ब्रैस्ट फीडिंग: मां और बच्चे के लिए क्यों है सही

मांबनने का एहसास हर महिला के लिए सब से खास होता है. एक औरत से मां बनने के इस 9 महीने के सफर में महिलाएं कई मानसिक और शारीरिक बदलावों से गुजरती हैं. शिशु के जन्म लेने के बाद कई महिलाएं स्तनपान करवाने से डरती हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि स्तनपान कराने से शरीर का आकार खराब हो जाता है, जबकि यह सिर्फ भ्रम है.

स्तनपान मां और बच्चा दोनों के लिए फायदेमंद होता है. स्तनपान से मां को शारीरिक और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है.

आइए, जानते हैं डाक्टर सुषमा, स्त्रीरोग विशेषज्ञा से बच्चा और मां के लिए ब्रैस्ट फीडिंग क्यों और कैसे जरूरी है:

शिशु के लिए जरूरी है मां का दूध

ब्रैस्ट फीडिंग के फायदे मां और बच्चा दोनों के लिए लाभदायक है. बच्चे के लिए मां का दूध बहुत जरूरी है. ऐसा कहा जाता है कि ब्रैस्ट फीडिंग यानी स्तनपान बच्चों के लिए सुरक्षित, स्वास्थ्यप्रद भोजन है, जोकि पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है और यह बच्चे को इन्फैक्शनल और कई बीमारियों से बचा सकता है. डाक्टर सुषमा बताती हैं कि मां का दूध बच्चे को जन्म के

1 घंटे के भीतर दिया जाना चाहिए और उस के बाद बच्चे को शुरुआती 6 महीनों तक विशेष रूप से इसे जारी रखा जाना चाहिए.

जिन शिशु का समय से पहले जन्म हो जाता है यानी प्रीमैच्योर बेबीज उन के लिए भी यह बहुत फायदेमंद होता है. शिशु के जन्म के बाद मां के स्तनों से एक गाढ़े पीले रंग का पदार्थ निकलता है जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं. यह बच्चे को जरूरी पोषक देने के साथसाथ रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ाता है. यह बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक होता है. इस में रोगप्रतिरोधक क्षमता भी होती है.

आइए जानते हैं मां का दूध शिशु के लिए क्यों लाभकारी है:

-बच्चे के लिए मां का दूध ऐंटीबौडीज का काम करता है. जन्म लेने के बाद 6 महीने तक बच्चे को पानी या अन्य पदार्थ नहीं देने चाहिए. 6 महीने तक बच्चे के लिए मां का दूध ही जरूरी होता है. यह बच्चे में निमोनिया, डायरिया जैसी तमाम बीमारियों के होने के खतरे को काफी हद तक कम कर देता है.

– शिशु जन्म के तुरंत बाद से ले कर कुछ दिनों तक मां के स्तनों से निकलने वाला पतला गाढ़ा

दूध कोलेस्ट्रम कहलाता है. यह पीले रंग का चिपचिपा दूध होता है. इस दूध को अकसर लोग अंधविश्वास के चलते गंदा और खराब दूध कह कर नवजात को नहीं देते, जबकि डाक्टर सुषमा का कहना है कि कोलोस्ट्रम बच्चे के लिए सब से ज्यादा फायदेमंद होता है और इस में संक्रमण से बचाने वाले तत्त्व होते हैं. यह विटामिन 1 से भी भरपूर होता है एवं इस में 10% से अधिक प्रौटीन होता है.

– मां का दूध सुपाच्य होता है जिसे शिशु आसानी से पचा लेता है.

– मां का दूध बच्चों के दिमाग के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है. इस से बच्चों की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है.

– बच्चे को बोतल से दूध पिलाने से उसे पूरी तरह स्वच्छ दूध नहीं मिल पाता. ब्रैस्टफीड करने से मां को भी दूध को उबालने, बोतल को धोने, स्टरलाइज करने जैसे काम नहीं करने पड़़ते. ब्रैस्ट फीडिंग से बच्चे को संपूर्ण पोषण मिलता है.

ब्रैस्ट फीडिंग मां के लिए भी है लाभदायक

ब्रैस्ट फीडिंग सिर्फ बच्चे के लिए जरूरी नहीं बल्कि मां के लिए भी फायदेमंद है. डाक्टर सुषमा बताती हैं कि ब्रैस्ट फीडिंग से जुड़े महिलाओं के दिमाग में कई तरह कि मिथ हैं, जिस वजह से वह ब्रैस्ट फीडिंग से डरती है. अधिकतर महिलाओं का मानना है कि ब्रैस्ट फीडिंग से ब्रैस्ट लटक जाती हैं, ब्रैस्ट फीडिंग से शरीर का आकार बदल जाता है, ब्रैस्टफीड कराते समय बहुत दर्द होता, बीमारी में फीड नहीं करवाना चाहिए आदि.

ये सभी बातें मांओं में ब्रैस्ट फीडिंग के खिलाफ भ्रम पैदा कर देती हैं, जबकि असलियत कुछ और ही है. दरअसल, प्र्रैगनैंसी के दौरान और बढ़ती उम्र के वजह से ब्रैस्ट लटकती है न कि ब्रैस्ट फीडिंग के कारण. ब्रैस्ट फीडिंग से शरीर के आकार में कोई बदलाव नहीं होता. जिन महिलाओं का मानना है कि ब्रैस्ट फीडिंग के समय ब्रैस्ट में बहुत ज्यादा दर्द होता है तो ऐसा नहीं है. यदि मां बच्चे को फीड सही ढंग से करवा रही है तो दर्द नहीं होगा. अगर मां बीमार है तो बच्चे को उस से पहले ही पता चल जाता है कि वह बीमार है.

मां का दूध बच्चे के लिए ऐंटीबौडी होता है जो उसे बीमारी से बचाता है. बच्चा बीमार हो जाता है तो इस दूध से उस की बीमारी ठीक हो जाती है. मां को बुखार या जुकाम हो जाए तो भी वह बच्चे को फीड करवा सकती है. मां तब बच्चे को फीड नहीं करवा सकती जब उसे एचआईवी, टीवी जैसी गंभीर बीमार हो.

मां को होने वाले फायदे

– ब्रैस्ट फीडिंग से मां को गर्भावस्था के बाद होने

वाली शिकायतों से मुक्ति मिल जाती है. इस से तनाव कम होता है और डिलिवरी के बाद होने वाले रक्तस्राव पर नियंत्रण पाया जा सकता है.

– ब्रैस्ट फीडिंग कराने से हारमोन का संतुलन बना रहता है.

– इस से माताओं को स्तन या गर्भाशय के कैंसर का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है.

– ब्रैस्ट फीडिंग से महिलाएं जल्दी प्रैगनेंट नहीं होतीं. यह एक तरह से प्राकृतिक गर्भनिरोधक उपाय है.

-महिलाओं में खून की कमी से होने वाले रोग ऐनीमिया का खतरा कम होता है.

– मां और शिशु के बीच भावनात्मक रिश्ता मजबूत होता है. बच्चा अपनी मां को जल्दी पहचानने लगता है.

– यह प्राकृतिक ढंग से वजन को कम करने और मोटापे से बचाने में मदद करता है.

– स्तनपान कराने वाली मांओं को स्तन या गर्भाशय के कैंसर का खतरा कम होता है.

ब्रैस्ट पंप का इस्तेमाल

हर मां अपने बच्चे को सही पोषण देना चाहती है. मां का दूध बच्चे के लिए शुरुआती समय में बहुत जरूरी होता है. लेकिन कई बार मांएं अपने बच्चे को ब्रैस्ट फीड करवाने में असहज महसूस करती हैं. कई महिलाएं कामकाजी होती हैं जिस वजह से वे बच्चे को सही ढंग से फीड नहीं करवा पातीं. ऐसे में ब्रैस्ट पंप उन मांओं के लिए किसी उपहार से कम नहीं.

ब्रैस्ट पंप की सहायता से मां अपने दूध को एक बोतल में निकाल सकती है. इस दूध को रैफीजरेटर में भी रखा जा सकता है और जरूरत पड़ने पर बच्चे को मां का दूध आसानी से दिया जा सकता है.

खानेपीने का रखें खास ध्यान

सिर्फ प्रैगनैंसी के दौरान ही नहीं बल्कि डिलिवरी के बाद भी मां और बच्चा दोनों की सेहत का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. मां अकसर बच्चे का ध्यान रखने में इतनी व्यस्त हो जाती है कि अपनी सेहत को नजरअंदाज करने लगती है. बच्चे को जन्म देना और इसे ब्रैस्ड फीडिंग कराना दोनों ही काम एक मां के शरीर के लिए स्ट्रैस से भरे हो सकते हैं. इसलिए ऐसे समय में मां को अपनी सेहत का भी खास ध्यान रखना चाहिए.

आइए, जानते हैं ब्रैस्ट फीडिंग कराने वाली मांओं को अपनी डाइट में क्याक्या शामिल करना चाहिए:

विटामिन ए: विटामिन ए ऐंटीऔक्सिडैंट है. यह इम्यूनिटी को मजबूत करता है और इन्फैक्शंस से लड़ने में मदद करता है. यह आंखों के लिए भी फायदेमंद है. विटामिन ए के लिए संतरा, शकरकंद, पालक, केले आदि का सेवन कर सकती हैं.

आयरन: अगर बच्चे को दूध पिलाने वाली मां के शरीर में आयरन की कमी होगी तो उसे हमेशा थकान महसूस होगी, शरीर में एनर्जी की कमी रहेगी, बाल ज्यादा गिरेंगे, नजर कमजोर हो जाएगी. कई बार महिलाओं को पता ही नहीं होता है कि वे ऐनीमिया से पीडि़त हैं और उन के शरीर में आयरन की कमी हो गई है. कई बार प्रैगनैंसी के दौरान भी ऐनीमिया हो जाता है. आयरन की कमी को पूरा करने के लिए आप हरी सब्जियां, अंडा, अंकुरित दाल आदि का सेवन जरूर करें.

विटामिन डी: यह आप की हड्डियों के विकास और संपूर्ण सेहत के लिए महत्त्वपूर्ण है. यह शरीर की कैल्सियम के अवशोषण में मदद करता है. धूप विटामि डी के उत्पादन में शरीर की मदद करती है, मगर अधिकांश महिलाओं को इतनी देर सूरज की किरणें नहीं मिल पातीं, जिस से कि पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी बन सके. विटामिन डी के लिए आप संतरा, दलिया, मछली, मशरूम, दाल का सेवन करें.

कैल्सियम: कैल्सियम के लिए आप जैसे दूध और अन्य डेयरी फूड, मछली, हरी पत्तेदार सब्जियां, बादाम या फिर कैल्सियम फोर्टिफाइड भोजन जैसेकि जूस, सोया और चावल के पेय और ब्रैड का सेवन कर सकती हैं.

न्यू बौर्न बेबी के लिए इन प्रौडक्ट्स का करें इस्तेमाल

नवजात की स्किन बहुत नाजुक होती है. इन की स्किन की सौम्यता को बरकरार रखने के लिए मातापिता विभिन्न उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इन उत्पादों को खरीदने से पहले उन्हें यह जानकारी जरूर होनी चाहिए:

1. स्किन में नमी बनाए रखें

जाहिर सी बात है कि आप अपने बच्चे के लिए स्किन केयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती ही होंगी, लेकिन क्या ये प्रोडक्ट्स आप के बच्चे की स्किन को पूरी तरह मौइस्चराइज कर उसे हाइड्रेटेड रखते हैं. हम ऐसा इसलिए पूछ रहे हैं, क्योंकि नवजात की स्किन पर मौसम का असर बहुत जल्दी दिखता है और सर्दियों में उस की स्किन रूखी हो जाती है, इसलिए ऐसे समय में उस की स्किन को ऐसी क्रीम या साबुन की जरूरत होती है जो उस की स्किन को भरपूर नमी प्रदान करे.

2. कैमिकल न हो रत्तीभर

नवजात के लिए बनाए उत्पादों में विभिन्न प्रकार के कैमिकल मिलाए जाते हैं, जो उन की स्किन के लिए खतरनाक हो सकते हैं. इसलिए ऐसे प्रोडक्ट्स खरीदें जो पैराबिंस फ्री हों.

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3. स्किन रहे मखमल सी

नवजात की स्किन जन्म से ही बहुत कोमल होती है. अत: उस के लिए ऐसे प्रोडक्ट्स खरीदने चाहिए जो स्किन को सौफ्ट बनाए रखें यानी बेबी केयर उत्पाद सोचसम झ कर ही खरीदें.

4. रंग या खुशबू न हो यूज

नवजात के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले स्किन केयर प्रोडक्ट में किसी प्रकार का कृत्रिम रंग व खुशबू नहीं होनी चाहिए. कई बार मातापिता बच्चे के लिए प्रोडक्ट उस के गुणों को देख कर नहीं, बल्कि खुशबू देख कर लेते हैं, जोकि गलत है. इन कैमिकल्स की वजह से उसे स्किन इन्फैक्शन भी हो जाता है.

5. डर्मेटोलौजिकली टैस्टेड

नवजात की स्किन पर इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पाद पूरी तरह से डर्मेटोलौजिकली टैस्टेड होने चाहिए ताकि सैंसिटिव स्किन का इन पर कोई असर न हो और शिशु पूरी तरह से सुरक्षित रहे.

6. सुरक्षा भी है जरूरी

आजकल बाजार में विभिन्न ऐडवांस बेबी केयर प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं, जो शिशु की परवरिश को ईजी बनाते हैं और उस की स्किन सुरक्षा भी करते हैं, आइए जानें कैसे:

7. प्रैम कम स्ट्रोलर

आप अपने बच्चे के साथ कहीं घूमने या मार्केट जा रही हैं, तो ऐसे में थकान के साथसाथ शिशु की सुरक्षा भी चिंता का कारण बन जाती है, लेकिन मार्केट में मौजूद प्रैम कम स्ट्रोलर आप की इस समस्या को हल कर देते हैं. यह इतना सौफ्ट होता है कि इस पर बच्चे को आराम से लिटाया या बैठाया जा सकता है. यह काफी मजबूत भी होता है, जिस से इस के टूटने और शिशु के निकलने का डर नहीं रहता है.

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8. टोडलर बूस्टर

अगर आप अकेले बराबर वाली सीट पर शिशु को लिटा कर कार चला रही हैं, तो इस दौरान उस की सुरक्षा का डर लगा रहता है. लेकिन टोडलर बूस्टर ड्राइविंग के समय उसे सेफ रखने का सब से बेहतरीन तरीका है. शिशु को बूस्टर सीट पर बैठा कर खरीदारी करना भी आप के लिए ईजी हो जाता है.

9. फोल्डेबल बाथ

नवजात को नहलाते वक्त मातापिता को काफी डर लगता है, लेकिन फोल्डेबल बाथ टब आप के इस डर को दूर करता है और नवजात को नहलाने की प्रक्रिया को आसान व सुरक्षित बनाता है. इसे फोल्ड करना बेहद आसान है, इसे आप कभी भी कहीं भी ले जा सकती हैं और यह काफी मजबूत भी होता है.

ऐसे करें सर्दियों में बेबी की स्किन की केयर

जन्म के बाद पहले साल में बच्चों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि उनकी स्किन काफी डेलिकेट और नरम होती है. बच्चे की स्किन और चेहरे की देखभाल  करने  का मतलब केवल चेहरे की स्किन से नहीं बल्कि पूरे शरीर की स्किन से है. जरा सी भी असावधानी से बच्‍चे की स्किन में बहुत प्रकार के इंफेक्‍शन हो सकते हैं. ऐसे में बच्‍चे के नहाने के साबुन से लेकर, उसे पहनाये जाने वाले कपड़ों ,उसके लोशन व पाउडर और मालिश के लिए इस्‍तेमाल किये जाने वाले तेल तक का ध्यान रखना चाहिए. इन सब को चुनते और इस्‍तेमाल करते समय आपको खास सावधानी बरतनी चाहिए.

1. मौइश्चराइजर का प्रयोग

बच्चों के लिए हमेशा बेबी सॉप का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि बेबी शॉप हार्ड नहीं होता और बच्चों की स्किन को नमी भी प्रदान करता है. बच्चों के लिए ऐसी कॉस्‍मेटिक क्रीम का प्रयोग भी न करें जिससे बच्‍चे की स्किन में इंफेक्‍शन हो.  मौसम के अनुसार नहाने से पहले तेल मालिश करने से उनकी बच्‍चे की स्किन नर्म और साफ रहती है. बेहतर रहेगा यदि हम चिकित्सक की सलाह पर बच्‍चे की स्किन की नमी बरकरार रखने के लिए हल्‍का मॉइश्चराइजर का प्रयोग करें . सबसे ज्यादा ध्यान बच्‍चे की स्किन पर होने वाली  रैशेज और इंफेक्‍शन का रखें.

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2. साबुन का प्रयोग

बच्चे के जन्‍म के 10 दिन बाद , उसे हल्‍के गरम पानी से नहला सकते हैं. जैसे-जैसे बच्‍चा बड़ा होता  है वह फर्श पर घुटनों के बल चलने की कोशिश करने लगता है जिस वजह से उसके हाथ की हथेलियों और घुटने से नीचे के पैर अक्सर गंदे हो जाते हैं ऐसे में स्किन संक्रमण का डर रहता है. स्किन संक्रमण से बचाने के लिए बच्चे की नहाने से पहले किसी हल के तेल से मालिश और उसके बाद बेबी सोप व गुनगुने पानी  में नहलाना ,बच्चे की स्किन को फायदा पहुंचाता है. मॉश्चराइजर युक्त माइल्ड सोप का ही इस्‍तेमाल करें.

3. डायपर का प्रयोग

बदलते वक्त ने छोटे लंगोट या नैपी के प्रयोग जो कि कपडे को फाड कर बनाया जाता था (यह नवजातों के लिए बहुत ही असुरक्षित था).को  भी नया रूप दे दिया है आज बच्चों के लिए डायपर का प्रयोग सुरक्षित है.आजकल बाजार में कई प्रकार के डायपर आने लगे हैं. चूंकि बच्चों की दिनचर्या का कोई समय नहीं होता है इसलिए एक दिन में 8 से 10 बार डायपर बदलना होता है. अगर आप बच्चे का डायपर नहीं बदलेंगे तो बच्चे को डायपर रैशेज होने की संभावना होती है. डायपर रैशेज को रोकने के लिए सही डायपर का चुनाव करना भी बहुत जरूरी होता है.

4. डायपर के प्रकार

फ्लैट डायपर

प्रीफोल्ड डायपर

फिटेड डायपर

ऑल-इन-वन डायपर

5. डिस्पोजेबल डायपर

डायपर आप अपने चॉइस के हिसाब से इस्तेमाल करें .लेकिन कोशिश यही रखनी चाहिए कि बच्चे की स्किन सूखी रहे .गीली स्किन पर जल्दी है रैशेज और खुजली हो जाती है. जब स्किन सूख जाए तभी डायपर बदले .बेबी पाउडर का इस्तेमाल करें . अत्याधिक नमी संक्रमण का कारण बनती हैं.

6. दस्ताने का प्रयोग

बच्‍चे की स्किन बहुत नरम और कोमल होती है. यदि आपके नाखून बड़े हैं तो बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते हैं .इसलिए बच्चे की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हमेशा दास्ताने पहन कर ही बच्चे को नहलाये या धुलायें. यही नहीं बच्चे के हाथों पर भी छोटे-छोटे दस्ताने बनाकर रखें वरना बच्चे को अंगूठा चूसने की आदत पड़ जाती हैं.

7. आयल का प्रयोग

बच्‍चों  के शरीर के विकास के लिए किसी हल्के और अच्छे तेल से  मालिश बहुत जरूरी है. लेकिन तेल का चयन करते वक्‍त ध्‍यान रखें कि  यह बहुत ज्यादा सुगंधित या चिकना न हो . असल में अत्याधिक सुगंध या चिकनाई के कारण शिशु की स्किन में एलर्जी या खुजली हो सकती है. 1 साल तक के बच्‍चों को सरसों के तेल से मालिश बिल्कुल न करें.

8. उबटन का प्रयोग

जन्मजात कुछ बच्चों के शरीर पर घने बाल होते हैं.  आमतौर पर तो समय के साथ बाल कम हो जाते हैं. लेकिन हल्के उबटन से बच्चों की मालिश करना लाभदायक है इससे अनावश्यक बालों की ग्रोथ रुक जाती है.  और  उबटन के प्रयोग से बच्‍चे की स्किन में निखार भी आता है. फिर भी किसी भी प्रकार का उबटन प्रयोग करने से पहले चिकित्सक की राय जरूर लें. बच्चे की स्किन पर प्रयोग ना करें .वरना स्किन संक्रमित हो सकती है.

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9. लिपबाम का प्रयोग

शिशु के होंठ अक्सर बार बार थूक निकलने के कारण गीले रहते हैं जिसके कारण होठों की स्किन गल जाती है और हट जाती हैं . जिस कारण उन पर सूखापन आ जाता है. ऐसे में सफेद  पैट्रोलियम जैली या लिपबाम का प्रयोग करना चाहिए.

10. आंखों की केयर

शुरू शुरू में शिशु की आंखों के कोने से सफेद या हलके पीले रंग का बहाव हो सकता है. घबराए नहीं इसे डॉक्टर के परामर्श से निमोए पानी में रोई भिगो कर हल्के हाथ से अंदर से बाहर की ओर,आंखों के कोनों को साफ करें. इसे न तो हाथ से रगड़ें और न ही खींच कर निकालने की कोशिश करें. अगर शिशु की आंखें लाल हों या उन से पानी निकल रहा हो तो तुरंत आंखों के विशेषज्ञ को दिखलाना चाहिए.

11.  मां के लिए सावधानी

अपने शिशु को वायरस और बैक्टीरिया से दूर रखने के लिए टीकाकरण समयसमय पर नियमित रूप से करवाएं .

बच्चे को फ्लू और सर्दी-खांसी के कीटाणुओं से दूर रख ने के लिए बारबार अपने हाथ धोएं .

दिन में कई बार बच्चा मुंह में हाथ डालता है इसलिए अपने बच्चे के हाथ भी धोएं.

शिशु की इम्युनिटी पावर बढ़ाने के लिए मां का दूध सर्वोत्तम है .मां के दूध से शरीर में पानी की भी कमी नहीं होती. इसी कारण आज कल डॉक्टर 6 महीने तक बच्चे को किसी भी अन्य तरल के लिए नहीं कहते.

जहां तक संभव हो सके बच्चे को घर में किसी भी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की बहुत से दूर रखें क्योंकि हल्की सी भी छींक या खांसी से  बच्चा संक्रमित हो सकता है.

शिशु बाहरी ही नहीं आंतरिक रूप से भी बहुत कोमल होता है. इसलिए किसी भी तरह की तेज खुशबू ,डियोड्रैंट, परफ्यूम्स या धुएं से उसे दूर रखें. क्योंकि इन से सांस की बीमारी हो सकती है.

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