REVIEW: बेवजह की जटिलताओं में फंसी बाल फिल्म ‘अटकन चटकन’

रेटिंग: डेढ़ स्टार

निर्माता:विशाखा सिंह

प्रस्तुति: ए आर रहमान

लेखक व निर्देशकः शिव हरे

कलाकारः जगदीश अमृतायन,  लायडियान नधास्वरन, यश राणे, सचिन चैधरी, तमन्ना चतुर्वेदी, देबाश्री चक्रवर्ती,  राज पुरोहित व अन्य.

अवधि: दो घंटे तीन मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

‘‘नर हो न निराश करो मन को’’का संदेष देने वाली बेहतरीन विषयवस्तु व कथानक वाली बाल फिल्म का लेखक व निर्देशक शिव हरे ने बेवजह के जटिल रिश्तों की कथा घुसाकर पूरी फिल्म का बंटाधार कर डाला. दर्शक को केवल बच्चे के मुरझाए हुए भूरे व गंदे चेहरे ही याद रह जाते हं. यह लेखक व निर्देशक की विफलता ही है. फिल्म के प्रस्तुतकर्ता के रूप में संगीतकार ए आर रहमान का नाम देखकर दर्शक इस फिल्म को देखने के लिए प्रेरित होता है, पर उसके हाथ निराशा ही हाथ लगती है.

कहानीः

कहानी शुरू होती है विदेश में कहीं रह रहे गुड्डू से, जिसे उसके बचपन के मित्र माधव का कूरियर मिलता है, जिसमें माधव की शादी का निमंत्रण और एक किताब ‘‘अटकन चटकन’’है. इस किताब में उनके बचपन की ही कहानी है. गुड्डू उस किताब को पढ़ना शुरू करता है. कहानी शुरू होती है झांसी के पास एक गाॅंव से, जहां बारह वर्ष का गुड्डू अपने शराबी पिता की वजह से कुछ दूर शहर में तिवारी चाय वाले की दुकान पर नौकरी कर रहा है. उसकी मां मोहिनी ने उन्हे छोड़ दिया है. उसकी छोटी बहन लता है. गुड्डू की कमाई से ही उनका पेट भर पाता है. पर गुड्डू की हर हरकत में संगीत है. वह एक ‘‘यंग्स आर्केस्ट् दोनों’’ ग्रुप में नौकरी कर संगीत सीखना चाहता है, पर उसे अवसर नहीं मिलता.

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उसका सपना ‘तानसेन संगीत महा विद्यालय’से शिक्षा हासिल करना है. उसका दोस्त माधव पैर से अपाहिज है, पर फुटपाथ भीख मांगते हुए भी किताबें पढ़ता रहता है. नाटकीय तरीके से गुड्डू की मुलाकात छुट्टन और मीठी से होती है. पता चलता है कि मंगू चाचा ने उन्हे रेलवे माल गाड़ी के एक डिब्बे में रहने की जगह दे रखी है और वह भीख में मिली रकम में हिस्सा लेता है. माधव योजना बनाता है कि एक अपना संगीत का बैंड बनाया जाए, जिसमें माधव, गुड्डू, छुट्टन व मीठी हो. उधर ‘तानसेन महाविद्याल के प्रिंसिपल डिसूजा परेषान है,  पिछले तीन वर्ष से उनका विद्यालय संगीत प्रतियोगिता हारता आ रहा है. वह चाहते हैं कि इस बार उनके अवकाश ग्रहण से पहले उनका विद्यालय संगीत प्रतियोगिता जीत जाए, पर उन्हें अपने विद्यालय के छात्रों से उम्मीद नही है. उन्हे माधव व गुड्डू के बारे में पता चलता है, तो वह उन्हे अपने विद्यालय में प्रवेश देकर संगीत शिक्षक मोहिनी से शिक्षा दिलाकर प्रतियोगिता के लिए तैयार करवाते हैं.

प्रतियोगिता से एक दिन पहले पता चलता है कि गुड्डू के पिता विष्णु मशहूर पखावज वादक थे और उनकी मां मोहिनी मषहूर गायिका. मगर मोहिनी की लोकप्रियता के चलते विष्णु मोहिनी को घर से भगा दिया था. उधर विद्यालय के नाराज छात्र मंगू चाचा को पैसे देकर यह व्यवस्था करते हैं कि माधव की टीम प्रतियोगिता के लिए न पहुंचे. जबकि विष्णु यह जान गए हैं कि मोहिनी व गुड्डू मिलते हैं, इसलिए वह गुड्डू को घर से नही निकलने देता. पर घटनाक्रम इस तरह बदलते हैं कि माधव, गुड्डू,  छुट्टन व मीठी प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं व जीत भी हासिल करते हैं, पर एक घटनाक्रम के चलते हार का फैसला सुनने से पहले ही माधव सबको छोड़कर चला जाता है. गलती का अहसास कर माधव, गुड्डू से मिलने आता है, तो मुलाकात नही हो पाती है. पर अब उसने अपनी शादीदी में गुड्डू, छुट्टन व मीठी को बुलाया है.

लेखन व निर्देशन:

निर्देशक शिव हरे ने बच्चों के हिसाब से एक बेहतरीन कहानी चुनी थी,  मगर फिर उसमें तमाम जटिलताओं को पिरोकर  पूरी फिल्म का बंटाधार कर दिया अब या फिर ना तो प्रभावित करती है ना ही खुशी देती है. और ना ही दर्शक चाहता है कि अपने बच्चों को या फिल्म दिखाना चाहता.  निर्देशन भी काफी कमजोर है.

अभिनय:

कमजोर पट कथा और सही चरित्र चित्रण ना होने की वजह से सभी कलाकार सिर्फ साधारण अभिनय ही कर पाए हैं.

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