प्यार से संवारें बच्चे का कल

आज की व्यस्त जीवनशैली में मातापिता अपने काम व जिम्मेदारियों के बीच अपने शिशु के छोटेछोटे खास पलों को महसूस करने से वंचित रह जाते हैं. दरअसल हर दिन की छोटीछोटी गतिविधियां नवजात शिशु के विकास में मदद करती हैं और उन में आत्मविश्वास, जिज्ञासा, आत्मसंयम और सामाजिक कौशल की कला का विकास करती हैं.

यहां हम एक खास उम्र में होने वाले परिवर्तनों के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि आप को यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि किस तरह से बातचीत के माध्यम से नवजात शिशु में सामाजिक, भावनात्मक ज्ञान का विकास किया जा सकता है. यह मातापिता और शिशु के बीच की एक विशेष पारस्परिक क्रिया है जो हर पल को खास व सुंदर बनाती है.

स्तनपान के समय

जब आप अपने शिशु को स्तनपान कराती हैं तब आप उसे केवल आवश्यक पोषण प्रदान करने के अलावा भी कुछ खास करती हैं, जो उसे उस की दुनिया में सुरक्षा का एहसास कराता है. शिशु को भूख लगने पर स्तनपान कराना उसे शांत महसूस करने में मदद करता है. आप के चेहरे को देख कर, आप की आवाज सुन कर और आप के स्पर्श को महसूस कर के वह महत्त्वपूर्ण काम पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनता है. जब वह देखता है कि वह संचार करने के प्रयास में सफल हो रहा है तो आप उस की भाषा की कला विकसित करने में उस की मदद करती हैं. जब आप उसे स्तनपान कराएं तब उस से धीरेधीरे बात करें, उस का शरीर हाथों से सहलाएं और उसे आप के स्पर्श का अनुभव करने दें.

नवजात को आराम दें

जब आप अपने शिशु को आराम देती हैं तब आप उसे बताती हैं कि दुनिया एक सुरक्षित जगह है जहां कोई है जो उस की परवाह करता है, उस का ध्यान रखता है. शिशु जितना ज्यादा आराम महसूस करता है उसे दूसरों से जुड़ने में उतनी ही मदद मिलती है और वह सीखता है कि उस के आसपास की दुनिया कैसे काम करती है. जब आप का शिशु रोता है तब आप तुरंत जवाब दे कर उसे सिखाती हैं कि आप उस की हमेशा देखभाल करेंगी. यह सोच कर परेशान न हों कि आप तुरंत जवाब दे कर उसे बिगाड़ रही हैं. दरअसल, शोध बताते हैं कि जब बच्चे रोते हैं, तब तुरंत प्रतिक्रिया करने पर वे कम रोते हैं, क्योंकि इस से वे सीखते हैं कि उन का ध्यान रखने वाला आ रहा है. जब आप उसे आराम देती हैं तब आप उसे उस के तरीके से खुद को शांत रहना सिखाती हैं.

जब आप का शिशु रोता है या आप उसे परेशान देखती हैं तब अलगअलग चीजों पर ध्यान दें जैसे उसे भूख तो नहीं लगी है, उसे डकार तो नहीं लेनी, उस का डायपर चैक करें. अलगअलग तरीके से गोद में लें, गाना गाएं, प्यार से बात करें.

शिशु के संकेतों को समझें

नवजात शिशु कई तरह की नईनई चीजें करते हैं, जिन्हें हम समझ नहीं पाते हैं, लेकिन इन संकेतों को समझ कर उन के विकास में मदद की जा सकती है. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर शिशु एक ही तरह का संकेत दे. आप को यह बात समझने की जरूरत है कि हर शिशु अलग होता है और सब की सीखने की क्षमता अलगअलग होती है. आप के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना उस के सीखने की कला, स्वास्थ्य और विकास की नींव है इसलिए अपने शिशु के व्यवहार और विकास में हर बदलाव में ध्यान दें और शिशु चिकित्सक के संपर्क में रहें.

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क्योंकि डाक्टर जानते हैं कि आप के शिशु की मुसकान को कैसे बरकरार रखा जा सकता है. जौनसन बेबी प्रौडक्ट्स चिकित्सकीय रूप से आप के बच्चे की नाजुक त्वचा के लिए प्रमाणित हैं. इसलिए 90% से अधिक डाक्टरों के आश्वासन का आनंद लीजिए और हर दिन अपने शिशु को खुश व हंसताखिलखिलाता रखिए.

Mother’s Day Special: मां बनना औरत की मजबूरी नहीं

मातृत्व का एहसास औरत के लिए कुदरत से मिला सब से बड़ा वरदान है. औरत का सृजनकर्ता का रूप ही उसे पुरुषप्रधान समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान देता है. मां वह गरिमामय शब्द है जो औरत को पूर्णता का एहसास दिलाता है व जिस की व्याख्या नहीं की जा सकती. यह एहसास ऐसा भावनात्मक व खूबसूरत है जो किसी भी स्त्री के लिए शब्दों में व्यक्त करना शायद असंभव है.

वह सृजनकर्ता है, इसीलिए अधिकतर बच्चे पिता से भी अधिक मां के करीब होते हैं. जब पहली बार उस के अपने ही शरीर का एक अंश गोद में आ कर अपने नन्हेनन्हे हाथों से उसे छूता है और जब वह उस फूल से कोमल, जादुई एहसास को अपने सीने से लगाती है, तब वह उस को पैदा करते समय हुए भयंकर दर्द की प्रक्रिया को भूल जाती है.

लेकिन भारतीय समाज में मातृत्व धारण न कर पाने के चलते महिला को बांझ, अपशकुनी आदि शब्दों से संबोधित कर उस का तिरस्कार किया जाता है, उस का शुभ कार्यों में सम्मिलित होना वर्जित माना जाता है. पितृसत्तात्मक इस समाज में यदि किसी महिला की पहचान है तो केवल उस की मातृत्व क्षमता के कारण. हालांकि कुदरत ने महिलाओं को मां बनने की नायाब क्षमता दी है, लेकिन इस का यह मतलब कतई नहीं है कि उस पर मातृत्व थोपा जाए जैसा कि अधिकांश महिलाओं के साथ होता है.

विवाह होते ही ‘दूधो नहाओ, पूतो फलो’ के आशीर्वाद से महिला पर मां बनने के लिए समाज व परिवार का दबाव पड़ने लगता है. विवाह के सालभर होतेहोते वह ‘कब खबर सुना रही है’ जैसे प्रश्नचिह्नों के घेरे में घिरने लगती है. इस संदर्भ में उस का व्यक्तिगत निर्णय न हो कर परिवार या समाज का निर्णय ही सर्वोपरि होता है, जैसे कि वह हाड़मांस की बनी न हो कर, बच्चे पैदा करने की मशीन है.

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समाज का दबाव

महिला के शरीर पर समाज का अधिकार जमाना नई बात नहीं है. हमेशा से ही स्त्री की कोख का फैसला उस का पति और उस के घर वाले करते रहे हैं. लड़की कब मां बन सकती है और कब नहीं, लड़का होना चाहिए या लड़की, ये सभी निर्णय समाज स्त्री पर थोपता आया है. वह क्या चाहती है, यह कोई न तो जानना चाहता है और न ही मानना चाहता है, जबकि सबकुछ उस के हाथ में नहीं होता है, फिर भी ऐसा न होने पर उस को प्रताडि़त किया जाता है.

यह दबाव उसे शारीरिक रूप से मां तो बना देता है परंतु मानसिक रूप से वह इतनी जल्दी इन जिम्मेदारियों के लिए तैयार नहीं हो पाती है. यही कारण है कि कभीकभी उस का मातृत्व उस के भीतर छिपी प्रतिभा को मार देता है और उस का मन भीतर से उसे कचोटने लगता है.

कैरियर को तिलांजलि

परिवार को उत्तराधिकारी देने की कवायद में उस के अपने कैरियर को ले कर देखे गए सारे सपने कई वर्षों के लिए ममता की धुंध में खो जाते हैं. यह अनचाहा मातृत्व उस की शोखी, चंचलता सभी को खो कर उसे एक आजाद लड़की से एक गंभीर महिला बना देता है.

लेकिन अब बदलते समय के अनुसार, महिलाएं जागरूक हो ई हैं. आज कई ऐसे सवाल हैं जो घर की चारदीवारी में कैद हर उस औरत के जेहन में उठते हैं, जिस की आजादी व स्वर्णिम क्षमता पर मातृत्व का चोला पहन कर उसे बाहर की दुनिया से महरूम कर दिया गया है.

आखिर क्यों औरत की ख्वाहिशों को ममता के खूंटे से बांध कर बाहर की दुनिया से अनभिज्ञ रखा जाता है? जैसे कि अब उस का काम नौकरी या उन्मुक्त जिंदगी जीना नहीं, बल्कि अपने बच्चे की परवरिश में अपना अस्तित्व ही दांव पर लगा देना मात्र रह गया हो.

बच्चे को अपने रिश्ते का जामा पहना कर उस पर अपना अधिकार तो सभी जमाते हैं, लेकिन जो बच्चे के पालनपोषण से संबंधित कर्तव्य होते हैं, उन का निर्वाह करने के लिए तो पूरी तरह से मां से ही अपेक्षा की जाती है. क्या परिवार में अन्य कोई बच्चे का पालनपोषण नहीं कर सकता. यदि हां, तो फिर इस की जिम्मेदारी अकेली औरत ही क्यों ढोती है?

निर्णय की स्वतंत्रता

दबाव में लिया गया कोई भी निर्णय इंसान पर जिम्मेदारियां तो लाद देता है परंतु उन का वह बेमन से वहन करता है. जब हम सभी एक शिक्षित व सभ्य समाज का हिस्सा हैं तो क्यों न हर निर्णय को समझदारी से लें तथा जिम्मेदारियों के मामले में स्त्रीपुरुष का भेद मिटा कर मिल कर सभी कार्य करें. ऐसे वक्त में यदि उस का जीवनसाथी उसे हर निर्णय की आजादी दे व उस का साथ निभाए तो शायद वह मां बनने के अपने निर्णय को स्वतंत्रतापूर्वक ले पाएगी.

एक पक्ष यह भी

कानून ने भी औरत के मां बनने पर उस की अपनी एकमात्र स्वीकृति या अस्वीकृति को मान्यता प्रदान करने पर अपनी मुहर लगा दी है.

मातृत्व नारी का अभिन्न अंश है, लेकिन यही मातृत्व अगर उस के लिए अभिशाप बन जाए तो? वर्ष 2015 में गुजरात में एक 14 साल की बलात्कार पीडि़ता ने बलात्कार से उपजे अनचाहे गर्भ को समाप्त करने के लिए उच्च न्यायालय से अनुमति मांगी थी, लेकिन उसे अनुमति नहीं दी गई. एक और मामले में गुजरात की ही एक सामूहिक बलात्कार पीडि़ता के साथ भी ऐसा हुआ. बरेली, उत्तर प्रदेश की 16 वर्षीय बलात्कार पीडि़ता को भी ऐसा ही फैसला सुनाया गया. ऐसी और भी अन्य दुर्घटनाएं सुनने में आई हैं.

बलात्कार पीडि़ता के लिए यह समाज कितना असंवेदनशील है, यह जगजाहिर है. बलात्कारी के बजाय पीडि़ता को ही शर्म और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है. ऐसे में अगर कानून भी उस की मदद न करे और बलात्कार से उपजे गर्भ को उस के ऊपर थोप दिया जाए तो उस की स्थिति की कल्पना कीजिए, वह कानून और समाज की चक्की के 2 पाटों के बीच पिस कर रह जाती है. लड़की के पास इस घृणित घटना से उबरने के सारे रास्ते खत्म हो जाते हैं और ऐसे बच्चे का भी कोई भविष्य नहीं रह जाता जिसे समाज और उस की मां स्वीकार नहीं करती.

पिछले साल तक आए इस तरह के कई फैसलों ने इस मान्यता को बढ़ावा दिया था कि किस तरह से महिला के शरीर से जुड़े फैसलों का अधिकार समाज और कानून ने अपने हाथ में ले रखा है. वह अपनी कोख का फैसला लेने को आजाद नहीं है. अनचाहा और थोपा हुआ मातृत्व ढोना उस की मजबूरी है.

लेकिन 1 अगस्त, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार की शिकार एक नाबालिग लड़की के गर्भ में पल रहे 24 हफ्ते के असामान्य भू्रण को गिराने की इजाजत दे दी. कोर्ट ने यह आदेश इस आधार पर दिया कि अगर भू्रण गर्भ में पलता रहा तो महिला को शारीरिक व मानसिक रूप से गंभीर खतरा हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 के प्रावधान के आधार पर यह आदेश दिया है. कानून के इस प्रावधान के मुताबिक, 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की अनुमति उसी स्थिति में दी जा सकती है जब गर्भवती महिला की जान को गंभीर खतरा हो. 21 सितंबर, 2017 को आए मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले ने स्थिति को पलट दिया.

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न्यायालय ने महिला के शरीर और कोख पर सिर्फ और सिर्फ महिला के अधिकार को सम्मान देते हुए यह फैसला दिया है कि यह समस्या सिर्फ अविवाहित स्त्री की नहीं है, विवाहित स्त्रियां भी कई बार जरूरी कारणों से गर्भ नहीं चाहतीं.

कोई भी महिला चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, अवांछित गर्भ को समाप्त करने के लिए स्वतंत्र है, चाहे वजह कोई भी हो. इस अधिकार को गरिमापूर्ण जीवन जीने के मूल अधिकार के साथ सम्मिलित किया गया है. महिलाओं के अधिकारों और स्थिति के प्रति बढ़ती जागरूकता व समानता इस फैसले में दिखाई देती है. अविवाहित और विवाहित महिलाओं को समानरूप से यह अधिकार सौंपते हुए उच्च न्यायालय ने लिंग समानता और महिला अधिकारों के पक्ष में एक मिसाल पेश की है.

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

28 अक्तूबर, 2017 को गर्भपात को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक, अब किसी भी महिला को अबौर्शन यानी गर्भपात कराने के लिए अपने पति की सहमति लेनी जरूरी नहीं है. एक याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह फैसला लिया है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी बालिग महिला को बच्चे को जन्म देने या गर्भपात कराने का अधिकार है. गर्भपात कराने के लिए महिला को पति से सहमति लेनी जरूरी नहीं है. बता दें कि पत्नी से अलग हो चुके एक पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. पति ने अपनी याचिका में पूर्व पत्नी के साथ उस के मातापिता, भाई और 2 डाक्टरों पर अवैध गर्भपात का आरोप लगाया था. पति ने बिना उस की सहमति के गर्भपात कराए जाने पर आपत्ति दर्ज की थी.

इस से पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी याचिकाकर्ता की याचिका ठुकराते हुए कहा था कि गर्भपात का फैसला पूरी तरह महिला का हो सकता है. अब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए एम खानविलकर की बैंच ने यह फैसला सुनाया है. फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात का फैसला लेने वाली महिला वयस्क है, वह एक मां है, ऐसे में अगर वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है तो उसे गर्भपात कराने का पूरा अधिकार है. यह कानून के दायरे में आता है.

हम यह स्वीकार करते हैं कि आज कानून की सक्रियता ने महिलाओं को काफी हद तक उन की पहचान व अधिकार दिलाए हैं परंतु आज भी हमारे देश की 40 प्रतिशत महिलाएं अपने इन अधिकारों से महरूम हैं, जिस के कारण आज उन की हंसतीखेलती जिंदगी पर ग्रहण सा लग गया है.

बच्चे के जन्म का मां और बच्चे दोनों के जीवन पर बहुत गहरा और दूरगामी प्रभाव पड़ता है. इसलिए मातृत्व किसी भी महिला के लिए एक सुखद एहसास होना चाहिए, दुखद और थोपा हुआ नहीं.

हर सिक्के के दो पहलू

बच्चा पैदा करना पूरी तरह से महिलाओं के निर्णय पर निर्भर होने से परिवार में कई विसंगतियां पैदा होंगी.

बच्चे की जरूरत पूरे परिवार को होती है, और उसे पैदा एक औरत ही कर सकती है. ऐसे में उस के नकारात्मक रवैए से पूरा परिवार प्रभावित होगा.

मातृत्व का खूबसूरत एहसास मां बनने के बाद ही होता है. नकारात्मक निर्णय लेने से महिला इस एहसास से वंचित रह जाएगी.

सरोगेसी इस का विकल्प नहीं है, मजबूरी हो तो बात अलग है.

अपनी कोख से पैदा किए गए बच्चे से मां के जुड़ाव की तुलना, गोद लिए बच्चे या सरोगेसी द्वारा पैदा किए गए बच्चे से की ही नहीं जा सकती.

आज के दौर में महिलाएं मातृत्व से अधिक अपने कैरियर को महत्त्व देती हैं. उन की इस सोच पर कानून की मुहर लग जाने के बाद अब परिवार के विघटन का एक और मुद्दा बन जाएगा और तलाक की संख्या में बढ़ोतरी होनी अवश्यंभावी है.

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जानें क्या है सतावरी लैक्टेशन सप्लीमेंट, जो नेचुरल तरीके से बढ़ाए मां का दूध

मां का दूध बच्चे के लिए सबकुछ होता है. जिससे उसकी पोषण संबंधी दिक्कतों को पूरा किया जाता है. इतना ही नहीं स्तनपान मां और बच्चों के बीच घनिष्ठता भी पैदा करता है. लेकिन यह तभी संभव है जब मां अपने बच्चे को सही मात्रा में दूध पिलाए.

कई बार अनेक कारणों से मां के स्तन में भरपूर मात्रा में दूध नहीं आ पाता है. जिसके कारण मां चाहकर भी दूध पिलाने में सक्षम नहीं हो पाती है. इसके लिए मां कई तरह कि कोशिश करती है लेकिन बहुत छोटा बच्चा बहुत मुश्किल से ही ऊपरी दूध पी पाता है.  क्योंकि यह दूध भारी होता है.

ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि मां अपने लैक्टेशन को आयुर्वेदिक तरीके से बढ़ाए जैसे Zandu का Striveda Satavari Lactation इसमें सतावरी जड़ी बूटी शामिल है जो मां के दूध को प्राकृतिक तरीके से बढ़ाता है. यह दूध की क्वालिटी को बढ़ाने के साथ- साथ बच्चों के विकास के लिए भी सहायक होता है.

मां के दूध को बढ़ाता है सातावरी जड़ी बूटी वाला लैक्टेशन सप्लीमेंट

क्या है सतावरी 

आपको बता दें कि सतावरी गैलेक्टोगैंग जड़ीबूटी है.जो मां के हार्मोनल बैंलेंस को ठीक करती है. यह सौ प्रतिशत शाकाहारी है. लोग इससे न जाने कितने वर्षों से जुड़े हुए हैं और इसके लड्डू और मीठी खिचड़ी बनाते हैं जो मां के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है.

साथ ही इसमें मेथी दाना, सौफ, डेट्स, कोलियस ऐमबोइनईकस और मिल्क थीसल जैसे कई लाभकारी तत्व मौजूद हैं. आप इसे टेबलेट या पाउडर किसी भी फार्म में ले सकती हैं.

तो अपने बच्चे की सेहत के साथ मत कीजिए किसी भी तरह का समझौता और नेचुरल तरीके से ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के लिए लीजिए सतावरी जड़ी बूटी वाला नेचुरल लैक्टेशन सप्लीमेंट.

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इन 4 तरीकों से ब्रेस्ट फीडिंग को बनाइए और आसान

नवजात पैदा होने के तुरंत बाद स्तनपान के लिए तैयार होता है. वह अपने व्यवहार से दर्शाता है कि वह स्तनपान करना चाहता है जैसे चूसने की कोशिश करना, अपने मुंह के पास उंगलियां लाना. पैदा होने के बाद पहले 45 मिनट से ले कर 2 घंटों के भीतर बच्चे का ऐसा व्यवहार देखा जा सकता है.

बच्चे के जन्म के बाद 6 सप्ताह स्तनपान के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होते हैं. बच्चे को जन्म के बाद पहले 1 घंटे के अंदर स्तनों के पास रखें. हर 3-4 घंटे में बच्चे की जरूरत के अनुसार उसे स्तनपान कराएं. ऐसा करने से फीडिंग की समस्याएं कम होंगी, साथ ही आप इस से स्तनों में अकड़न की समस्या से भी बचेंगी.

मां के दूध को बढ़ाता है सातावरी जड़ी बूटी वाला लैक्टेशन सप्लीमेंट

कैसे करें शुरुआत

– एक आरामदायक नर्सिंग स्टेशन बनाएं और खुद को रिलैक्स रखें.

– स्तनपान कराते समय आरामदायक स्थिति में बैठें, जैसे आप कुरसी पर बैठ सकती हैं या बिस्तर पर बैठ कर तकिए का सहारा ले कर स्तनपान करा सकती हैं. बच्चे को अपने हाथों से सपोर्ट दें. इस दौरान ध्यान रखें कि आप के पैर सही स्थिति में हों. अगर आप बिस्तर पर हैं तो अपने पैरों के नीचे तकिया रखें. इसी तरह अगर कुरसी पर बैठ कर स्तनपान कराना चाहती हैं, तो फुटस्टूल का इस्तेमाल करें.

स्तनपान की कुछ तकनीकें

  1. क्रैडल होल्ड:

स्तनपान की इस तकनीक में आप बच्चे के सिर को अपनी बाजू से सहारा देती हैं. बिस्तर या कुरसी पर आराम से बैठ जाएं. अगर बिस्तर पर बैठी हैं तो तकिए का सहारा लें. अपने पैरों को आराम से किसी स्टूल या कौफी टेबल पर रख लें ताकि आप बच्चे पर झुकें नहीं.

बच्चे को अपनी गोद में इस तरह लें कि उस का चेहरा, पेट और घुटने आप की तरफ हों. अब अपनी बाजू को बच्चे के सिर के नीचे रखते हुए उसे सहारा दें. अपनी बाजू को आगे की ओर निकालते हुए उस की गरदन, पीठ को सहारा दें. इस दौरान बच्चा सीधा या हलके कोण पर लेटा हो.

यह तरीका उन बच्चों के लिए सही है, जो फुल टर्म में और नौर्मल डिलीवरी प्रक्रिया से पैदा हुए हैं. लेकिन जिन महिलाओं में सी सैक्शन हुआ हो, उन्हें इस तकनीक को नहीं अपनाना चाहिए, क्योंकि इस से पेट पर दबाव पड़ता है.

2. क्रौस ओवर होल्ड:

इस तकनीक को क्रौस क्रैडल होल्ड भी कहा जाता है. यह क्रैडल होल्ड से अलग है. इस में आप अपनी बाजू से बच्चे के सिर को सपोर्ट नहीं करतीं.

अगर आप अपने दाएं स्तन से बच्चे को स्तनपान करा रही हैं, तो बच्चे को बाएं हाथ से पकड़ें. बच्चे के शरीर को इस तरह घुमाएं कि उस की छाती और पेट आप की तरफ हो. बच्चे के मुंह को अपने स्तन तक ले जाएं. यह तकनीक बहुत छोटे बच्चों के लिए सही है जो ठीक से लेट नहीं पाते.

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3. क्लच या फुटबौल होल्ड:

जैसाकि नाम से पता चलता है इस तकनीक में आप बच्चे को हाथों से ठीक वैसे पकड़ती हैं जैसे फुटबौल या हैंडबैग (उसी तरफ जिस तरफ से स्तनपान करा रही हैं).

बच्चे को अपनी बाजू के नीचे साइड में इस तरह रखें कि उस की नाक का स्तर आप के निपल पर हो. गोद में तकिया रख कर अपनी बाजू उस पर टिका लें और बच्चे के कंधे, गरदन और सिर को हाथ से सपोर्ट करें. सी होल्ड से बच्चे को निपल तक ले जाएं.

यह तकनीक उन महिलाओं के लिए अच्छी है जिन के बच्चे सिजेरियन से पैदा हुए हों.

4. रिक्लाइनिंग पोजिशन:

बच्चे को इस तरह अपने पास लाएं कि उस का चेहरा आप की तरफ हो. उस के सिर को नीचे वाली बाजू से सपोर्ट करें और नीचे वाला हाथ उस के सिर के नीचे रखें.

अगर बच्चे को स्तन तक लाने के लिए थोड़ा ऊंचा करने की जरूरत हो तो छोटा सा तकिया या फोल्ड की हुई चादर उस के सिर के नीचे रखें. ध्यान रखें कि बच्चे को आप के निपल तक पहुंचने के लिए अपनी गरदन पर खिंचाव न लाना पड़े और न ही आप को झुकना पड़े.

अगर आप के लिए बैठना मुश्किल है, तो आप इस तरह से लेट कर बच्चे को स्तनपान करा सकती हैं. इस के अलावा जब आप रात या दिन में आराम कर रही हों, तो भी इस तरह बच्चे को लेटेलेटे स्तनपान करा सकती हैं.

स्तनपान कराने के बाद बच्चे को डकार दिलवाना बहुत जरूरी होता है. इस के लिए उस के पेट पर हलके से दबाव डालें. अगर 5 मिनट बाद भी बच्चे को डकार न आए और वह सहज लगे तो डकार दिलवाने की जरूरत नहीं है.

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बेबी करें प्लान लेकिन इन बातों का रखें ध्यान

शाहनवाज

फेसबुक पर स्क्रोल करते करते मुझे मेरे एक बहुत पुराने दोस्त राहुल की आई.डी. नजर आई.
पहली से ले कर 7वी क्लास तक वह मेरे साथ मेरी ही क्लास में साथ पढता था. मैंने उस की
आई.डी. ओपन की और उस की फोटो को जूम कर के बड़े गौर से परखा, की यह वाकई में
राहुल है या मेरी नजर का धोखा है. हां, ये मेरा दोस्त राहुल ही था. दरअसल 8वी क्लास में
राहुल के परिवार वाले दिल्ली के लोनी बॉर्डर पर शिफ्ट हो गए थे. ये बात रही होगी 2007 की.
उस समय न तो हमारे घर में फोन था और न ही राहुल के घर, जिस से हम एक दुसरे के
संपर्क में बने रह सकें.

आई.डी. में फोटो कन्फर्म कर लेने के बाद मैंने उसे बिना हीच किचाए मेसेज कर दिया. “हेल्लो,
कैसा है मेरे भाई? मुझे पहचाना?” 5 मिनट बाद (जिस पर मुझे यकीन है की उस ने भी मेरी
आई.डी. खोल कर मेरा फोटो देखने में और पहचानने में समय लगाया होगा) उस का रिप्लाई
आया, “हा भाई, क्यों नहीं पहचानूंगा तुझे. यार इतने सालों बाद बात हो रही है.” सच में इतने
सालों बाद राहुल से बात कर मुझे बड़ा अच्छा लगा, क्योंकि स्कूल के दिनों में राहुल ही मेरे सब
से नजदीकी दोस्तों में से एक हुआ करता था. थोड़ी देर चैट में बात करने के बाद हम दोनों ने
एक दुसरे के मोबाइल नंबर एक्सचेंज किये. और मैंने उसे कॉल कर बात की.

राहुल से बातचीत में उस ने बताया की वह ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद अब गुडगाँव में
किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहा है. उस ने शादी भी कर ली है और वह अपने
पार्टनर के साथ अब लोनी बॉर्डर नहीं बल्कि दिल्ली के द्वारका सेक्टर 21 में शिफ्ट हो गया है.
कुछ देर और बात करने के बाद उस ने मुझे अपने घर पर इंवाइट किया. और बोला की अगर
मैं नहीं आया तो वह फिर कभी मुझ से बात नहीं करेगा. दोस्ती तो बचानी ही थी, इसीलिए मैंने
राहुल को भरोसा दिलाया की मैं जल्द ही उस से मिलने उस के घर आऊंगा.

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समय निकाल कर मैं राहुल के घर, अपने हाथ में छोटा सा फूलों का गुलदस्ता और बच्चों के
लिए गिफ्ट्स ले कर, उस के बताए हुए एड्रेस पर पहुंच गया. घर पर राहुल और कल्पना (राहुल
की पत्नी) ही थे. मैंने अपने हाथ का सारा सामान राहुल और कल्पना के हाथ में थमाया और
राहुल के गले मिला. मेरे गिफ्ट्स देख राहुल ने कल्पना को देखा और कल्पना ने राहुल को.
दोनों साथ में मुस्कुराए और मेरा स्वागत किया. उन की मुस्कराहट देख मैं अपने मन ही मन
सवाल करने लगा की कही मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी. बच्चो वाले गिफ्ट्स तो मैं ले आया
था लेकिन घर में एक भी बच्चा नहीं दिखाई दिया. अंततः मुझे उन की मुस्कराहट का अंदाजा
लग गया, की राहुल और कल्पना को अभी कोई बच्चा नहीं था.

इतने सालों बाद मिले थे, इसीलिए हम तीनों एक साथ बैठ कर मैं और राहुल अपने स्कूल के
पुराने दिनों को याद करने लगे. कुछ देर की बात के बाद कल्पना खाना बनाने के लिए किचन
की तरफ चली गई और रह गए बस मैं और राहुल. मौका देख कर मैंने राहुल से धीमी आवाज
में फुसफुसाया, “यार गलती से मैं बच्चों के गिफ्ट्स ले आया तुम्हारे लिए, हालांकि मैंने पूछा भी
नहीं लेकिन मुझे लगा की शायद तुम्हारे घर बच्चा होगा. इस के लिए बुरा मत मानियो मेरे
भाई.”

राहुल ने बड़े ही हलके अंदाज में, मेरे कंधे पर अपना हाथ रख मुझे भरोसा दिलाया, “अरे यार
कैसी बात कर रहा है तू भी, भला इस के लिए भी कोई बुरा मानता है.” यह बोल कर राहुल ने
नीचे देखते हुए चिंतित भरे स्वर में बताया की कल्पना से उस की शादी हुए 2 साल हो गए.
और पिछले 3 साल से वह गुडगाँव में अपनी इसी मौजूदा कंपनी में काम कर रहा है. वें दोनों ही
बच्चे के लिए राजी तो हो गए है लेकिन 2020 के मार्च के महीने से लगे लॉकडाउन की वजह
से उन के बने सारे प्लान्स गड़बड़ा गए है. एक तो कभी भी नौकरी चले जाने का डर और वहीँ
दूसरी तरफ दुनिया भर के खर्चे. ऐसे में राहुल और कल्पना ने बच्चे के प्लान को कुछ समय के
लिए और टाल दिया है.

राहुल ने बताया की वह अभी जिस फ्लैट में रह रहा है, वह उस ने अपनी कंपनी से ही लोन
लेने के बाद ख़रीदा है. लोन की कई किश्ते चुकाने के बाद अभी भी 10 लाख रूपए कंपनी को
लौटाने हैं. एक तरफ राहुल के सर दुनिया भर का खर्चा और कर्जा. वहीं दूसरी तरफ राहुल और
कल्पना, दोनों के ही घर वालों का बच्चा ले लेने का दबाव. इन से राहुल बड़ा ही परेशान है.
राहुल अपने बच्चे की परवरिश में किसी भी तरह की कमी नहीं रखना चाहता. वह अपने बच्चे
के जीवन के साथ किसी भी तरह का एडजस्टमेंट नहीं चाहता. इसीलिए राहुल अब नए साल का

बेसब्री से इंतजार कर रहा है. राहुल ने बताया की साल 2020 पूरी दुनिया के लोगों के लिए
कलेश बना है. क्या पता साल 2021 में राहुल के जीवन में कुछ ख़ास हो. इसी का ही इंतजार
राहुल और कल्पना को है.

राहुल बड़ी धीमी आवाज में फुसफुसाया, “2020 का यह साल हमारी इच्छाओं के मरने का साल
है. दुनिया में सिर्फ एक नया जीवन जन्म नहीं लेता, बल्कि उस से पहले कई जिम्मेदारियां भी
जन्म लेती हैं. इस कलह भरे साल में जब किसी का कुछ अच्छा नहीं हुआ तो मेरे साथ कुछ
अच्छा हो जाएगा इस की कोई गारंटी नहीं है.”

राहुल और कल्पना की यह समस्या सिर्फ इन की ही नहीं है बल्कि साल 2020 से हताश और
निराश हुए उस हर जोड़े की है जो अपने घर के आँगन में बच्चे की किलकारियां सुनना चाहते थे
लेकिन दुनिया भर की परेशानियों के चलते वें अपनी इच्छाओं को आगे के लिए पोस्पोन कर रहे
हैं. आगे इस लेख में इन्ही चीजो के संबंध में चर्चा है की मौजूदा स्थिति कैसी है और आप यदि
आने वाले समय में बेबी करने का प्लान कर रहे हैं तो आप को किन किन चीजो को ध्यान में
रखना चाहिए.

क्या है मौजूदा स्थिति?

आम लोगों की स्थिति मेरे दोस्त राहुल और कल्पना के जीवन से कुछ अलग नहीं है. मजदुर
वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के लोगों को इस साल बेहद नुक्सान झेलना पड़ा है.
कोरोना के कारण देश में बिना किसी प्लानिंग के देशव्यापी लॉकडाउन और उस के कारण लोगों
पर पड़ने वाला बुरा प्रभाव का साक्षी हर कोई है. सरकार की अनियोजित लॉकडाउन ने 80%
आबादी की खून पसीना एक कर बचाए हुए पैसे को किसी जोंक की तरह चूसने का काम किया
है.

ऐसे में लोगों के बने बनाए प्लान पर गहरा असर पड़ा. जो लोग अपने किसी भी काम के लिए
लॉकडाउन से पहले लोन ले चुके थे, उन्हें हर हालत में अपने लोन की किश्ते चुकानी थी. साल
2020 लोगों के बढ़ते हुए जीवन में एक साल का रुकावट बन कर सामने आया. जिस में कमाई
तो ‘नील बटे सन्नाटा’ थी लेकिन खर्चे ‘दिन दुगने और रात चौगुने’. ऐसी स्थिति में यदि किसी
जोड़े ने इस साल की शुरुआत में अपने मन में बेबी करने का प्लान किया था, उन्होंने अपनी

इच्छाओं को अगले साल के लिए स्थगित कर दिया. मेरे दोस्त राहुल का उदाहरण उन में से
एक है.

बेबी करने से पहले इन बातों का ध्यान रखना है बेहद जरुरी

होने वाले खर्चे की प्लानिंग जरुरी:

बच्चे की प्लानिंग करने से पहले आम परिवार शायद इस विषय पर सब से अधिक सोच विचार करते हैं. चाहे वह किसी भी वर्ग का व्यक्ति क्यों न हो, महिला की प्रेगनेंसी के दौरान होने वाला खर्चा आम दिनों के खर्चे की तुलना में ज्यादा ही होता है. प्रेगनेंसी के दौरान महिला को किसी भी समय डॉक्टर को दिखाने की जरुरत पड़ सकती है.

इस के अलावा रेगुलर चेक-अप, मेडिकल टेस्ट, दवाइयां इत्यादि तो अनिवार्य (कम्पलसरी) हैं ही.
ऐसे में घबराने की नहीं बल्कि इन विषयों के संबंध में सोचने विचारने की जरुरत है. एक अच्छी
प्लानिंग का अंजाम भी अच्छा ही होता है.

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अकेले नहीं, दोनों की सहमती जरुरी:

होने वाला बच्चा सिर्फ मां या फिर सिर्फ पिता की जिम्मेदारी नहीं बल्कि दोनों की ही बराबर की जिम्मेदारी हैं. इसीलिए यह जरुरी है की बच्चे की प्लानिंग सिर्फ अकेले न करें बल्कि इस में दोनों की ही सहमती होना बेहद जरुरी है. कई बार यह देखा गया है की किसी एक व्यक्ति के दबाव में बच्चे को जन्म देने से उस बच्चे के प्रति व्यवहार में फर्क पड़ता है. इसीलिए यह सिर्फ एक का फैसला नहीं होना चाहिए क्योंकि बच्चे की
परवरिश में माँ और पिता दोनों का ही योगदान होता है.

डॉक्टर की सलाह से होगा फायदा:

यदि जोड़े ने आपस में बच्चा करने की सहमती पर विचार कर लिया है तो इस के बाद जरुरी है की डॉक्टर से मिल कर इस विषय पर बात कर ली जाए. डॉक्टर स्वस्थ प्रेगनेंसी से पहले जोड़े के कुछ शुरूआती जांच करेंगे जिस में प्रेगनेंसी से पहले महिला का उपयुक्त वजन, स्वस्थ बच्चे के लिए महिला के स्वस्थ शरीर का होना इत्यादि शामिल होगा. और भी कई तरह की सलाह डॉक्टर जोड़े को देते हैं जिस से एक स्वस्थ बच्चे के जन्म में बड़ी सहायता मिलती है. इसीलिए डॉक्टर की सलाह बेहद जरुरी है.

महिलाओं की फिटनेस और मानसिक स्वास्थ दोनों का रखे खास ख्याल:

हेल्दी बच्चे के लिए प्रेग्नेंट महिला का हेल्दी होना भी उतना ही जरूरी है. सिर्फ यही नहीं बच्चे की प्लानिंग के लिए जरूरी है कि कपल शारीरिक ही नहीं मानसिक तौर पर भी तैयार रहें. यदि स्वास्थ से सम्बंधित समस्या है तो उस का इलाज बच्चे की प्लानिंग से पहले कर लेना जरुरी है. वहीं दूसरी ओर
पुरुष की तुलना में महिलाओं के लिए जरूरी है कि वे मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार हों
क्योंकि मां बनने के दौरान महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा काफी कुछ सहना पड़ता है और कई
अनचाही परिस्थितियों के लिए तैयार रहना पड़ता है. इसीलिए फिटनेस और मानसिक स्वास्थ
दोनों के लिए वें डॉक्टर से भी बात कर सकते हैं.

तनाव से रहे कोसों दूर:

एक स्वस्थ बच्चे की कामना के लिए ये जरुरी है की बच्चे को अपने गर्भ में 9 महीनों तक रखने वाली महिला या अपने पार्टनर का बेहद अच्छे से रखा जाए. तनाव के संबंध में बस एक बात जान लेना जरुरी है की तनाव होने परशरीर पर खाया हुआ खाना नहीं लगता. या कई स्थितियों में ऐसा होता है की खाना खाया ही नहीं जाता. और ये चीज किसी भी गर्भवती महिला और उस के बच्चे के लिए बेहद ही खतरनाक है. इसीलिए ये जरुरी है की महिला खुद किसी भी चीज की टेंशन लेने से बचे और इस के साथ पुरुष पार्टनर की यह जिम्मेदारी है की वह अपने पार्टनर को किसी भी तरह के टेंशन से दूर रखे.

इन चीजो को कहे ना:

कई रिसर्च में यह सामने आया है कि किसी भी तरह के नशे के सेवन और और गर्भवती होने की संभावनाओं में कमी के बीच सीधा संबंध है. सिगरेट में पाए जाने वाले टॉक्सिन से महिलाओं के ऐग्स प्रभावित होते हैं. इस के अलावा फर्टिलाइजेशन और इम्प्लांटेशन की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है. महिला अगर चाय या कॉफी की अधिक शौकीन हैं तो इन पे पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए क्योंकि इन में कैफीन की मात्रा अधिक होती है. जो नुकसान पहुंचा सकती है. और ऐसा भी बिलकुल नहीं है की इन चीजों का इस्तेमाल केवल महिलाओं को बंद करना चाहिए, बल्कि पुरुषों को भी बच्चे की अच्छी सेहत के लिए इन सभी के सेवन से बचना चाहिए. इसीलिए एल्कोहोल, स्मोकिंग और कैफीन का इस्तेमाल करना छोड़ दें तो बेहतर होगा.

यदि दूसरा बेबी कर रहे हैं प्लान:

यदि आप दूसरा बेबी प्लान कर रहे हैं तो पहले और दुसरे बच्चे के बीच कम से कम 3-4 सालों का गैप बना कर रखें. ये जच्चा और बच्चा दोनों के लिए ही फायदेमंद है. दुसरे बच्चे के लिए महिला का शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट होना बेहद जरुरी है. दुसरे बच्चे की प्लानिंग में अपनी परिवार की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखना जरुरी है.

यदि आप जॉब करते हैं और अपने पार्टनर की सहमती से दूसरा बच्चा प्लान कर रहीं हैं तो ये प्लानिंग बेहद गंभीर और हर आयामों को ध्यान में रख कर करना चाहिए. जिस से पहले और दुसरे बच्चे की परवरिश में किसी तरह की कोई कमी न हो. पहले बच्चे की परवरिश के लिए परिजनों का सपोर्ट जरुरी है इसीलिए दुसरे बच्चे के बारे में सोच रहे हैं तो परिजनों की सलाह लेना न भूलें.

यदि आप 30 साल से ऊपर हैं तो:

उम्र बढ़ने के साथ-साथ महिला की बॉडी से एग्स खत्म होने लगते हैं जिसके कारण गर्भधारण करने में दिक्क्त आती है। इसके साथ ही 30 साल की उम्र के बाद महिला की बॉडी में एग्स अनहेल्थी होने लगते हैं जिसकी वजह से ज़्यादा उम्र में कंसीव करने से माँ और बच्चे दोनों को परेशानी हो सकती है. यदि आप गर्भनिरोधक गोलियों पर हैं, तो गर्भवती होने का प्रयास शुरू करने से पहले कुछ महीनों के लिए इसका उपयोग करना बंद कर दें.

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प्रेगनेंसी से पहले धूम्रपान और शराब पीने से बचें….

अपने साथी को धूम्रपान और शराब पीने से रोकने के लिए कहें क्योंकि यह पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या को कम कर सकता है और इस उम्र में तो वैसे भी पुरुषों में शुक्राणुओं और महिलाओं में अंडाणुओं की संख्या घटने लगती है. इस उम्र में प्रेग्नेंट होने से पहले एक्सपर्ट डॉक्टर की सलाह जरुर ले, जो की बहुत मददगार साबित होगा.

Medela Flex Breast Pump: ब्रैस्ट पंप जो रखे मां और बच्चे का खास खयाल 

 मां और बच्चे का रिश्ता दुनिया में सबसे ऊपर होता है, तभी तो उसके जन्म के बाद से ही मां  उसकी खास तरह से केयर करती है. उसे थोड़ी थोड़ी  में  फीड करवाती है, क्योंकि मां के दूध से ही बच्चे का संपूर्ण विकास जो होता हैचाहे उसे कितना ही दर्द क्यों हो, वह कभी घबराती नहीं. क्योंकि मां होती ही ऐसी जो है. ऐसे में जितना गहरा रिश्ता मां और बच्चे का होता है, उतना ही लगाव मेडेला का हर न्यू मोम्स से है. क्योंकि उसने उनकी परेशानी को अपना समझ कर समाधान जो निकाला है. ताकि मोम्स भी अपने बच्चे के न्यूट्रिशन के प्रति निश्चिंत हो  सकें

ट्रस्ट है तभी पहचान है 

किसी चीज की डिमांड मार्केट में आने की बस देर होती है कि उसे बनाने वाले हजारों मैनुफक्चरिंग कंपनीज उसे बनाने के लिए मार्केट में उतर जाती  हैं. अधिकांश प्रोडक्ट्स तो सिर्फ कहने भर के ही होते हैं. उसमें तो कस्टमर्स की जरूरतों को ध्यान में रखा जाता है और ही प्रोडक्ट की क्वालिटी पर. जिससे सिर्फ एक बार यूज़ करने के बाद ही कस्टमर्स का उस प्रोडक्ट पर से विश्वास उठ जाता है

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 ऐसे में मेडेला जो ब्रैस्ट पंप बनाने वाली कंपनी है और इसका हैड क्वाटर स्विज़रलैंड में स्तिथ  है , 60 सालों से शोधकर्ताओं के साथ मिलकर इस दिशा में प्रयासरत है, ने मोम्स की जरूरतों को समझकर ब्रैस्ट पम्प निकाले हुए हैं और समय के साथसाथ जो बदलाव भी जरूरी होते हैं उन पर भी खास ध्यान दिया जाता है. इसी कारण आज मेडेला ने मोम्स के दिलों में अपने लिए एक खास पहचान बना ली है. उनके प्रोडक्ट्स की यूनिक रेंजजिसमें स्विस मेड ब्रैस्ट पंप्स भी शामिल हैं , सिर्फ दुनिया भर के हैल्थ केयर प्रोफेशनल्स की बल्कि अब  हर मोम की चोइस बन गए हैंआज मेडेला ब्रैस्ट फीडिंग प्रोडक्ट्स में ग्लोबल प्लेयर की भूमिका निभा रहा है

मदर मिल्क को ही महत्वता 

मां के दूध में प्रोटीन, वसा , विटामिन और कार्बोहाइड्रेट्स का सही संयोजन होता है, जो बच्चे में विकास में मदद करता है. जबकि फार्मूला मिल्क से सिर्फ बच्चे की भूख शांत होती है, और यह बच्चे के शरीर की हर जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता  है. इस बात को मेडेला समझता है तभी वह बच्चे को मां का दूध पिलाने को ही प्राथमिकता देता है. और मां के दूध की हर बूंद का फायदा बच्चे को मिले और इससे मां को भी किसी तरह की कोई परेशानी हो , इसी बात को ध्यान में रखकर मेडेला ने ब्रैस्ट पंप डिज़ाइन किए हुए  हैंइससे दूध निकालते हुए मां को बिलकुल ऐसा एहसास होता है जैसे उसका बच्चा उसके स्तनों को स्पर्श कर रहा हो

फ्लैक्स ब्रैस्ट पंप्स 

मेडेला का फ्लैक्स ब्रैस्ट पंप हर मोम्स के लाइफस्टाइल में बिलकुल फिट बैठता हैये काफी लाइट होने के कारण इसे यूज़ करना काफी आसान हैइसके न्यू  फ्लेक्स टेक्नोलोजी पंप्स  और एक्सेसरीज दुनिया भर में मिलियंस मोम्स के लिए अपने बच्चे के लिए परफेक्ट चोइस बनकर सामने रहे हैं.  

न्यू फ्लैक्स पंप्स में ओवल शेप की शील्ड होती है, जो मोम्स के वास्तविक स्तनों के आकार में फिट हो जाती है, जो काफी कम्फर्टेबल और सक्षम है, ऐसा  4 क्लीनिकल परीक्षणों में पाया गया है . यही नहीं बल्कि ये हर तरह की ब्रैस्ट फीड करवाने वाली मोम्स की जरूरतों  को भी पूरा करता है, . इसकी मदद से बच्चों का फीडिंग रूटीन नॉर्मल होने से मोम्स भी काफी रिलैक्स फील करती हैं, और इससे उनकी बॉडी को भी किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता है जैसे प्रेशर मार्क्स की कोई समस्या नहीं होती है. पारंपरिक ब्रैस्ट शील्ड के मुकाबले ये 11 पर्सेंट ज्यादा स्तनों से दूध निकालने में सक्षम है. और स्तनों से दूध निकलने की प्रक्रिया भी बिलकुल नेचुरल है, जो काफी खास है

 हर मां यही चाहती है कि वो जो भी प्रोडक्ट ख़रीदे वे हर मायने में अच्छा हो. फिर चाहे बात हो गैजेट्स खरीदने की या फिर खुद के लिए या बेबी के लिए प्रोडक्ट खरीदने की, ऐसे में फ्लैक्स ब्रैस्ट पंप उनके लिए बेस्ट चौइस है. तो फिर जब हो मेडेला का साथ तो क्यों हो बच्चे के पोषण की चिंता

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Medela Flex Breast Pump: मैनुअल से बेहतर है इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप

मेरा  नाम स्वाति है, मैं 6 महीनों पहले ही मां बनी हूं, जिसके बाद मेरी जिंदगी में बहुत बदलाव आ चुका है. मुझे अपने और परिवार के लिए समय नही मिल पाता था, जिसके कारण मैने मार्केट से मैनुअल ब्रेस्ट पंप खरीदा, लेकिन ब्रेस्ट पंप लेने के बाद भी मेरे पास बिल्कुल समय नही मिलता था. साथ ही मुझे इस प्रौडक्ट को लेकर कोई संतुष्टि नही मिली. क्योंकि मेनुअल ब्रेस्ट पंप से दूध को निकालने में भी मुझे समय के साथ हाथों में दर्द भी रहने लगा.

इसके बाद जब परेशान होकर मैने मेरी दोस्त सानिया को अपनी इस प्रौबल्म के बारे में बताया तो उसने मुझे इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करने की बात कही. क्योंकि वह भी इस प्रौबल्म का सामना कर चुकी थी और इलेक्ट्रिक पंप से उसकी लाइफ भी बेहद आसान हो गई थी, जिसके कारण उसने मुझे भी इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करने की सलाह दी.

साथ ही सानिया ने मुझे समझाते हुए कहा कि भले ही हम किसी चीज पर पैसे खर्च करके अपनी लाइफ को आसान बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन अगर वही चीज हमारे काम को आसान करने की बजाय बढ़ा दे तो वह चीज खरीदना बेकार हो जाती है, जिसके बाद मुझे यह बात समझ आई कि सानिया सही कह रही है.

इसी के साथ उसने मुझे मेडेला के इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करने की सलाह देते हुए कहा कि यह Medela Flex Breast Pump के जरिए वह कम समय में ही काफी दूध निकाल कर स्टोर कर सकती है, जिससे उसे बार-बार बच्चे को खुद फीडिंग नहीं करवानी पड़ेगी. साथ ही वह आराम से औफिस का काम और अपने बच्चे का ख्याल रख पाएगी और इस पूरी प्रोसेस में 10 से 15 मिनिट का समय लगेगा. इसी के साथ उसने मुझे यह भी बताया कि Medela Flex Breast Pump स्विटजरलैंड में बनाए जाते है, जो कि हाइजीन के मामले में बेहद सुरक्षित भी है और इसके साथ मिलने वाली गारंटी आपको प्रौडक्ट को लेकर सिक्योरिटी भी देती है.

सानिया से मेडेला के इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप के बारे में जानने के बाद मैनें इस प्रौडक्ट को खरीदा और इस प्रौडक्ट को खरीदने व इस्तेमाल करने के बाद मुझे एक संतुष्टि भी मिली.

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Medela Flex Breast Pump: वाइफ को दें एक नया तोहफा

मेरी उम्र 38 साल है. मैं और मेरी वाइफ को शादी के 6 साल माता-पिता बनने का सुख मिला. हमारी जिंदगी में बच्चे के आने से हम बेहद खुश हुए, लेकिन बढ़ती उम्र में उसके लिए घर और बच्चे की जिम्मेदारियां संभालना मुश्किल हो रहा था.

मेरी वाइफ को रात-रातभर उठकर बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग करवानी पड़ती थी. वहीं दोपहर में भी उसका ज्यादात्तर वक्त बच्चे के साथ-साथ घर के कामकाज में निकल जाता था. बच्चे के 2 महीना पूरा होते-होते मेरी वाइफ बेहद परेशान और खोयी हुई रहने लगी थी.

एक दिन मैने एक मैग्जीन में Medela Flex Breast Pump के बारे में पढ़ा. मैग्जीन में मेडेला पंप के बारे में पढ़ने के बाद मुझे लगा कि मेरी वाइफ की परेशानी और मुसीबत दूर करने के लिए यह एक अच्छा प्रौडक्ट है. इसीलिए मैने इस प्रौडक्ट के बारे में पूरी चीजें पता की कि यह प्रौडक्ट कितना सही और बच्चे के लिए कितना सुरक्षित है.

पूरी रिसर्च करने के बाद मैने जाना कि Medela Flex Breast Pump और कनेक्टर स्विट्जरलैंड में बनाए जाते हैं. ये पूरी तरह से सुरक्षित और हाईजीनिक होते हैं. साथ ही Medela Flex Breast Pump खाद्य ग्रेड पॉलीप्रोपाइलीन (पीपी) और थर्माप्लास्टिक इलास्टोमर्स (टीपीई) से बने होते हैं, जो बच्चे की सेहत के लिए एकदम सेफ है.

Medela Flex Breast Pump के बारे में पूरी जानकारी मिलने के बाद मैनें अपनी वाइफ को तोहफा दिया, जिसे देखकर वह पहले हैरान हुई. लेकिन जब उसने इस प्रौडक्ट का इस्तेमाल किया तो वह कम परेशान रहने लगी. ब्रेस्ट पंप के इस्तेमाल से वह बच्चे घर के कामों में और अपनी पर्सनल लाइफ पर ध्यान देने लगी. इसी के साथ नींद पूरी होने से मेरी वाइफ का मूड सही रहने लगा, जिसके बाद मेरी वाइफ ने मुझे उसे यह तोहफा देने के लिए थैंक्यू कहा. इससे हमारी जिंदगी में बदलाव आ गया.

अगर आप भी अपनी वाइफ को आपकी जिंदगी को पूरा करने के लिए कोई तोहफा देने की सोच रहे हैं तो Medela Flex Breast Pump आपके लिए एक आसान और सुविधाजनक विकल्प हो सकता है. ये आपकी खुशहाल जिंदगी को पूरा करेगा.

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Medela Flex Breast Pump: बिना दर्द के अब ब्रेस्ट फीडिंग होगी आसान

मेरी बेटी की उम्र 25 साल है. हाल ही में वह पहली बार मां बनी है, जिससे वह बेहद खुश है, लेकिन समस्या है कि उसे बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग करवाने में बेहद तकलीफ होती है, जिसके कारण वह बेहद दर्द सहती है और बच्चे को दूध पिलाने से डरती है. वह बच्चे को डिब्बा बंद दूध पिलाना चाहती है. इसी कशमकश और दर्द को सहते हुए एक बार उसने मुझे अपनी ब्रेस्ट फीडिंग की परेशानी के बारे में बताया, जिसके बाद मैने उसे ब्रेस्ट पंप के बारे में बताया. मैने एक मैग्जीन में Medela Flex Breast Pump के इस्तेमाल के बारे में पढ़ा था, लेकिन किसी प्रौडक्ट पर पूरी तरह विश्वास नहीं कर पा रही क्योंकि इसका असर बच्चे की सेहत पर पड़ सकता है. दूसरी तरफ बेटी को ब्रेस्ट पंप के बारे में बताने के बाद हमने अपने डौक्टर से इसके बारे में सलाह ली कि ये प्रौडक्ट बच्चे के लिए नुकसानदायक तो नही है. इसी से जुड़े कईं सवाल मैने और मेरी बेटी ने डौक्टर से पूछे. साथ ही कौनसा प्रौडक्ट ब्रेस्ट पंप फीडिंग के लिए अच्छा है इसको लेकर भी हमने डौक्टर से सलाह ली.

सवाल- क्या ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल मां के लिए सेफ है?

डौक्टर- जी हां, ब्रेस्ट पंप बड़े पैमाने पर परीक्षण किया जाता है और बिना बीपीए, प्राकृतिक रबर लेटेक्स और फोथलेट्स के बनाया जाता है.

सवाल- कहीं ब्रेस्ट पंप का इस्तमाल करने से ब्रेस्ट औऱ उसकी शेप को नुकसान तो नहीं होगा?

डौक्टर- नहीं, एक ब्रेस्ट पंप स्तनों के आकार को नुकसान या बदलता नहीं है क्योंकि यह एक बच्चे की मां का दूध पीने की नेचुरल क्रिया की पूरी तरह से नकल करता है, इसलिए यह सुरक्षित है.

सवाल- क्या मेडेला ब्रेस्ट पंप हाइजीनिक है?

डौक्टर- मेडेला ब्रेस्ट पंप स्विट्जरलैंड में बना है, चीन में नहीं. यह गुणवत्ता और सामग्री के उच्चतम मानकों के साथ निर्मित और सुरक्षित है.

सवाल- Breast Pump कितने समय तक चल सकता है?

डौक्टर- Breast pump का लंबे समय तक चलना उसके इस्तेमाल और सफाई के तरीकों पर निर्भर करता है. अगर हम इसे अच्छे तरीके से हाइजीन फ्री तरीके से साफ करेंगे तो यह सालों तक चलेगा.

फिर डौक्टर से सलाह करने के बाद मैने और मेरी बेटी ने मार्केट ब्रेस्ट पंप के बारे में जानकारी ली तो हमें Medela Flex Breast Pump के बारे में पता चला. वहीं एक मैग्जीन में इसके बारे में बताया गया था कि यह ब्रेस्ट पंप और कनेक्टर स्विट्जरलैंड में बनाए जाते हैं, जो कि पूरी तरह से सुरक्षित और हाईजीनिक होते हैं. साथ ही यह खाद्य ग्रेड पॉलीप्रोपाइलीन (पीपी) और थर्माप्लास्टिक इलास्टोमर्स (टीपीई) से बने होते हैं. इसके इस्तेमाल से आप अपना समय बचा सकती हैं और बच्चे की केयर कर सकती हैं. वहीं अगर यह खराब या टूट जाए तो इसके पार्ट्स को आसानी से बदला जा सकता है, जिसकी वारंटी  Medela Flex Breast Pump के साथ दी जाती है.

इन सवालों को जानने के बाद मुझे Medela Flex Breast Pump की पूरी जानकारी मिली और पता चला कि यह बहुत ही किफायती और बच्चे के लिए अच्छा प्रौडक्ट है.

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Medela Flex Breast Pump: रखें मां और बच्चे की सुरक्षा का पूरा ख्याल

मेरी उम्र 27 साल है, मैं 8 महीने पहले ही मां बनी थी. मां बनने के बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह बदल गई है. अब घर और औफिस के साथ मुझे एक नन्ही सी जान को भी संभालना है, लेकिन मेरे लिए सबसे बड़ा काम बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग करवाना है.

ब्रेस्ट फीडिंग के चलते मेरे कई घंटें बिना किसी काम के रह जाते हैं, जिसके चलते काफी चीजें अस्त व्यस्त भी हो जाती है. जिससे बचने के लिए मैंने ब्रेस्ट पंप का सहारा लिया. लेकिन बच्चे की सेहत को लेकर मेरे मन में कई सवाल थे, जिन्हें लेकर मैं अपनी फैमिली डौक्टर के पास पहुंचीं.

दरअसल मुझे इस मेडेला ब्रेस्ट पंप को लेकर काफी उलझनें थी, कि यह मेरे बच्चे के लिए अच्छा है या इससे मेरे बच्चे की हेल्थ को कोई नुक्सान तो नहीं होगा. इसीलिए मैने इसके बारे में डौक्टर से कईं सवाल पूछे, क्योंकि उन्होंने ही मुझे ये रिकमेंड किया था.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई उलझन है तो मेरी डौक्टर की ये सलाह आपके काम आ सकती है…

सवाल- डौक्टर क्या ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करना सुरक्षित है?

डौक्टर- जी हां, ब्रेस्ट पंप बड़े पैमाने पर परीक्षण किया जाता है और बिना बीपीए, प्राकृतिक रबर लेटेक्स और फोथलेट्स के बनाया जाता है.

सवाल- Breast Pump का दूध कब तक  बच्चे को दिया जा सकता है?

Breast milk को कमरे में स्टोर करके रखने के लिए कमरे का तापमान 16 से 25 ° से होना चाहिए, जिससे दूध को 4 घंटे से ज्यादा तक स्टोर किया जा सकता है. वहीं अगर साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए तो breast milk को लगभग 6 घंटे से ज्यादा देर तक स्टोर किया जा सकता है.

रेफ्रीजरेटर में स्टोर करके रखने के लिए

इसका तापमान 4 ° C होना जरूरी है, जिससे Breast milk को 3 दिन से ज्यादा समय तक स्टोर करके रखा जा सकता है. वहीं अगर साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए तो इसे कम से कम 5 दिन तक स्टोर किया जा सकता है.

सवाल- Medela Flex Breast Pump कितने समय तक चल सकता है?

डौक्टर- Breast pump का लंबे समय तक चलना उसके इस्तेमाल और सफाई के तरीकों पर निर्भर करता है. अगर हम इसे अच्छे तरीके से हाइजीन फ्री तरीके से साफ करेंगे तो यह सालों तक चलेगा. वहीं अगर यह खराब या टूट जाए तो इसके पार्ट्स को आसानी से बदला जा सकता है, जिसकी वारंटी  Medela Flex Breast Pump के साथ दी जाती है.

इन सवालों को जानने के बाद मुझे Medela Flex Breast Pump की पूरी जानकारी मिली और पता चला कि यह बहुत ही किफायती और बच्चे के लिए अच्छा प्रौडक्ट है.

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