देवी का दर्जा महज दिखावा

सा ल की शुरूआत में गुजरात के अहमदाबाद शहर का एक अजीब वाकेआ सामने आया जहां एक शादीशुदा महिला ने साबरमती नदी में कूद कर अपनी जान दे दी.  23 साल की उस महिला का नाम आयशा था. आत्महत्या करने से पहले उस ने भावुक कर देने वाला एक वीडियो बनाया, जिस में वह अपने परिवार को मैसेज दे रही है. आयशा ने सुसाइड करने से पहले अपने पेरैंट्स को फोन भी किया. उस के पेरैंट्स उसे सम?झने की बहुत कोशिश कर रहे हैं कि कोई समस्या नहीं है सब ठीक हो जाएगा. उस के पापा ने यहां तक कहा कि अगर वह घर वापस नहीं आई तो वे भी आत्महत्या कर लेंगे, पूरे परिवार को मार देंगे.

यहां एक पिता की बेबसी साफ दिखाई दे रही है. लेकिन आयशा कह रही है कि नहीं… अब बस… बहुत हो चुका. अब नहीं जीना. थक गई हूं मैं अपनी जिंदगी से. बच गई तो ले जाना और अगर मर गई तो दफन कर देना मु?ो. आयशा ने अपने मातापिता से यह भी कहा कि पति आरिफ को उस की कोई परवाह नहीं.

 मरने से पहले वीडियो भेज देना

वीडियो में वह अपने पति का भी जिक्र कर रही है कि वह उसे बहुत प्यार करती है. लेकिन वह उस का फोन नहीं उठा रहा है और न ही उसे लेने आ रहा है. उस ने कुछ दिन पहले जब उसे फोन किया और उस से कहा कि तुम्हारे बिना मर जाऊंगी, तो आरिफ ने कहा मर जाओ पर मरने से पहले वीडियो बना कर जरूर भेज देना ताकि पुलिस मुझे परेशान न करे.

पति की बातों से आहत हो कर ही आयशा ने इतना बड़ा कदम उठा लिया. आयशा ने मरने से पहले कहा कि उस के पति को उस से आजादी चाहिए थी तो उस ने उसे आजाद कर दिया. लेकिन वह कामना करती है कि अब दोबारा उसे इंसानों की शक्ल न दिखे.

दहेज के लिए करता था प्रताडि़त

पेशे से टेलर आयशा के पिता लियाकत अली का कहना है कि उन की बेटी आयशा का निकाह 2018 में जालौर (राजस्थान) के आरिफ से हुआ था. लेकिन शादी के बाद से ही उसे दहेज के लिए प्रताडि़त किया जाने लगा था.

शादी के कुछ महीने बाद ही आरिफ आयशा को उस के पिता के घर अहमदाबाद छोड़ गया. हालांकि सब के सम?झने के बाद ले भी गया. लेकिन 2019 में फिर उसे अहमदाबाद छोड़ गया यह बोल कर कि उस के परिवार वालों को डेढ़ लाख रुपए चाहिए. आयशा के पिता ने किसी तरह दिए भी. लेकिन पैसे मिलने के बाद आरिफ के परिवार वालों का लालच बढ़ता चला गया.

ये भी पढ़ें- ठग बाबाओं के चंगुल में फंसे तो गए

इसलिए फिर वह उसे उस के पिता के घर अहमदाबाद छोड़ गया. फिर उसे लेने आना तो दूर, फोन पर बात भी नहीं करने लगा, जिस से आयशा परेशान रहने लगी थी और उस ने इतना बड़ा कदम उठा लिया.

एक लड़की से अफेयर

आयशा के वकील जफर पठान का कहना है कि आयशा के पति आरिफ का एक लड़की से अफेयर चल रहा था और वह अपनी पत्नी के सामने ही उस लड़की से वीडियो कौल पर बात करता था. वह अपनी प्रेमिका पर पैसे लुटाता था और इसी वजह से वह आयशा के पिता से रुपयों की मांग करता था. शादी के 2 महीने बाद ही आरिफ ने बताया कि वह एक लड़की से प्यार करता है.

लेकिन आयशा ने इसलिए इस बात को अपने मातापिता से छिपा कर रखा ताकि उन के पिता की इज्जत पर आंच न आए. वह हर पल एक नई तकलीफ से गुजरती रही, लेकिन अपने परिवार को कुछ नहीं बताया ताकि उन्हें तकलीफ न पहुंचे.

शादी के समय आयशा के पिता ने उसे जरूरत की हर चीज दी, लेकिन फिर भी उस के परिवार वाले संतुष्ट नहीं थे. एक लड़की के लिए इस से बुरा और क्या हो सकता है कि उस का पति उस के ही सामने अपनी गर्लफ्रैंड से वीडियो कौल पर बात करे और वह कुछ न कर पाए. पति उसे तलाक देने से ले कर जला कर मारने तक की बात करता था. डिप्रैशन के कारण ही आयशा का बच्चा उस के पेट में ही मर गया था.

उस के पिता का कहना है कि उन की बेटी हंसमुख थी, लेकिन निकाह के बाद से ही दहेज को ले कर उस की जिंदगी नर्क बना दी गई थी. एक बार तो ससुराल वालों ने 3 दिन तक उसे खाना नहीं दिया था.

 थम नहीं रहा सिलसिला

आजकल आत्महत्या की घटना एक आम सी बात होती जा रही है और जिस का सब से बड़ा कारण दहेज के लिए प्रताडि़त करना है. इसलिए कहते हैं परिवार भले ही गरीब हो पर शरीफ होना चाहिए. दहेज, जो समाज में एक अभिशाप है. जाने कितनों की जिंदगियां लील गया, फिर भी यह दहेज नाम का दानव जिंदा है और अभी भी लोगों की जिंदगियां लील रहा है.

पहली ऐनिवर्सरी के 16 दिन पहले एक महिला ने खुद को खत्म कर लिया क्योंकि शादी के बाद से ही उस के सासससुर और पति दहेज के लिए उसे प्रताडि़त करने लगे थे और उस के साथ मारपीट करते थे.

लड़की ने बहुत बार शिकायत भी की. दोनों परिवारों की सुलह भी हुई. लड़के वालों की डिमांड भी पूरी की जाती रही, पर फिर भी उस महिला के साथ जुल्म होता रहा.

आजिज आ कर महिला ने खुद को ही खत्म कर लिया. मरने से पहले सुसाइड नोट में उस ने लिखा कि उस के पिताजी ने उस के लिए बहुत कुछ किया. कई बार वे चैक से पैसे देते रहे. यहां तक कि उस के ससुराल वालों के पास जा कर उन्होंने बेटी की खुशी की भीख भी मांगी, पर वे नहीं माने और उस पर जुल्म होता रहा.

लेकिन अब वह अपने मातापिता को और दुखी नहीं देखना चाहती. इसलिए दुनिया से जा रही है, लेकिन उस की ससुराल वालों को इस की सजा जरूर मिलनी चाहिए.

हमारा भारत महान, जहां पहले तो बेटियों को देवी बना कर पूजते हैं और दूसरी तरफ दहेज के लिए उन्हीं को कभी आग के हवाले तो कभी रस्सी से ?झल जाने पर मजबूर कर देते हैं. दहेज प्रथा दुनिया के तमाम देशों में प्रचलित निकृष्टतम कुप्रथाओं में एक है, जिस में परोक्ष रूप से लड़की की शादी के लिए लड़का खरीदा जाता है और लड़के के मांबाप बड़ी शान से अपने बेटे की बिक्त्री करते हैं.

 लालच और लोलुपता

लालच और लोलुपता की इंतहा यह कि वे अपने बेटे के कैरियर के हिसाब से रेट तय करते हैं और उधर लड़की के मांबाप बेटी के लिए दहेज जुटाने के लिए कभी घर तो कभी जमीन बेच देते हैं. जिंदगीभर की सारी कमाई वे बेटी को दहेजस्वरूप दे देते हैं ताकि उन की बेटी अपनी ससुराल में सुखी रहे.

इस के बावजूद दहेजलोभियों का पेट नहीं भरता. वे बहू पर जुल्म करते हैं और हार कर लड़की अपनी जान ही खत्म कर लेती है.

शादी के बाद दुखी सिर्फ लड़की ही नहीं, बल्कि उस के मांबाप भी रहते हैं क्योंकि बेटी का दुख उन से देखा नहीं जाता. सोचते हैं रिश्ता बचा रहे तो बेहतर. जिस का नतीजा यह कि एक दिन जिंदगी से ऊब कर लड़की खुद को ही खत्म कर लेती है.

मजबूर पिता ने आत्महत्या कर ली

पिछले साल ही हरियाणा के रेवाड़ी जिले में सामाजिक तानेबाने को ?झक?झरने वाला एक मामला आया था जहां सगाई के एक दिन पहले लड़के वालों ने रुपए 30 लाख की डिमांड कर दी, जिसे लड़की के पिता ने पूरी करने में असमर्थता जताई तो उन्होंने शादी करने से इनकार कर दिया. कहा क्व30 लाख दे सकते हो तो लगन ले कर आना वरना मत आना, जबकि लड़की के परिवार वालों ने शादी की पूरी तैयारी कर ली थी. बेटी की शादी टूट जाने से आहत पिता ने खुद को ही खत्म कर लिया.

यह बात आज तक समझ नहीं आई कि शादी तो 2 दिलों का मिलन है, फिर बीच में दहेज कहां से आ गया? लेकिन क्या यहां गुनहगार लड़की के मातापिता नहीं हैं? क्या वे अपनी बेटियों की मौत के जिम्मेदार नहीं हैं? अगर वे दहेजलोभियों के पेट न भरते, तो क्या वे दोबारा अपना खाली पेट बजाते हुए फिर दहेज की मांग करते और न मिलने पर बहू पर जुल्म करते?

मातापिता के घर में हंसनेखिलखिलाने वाली बेटियों को दहेज के लोभी उन्हें एक शव बना देते हैं. अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10-11 सालों से लगातार 7-8 हजार विवाहिताएं दहेज प्रताड़ना से बचने के लिए खुद मौत को गले लगा रही हैं या फिर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जा रहा है. दहेज के कारण औसतन 20 महिलाएं रोज मर रही हैं. हर घंटे 1.

1 दिन में 20 महिलाएं मर रही हैं

फ्लाइट अटैंडैंट अनीसा बन्ना ने अपनी छत से कूद कर अपनी जान खत्म कर ली. उस के मातापिता का कहना है कि दहेज के लिए उसे भावनात्मक रूप से प्रताडि़त किया जाता था. भारत में एक खतरनाक प्रवृत्ति है जो दहेज के लिए हर दिन 20 महिलाओं को मरते हुए देखती है. या तो दहेज के लिए लड़की की हत्या कर दी जाती है या उसे मरने के लिए मजबूर कर दिया जाता था.

भारत में दहेज प्रथा अभी भी एक खतरनाक वास्तविकता है. दहेज में लड़की जितना धन ले कर अपनी ससुराल आती है, उतना ही उसे सम्मान की नजर से देखा जाता है. आखिर क्यों एक महिला का महत्त्व उस के लाए दहेज के अनुरूप होता है?

भारत के राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो ने 2017 तक लगभग 7000 दहेज से जुड़ी मौतों को दर्ज किया था. 2001 में दहेज की मृत्यु प्रति दिन लगभग 19 से बढ़ कर 2016 में 21 प्रति दिन हो गई. भारत में दहेज लेना और देना दोनों कानूनन जुर्म हैं. लेकिन फिर भी यह भारतीय विवाह का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है.

ये भी पढ़ें- सभी युद्धों से खतरनाक ‘कोविड का युद्ध’

सख्त कानून मगर…

पेशे से वकील सीमा जोशी के अनुसार, 1961 में बना दहेज निरोधक कानून महिलाओं पर विवाह के बाद होने वाले अत्याचार से बचाव के लिए है. इस की धारा 8 कहती है कि दहेज लेनादेना संज्ञेय अपराध है. दहेज देने के मामले में धारा 3 के तहत लड़की के परिवार वालों पर केस दर्ज हो सकता है.

इस धारा के तहत जुर्म के साबित होने पर कम से कम 5 साल कैद की सजा का प्रावधान है. धारा 4 के तहत दहेज मांगना जुर्म है. इस के दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल की सजा हो सकती है. फिर भी कानून को धत बता कर लोग दहेज ले और दे भी रहे हैं.

रौंगटे खड़े हो जाएंगे

आज कहीं दिखावे को तो कहीं स्टेटस के लिए दहेज का लेनदेन जारी है. लेकिन यहां एक लड़की के दिमाग में सवाल आता है कि क्या मेरा अपना कोई मूल्य नहीं है? क्यों मेरे मातापिता को दहेज देना पड़ेगा. लड़की कितना भी अच्छा कैरियर क्यों न बना ले, पर शादी का सवाल आते ही उसे लगता है कि मैं बो?झ हूं अपने मांबाप पर.

इसलिए कई बार मांबाप बेटी के साथ कठोर हो जाते हैं यह सोच कर कि बेटी को चाहे कितना भी पढ़ालिखा लो दहेज तो देना ही पड़़ेगा. लड़की को यह एहसास करवाना कि तुम कितनी भी सक्षम क्यों न हो, तुम्हारी आगे की जिंदगी के लिए धन दिया जा रहा है, उस के आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता व आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है. यहीं से एक लड़की की मनोदशा बिगड़नी शुरू हो जाती है. समाज के बनाए इस नियम की खातिर लड़की अपने पूरे व्यक्तित्व को बदलने पर मजबूर हो जाती है.

आज लड़केलड़कियां एकसमान पढ़ाई कर रहे हैं, नौकरी कर रहे हैं. लेकिन समाज का ढर्रा वही है. गूगल न्यूज सर्च में ‘स्रश2ह्म्4 स्रद्गड्डह्लद्ध’ लिख कर देख लीजिए आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे. सिर्फ कम पढे़लिखे लोग ही नहीं, बल्कि पैसे वाले और पढ़ेलिखे लोग भी दहेज प्रताड़ना में शामिल हैं.

जम्मू में दहेज हत्या के आरोपियों की जमानत पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार से कहा था कि तमाम प्रयासों के बावजूद दहेज के कारण होने वाली मौतें बढ़ रही हैं. यदि सरकार और समाज ने इकट्ठा हो कर काम नहीं किया तो हालात बेकाबू हो सकते हैं.

भारतीय संस्कृति में दहेज प्रथा इतनी गहरी है कि इसे सामान्य और अपरिवर्तनीय माना जाता है. आज भी अगर लोगों से कहें कि दहेज लेना और देना अपराध है, तो लोग इसे एक वैकल्पिक वास्तविकता के रूप में अनदेखा कर देते हैं. कोई नहीं बोलना चाहता इस बारे में खुल कर.

आज इसीलिए लड़के और उस के परिवार वाले दहेज के लिए महिला को छोड़ देते हैं या उस के साथ बुरा बरताव करते हैं. एक औरत को पत्नी का दर्जा न दे कर उसे गुलाम बना कर रखते हैं और इस का सब से बड़ा कारण है बेटियों को बो?झ सम?झना.

बेटियों को जन्म लेने से पहले मार दिया जाता है ताकि हमेशा के लिए इस बो?झ से छुटकारा पा सकें. आखिर महिला पितृसत्तात्मक का भार कितनी दूर तक उठाएगी? परिवर्तन कैसे और कब शुरू होगा?

एक अभिशाप

हमारे समाज में दहेज प्रथा एक ऐसा सामाजिक अभिशाप है जो महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में, चाहे मानसिक हो या शारीरिक, को बढ़ावा देता है. अमीर परिवार के लिए तो बेटी की शादी आसान बात है, लेकिन गरीब मध्यवर्गीय परिवारों के लिए बेटी के विवाह में दहेज देना उन के लिए विवशता बन जाती है. वे जानते हैं कि अगर दहेज न दिया तो यह उन के मानसम्मान को तो कम करेगा ही, साथ ही बेटी को बिना दहेज के विदा किया तो ससुराल में उस का जीना दूभर बन जाएगा.

संपन्न परिवार बेटी के विवाह में किए गए व्यय को अपने लिए एक निवेश मानते हैं. उन्हें लगता है कि बहुमूल्य उपहारों के साथ बेटी को विदा करेंगे तो यह सीधा उन की प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा. इस के अलावा ससुराल में उन की बेटी को प्रेम और सम्मान मिलेगा.

आज दहेज के नाम पर बड़ीबड़ी चीजों की मांग की जाती है. दहेज न दे पाने के कारण बरात वापस चली जाती है और फिर लड़की का विवाह होना मुश्किल हो जाता है. लोग पूछते हैं कि बरात वापस क्यों चली गई? जरूर लड़की में ही कोई खोट होगा. लेकिन वही लोग और समाज दोनों यह नहीं सम?झना चाहते कि कमी लड़की में नहीं, बल्कि दहेज में हो जाने के कारण बरात वापस चली गई.

इसलिए मांबाप हर हाल में कैसे भी कर के अपनी बेटी को दहेज दे कर उसे उस की ससुराल में सुखी कर देना चाहते हैं. लेकिन फिर भी क्या एक लड़की को अपनी ससुराल में बराबरी का हक मिल पाता है? दहेज लेने के बाद भी पति परमेश्वर बना रहता है और पत्नी दासी क्यों कहलाती है?

सिक्के का दूसरा पहलू

पुरुषप्रधान देश में महिलाओं को देवी का दर्जा तो मिला, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि आज भी महिलाओं को कमतर आंका जाता है. उन्हें कमजोर, असहाय, पति पर निर्भर, अबला, बेचारी सम?झ कर उन के साथ कभी दोयमदर्जे का तो कभी जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियोके ने कहा था कि हिंसा महज रणक्षेत्र तक ही सीमित नहीं है. कई महिलाएं व लड़कियां अपने परिवार में ही हिंसा की शिकार हो रही हैं. एक महिला के लिए सब से ज्यादा सुरक्षित जगह उस का घर होता है, लेकिन जब वहां भी उस पर हिंसा और अत्याचार हो तो वह कहां जाए?

नकारात्मक सोच

समाज में महिलाओं के प्रति सोच हमेशा से ही नकारात्मक रही है और जिस का सब से बड़ा उदाहरण है कचरे की ढेर में पड़े नवजात, जिन में 97% लड़कियां ही होती हैं. भारत में जन्म से ही महिला हिंसा के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं. शहर हो या गांव, शिक्षितवर्ग हो या अशिक्षित, उच्चवर्ग हो या निम्न आर्थिकवर्ग, गरीब हो या अमीर सभी जगह महिला हिंसा के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष स्वरूप देखने को मिल जाते हैं.

ये भी पढ़ें- आज के युग में समलैंगिक प्रेम

सभ्य और विकसित समाज में जहां आज महिलाएं अपने अस्तित्व की जंग लड़ने में सक्षम हो रही हैं, वहीं इस

समाज  में उन पर सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य व आर्थिक  हिंसा के प्रत्यक्ष उदाहरण रोज देखनेसुनने को मिल रहे हैं.

पत्रकार नीता भल्ला अपने ऊपर शारीरिक और मानसिक हिंसा की कहानी सुनाते हैं कि कैसे उस के पार्टनर ने उस के चेहरे को दीवार पर दे मारा था, जिस के कारण चेहरे की दाहिने ओर सूजन हो गई थी. आंख के पास मारा जिस के कारण वह नीली पड़ गई थी. गरदन पर भी चोट के निशान थे, जिन के कारण वह गले में स्कार्फ लगा कर दफ्तर जाती थी.

  जिम्मेदार कौन

कहीं न कहीं औरतें खुद जिम्मेदार हैं अपने ऊपर होने वाले जुल्म लिए क्योंकि वे चुप लगा जाती हैं और पति ढीठ बनता जाता है. महिलाओं को यह डर सताने लगता है कि कहीं पति ने छोड़ दिया तो कहां जाएंगी? औरतों को हमेशा यह डर सताता रहता है कि कोई गलती हो जाने पर पति छोड़ न दे.

भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक, करीब 51% पुरुष और 54% महिलाएं पुरुषों द्वारा महिलाओं को पीटने को न्यायसंगत ठहराते हैं तो सोचिए एक महिला का अपने घरपरिवार में क्या इज्जत है? अगर कोई महिला अपने पति के हाथों पिट रही होती है तो आसपास के लोग देख कर भी कुछ नहीं बोलते.

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उन्हें फालतू सम?झना, सदियों पुरानी भेदभावपूर्ण सोच है. महिलाओं पर होने वाली हिंसा कहीं न कहीं पुरुषों का उन्हें अपने से कमतर सम?झना ही है और दूसरा कारण दहेज, जिस के कारण औरतों को पतियों के ससुराल से वह इज्जत नहीं मिल पाता जिस की वे हकदार होती हैं.

आज के युवाओं को पढ़ीलिखी और नौकरी वाली लड़की तो चाहिए, पर अपने से आगे बढ़ते उसे नहीं देख सकते हैं. पत्नी इंगलिश तो बोले, परंतु उस से ज्यादा नहीं, क्योंकि इस से पुरुष के अहं को ठेस पहुंचती है. खुद से योग्य और सुंदर पत्नी होने पर वह उस की खीज पत्नी पर गाहेबगाहे बेइज्जत कर के निकालता है. पत्नी को कमतर सम?झने पर या उस के ऊपर रौब गांठने की मनोस्थिति भी पति को पत्नी के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए उकसाती है.

हमारे समाज में पितृसत्तात्मक सोच आज भी हावी है. इसलिए तो कभी महिलाओं को ?झगड़ालू तो कभी वस्तु की तरह पेश किया जाता है. महिलाओं पर मीन्ज और मजाक बनाए जाते हैं. उन्हें हमेशा पुरुषों से कमतर आंकने की कोशिश की जाती है. मीन्ज के माध्यम से पत्नी एक फालतू चीज है जो पति का सुखचैन छीन लेती है. पति को न चाहते हुए भी ऐसी पत्नी के साथ रहना पड़ता है. इतना ही नहीं, उसे अलौकिक समस्याओं के तौर पर पापों के फल की तरह दिखलाया गया.

पितृसत्तात्मक समाज में एक पत्नी को हमेशा वस्तु सम?झ कर उसे पति की जरूरतों के अनुरूप ढालने की कोशिश की है. इस तर्ज पर इस की सामाजिक रचना गढ़ी गई है और इसे तमाम विचारों, कहावतों, सांस्कृतिक गतिविधियों और चुटकुलों के माध्यम से गाहेबगाहे दर्शाया जाता है.

औरत नहीं है वस्तु

महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली शबनम बताती हैं कि हमें इसलिए इस मजाक को हलके में नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह रूढि़वादी सोच को और बढ़ावा देता है. औरत कोई मनोरंजन की वस्तु नहीं है. एक सभ्य समाज को चाहिए कि वह इस का विरोध करे. मजाक या चुटकुले के जरीए कही गई बात हमारे मन में धीरेधीरे पैठ जमाने और विचार बनाने का काम करती है.

ऐसे में बेहद जरूरी है कि जब महिला पर हिंसा, बलात्कार, लैंगिग भेदभाव या किसी भी हिंसा से संबंधित विचार हम किसी चुट्कुले में सुनते हैं तो उस पर तुरंत आपत्ति दर्ज करवाएं. शायद हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी महिलाओं को उसी नजरिए से देखता है, इसलिए ऐसे जोक्स सामने आते हैं. टीवी और फिल्मों में भी महिलाओं को खलनायिका के तौर पर दिखाया जाता है.

सिर्फ हिंदुओं में ही क्यों, अन्य धर्मों में भी औरतों की स्थिति दयनीय रही है. उन की स्वतंत्रता और उन्मुक्तता पर अनेक प्रकार के अंकुश लगाए गए जो आज भी कहींकहीं जारी हैं. परदा प्रथा इस सीमा तक बढ़ गई कि स्त्रियों के लिए कठोर एकांत नियम बना दिए गए. नारी के संबंध में मनु का कथन, ‘पितारक्षति कौमारे… न स्त्री स्वातंन्नयाम अर्हति.’

हिंदू धर्म की मान्यतों के अनुसार पति को भगवान का दर्जा दिया गया है, जिस की हर आज्ञा का पालन करना, पति की हर इच्छा को पूरा करना एक पत्नी का धर्म है. कई औरतें तो आज भी अपने पति का नाम नहीं लेती हैं क्योंकि इस से उन्हें पाप लगेगा.

यह कैसा समाज है जहां आजादी के 72 वर्ष बाद भी महिलाएं पुरुषों की सोच से आजाद नहीं हो पाई हैं? पतिपत्नी गाड़ी के 2 पहिए होने के बावजूद पत्नी को बराबरी का अधिकार नहीं मिल पाया है.

आज भी कई प्रकार के धार्मिक रीतिरिवाजों, कुत्सित रूढि़यों, यौन अपराधों, लैंगिग भेदभाव, घरेलू हिंसा, निम्नस्तरीय जीवनशैली, अशिक्षा, कुपोषण, दहेज उत्पीड़न, कन्या भ्रूणहत्या, सामाजिक असुरक्षा और उपेक्षा की शिकार महिलाएं होती रहती हैं. आज भी अपने परिवार में एक औरत को वह स्थान नहीं मिल पाया है, जो उसे मिलना चाहिए. वह तो आज भी पति की जरूरतों को पूरा करने और उस के भोगविलास का साधन मात्र है.

ये भी पढ़ें- उपवास के जाल में उलझी नारी

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें