ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2017 के अनुसार 51 फीसदी भारतीय औरतें प्रजनन उम्र में ऐनीमिया की शिकार होती हैं. ‘इंडियन ह्यूमन डैवलपमैंट सर्वे’ यानी आईएचडीएस 2011 के एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली की 15 से 49 वर्ष की 5 में से 1 शादीशुदा औरत और उत्तर प्रदेश की पूर्ण जनसंख्या की आधी औरतें अपने पति के बाद खाना खाती हैं. ‘सोशल ऐटिट्यूट्स रिसर्च फौर इंडिया’ ने टैलीफोनिक इंटरव्यू द्वारा 2016 में की गई रिसर्च में पाया कि आंकड़े आईएचडीएस की 2011 की रिपोर्ट से ज्यादा भिन्न नहीं हैं.
जिन औरतों से यह बातचीत की गई थी उन के परिवार में पति के बाद खाने का अर्थ है सब से आखिर में खाना खाना. परिवार के लिए जितना खाना बनता है उस में से जो बचता है उसे ये औरतें खा लेती हैं. इस स्थिति में कई बार औरतें अपनी पोषण आवश्यकता से कम खाती हैं.
भारतीय परिवारों में रोटियों को ले कर अकसर एक बात कही जाती है कि आखिर में बनी रोटी जोकि बचे आटे की होती है और बाकी रोटियों से पतली होती है, घर के मर्द को नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इस से उस की सेहत खराब हो सकती है. यह कैसी मानसिकता है, यह तो पता नहीं, लेकिन पूर्णरूप से निरर्थक है, यह साफ है.
जाहिर है कि किस तरह बचे कहे जाने वाले खाने को भी औरतों के सिर कितनी आसानी से मढ़ दिया जाता है. वैसे यह आज की बात नहीं है, सदियों से भारतीय परिवारों में यह परंपरा है कि घर के मर्द जब तक न खा लें उस से पहले औरत का खाना खा लेना उस के लिए पाप समान है.
औरतों पर मढ़ा गया बचा खाना
खुद हिंदू धर्मग्रंथों में ‘उच्छिष्ट’ का वर्णन मिलता है, जिस का अर्थ है बचा खाना या इंग्लिश में लैफ्टओवर. इस उच्छिष्ट खाने का अर्थ है किसी का बचा हुआ या जूठा खाना जिसे हिंदू धर्म में अवांछित माना गया है परंतु कुछ स्थितियों में इसे खाना अच्छा काम है जैसे, शूद्र का ऊंची जाति या ब्राह्मण के उच्छिष्ट या पत्नी का अपने पति के उच्छिष्ट का सेवन करना. कहीं भी इस बात का वर्णन नहीं है कि पति अपनी पत्नी का उच्छिष्ट खा सकता है.
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औरतों के आखिर में खाना खाने पर 2 स्थितियां सामने आती हैं. पहली, जिस में वह अंडरवेट हो जाती हैं और दूसरी जिस में उन का वेट अपने बच्चों की प्लेट से बचा खाने पर ओवरवेट हो जाता है. ये दोनों ही स्थितियां एकदूसरे से काफी अलग हैं और दोनों के ही अपने नुकसान हैं.
औरतों का अंडरवेट होना व कम खाना खाना केवल उन के खुद के लिए ही हानिकारक नहीं है, बल्कि यह गर्भधारण के समय उन के होने वाले बच्चे को भी अत्यधिक प्रभावित करता है. भारत में कुपोषण के शिकार बच्चों की गिनती प्रति वर्ष बढ़ रही है.
ऐनीमिया से ग्रस्त औरतों का आंकड़ा 60 फीसदी के पार है. बच्चे की सेहत उस की मां पर निर्भर करती है. बच्चे के जीवन के 2 साल पूर्णरूप से उस की मां की सेहत से जुड़े होते हैं. गर्भावस्था में मां के शरीर से भ्रूण को अपना पोषण मिलता है, उस का विकास होता है. पैदा होने के 6 महीने तक पूर्णरूप से नवजात अपनी मां के दूध पर आश्रित होता है. ऐसे में जब मां की खुद की सेहत सही नहीं होगी तो उस के बच्चे का सही विकास कैसे होगा?
बचा खाना खाने के गंभीर परिणाम
रिसर्च से सामने आया है कि अधिकतर भारतीय औरतें गर्भावस्था से पहले अंडरवेट होती हैं और गर्भावस्था के दौरान उन का वजन कुछ हद तक बढ़ता है. इस से पैदा होने वाले बच्चे का वजन सामान्य से कम होता है, नजवात की मृत्यु हो सकती है, वह बौना भी पैदा हो सकता है.
औरतें अकसर अपने बच्चों की प्लेट से बचा खाना उस समय भी उठा कर खाती हैं जब वे गर्भावस्था में होती हैं. गर्भावस्था के दौरान किसी का जूठा, बचा खाने से महिला के गर्भ में पल रहा बच्चा मानसिक रूप से अपंग भी हो सकता है. यूके में हर वर्ष 1 हजार बच्चे सीएमवी यानी साइटोमेगालो वायरस के शिकार होते हैं, जिन में से करीब 200 सेरेब्रल पाल्सी, ऐपिलैप्सी, सिर का छोटा आकार व अन्य विकास संबंधित बीमारियों से ग्रस्त होते हैं.
सीएमवी से महिला को गर्भपात भी हो सकता है तथा जो बच्चा इस इन्फैक्शन के साथ पैदा होता है उसे जन्म के तुरंत बाद चाहे कोई बीमारी न हो, लेकिन कुछ सालों के भीतर लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं. इस बीमारी का सब से बड़ा कारण है किसी का सलाइवा जूठे खाने के माध्यम से गर्भवती महिला के संपर्क में आना. इसलिए गर्भवती महिलाओं के लिए अपने पति या बच्चों की प्लेट से बचा खाना खाने की आदत को छोड़ना बहुत जरूरी है.
बचा और जूठा खाने की मजबूरी
परिवार के साथ बैठ कर खाना खाने वाली महिलाएं एपीआई आवश्यकतानुसार भोजन करती हैं, बावजूद इस के जब उन के पति या बच्चे खाने की प्लेट में कुछ बचा देते हैं तो भूख न होते हुए भी वे उसे खा लेती हैं. पति और बच्चे तो अपनीअपनी प्लेट सरका कर उठ जाते हैं, लेकिन औरत का यह मानना कि चाहे कुछ भी हो जाए खाना व्यर्थ न जाए, उस की इस आदत की सब से बड़ी वजह है. वह खाना व्यर्थ न करने के लिए अपनी भूख से ज्यादा खा लेती है. इस से उस के शरीर में 400 कैलोरी तक बढ़ सकती है.
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यदि अपने बच्चे को खाना परोस रही हैं तो उस की जरूरत के हिसाब से दें. प्रोटीनयुक्त खाद्यपदार्थ जैसे चिकन या मछली उस की हथेली के साइज का दें. फल और सब्जियां 2 हथेलियों के बराबर और फैट्स जैसेकि चीज और मक्खन एक अंगूठे जितना दें. चावल आप उसे मुट्ठीभर दें व दाल और रोटी भी उस की भूख के हिसाब से दें. इस से न खाना बचेगा न आप को खाना पड़ेगा. यदि बच्चों ने रोटीसब्जी बचा दी है या कोई और स्नैक तो उसे बाद केलिए बचा लें. जब बच्चे को फिर भूख लगे तब दें.
अधिकतर बच्चों की आदत होती है कि पैक्ड फूड के बड़ेबड़े पैकेट्स तो वे शौक से खोल लेते हैं और एकाधा बाइट खा कर ही अपनी मां को पकड़ा देते हैं. कभी चौकलेट तो कभी बिस्कुट, कभी नमकीन तो कभी बची पेप्सी, सब मां के हिस्से में ही आता है. घर में तो फिर भी औरतें बच्चों का बचा खाने से पहले सोचती हैं, लेकिन बच्चों की यही आदत जब किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर दिखने लगे तो मां के पास बच्चों के छोड़े खाने को खाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. आखिर जिन के घर गए हैं उन के खाने को बरबाद करना भी तो ठीक नहीं.
बासी खाने की परंपरा
स्थिति केवल बचे खाने को मां द्वारा खाने की ही नहीं है, बल्कि बचे खाने को बासी कर खाने की भी है. भारतीय परिवारों में पति को बासी खाना देना औरत के लिए एक अपमान की बात सम झी जाती है, जिस का एक कारण लोगों का यह मानना है कि पति काम कर के, खूनपसीना बहा कर आता है और इस बाबत उसे ताजा पका खाना ही देना चाहिए. दूसरा, यह पितृसत्तात्मक समाज की देन है. वहीं बच्चे तो अकसर सभी के नखरीले ही होते हैं और उन्हें पिछली रात का या सुबह का खाना नहीं खाना तो मतलब नहीं खाना. तो इस में भी इस बासी भोजन को खाने का जिम्मा औरत के सिर ही आता है.
बासी खाना खाने से व्यक्ति को गंभीर पाचन संबंधी बीमारियां हो सकती हैं. खाना बनने के 2 घंटे के भीतर ही उसे फ्रिज में न रखा जाए तो उस में बैक्टीरिया लगने शुरू हो जाते हैं, जिस से फूड पौइजनिंग तक हो सकती है. ऐसिडिटी भी हो सकती है.
इस बात का ध्यान रखें कि आप कोई डस्टबिन नहीं हैं जो कुछ भी उठाया और खा लिया. साथ ही परिवार के साथ बैठ कर खाना जरूरी है बजाय सभी के बाद खाने के. बदलाव ही जीवन का आधार है और यदि आप अपनी आदतें या कहें पुरानी परंपराएं नहीं बदलेंगी तो आप का शरीर बदलने लगेगा. आप की सेहत
में बदलाव होगा. बुरे बदलावों की गुंजाइश ऐसे में ज्यादा होती है. इसलिए अपनी और अपने परिवार की सेहत के लिए अच्छी आदतें अपनाइए और अपने शरीर के साथ खिलवाड़ करना छोड़ दीजिए.
‘इंडियन ह्यूमन डैवलपमैंट सर्वे’ यानी आईएचडीएस 2011 के एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली की 15 से 49 वर्ष की 5 में से 1 शादीशुदा औरत और उत्तर प्रदेश की पूर्ण जनसंख्या की आधी औरतें अपने पति के बाद खाना खाती हैं.
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सैंट जौर्जेस यूनिवर्सिटी, लंदन के वैज्ञानिकों की रिसर्च के मुताबिक जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान बचा, जूठा खाना खाती हैं सीएमवी यानी साइटोमेगालो वायरस की चपेट में आ सकती हैं. इस रोग के चलते उन के बच्चे का विकास बाधित हो सकता है, मानसिक बीमारियां हो सकती हैं. वह बेहरा भी पैदा हो सकता है.
वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 4 वर्ष से कम आयु के करीब आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं वहीं 30 फीसदी नवजात कुपोषित पैदा होते हैं.