी कला के लिए जानी जाय. सोशल मीडिया पर चर्चित है तो वही एचीवमेंट मानी जाती है, जबकि वह नहीं है. लोग आजकाल छोटे रास्ते से जाना चाहते है. पहले रास्ता कला का हुआ करता था. कुछ भी किसी ने किया, उसे ही सोशल मीडिया परडाल दिया. बहुत अधिक हो रहा है, जो ठीक नहीं.

सवाल- अभी क्या-क्या कर रही है? समय मिलने पर क्या करती है?

वेब सीरीज क्रिमिनल जस्टिस की शूटिंग ख़त्म हुई है, एक ब्रांड के लिए फिल्म शूट किया है. फिल्मों की बात चल रही है.

समय मिलने पर माँ के पास दिल्ली जाती हूं. यहाँ मेरे साथ दो बिल्ले लाड़ और कालू रहते है. इसके अलावा मैं एक कलाकार के तौर पर अपनी कहानी लिख रही हूं.

सवाल- क्या मेसेज देना चाहती है?

दुनिया में जितने भी लोग है, हम सब खास है. हर कोई खूबी को खुद में टटोले और उस मार्ग पर जाएँ. अभिनय ही एक अच्छा मार्ग है, ऐसा जरुरी नहीं. इसके लिए कुछ समय तक सोशल मीडिया से दूर रहकर खुद में रहने की कोशिश करें. खुद को पहचाने.

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