भारतीय फिल्मकार सामाजिक मुद्दों पर फिल्म बनाने से कतराते रहते हैं. कोलकत्ता में हाथ से रिक्शा खींचने वालो की अपनी समस्याएं व अपना दर्द है. कोलकत्ता के ज्यादातर रिक्शा चालक प्रवासी विस्थापित हैं, क्योंकि यह सभी उत्तर प्रदेश व बिहार से अच्छे रोजगार की तलाश में कोलकत्ता गए हैं. इनकी समस्याओं, इनके दर्द को सबसे पहले विदेशी फिल्मकार रोलांड जोफी ने 1992 में अपनी फिल्म ‘सिटी आफ ज्वॉय’में उकेरा था, जिसमें स्व. ओम पुरी ने रिक्शाचालक का किरदार निभाया था. अब फिल्मकार राम कमल मुखर्जी ऐसे ही रिक्शाचालक व विस्थापितो की समस्या पर फिल्म ‘‘रिक्शावाला’’लेकर आए हैं, जिसमें अविनाश द्विवेदी ने रिक्शाचालक का किरदार निभाया है. 31 अक्टूबर को इस फिल्म का इंग्लैंड के ‘‘कार्डिएफ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’में विश्व प्रीमियर होने के साथ ही ‘‘सर्वश्रेष्ठ सामाजिक संदेश वाली फिल्म’’के पुरस्कार से भी नवाजा गया. फिल्म‘‘रिक्शावाला’’मूलतः बंगला फिल्म है, मगर इसका मुख्य किरदार बिहार से आया है, इसलिए वह भोजपुरी व हिंदी बोलता है.
इतना ही नही इस फिल्म को ‘‘मैंड्डि’’, ‘‘मेलबर्न’’और इस्लामाबाद अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव’’ में प्रदर्शन के लिए चुना गया है. मैड्रिड के फिल्मोत्सव निदेशक अबुर रहीम काजी ने स्पेनिश में फिल्म ‘‘रिक्शावाला’’के बारे में जो कुछ लिखा है, उसके अनुवादित संस्करण के अनुसार -‘‘जीवन एक रिक्त पृष्ठ की तरह है. आप नहीं जानते कि आप कहाँ हैं? आप कहाँ से अनदेखा करते हैं. लेकिन यह राम कमल मुखर्जी निर्देशित भारतीय फिल्म ‘रिक्शावाला’ के केंद्रीय चरित्र मनोज(अभिनेता अविनाश द्विवेदी)की बात नहीं है. मनोज का भविष्य राह में पत्थरों की मार पर लिखा गया है. इसमें परिवार के विनम्र मूल्य, सिद्धता का स्थान, बिहार, भारतीय समाज का वर्गवाद, पड़ोस का ठग या दो विपरीत सेक्स के बीच का डिसफैक्शनल बेकार संबंध. बिना किसी संभावित वापसी के साथ प्राचीन जीवन या नहीं? क्योंकि मनोज भी बिहार से कोलकाता प्यार, सम्मान, साहस और ईमानदारी से भरा हुआ तथा उस बचे हुए विद्रोह के साथ, जो इन दिनों हर युवा में दबा हुआ है, जिसकी उत्पत्ति अज्ञात है. मनोज के किरदार में अविनाश द्विवेदी का अविस्मरणीय अभिनय और राम कमल मुखर्जी का बेहतरीन निर्देशन मुझे भा गया. ’’