मेरी सहेली शिखा की सास बहुत प्रोटैगनिस्ट है. उस ने अपनी बहू को नौकरानी बना रखा है और शिखा का पति अपनी माताजी का आज्ञाकारी बेटा है, जो अपनी मां के अमानवीय व्यवहार पर भी एक शब्द तक नहीं बोलता और न ही अपनी पत्नी के पक्ष में खड़ा दिखता. यदि शिखा शिकायत भी करती है तो वह उसी को 4 बातें सुना देता. हमेशा जवाब होता कि रहना है तो रहो वरना फौरेन चली जाओ. परेशान हो कर शिखा अपने मायके आ गई. लेकिन समाज के लिए फिर भी शिखा ही गलत है. क्यों? क्योंकि गलती हमेशा बहू की ही होती है.

समाज का यह दोहरा चेहरा क्यों

अकसर खबरें मिलती हैं कि बहू अच्छी नहीं थी बेटे ने उस के कहने पर आ कर मां को घर से निकाल दिया. सोचने वाली बात है हर समय बहू ही गलत क्यों?

जब बीवी की बातों में आ कर मां को तंग करना गलत है, तो मां के सम्मान की खातिर उस की गलत बातों पर चुप रहना सही कैसे हो सकता है?

2 शब्द सासों से

मैं भी मां हूं और मैं जानती हूं मां दुनिया का सब से प्यारा लफ्ज है और सब से ही अनोखा बंधन. वह अद्भुत प्यारा सा एहसास जिस में. मां को सब से करीब देखा जाता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मां गलत हो ही नहीं सकती. गलत को गलत कहने में कौन सा गुनाह है? वह भी तब जब अकसर बेटे की मां, सास बनने के बाद जानबूझ कर यह गुनाह करती है. कहीं ऐसा तो नहीं कि सास बनने के बाद मांएं बहुत ही निस्स्वार्थ भाव से की गई ममता का मोल चाहती हैं. इनसिक्योर फील करती हैं. कड़वी सचाई तो यह है कि सास बनने के बाद मांएं स्वार्थी हो जाती हैं. अपने बेटे के अलावा उन्हें कुछ नहीं दिखता, बहू तो बिलकुल भी नहीं, बल्कि बहू को तो वे अपनी प्रतिस्पर्धी समझती हैं, दुश्मन मानती हैं जो उन का बेटा छीन रही हैं.

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