रेटिंगः डेढ़ स्टार
निर्माताः विनीत जैन व अमृता पांडे
निर्देशकः मधुर भंडारकर
कलाकारःतमन्ना भाटिया, अभिषेक बजाज, सौरभ शुक्ला, साहिल वैद्य, सानंद वर्मा, सव्यसाची चक्रवर्ती, करण सिंह छाबरा व अन्य.
अवधिः लगभग दो घंटे
ओटीटी प्लेटफार्मः हॉट स्टार डिज्नी
सरकारें बदलने के साथ हर देश के सिनेमा में कुछ बदलाव जरुर होते हैं. मगर सिनेमा में कहानी व मनोरजन जरुर रहता है. लेकिन बौलीवुड के फिल्मकार तो अब सिर्फ किसी न किसी अजेंडे के तहत ही फिल्में बना रहे हैं. ऐसा करते समय वह सिनेमा तकनीक , मनोरंजन व कहानी पर ध्यान ही नही देते. तभी तो 23 सितंबर से ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘डिज्नी हॉटस्टार ’पर स्ट्ीम हो रही फिल्म ‘‘बबली बाउंसर’’ देखकर इस बात का अहसास ही नही होता कि इस फिल्म का निर्देशन राष्ट्ीय पुरस्कार प्राप्त व 2016 में पद्मश्री से सम्मानित निर्देशक मधुर भंडारकर ने किया है, जिन्होने इससे पहले ‘चांदनी बार’, ‘पेज 3’, ‘कारपोरेट’, ‘ट्रेफिक सिग्नल’, ‘फैशन’ , ‘जेल ’ व ‘हीरोईन जैसी फिल्में निर्देशित की हैं.
हरियाणा की पृष्ठभूमि में ओमन इंम्पॉवरमेंट’ पर बनायी गयी फिल्म ‘‘बबली बाउंसर’’में न तो ओमन इम्पावरमेंट है, न प्रेम कहानी है न हास्य है और न इसमें मनोरंजन का कोई तत्व है. . इतना ही नहीं इस फिल्म का नाम यदि ‘‘बबली बाउंसर’ न होता तो भी कोई फर्क नही पड़ता.
कहानीः
फिल्म ‘‘बबली बाउंसर’’ की कहानी दिल्ली से सटे हरियाणा के गांव असोला-फतेहपुरी से शुरू होती है. जहां हर वर्ष सैकड़ों पुरूष बाउंसर तैयार होते हैं और फिर वह दिल्ली के नाइट क्लबों में नौकरी करते हैं. इसी गांव में एक लड़की बबली तंवर ( तमन्ना भाटिया) हैं, जो कि अपने पिता व गांव के बॉडी बिल्डर (सौरभ शुक्ला) से बौडी बिल्डिंग सीखती हैं. बबली की मां को बेटी की शादी की चिंता है, मगर बाप बेटी कुछ अलग ही जिंदगी जी रहे हैं. वह अपनी सहेली की ही तरह दिल्ली जाकर नौकरी करना चाहती है. बबली का आशिक गांव का ही युवक(साहिल वैद्य) है. एक दिन गांव के सरपंच की बेटी की शादी में बबली की मुलाकात अपनी शिक्षिका के बेटे विराज से होती है, जो कि लंदन से पढ़ाई करके वापस लौटा है और वह दिल्ली में साफ्टवेअर इंजीनियर के रूप में ेनौकरी कर रहा है. बबली उस पर लट्टू हो जाती है और विराज से शादी करने का सपना देखने लगती है. एक दिन वह अपने बचपन के प्रशंसक (साहिल वैद्य) की मदद से, अपने माता-पिता को मनाकर दिल्ली के एक नाइट क्लब में महिला बाउंसर के रूप में नौकरी पाने में सफल हो जाती है. दिल्ली में वह बार बार विराज से मिलने का प्रयास करती है. पर एक दिन विराज उससे साफ साफ कह देता है कि वह उसेस विवाह नही करेगा. विराज के अनुसार बबली बहुत जिद्दी, डकार लेेने वाली और दसवीं फेल यानी कि अनपढ़ है. दिल टूटने के बाद बबली खुद को बदलने का निर्णय लेकर अंग्रेजी की कक्षा में पढ़ने जाने लगती है. दसवीं की परीक्षा पास करती है. एक दिन वह धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलना सीख जाती है. शहरी रहन सहन के अनुकूल खुद को ढालती है. फिर एक दिन रात में सड़क पर चार लड़कों की पिटायी कर मुख्यमंत्री से बहादुरी का पुरस्कार भी पा जाती है. सुखद अंत होता है. बबली अब लड़कियों को बाउंसर बनने की ट्रेनिंग देने लगती है.
लेखन व निर्देशनः
कहानी के केंद्र में पुरूष प्रधान बाउंसर के पेशे मंे महिला बाउंसरों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, वह है. मगर पूरी फिल्म देखकर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता. फिल्म में महिला बाउंसरो की दुर्दशा, उनकी समस्याओं आदि का चित्रण होना चाहिए था, पर यहां तो बबली को सब कुछ प्लेट में सजा कर दिया जाता है. हरियाणा को अच्छी तरह से जानने वाले इस बात से वाकिफ है कि वहां पर लड़कियों व औरतांे की क्या स्थिति है, मगर इस फिल्म में वह सब गायब है. फिल्म का हास्य बहुत ही बेतुका सा है. कहानी व पटकथा के स्तर पर काफी गड़बड़ियां है. फिल्मकार ने बिना किसी शोध को किए ही आलस्य के साथ बबली के चरित्र को अति सतही लिखा है. फिल्मकार नेता के बेटे की दादागीरी और बंदूक का डर दिखाने से लेकर सारे हथकंडे इसमें भी पिरो दिए हैं.
फिल्मकार मधुर भंडारकर ने हरियाणा के एक गांव की युवा लड़की के महिला बाउंसर बनने की कहानी जरुर उठायी, पर फिल्म में वह बाउंसर महज इसलिए बनती हैं जिससे वह दिल्ली जाकर एक साफ्टवेअर इंजीनियर को अपने प्रेम जाल में फंास सके. सच यह है कि मध्ुार को हरियाणा के गांव , वहां के निवासियों के रहन सहन व सोच की कोई समझ ही नही है. इस पर एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. मगर फिल्मकार ने गंभीरता से इस विषय पर काम नही किया. वह तो केवल अपने अजेंडे तक ही सीमित रहे. लेकिन वह अपने अजेंडे के साथ भी न्याय नही कर पाए. कितनी अजीब बात है कि ‘ओमन इम्पावरमेंट प्र आधारित फिल्म में बबली बाउंसर बनने के सपने को पूरा करने के लिए गांव से दिल्ली नहीं आती, वह तो विराज के प्रेम में पड़कर विराज को पाने का सपना लेकर आती है. फिल्मकर प्रेम कहानी को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए. इतना ही नही वह विराज के किरदार को ठीक से चित्रित नही कर पाए. इस फिल्म में महिला बाउंसरो को काम करते हुए किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उसका भी कहीं कोई चित्रण नही है. फिल्मकार ने सारा ध्यान इस बात पर लगाया कि बबली के अंदर कितनी ताकत है. फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसका रोमांटिक ट्ैक है. फिल्म देखते हुए दर्शकों को सैकड़ों पुरानी फिल्में याद आ जाती हैं.
फिल्म के नायक को अंग्रेजी बोलने में असमर्थ होने, सार्वजनिक रूप से डकार लेने और दिल्ली के एक महंगे रेस्तरां में अपने हाथों से फ्राइड राइस खाने का मजाक उड़ाते हुए दिखाया गया है. इस तरह के दृश्यों से फिल्मर्सजक साबित क्या करना चाहते हैं?
अभिनयः
बबली के किरदार में तमन्ना भाटिया का अभिनय ठीक ठाक ही कहा जाएगा. शुरूआत में वह बुरी तरह से मात खा गयी हैं. बीच में उनके अभिनय में सुधार आता है, पर अंत तक वह अपने अभिनय के लहजे को सही टै्क पर रख नही पाती. यह चरित्र चित्रण मे कमी व निर्देशक की अपनी कमजोरी के चलते भी हो सकता है. विराज के कमजोर किरदार में अभिषेक बजाज से बहुत ज्यादा उम्मीद बचती नही. यदि फिल्मकार ने विराज के किरदार को ठीक से रचा होता तो अभिषेक बजाज का अभिनय शानदार हो जाता. पर फिल्मकार का सारा ध्यान तो तमन्ना के किरदार पर रहा. फिर भी अभिषेक ने अपनी तरफ से कोई कमी नही छोड़ी.