आत्मसम्मान: रवि के सौदे का क्या था अंजाम

रवि को फ्लैट अच्छा लगा. हवादार, सारे दिन की धूप, बड़े कमरे, बड़ी रसोई, बड़े बाथरूम. पहली नजर में ही रवि को पसंद आ गया. दाम कुछ अधिक लग रहा है, दूसरे ब्रोकर्स कम कीमत में फ्लैट दिलाने को कह रहे थे परंतु रवि मनपसंद  फ्लैट, जैसे उस की कल्पना थी वैसा, पा कर कुछ अधिक कीमत देने को तैयार हो गया. पत्नी रीना और बच्चों को भी फ्लैट पसंद आया. लोकेशन औफिस के पास होने के कारण रवि ने उस फ्लैट को खरीदने के लिए ब्रोकर से कहा. फ्लैट के मालिक से शाम को डील फाइनल करने के लिए समय तय हो गया.

रवि ने ब्रीफकेस में चैकबुक रखी और कैश निकालने के लिए बैंक गया. कार को बैंक के बाहर पार्क कर रवि ने बैंक से कैश निकाला. लगभग 10 मिनट बाद रवि जब बैंक से बाहर आया तब उस समय बहुत सी कारें आड़ीतिरछी पार्क थीं.

रवि सोचने लगा कि कार पार्किंग से कैसे बाहर आए. 2 कारों के बीच जगह थी. रवि कार को वहां से निकालने के लिए कार को उन 2 कारों के बीच में करने लगा, परंतु तेजी से एक बड़ी सी महंगी कार उन 2 कारों के बीच खाली जगह पर गोली की रफ्तार से दनदनाती हुई आई और रवि की कार के सामने तेजी से ब्रेक मार कर रुक गई.

कार में बैठा नवयुवक कीमती मोबाइल फोन पर बात कर रहा था और हाथ से कुछ इशारे कर रहा था जो रवि समझ नहीं सका. नवयुवक मोबाइल पर बात करता हुआ इशारे करता जा रहा था. रवि ने कार से उतर कर नवयुवक से अनुरोध किया कि उसे अपनी कार को निकालना है, सो प्लीज, उसे निकलने दीजिए, फिर आप इसी जगह पार्क कर लीजिए.

तभी वह युवक ताव में आ कर कहने लगा, ‘‘बुड्ढे, कार यहीं खड़ी होगी, इतनी देर से इशारा कर रहा हूं, कार पीछे कर. मेरी कार यहीं खड़ी होगी. समझा बुड्ढे या दूसरे तरीके से समझाना पड़ेगा. मेरे से बहस कर रहा है. पीछे हटा मच्छर को, नहीं तो मसल दूंगा, जरा सी आगे की तो उड़ जाएगी, पीछे हट. मेरी कार यहीं पार्क होगी.’’

इतना सुन कर रवि ने किसी अनहोनी से घबरा कर कार पीछे की और नवयुवक ने कार वहां पार्क की और गोली की रफ्तार से कार को लौक कर के मोबाइल पर बात करता हुआ चला गया. महंगी कार, सिरफिरा नवयुवक शायद कोई चाकू, पिस्तौल जेब में हो, चला दे. आजकल कुछ पता नहीं चलता. छोटीछोटी बातों पर आपा खो कर नवयुवक गोलीचाकू चला देते हैं. यही सोच कर रवि ने कार पीछे कर ली और लुटेपिटे खिलाड़ी की तरह होंठ पर हाथ रख कर सोचने लगा.

एक आम व्यक्ति की कोई औकात नहीं है. माना अमीर नहीं है, नौकरी करता है, मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता है. एक छोटी सी कार उस की नजर में बड़ी संपति है, मगर एक मगरूर इंसान ने उसे मच्छर बना दिया. कोई कीमत नहीं है छोटी कार की. अमीर आदमी की नजर में वह और उस की कार की कोई कीमत नहीं. न सही, किसी के बारे में वह क्या कर सकता है. उस नवयुवक के घमंड को देख कर उस ने दांतों तले उंगली दबा ली.

वह इंतजार करने लगा कि आसपास खड़ी कोई कार हिले, तो वह अपनी कार को हिलाए. लगभग 20 मिनट बाद उस के पास खड़ी कार हटी, तब रवि को शांति मिली. उस का दिमाग, जो अब तक कई सौ मील दूर तक की कल्पना कर चुका था, जमीन पर आया, कार स्टार्ट की और घर वापस आया.शाम को रवि, रीना ब्रोकर सतीश के साथ फ्लैट मालिक ओंकारनाथ के औफिस पहुंचे. सतीश ने सेठ ओंकारनाथ का गुणगान शुरू किया. ‘‘सेठजी का क्या कहना, धन्ना सेठ हैं. प्रौपर्टी में निवेश करते हैं. पूरे देश में, हर कोने में सेठजी की प्रौपर्टी मिलेगी. बस, शहर का नाम लो, प्रौपर्टी हाजिर है. 100 से अधिक प्रौपर्टी हैं सेठजी की.’’

‘‘आज इस समय 140 प्रौपर्टीज हैं,’’ सेठजी ने पुष्टि की. ‘लोन मेरा पास हो गया है. आप प्रौपर्टी के कागजों की कौपी दे दें. मुझे पेमैंट की कोई चिंता नहीं है. अधिक से अधिक एक सप्ताह में पूरी पेमैंट हो जाएगी. प्रौपर्टी के कागज बैंक में दिखा कर लोन की पेमैंट हो जाएगी. बयाना मैं अभी दे देता हूं. सौदा पक्का कर लेते हैं. बस, आप एक बार कागज दिखा दीजिए,’’ रवि ने सेठजी से कहा.

‘‘ठीक है. अलमारी की चाबी मेरे लड़के के पास है. फोन कर के बुलाता हूं,’’ कह कर सेठजी ने फोन किया. 2 मिनट बाद सेठजी के लड़के ने औफिस में प्रवेश किया. मोबाइल पर बात करतेकरते अलमारी खोली और फाइल टेबल पर रखी. रवि ने लड़के को देखा. लड़का वही सुबह वाला नवयुवक था, जिस की महंगी कार ने उस की कार को निकलने नहीं दिया और घमंड में रवि का उपहास किया. रवि ने उसे पहचान लिया. बुड्ढा, मच्छर, उड़ा दूंगा, कार यहीं पार्क करूंगा, नहीं निकलने दूंगा कार, ये शब्द उस के कानों में बारबार गूंज रहे थे. रवि उस लड़के को लगातार देखता रहा. सतीश ने फाइल रवि की ओर करते हुए चुप्पी तोड़ी.

‘‘तसल्ली कर लीजिए और बयाना दे कर सौदा पक्का कीजिए.’’

‘‘सतीशजी, अब इस की कोई जरूरत नहीं है. आप कोई दूसरा सौदा बताना.’’

‘‘क्या बात है, रविजी, आप के सपने का फ्लैट आप को मिल रहा है, जिस की तलाश कर रहे थे, वह आप के सामने है.’’ रवि ने ब्रीफकेस को बंद किया और सौदा न करने पर खेद व्यक्त  किया और जाने के लिए कुरसी से उठा, ‘‘रीना, कोई दूसरा फ्लैट देखेंगे, अब चलते हैं.’’

‘‘मिस्टर रवि, कोई बात नहीं, आप फ्लैट खरीदना नहीं चाहते, यह आप का निर्णय है. परंतु मैं इस का कारण जानना चाहता हूं, क्योंकि आप इस फ्लैट के लिए उत्सुक थे. फाइल देखना चाहते थे. जब फाइल सामने रखी, तो बिना फाइल देखे इरादा बदल लिया,’’ सेठजी ने रवि से बैठने के लिए कहा.

‘‘सेठजी, यह मत पूछिए.’’

‘‘कोई बात नहीं. यदि कोई कड़वी बात है, वह भी बताओ. कारण जानना चाहता हूं.’’ ‘‘सेठजी, बात आत्मसम्मान की है. आज सुबह बहुत गालियां सुनी हैं. ठेस पहुंची है. कलेजे को चीर गई हैं बातें,’’ कह कर सुबह का किस्सा सुनाया, ‘‘वह नवयुवक और कोई नहीं, आप के सुपुत्र हैं. इसी कारण मैं ने अपने सपने को तोड़ा. जिस तरह के फ्लैट की चाह थी, जिस के लिए अधिक रकम देने को तैयार था, वही सौदा तोड़ रहा हूं. मेरा आत्मसम्मान मुझे सौदा करने की इजाजत नहीं देता. आप के सामने आर्थिक रूप में मेरी कोई औकात नहीं है. परंतु अमीरों का गरीबों की बिना बात के तौहीन करना उचित नहीं है. सिर्फ विनती की थी, कार निकालने के  लिए, 10-15 सैकंड में क्या फर्क पड़ता. कार मुझे तो निकालनी थी, पार्क तो आप की कार ही होती, परंतु आप के बरखुरदार ने मेरी खूब बेइज्जती की.’’ उठतेउठते रवि ने एक बात कही, ‘‘सेठजी, आप ने रुपएपैसों से अपने लड़के की जेबें भर रखी हैं. थोड़ी समझदारी, दुनियादारी की तालीम दीजिए. संयम रखना सिखाइए. इज्जत दीजिए और इज्जत लीजिए.’’

रवि चला गया. औफिस में रह गए सेठजी और उन के सुपुत्र. सेठजी कुछ कह नहीं सके. लड़के ने मोबाइल से फोन मिलाया और दनदनाता हुआ औफिस से बाहर चला गया.

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