गर्मियों में शिशु की त्वचा के मॉइस्चर का रखें खयाल

जैसे-जैसे सूरज चमकता है वैसे-वैसे तापमान भी बढ़ने लगता है और इसका सीधा असर नन्हेमुन्नों की नाजुक त्वचा पर पड़ता है. गर्मी के मौसम में शिशु की त्वचा को ऐक्स्ट्रा देखभाल और निगरानी की जरूरत होती है क्योंकि गर्मी में त्वचा रूखी और नमी रहित हो सकती है. शिशु को से बचाने के लिए उसकी देखभाल में सबसे महत्त्वपूर्ण त्वचा को मॉइस्चराइज करना है, जिसे अकसर अनदेखा कर दिया जाता है. ज्यादातर पेरैंट्स सिर्फ सर्दियों या फिर जब त्वचा रूखी दिखाई देती है, तब ही शिशु को मॉइस्चराइज करते हैं. हालांकि शिशु की त्वचा को रूखेपन से बचाने, उसमें नमी बनाए रखने और हैल्दी स्किन बैरियर को बनाए रखने के लिए मॉइस्चराइज करना बहुत जरूरी है.

शिशु की त्वचा की सबसे बाहरी परत एक वयस्क व्यक्ति की त्वचा की तुलना में 3 गुना तक पतली होती है, इसलिए शिशु की त्वचा दोगुनी तेजी से नमी खो देती है और खुश्की और गर्मी के कारण होने वाले नुकसान से ज्यादा प्रभावित होती है. इसलिए नवजात शिशु की स्किन को ड्राई करने वाली कड़क गर्मी के दौरान मॉइस्चराइजर की बहुत अधिक जरूरत होती है.

कड़ी धूप और एयर कंडीशनिंग के इस्तेमाल के कारण शिशु की नाजुक त्वचा से प्राकृतिक नमी खो जाती है, जिससे त्वचा खुश्क और खुजलीदार हो जाती है. गर्मियों के दौरान, शिशुओं के लिए स्किन केयर रूटीन के हिस्से के रूप में मॉइस्चराजिंग अहम भूमिका निभाता है क्योंकि यह उनकी त्वचा को नर्म, चिकना और हाइड्रेटेड रखने में मदद करता है. यह त्वचा में एक ऐसी परत बना देता है जो नमी को लॉक कर देता है और ड्राईनैस को रोक देता है. गर्मी के बावजूद स्किन मॉइस्चराइजिंग होने से भी यह उनकी त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करता है.

गर्मियों के दौरान सही मॉइस्चराइजर कैसे चुनें?

यह सच है कि अपने शिशु के लिए सही मॉइस्चराइजर चुनना बहुत मुश्किल हो सकता है. इसलिए इसे चुनते समय आपको इन पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए:

लंबे समय तक रखें मॉइस्चराइज्ड: अपने शिशु के लिए क्रीम चुनते समय ऐसी क्रीम चुनना सही है जो विशेष रूप से शिशुओं के लिए बनाई गई हो या उन्हें ध्यान में रख कर बनाई गई हो और लंबे समय तक स्किन में नमी बनाए रखने का काम करती हो.

शिशु के लिए सुरक्षित उत्पाद: शिशु की त्वचा की देखभाल के लिए ऐसे उत्पाद चुनें, जिनमें ऐसे तत्व हों, जो पहले दिन से ही शिशु की त्वचा पर इस्तेमाल के लिए सुरक्षित हों. सबसे पहले आप यह बात अच्छी तरह से जान लें कि क्रीम नैचुरल इनग्रीडिएंट्स जैसे कैमोमाइल से युक्त हो और शिशु की त्वचा पर इस्तेमाल होने वाली प्रोडक्ट्स में प्राकृतिक तरीके से प्राप्त ग्लिसरीन हो, साथ ही यह त्वचा पर सूजन न लाए.

इसके अलावा ये प्रोडक्ट त्वचा की जलन को रोकते हों और आराम देते हों. ये शिशु की त्वचा को विशेष रूप से गर्मियों के दौरान ड्राईनैस से बचाने के लिए बैस्ट हों.

मॉइस्चराइजर या लोशन का इस्तेमाल करते समय ऐसे प्रोडक्ट्स की तलाश करने की सलाह दी जाती है, जिनमें नारियल तेल, दूध, प्रोटीन और चावल के अर्क जैसे तत्व हों क्योंकि वे अपने पोषक गुणों के लिए जाने जाते हैं.

वाटर बेस्ड, हल्का और चिपचिपा न हो: गर्मी के मौसम में शिशु की त्वचा को हाइड्रेट रखने में मदद करने के लिए वाटर बेस्ड हल्का लोशन या क्रीम ही चुनें क्योंकि यह बिना किसी चिकनाई के जल्दी स्किन में ऑब्सर्व हो जाती है, जिससे यह रोजाना इस्तेमाल के लिए बैस्ट होती है.

कोई हानिकारक कैमिकल न हो: हमेशा यह जांचें कि शिशु की त्वचा पर इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोडक्ट में पैराबेंस, सल्फेट्स, फथलेट्स और ड्राई न हो. इनके बजाय ऐसे प्रोडक्ट्स चुनें, जिन्हें हाइपोएलर्जेनिक के रूप में लेबल किया गया हो क्योंकि इनसे ऐलर्जी होने के चांस कम होते हैं.

इस गर्मी में अपने बच्चे की त्वचा को कोमल, मुलायम और सॉफ्ट बनाए रखने के लिए उसे मॉइस्चराइज करना न भूलें.

 

प्रेग्नेंसी के बाद बढ़े वजन को ऐसे करें कम

प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाना एक बड़ी चुनौती होती है. आमतौर पर प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं का वजन बढ़ जाता है और आपकी लाख कोशिशों के बाद भी वो अपना वजन कम नहीं कर पाती. इस खबर में हम आपको उन तरीकों के बारे में बताएंगे जिनकी मदद से आप प्रेग्नेंसी के बाद भी अपना वजन कम कर सकेंगी.

खाना और नींद रखें अच्छी

आपको बता दें कि तनाव और नींद पूरी ना होने से कई तरह के रोग हो जाते हैं. इसके अलावा आप बाहर का खाना बंद कर दें. घर का बना खाना खाएं और पर्याप्त नींद लें. स्ट्रेस ना लें. खुद को कूल रखें.

बच्चे को कराएं ब्रेस्टफीड

मां का दूध बच्चों के लिए अमृत रसपान

आपको ये जान कर हैरानी होगी पर ये सच है कि ब्रेस्टफीड कराने से महिलाओं के वजन में तेजी से गिरावट आती है. और इस बात का खुसाला कई शोधों में भी हो चुका है. ब्रेस्टफीड कराने से शरीर की 300 से 500 कैलोरी खर्च होती है. कई जानकारों का मानना है कि स्तमपान कराने से महिलाओं का अतिरिक्त वजन कम होता है.

 खूब पीएं पानी

diet to loose weight

पानी पीना वजन कम करने का सबसे आसान तरीका है. अगर आप सच में अपना वजन कम करना चाहती हैं तो अभी से रोजाना 10 से 12 ग्लास पानी पीना शुरू कर दें.

टहला करें

प्रेग्नेंसी के बाद वजन कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप वौक शुरू करें. कई रिपोर्टों में भी ये बाते सामने आई है कि प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाने के लिए जरूरी है टहलना.

प्रेग्नेंसी के बाद कम करना है वजन तो अपनाएं ये आसान तरीके

प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाना एक बड़ी चुनौती होती है. आमतौर पर प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं का वजन बढ़ जाता है और आपकी लाख कोशिशों के बाद भी वो अपना वजन कम नहीं कर पाती. इस खबर में हम आपको उन तरीकों के बारे में बताएंगे जिनकी मदद से आप प्रेग्नेंसी के बाद भी अपना वजन कम कर सकेंगी.

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खाना और नींद रखें अच्छी

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आधुनिक महिलाओं में बांझपन की बीमारी का कारण और निदान

महिलाओं के जीवन में मां बनना सबसे बड़ा सुख माना जाता है लेकिन आजकल की आधुनिक जीवनशैली और अन्‍य कारणों की वजह से अब महिलाओं में बांझपन यानि इनफर्टिलिटी की समस्‍या बढ़ रही है. अगर आप भी बांझपन का शिकार हैं या इससे बचना चाहती हैं तो आइए जानते हैं औनलाइन हेल्थकेयर कंपनी myUpchar से इसके कारण, लक्षण और इलाज के बारे में.

क्‍या होता है बांझपन

बांझपन वह स्थिति है जिसमें महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं. अगर कोई महिला प्रयास करने के बाद भी 12 महीने से अधिक समय तक गर्भधारण नहीं कर पाती है तो इसका मतलब है कि वो महिला बांझपन का शिकार है. गौरतलब है कि गर्भधारण न हो पाने का कारण पुरुष बांझपन भी हो सकता है.

कुछ महिलाएं शादी के बाद कभी कंसीव नहीं कर पाती हैं तो कुछ स्त्रियों को एक शिशु को जन्‍म देने के बाद दूसरी बार गर्भधारण करने में मुश्किलें आती हैं. इस तरह बांझपन दो प्रकार का होता है.

क्‍या है बांझपन का कारण

  • फैलोपियन ट्यूब अंडे को अंडाशय से गर्भाशय तक पहुंचाती है, जहां भ्रूण का विकास होता है. पेल्विक में संक्रमण या सर्जरी के कारण फैलोपियन ट्यूब को नुकसान पहुंच सकता है जिससे शुक्राणुओं को अंडों तक पहुंचने में दिक्‍कत आती है और इसी वजह से महिलाओं में बांझपन उत्‍पन्‍न होता है.
  • महिलाओं के शरीर में हार्मोनल असंतुलन होने के कारण भी इनफर्टिलिटी हो सकती है. शरीर में सामान्‍य हार्मोनल परिवर्तन ना हो पाने की स्थिति में अंडाशय से अंडे नहीं निकल पाते हैं.
  • गर्भाशय की असामान्य संरचना, पौलिप्स या फाइब्रौएड के कारणबांझपन हो सकता है.
  • तनाव भी महिलाओं में बांझपन का प्रमुख कारण है.
  • महिलाओं की ओवरी 40 वर्ष की आयु के बाद काम करना बंद कर देती है. अगर इस उम्र से पहले किसी महिला की ओवरी काम करना बंद कर देती है तो इसकी वजह कोई बीमारी, सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन हो सकती है.
  • पीसीओएस की बीमारी के कारण भी आज अधिकतर महिलाएं बांझपन का शिकार हो रही हैं. इस बीमारी में फैलोपियन ट्यूब में सिस्‍ट बन जाते हैं जिसके कारण महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं.

बांझपन के लक्षण

  • myUpchar की गायनेकोलौजिस्ट डा. अर्चना नरूला के अनुसार लम्बे समय तक गर्भधारण में असमर्थता ही बांझपन का सबसे मुख्‍य लक्षण है.
  • अगर किसी महिला का मासिक धर्म 35 दिन या इससे ज्‍यादा दिन का हो तो ये बांझपन का लक्षण हो सकता है. इसके अलावा बहुत कम दिनों की माहवारी या 21 दिन से पहले माहवारी का आना अनियमित माहवारी कहलाता है जोकि बांझपन बन सकता है.
  • चेहरे पर अनचाहे बाल आना या सिर के बालों का झड़ना भी महिलाओं में इनफर्टिलिटी की वजह से हो सकता है.

बांझपन से कैसे बचें

बांझपन से बचने के लिए जीवनशैली में सुधार करना सबसे जरूरी है. यहां कुछ ऐसे सरल सुझाव दिए गए हैं जिन्हें अपनाकर इनफर्टिलिटी से बच सकते हैं.

संतुलित आहार खाएं

  • बांझपन को दूर करने के लिए उचित भोजन करना बहुत जरूरी है. अपने आहार में जस्ता, नाइट्रिक औक्साइड और विटामिन सी और विटामिनई जैसे पोषक तत्वों को शामिल करें.
  • ताजी फल-सब्जियां खाएं. शतावरी और ब्रोकली से फर्टिलिटी बढ़ती है. इसके अलावा बादाम, खजूर, अंजीर जैसे सूखे-मेवे खाएं.
  • आपको रोज़ कम से कम 5-6 खजूर या किशमिश खानी चाहिए. डेयरी उत्पाद, लहसुन, दालचीनी, इलायची को अपने आहार में शामिल करें.
  • सूरजमुखी के बीज खाएं. चकोतरा और संतरे का ताजा रस पीएं. फुल फैट योगर्ट और आइस्‍क्रमी से भी फर्टिलिटी पावर बढ़ती है.
  • जो महिलाएं अपनी फर्टिलिटी पावर को बढ़ाना चाहती हैं उन्‍हें अपने आहार में टमाटर, दालें, बींस और एवोकैडो को शामिल करना चाहिए.
  • अनार में फोलिक एसिड और विटामिन बी प्रचुर मात्रा में होता है. फर्टिलिटी को बढ़ाने के लिए महिलाओं को अनार का सेवन जरूर करना चाहिए.
  • विटामिन डी के लिए अंडे खाएं और ओमेगा 3 फैटी एसिड युक्‍त खाद्य पदार्थों का सेवन करें. कंसीव करने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए रोज़ एक केला खाएं.
  • अश्‍वगंधा शरीर में हार्मोंस के संतुलन को बनाए रखता है और प्रजनन अंगों की समुचित कार्यक्षमता को बढ़ावा देती है. बार-बार गर्भपात होने के कारण शिथिल गर्भाशय को समुचित आकार देकर उसे बनाने में अश्‍वगंधा मदद करता है. महिलाओं को अपने आहार में दालचीनी को भी जरूर शामिल करना चाहिए.

इन खाद्य पदार्थों से रहें दूर

  • धूम्रपान और शराब बांझपन का प्रमुख कारण हैं इसलिए इनसे दूर रहें.
  • तैलीय भोजन और सफेद ब्रैड जैसे परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट से बचें.
  • प्रिजर्वेटिव्स फूड, कैफीन और मांस का सेवन कम करें. फ्रेंच फ्राइज, तली हुई और मीठी चीजों का बहुत कम सेवन करें.
  • इसके अलावा कोल्‍ड ड्रिंक आदि भी ना पीएं. कौफी और चाय भी कम पीएं क्‍योंकि इनमें कैफीन की मात्रा अधिक होती है जिसका फर्टिलिटी पर बुरा असर पड़ता है.

ये आदतें छोड़ दें

  • मासिक धर्म के दिनों में तैलीय और मसालेदार भोजन ना लें.
  • मारिजुआना या कोकीन का सेवन ना करें.
  • धूम्रपान करने से ओवरी की उम्र और अंडों की आपूर्ति कम हो जाती है. धूम्रपान फैलोपियन ट्यूब और सर्विक्‍स को भी नुकसान पहुंचाता है जिससे एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी या गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए सिगरेट बिलकुल ना पीएं.
  • शराब का सेवन ना करें. गर्भधारण से पूर्व शराब का सेवन करने वाली महिलाओं में औव्‍यूलेशन विकार हो सकता है इसलिए शराब से दूर रहें.
  • अगर आपका वजन बहुत ज्‍यादा या कम है तो उसे भी संतुलित करें. इनफर्टिलिटी से जूझ रही महिलाओं को अपना वजन संतुलित रखना चाहिए.
  • आधुनिक युग में बांझपन का प्रमुख कारण तनाव है. तनाव से दूर रहकर बांझपन की समस्‍या से बचा जा सकता है. मानसिक शांति पाने के लिए रोज़ सुबह प्राणायाम करें.

बांझपन की जांच

अगर कोई महिला लंबे समय से गर्भधारण नहीं कर पा रही है तो उसे डौक्टर के निर्देश पर निम्‍न जांच करवानी चाहिए:

  • ओव्यूलेशनटेस्ट: इसमें किट से घर पर ही ओव्यूलेशन परीक्षण कर सकती हैं.
  • हार्मोनल टेस्‍ट: ल्‍युटनाइलिंग हार्मोन और प्रोजेस्‍टेरोन हार्मोन की जांच से भी बांझपन का पता लग सकता है. ल्युटनाइज़िंगहार्मोन का स्तर ओव्यूलेशन से पहले बढ़ता है जबकि प्रोजेस्टेरोन हार्मोन ओव्यूलेशन के बाद उत्पादित हार्मोन होता है. इन दोनों हार्मोंस के टेस्‍ट से ये पता चलता है कि ओव्यूलेशन हो रहा है या नहीं.  इसके अलावा प्रोलैक्टिन हार्मोन के स्तर की भी जांच की जाती है.
  • हिस्टेरोसल पिंगोग्राफी: ये एक एक्स-रे परीक्षण है. इससे गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब और उनके आस-पास का हिस्‍सा देखा जा सकता है. एक्‍स-रे रिपोर्ट मेंगर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब को लगी कोई चोट या असामान्‍यता को देखा जा सकता है. इसमें अंडे की फैलोपियन ट्यूब से गर्भाशय तक जाने की रूकावट भी देख सकते हैं.
  • ओवेरियन रिज़र्वटेस्ट: ओव्यूलेशन के लिए उपलब्ध अंडे की गुणवत्ता और मात्रा को जांचने में मदद करता है. जिन महिलाओं में अंडे कम होने का जोखिम होता है, जैसे कि 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं, उनके लिए रक्त और इमेजिंग टेस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है.
  • थायरौयड और पिट्यूटरी हार्मोन की जांच: इसके अलावा प्रजनन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले ओव्यूलेटरीहार्मोन्स के स्तर के साथ-साथ थायरौयड और पिट्यूटरी हार्मोन  की जांच भी की जाती है.
  • इमेजिंग टेस्ट: इसमें पेल्विक अल्ट्रासाउंड होता है जोकि गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब में हुए किसी रोग की जांच करने के लिए किया जा सकता है.

बांझपन का इलाज

चूंकि बांझपन एक जटिल विकार है इसलिए डा. नरूला कहती हैं कि, “इनफर्टिलिटी का इलाज इसके होने के कारण, आयु, यह समस्या कितने समय से है और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है. बांझपन के इलाज में वित्तीय, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति महत्‍व रखती है.”

आइए जानें आपके पास क्या विकल्प हैं इनफर्टिलिटी को दूर करने के लिए:

  • दवाएं: ओव्यूलेशन विकार के कारण गर्भधारण ना हो पाने की स्थिति में दवाओं से इलाज किया जाता है. ये दवाएं प्राकृतिक हार्मोन फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन (एफएसएच) और ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच) की तरह काम करती हैं.इन दवाओं से ओव्यूलेशन को ट्रिगर किया जाता है.
  • आधुनिक तकनीक: प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किए गए तरीकों में शामिल हैं –
    • इन्ट्रायूट्राइन गर्भाधान (आईयूआई) – आईयूआई के दौरान, लाखों स्वस्थ शुक्राणुओं को गर्भाशय के अंदर ओव्यूलेशन के समय रखा जाता है.
    • आईवीएफ – इस प्रक्रिया में अंडे की कोशिकाओं को महिला के गर्भ से बाहर निकालकर उसे पुरुष के स्‍पर्म के साथ निषेचित किया जाता है. ये पूरी प्रक्रिया इनक्‍यूबेटर के अंदर होती है और इस पूरी प्रक्रिया में लगभग तीन दिन का समय लगता है. भ्रूण के पर्याप्‍त विकास के बाद इसे वापिस महिला के गर्भ में पहुंचा दिया जाता है. इस प्रक्रिया के 12 से 15 दिनों तक महिला को आराम करने की सलाह दी जाती है.
  • सर्जरी: कई सर्जिकल प्रक्रियाएं बांझपन को ठीक यामहिला प्रजनन क्षमता में सुधार ला सकती हैं. हालांकि, बांझपन के इलाज में अब ऊपर बताई गयी नई पद्धतियां आ चुकी हैं जिनके कारण सर्जरी बहुत ही कम की जाती है. गर्भधारण की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए लैप्रोस्कोपिक या हिस्ट्रोस्कोपी सर्जरी की जा सकती है. इसके अलावा फैलोपियन ट्यूब अवरुद्ध होने पर ट्यूबल सर्जरी भी की जा सकती है.

मां बनना इस दुनिया का सबसे बड़ा सुख है. अगर आप भी मातृत्‍व सुख पाना चाहती हैं तो स्‍वस्‍थ जीवनशैली अपनाएं.

गर्भावस्था में होने वाली उल्टी को इन पांच तरीकों से करें काबू

गर्भावस्था में उल्टी का होना बेहद आम बात है. इस दौरान महिलाओं में कई तरह के शारीरिक बदलाव होते हैं. इसका असर उनके मानसिक सेहत पर भी होता है. इस दौरान उनमें कई तरह के हार्मोंनल बदलाव होते हैं जिसके कारण उल्टी की समस्या होती है.

उल्टी होना गर्भावस्था की पहचान होती है. इसके अलावा प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने से जी मिचलना और मौर्निंग सिकनेस भी होने लगते हैं. अगर आपकी उल्टी सामान्य है तो घबराने की कोई बात नहीं लेकिन अगर आपको बहुत अधिक उल्टी हो रही है तो तुरंत सतर्क हो जाइए.

इस खबर में हम आपको कुछ घरेलू उपायों के बारे में बताएंगे जिससे आप इन परेशानियों का घर बैठे इलाज कर सकेंगी.

  • ऐसी स्थिति में आंवले का मुरब्बा खाना भी काफी असरदार होता है.
  • गर्भावस्था के लगातार उल्टी होने पर सूखे या हरे धनिया को पीस कर मिश्रण बना लें. समय समय पर इसका सेवन करने से उल्टी की समस्या बंद हो जाती है. इसमें काला नमक मिला कर भी सेवन किया जा सकता है.
  • जीरा, नमर, नींबू का रस और सेंधा नमक का मिश्रण तैयार कर लें. कुछ देर पर इसे चूसते रहें. ऐसा करने से आपको फायदा होगा.
  • तुलसी के पत्ते के रस में शहद मिलाकर चाटने से भी फायदा होता है.
  • अगर आपको लगातार उल्टियां हो रही हैं तो रात में एक ग्लास पानी में काले चने को भींगा कर छोड़ दें और सुबह में उस पानी को पी लें. ऐसा करने से आपको काफी फायदा होगा.

गर्भावस्था में इसे करें अपनी डाइट में शामिल, स्वस्थ होता है बच्चा

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के खानपान का विशेष ध्यान दिया जाता है. इस दौरान गर्भवती महिला के डाइट का सीधा प्रभाव उसके बच्चे पर भी होता है. इसलिए जरूरी है कि उसके पोषण का खासा ख्याल रखा जाए. जानकारों की माने तो गर्भावस्था के दौरान अंडा खाना बेहद फायदेमंद होता है. अंडे में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, सेलेनियम, जिंक, विटामिन A, D और कुछ मात्रा में B कौम्प्लेक्स भी पाया जाता है. जो शरीर की सभी जरूरतों को पूरा करने का सबसे बेहतर सूपर फूड है.

कई तरह के स्टडीज से भी ये बात सामने आई है कि गर्भावस्था के दौरान अंडा खाने से बच्चे का दिमाग तेज होता है. इसके साथ ही उसकी सीखने की क्षमता भी तेज होती है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था में अंडा खाना कैसे लाभकारी है और आपके बच्चे पर उसका सकारात्मक असर कैसे होगा.

अंडा प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है. इसमें प्रोटीन की प्रचूरता होती है. आपको बता दें कि गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए प्रोटीन बेहद जरूरी तत्व होता है. असल में उसकी हर कोशिका का निर्माण प्रोटीन से होता है. गर्भावस्था में अंडा खाने से भ्रूण का विकास बेहतर होता है.

आपको बता दें कि गर्भवती महिला के लिए एक दिन में दो सौ से तीन सौ तक एडिशनल कैलोरी लेनी चाहिए. इससे उसे और बच्चे, दोनों को पोषण मिलता है. अंडे में करीब 70 कैलोरी होती है जो मां और बच्चे दोनों को एनर्जी देती है.

आपको बता दें कि अंडे में 12 तरह के विटामिन्स होते हैं. इसके अलावा कई तरह के लवण भी इसमे होते हैं. इनमें मौजूद choline और ओमेगा-3 फैटी एसिड बच्चे के संपूर्ण विकास को बढ़ावा देते हैं. इसके सेवन से बच्चे को मानसिक बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है और उसका दिमागी विकास भी होता है.

अगर गर्भवती महिला का ब्लड कोलेस्ट्रौल स्तर सामान्य है तो वह दिन में एक या दो अंडे खा सकती है. अंडे में कुछ मात्रा में सैचुरेटेड फैट भी होता है. अगर महिला का कोलेस्ट्रौल लेवल अधिक है तो उसे जर्दी वाला पीला हिस्सा नहीं खाना चाहिए.

प्रीमैच्योर बेबी: मिथ्स और फैक्ट्स

वैश्विक स्तर पर पैदा होने वाले 15मिलियन बच्चों में से 1/5 भारत में जन्म लेते हैं और पूरी दुनिया में 5 साल से कम उम्र में बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण समय से पहले पैदा होना है. इस में कोई संदेह नहीं है कि भारत में इन नवजातों की गहन चिकित्सा और देखभाल की काफी जरूरत है,जो हमारे देश में समय पर संभव नहीं होती.

‘प्रीमैच्योर चाइल्ड बर्थ ऐंड केयर वीक’ पर समय से पहले शिशुओं के जन्म के बारे में नवी मुंबई, कोकिलाबेन, धीरुभाई अंबानी हौस्पिटल की कंसलटैंट, औब्सटेरिक्स और गायनेकोलौजी डाक्टर बंदिता सिन्हा कहती है कि आम तौर पर गर्भावस्था का पूरा समय 40 हफ्तों का होता है, लेकिन कुछ मामलों में अचानक ऐसी जटिलताएं हो जाती हैं कि 37 हफ्तों की गर्भावस्था पूरी होने से पहले ही शिशु का जन्म हो जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस स्थिति को प्री टर्म या समय से पहले जन्म कहा है और इस की 3 उप श्रेणियां बताई हैं:

द्य अत्यधिक अपरिपक्व (28 हफ्तों से कम),

द्य बहुत अपरिपक्व (28 से 32 हफ्तों के बीच पैदा होने वाले शिशु),

द्य मध्यम से देर से अपरिपक्वता (32 से 37 हफ्तों के बीच पैदा होने वाले शिशु).

अगर शिशु गंभीर रूप से अस्वस्थ हो, तो पूरे परिवार के लिए बेहद तनावपूर्ण हो सकता है. इस समस्या के बारे में जानकारी या पूर्व अनुभव न होने की वजह से निओनेटल यूनिट में शिशु के मातापिता को बड़े संकट से गुजरने की भावना महसूस होती है. सी सैक्शन या सिजेरियन सैक्शन के जरीए कराए गए समय से पहले जन्म में, माताओं का जन्म के बाद पहले कुछ दिनों तक अपने नवजात शिशु के साथ बहुत कम या कोई संपर्क नहीं होता है.

इस से मातापिता पर तनाव और भी ज्यादा बढ़ जाता है. चिंता, डिप्रैशन, पोस्ट ट्रामैटिक स्ट्रैस डिसऔर्डर और कुल स्वास्थ्य पर असर पड़ने का खतरा रहता है. सिंगल साइट्स या अस्पतालों में किए गए अध्ययनों में पाया गया है कि यह गर्भावस्था पूरी होने के बहुत पहले जन्म पैदा होने वाले तनाव व लंबे समय तक बना रह सकती है.

मिथ ऐंड फैक्ट

मातापिता को अकसर यह लगता है कि प्रसव के पहले की देखभाल ठीक से न किए जाने की वजह से उन के शिशु का जन्म समय से पहले हुआ है.

फैक्ट

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि समय से पहले होने वाली प्रसूतियों में लगभग आधी प्रसूतियों के कारण अज्ञात रह जाते हैं. करीब 30% मामलों में मैमब्रैंस का समय से पहले टूटना पीपीआरओएम कारण होता है, जबकि 15-20% मामलों में प्रीक्लैंपसिया, प्लेसैटल ऐब्रप्शन, गर्भाशय के भीतर विकास को प्रतिबंध आईयूजीआर और इलैक्टिव प्रीटर्म बर्थ आदि कारण होते हैं.

मिथ

समय से पहले पैदा हुए बच्चों का मातापिता के साथ जुड़ाव नहीं हो पाता है.

फैक्ट

शिशु के साथ जुड़ाव बनाने के कई तरीके हैं. एनआईसीयू दिनचर्या में शिशु के साथ जुड़ाव बनाने के नए रास्ते मातापिता को खोजने चाहिए. कंगारू केयर यानी त्वचा से त्वचा का संपर्क करें, डायपर बदलें, शिशु का टैंपरेचर जांचें और अगर संभव हो तो स्तनपान कराएं.

मिथ

2 साल की आयु तक शिशु अपने विकास के पड़ाव पार करेगा.

फैक्ट

भाषा विकास, संतुलन और समन्वय जैसे मोटर कौशल और फाइन मोटर कौशल मसलन पैंसिल पकड़ पाना, पजल के टुकड़े जोड़ना आदि विकसित होने में देरी हो सकती है. करीब 40% प्रीमैच्योर शिशुओं में मोटर कौशलों में जरा सी कमी देखी जा सकती है और माताओं को इन शिशुओं के साथ व्यवहार में कुछ कठिनाइयां महसूस हो सकती हैं.

योनि प्रसूति के फायदे

योनि प्रसूति होने से आप बड़ी सर्जरी या सी सैक्शन से जुड़े जोखिमों से बच जाती हैं जैसेकि गंभीर रक्तस्राव, निशान रह जाना, संक्रमण, ऐनेस्थीसिया के प्रभाव और सर्जरी के बाद का दर्द आदि.

द्य स्तनपान जल्दी शुरू हो जाता है.

द्य सांस की बीमारियों का खतरा कम रहता है.

द्य शरीर की रोग प्रतिरोध प्रणाली अच्छे से काम कर पाती है.

द्य स्तनपान कराने की अधिक प्रवृत्ति अधिक होती है हालांकि जब अनिवार्य हो तब सी सैक्शन की सलाह दी जाती है.

प्राथमिक सिजेरियन (सी सैक्शन) डिलिवरी के लिए सब से आम संकेत हैं:

द्य आईवीएफ प्रैगनैंसी.

द्य ऐल्डरली प्राइमिग्रेविडा.

द्प्रसवपीड़ा.

द्भ्रण की हृदयगति का पता न लगाना, फीटल मालप्रेजैंटेशन.

द्स्पैक्टेड मैक्रोसोमिया.

बेबी की पोषण से जुुड़ी जरुरतों के लिए मां के दूध की मात्रा कैसे बढ़ाएं?

मां के लिए अपने बेबी को ब्रैस्टफीडिंग कराना दुनिया का सबसे बड़ा सुख होता है. जो मां तथा बेबी दोनों के लिए ही आपार स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने के रूप में जाना गया है. आपके बेबी के लिए मां का दूध जीवन के पहले छह महीनों में आवश्यक माना जाता है क्यूंकि इसमें सभी महत्वपूर्ण पोषण होते हैं. साथ ही इसमें बीमारियों से लड़ने के लिए कई आवश्यक तत्व होते हैं जो आपके बेबी के स्वास्थ्य को समस्याओं से बचने में मदद करते हैं. इसके आलावा इसमें एंटीबाॅडिज भी होते हैं जो आपके बच्चे को वायरस तथा बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं.

बेबी स्वास्थ्य के लिए मां का दूध है सर्वोत्तम आहार-

बेबी के जीवन के पहले छह महीनों के लिए उसकी समस्त पोषण आवश्यकताओं के लिए मां का दूध सर्वोत्तम होता है. आपका बेबी ज्यादा से ज्यादा पोषण प्राप्त करें, इसके लिए यह आवश्यक है कि जन्म के तुरंत बाद से लेकर कम से कम छह महीने तक जबतक कि बेबी को अन्य आहार देना न शुरू कर दिया जाए, केवल मां का दूध ही दिया जाए.

डॉ अरुणा कालरा, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रसूति रोग विशेषज्ञ बता रही हैं स्तन दूध की मात्रा बढ़ाने के खास उपाय.

बहुत सी महिलाओं को कई बार ऐसा लगता है की वे स्तन दूध का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं कर पा रही हैं. एक नयी माँ के लिए ऐसा महसूस करना बहुत ही आम बात है. हालाँकि ऐसी बहुत ही काम महिलाएं होती हैं जो ज़्यादा स्तन दूध का उत्पादन नहीं कर पाती परन्तु यदि आपको लगता है की आप भी उनमे से एक हैं तो आप घबरायें नहीं. ऐसे कुछ बहुत ही आसान तरीकें हैं जिनसे आप अपने स्तन दूध की मात्रा बढ़ा सकती हैं.

आपके स्तन के दूध के उत्पादन को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कुछ तरीके हैं जो आप अपना सकती हैं.

आपके दूध की आपूर्ति को बढ़ाने में कितना समय लगेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी आपूर्ति की शुरुआत कितनी कम है और आपके कम स्तन दूध के उत्पादन की क्या वजह है. यदि ये तरीके आपके लिए काम करते हैं तो आप स्तन दूध कुछ ही दिनों में बढ़ने लगेगा.

1. बेबी को एक दिन में थोड़ा अधिक बार ब्रैस्टफीडिंग कराएं-

जब आप अपने बेबी को ब्रैस्टफीडिंग कराती हैं तब आपके शरीर में स्तन दूध बढ़ाने वाले होर्मोनेस रिलीज़ होते हैं. आप जितना अधिक ब्रैस्टफीडिंग करवाएंगी उतने अधिक आपके शरीर में ये होर्मोनेस रिलीज़ होंगे और आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ाएंगे.

2. पंप का इस्तेमाल-

ब्रैस्टफीडिंग करने के बीच के समय में पंप का इस्तेमाल करके स्तन दूध निकाले. ऐसा जाना जाता है कि ब्रैस्ट पंप के इस्तेमाल से स्तन दूध निकालने से आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ती है. जब भी आपको लगे की ब्रैस्टफीडिंग करवाने के बाद भी आपके स्तन में दूध बचा है या बेबी किसी कारणवश ब्रैस्टफीडिंग नहीं कर पाया है तब आप पंप का इस्तेमाल करके स्तन दूध निकाल लें.

3. दोनों स्तन से बेबी को ब्रैस्टफीडिंग करवाएं-

बेबी को पहले एक स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाएं और जब वह दूध पीना काम कर दे  या रुक जाये तो उसे दूसरे स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाएं. दोनों स्तन से ब्रैस्टफीडिंग करवाने से आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ती है.

4. दूध की मात्रा बढ़ाने वाला खाना खाएं-

निम्नलिखित कुछ ऐसे खाने कि चीज़ें हैं जिससे आपके स्तन दूध की मात्रा बढ़ सकती है. जैसे की-

–  मेथी

– लहसुन

– अदरक

– सौंफ

– ओट्स

– जीरा

– धनिया

– छुआरा

– पपीता, आदि.

जब भी आपको लगे कि इन् सब तरीकों से आपका स्तन दूध नहीं बढ़ पा रहा है तो आप अपने चिकित्सक की सलाह लीजिये.

जब निकलें शिशु के दांत

बच्चे के दांतों को निकलता देखना हर पेरैंट्स के लिए बहुत खुशी की बात होती है. पहला दांत आने का मतलब यह होता है कि अब शिशु खानेपीने की हलकी ठोस चीजें खा सकेगा. मगर बच्चे के लिए दांत निकलना कष्ट का सबब बन जाता है क्योंकि दांत आते समय बच्चे को दर्द, बुखार जैसी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

अगर आप का छोटा बच्चा भी बिना किसी वजह के रो रहा है, हर चीज अपने मुंह में डाल रहा है या बिना वजह परेशान है तो ये संकेत दांत निकलने के हो सकते हैं. आमतौर पर बच्चों के दांत 4 से 7 महीनों के बीच निकलने शुरू हो जाते हैं. वैसे कुछ बच्चों के दांत आने में देरी भी होती है. दांत निकलने के क्रम में शरीर में कुछ बदलाव भी आते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में पेरैंट्स सम?ा नहीं पाते और बेवजह परेशान होने लगते हैं.

दांत निकलने के लक्षण

बारबार रोना और परेशान दिखना. जब दांत निकलते हैं तो बच्चों के मसूड़ों में तकलीफ होती है. ऐसे में वे चिड़चिड़े और परेशान रहते हैं. ठीक से सो भी नहीं पाते.

पेट में समस्या

जब बच्चों के दांत निकलते हैं तो उन्हें डायरिया यानी लूज मोशन की समस्या हो सकती है जो 2-3 दिन रह सकती है. कुछ बच्चे इन दिनों कब्ज से भी परेशान रहते हैं, जिस के कारण उन के पेट में दर्द होता रहता है.

चीजें मुंह में डालना

जब बच्चे के दांत निकलते हैं तो वह हर चीज को मुंह में डालने लगता है क्योंकि मसूड़ों में खुजली, सूजन और दर्द रहता है. ऐसे में बच्चों को चबाने से आराम मिलता है. दरअसल, बच्चों के मसूड़ों के मांस को चीर कर दांत बाहर निकलते हैं, इसलिए उन में दर्द और खुजली होती है. इस तकलीफ से राहत पाने के लिए वे इधरउधर की चीजें उठा कर उन्हें चबाने की कोशिश करते हैं.

हलका बुखार

बच्चे के दांत निकलने पर उस के मसूड़ों में खारिश होने लगती है, जिस के कारण वह किसी भी चीज को उठा कर मुंह में डालने लगता है और कई बार साफसफाई का ध्यान नहीं रखने पर बच्चा इन चीजों पर मौजूद बैक्टीरिया के कारण संक्रमित हो जाता है. इस से बच्चे का पेट खराब हो जाता है और उसे उलटी व दस्त की समस्या हो जाती है. कई बार इन्फैक्शन के कारण उसे बुखार भी आ जाता है.

कई मातापिता शिशु को दांत निकलने के समय होने वाली दिक्कतों से बचाने के लिए दवा का उपयोग करने लगते हैं जबकि ऐसा करने से बचना चाहिए. दांत निकलने में दवा के इस्तेमाल के बजाय अगर आप कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखें और कुछ घरेलू उपाय करें तो काफी हद तक इन दिक्कतों से बचा जा सकता है:

– जब बच्चे के दांत निकल रहे होते हैं तो उस का कुछ चबाने का मन करता है. इस से बच्चे को आराम मिलता है. गाजर सख्त होती है इसलिए बच्चे को गाजर चबाने के लिए दे सकती हैं. एक लंबी गाजर को धो कर छील लें. 15-20 मिनट के लिए फ्रिज में रख कर ठंडा करें और उस के बाद बच्चे को दें. बच्चे को जब भी गाजर चबाने के लिए दें तब कोई न कोई उस के आसपास रहे ताकि वह गाजर को निगले नहीं या गाजर उस के गले में न फंसे. शिशु को ठंडा खीरे या सेब का टुकड़ा भी दे सकती हैं.

– मार्केट में टीथिंग बिस्कुट आते हैं जो दांत निकलने की प्रक्रिया को आसान बनाते हैं. ये बिस्कुट मीठे नहीं होते हैं और बच्चे को दांत निकलने पर होने वाले दर्द और असहजता से आराम दिलाते हैं. केला भी इस दर्द को कम करने का काम कर सकता है. केला मुलायम होता है और इसे चबाने से शिशु के दांतों को आराम मिल सकता है.

– कभीकभी मसूड़ों की मालिश से बच्चों को दांत निकलने की परेशानी में बहुत मदद मिलती है. मसूड़ों पर हलका दबाव दर्द को कम और बच्चों को शांत करने में मदद करता है. अपनी उंगली अच्छे से साफ करें या एक मुलायम कपड़ा लें और फिर उस से कुछ सैकंड्स के लिए बच्चे के मसूड़ों को रगड़ें. आप के शिशु को शुरुआत में शायद अच्छा न लगे परंतु बाद में राहत महसूस होगी. इस के अलावा किसी और्गेनिक तेल से बच्चे के माथे और गालों की भी मालिश करें.

– बच्चे की दूध की बोतल को फ्रिज में ठंडा होने के लिए रख दें. ठंडा होने पर इसे बच्चे को चबाने के लिए दें. इस से बच्चे को दांत निकलने पर हो रहे दर्द से राहत मिलेगी.

– 1/2 चम्मच सूखे कैमोमाइल फूलों को 1 कप गरम पानी में मिलाएं. इस को छान कर रख

लें. अब इस चाय का एक छोटा चम्मच अपने बच्चे को हर 1 या 2 घंटे बाद दें. कैमोमाइल का फूल 1 वर्ष से अधिक उम्र के शिशुओं में दांत निकलने की परेशानी में बहुत मदद कर सकता है. इस में सूजन को कम करने वाले गुण भी होते हैं.

Breast Feeding बढ़ाएं Baby की Immunity

कोरोना जैसी महामारी से निबटने के लिए जितना हो सके अपनी  इम्यूनिटी को बढ़ाना बहुत जरूरी है. इसे बढ़ाने के लिए मार्केट में ढेरों सप्लिमैंट्स उपलब्ध हैं. लेकिन अगर बात हो शिशुओं की,  तो उन की इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए मां के दूध से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता. तभी तो हर न्यू मौम को यह सलाह दी जाती है कि वह शुरुआती 6 महीने अपने बच्चे को सिर्फ अपना दूध ही पिलाए क्योंकि मां का दूध विटामिंस, मिनरल्स व ढेरों न्यूट्रिएंट्स का खजाना जो  होता है.

ब्रैस्ट फीडिंग से बढ़ती है इम्यूनिटी

अकसर न्यू मौम्स अपनी फिगर को मैंटेन रखने के लिए व बच्चे की भूख को शांत करने के लिए उसे शुरुआती जरूरी महीनों में ही फौर्मूला मिल्क देना शुरू कर देती हैं. भले ही इस से उन की भूख शांत हो जाती हो, लेकिन शरीर की न्यूट्रिशन संबंधित जरूरतें पूरी नहीं हो पाती. जबकि मां का दूध प्रोटीन, फैट्स, शुगर, ऐंटीबौडीज व प्रोबायोटिक से भरपूर होता है, जो बच्चे को मौसमी बीमारियों से बचा कर उस की इम्यूनिटी को बूस्ट करने का काम करता है.

अगर मां किसी इन्फैक्शन की चपेट में आ भी जाती है, तो उस इन्फैक्शन से लड़ने के लिए शरीर ऐंटीबौडीज बनाना शुरू कर देता है और फिर यही ऐंटीबौडीज मां के दूध के जरीए बच्चे में पहुंच कर उस की इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करती है. तो हुआ न मां का दूध फायदेमंद.

कई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जो बच्चे शुरुआती 6 महीनों में सिर्फ ब्रैस्ट फीड करते हैं, उन में किसी भी तरह की ऐलर्जी, अस्थमा व संक्रमण का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है. इसलिए मां का दूध बच्चे के लिए दवा का काम करता है.

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 ब्रैस्ट फीडिंग वीक

महिलाओं में ब्रैस्ट फीडिंग के लिए जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 1 से  7 अगस्त के बीच विश्व स्तर पर ब्रैस्ट फीडिंग वीक मनाया जाता है. उन्हें हर साल जगहजगह पर आयोजित कार्यक्रमों के जरीए शिक्षित किया जाता है कि मां के दूध से न सिर्फ बच्चा ही बीमारियों से दूर रहता है बल्कि मां भी इस से ओवेरियन व ब्रैस्ट कैंसर के रिस्क से बच सकती है. इस से रिलीज होने वाला हारमोन औक्सीटोसिन के कारण यूटरस अपने पहले वाले आकार में तो आ ही जाता है, साथ ही ब्लीडिंग भी कम हो जाती है. ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से कैलोरीज बर्न होने के कारण महिला की बौडी को शेप में आने में आसानी होती है. इसलिए जागरूक बन कर बच्चे को करवाएं ब्रैस्ट फीड.

जानते हैं ब्रैस्ट फीडिंग के अन्य फायदे

न्यूट्रिशन ऐंड प्रोटैक्शन:

मां के स्तनों से आने वाले पहले दूध को कोलोस्ट्रम कहते हैं, जिसे बेकार सम झ कर बरबाद न करें क्योंकि यह न्यूट्रिएंट्स का खजाना होने के साथ इस में फैट की मात्रा भी बहुत कम होती है, जिस से बच्चे के लिए इसे पचाना काफी आसान हो जाता है, साथ ही यह बच्चे के शरीर में ऐंटीबौडीज बनाने का भी काम करता है.

स्ट्रौग बौंड बनाने में मददगार:

बचपन से ही मां और बच्चे का बौंड स्ट्रौंग बने, इस के लिए ब्रैस्ट फीडिंग का अहम रोल होता है. ब्रैस्ट फीड करवाने से मां और बच्चा एकदूसरे का स्पर्श पाते हैं. ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से औक्सीटोसिन हारमोन, जिसे बौंडिंग हारमोन भी कहते हैं रिलीज होता है. यही हारमोन जब आप किसी अपने को किस या हग करते हैं, तब भी रिलीज होता है.

ब्रैस्ट फीड बेबी मोर स्मार्ट:

विभिन्न शोधकर्ताओं ने ब्रैस्ट फीडिंग व ज्ञानात्मक विकास में सीधा संबंध बताया है. अनेक शोधों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जिन बच्चों को लंबे समय तक ब्रैस्ट फीड करवाया जाता है, उन का आईक्यू लैवल काफी तेज होने के साथसाथ वे हर चीज में काफी स्मार्ट भी होते हैं क्योंकि मां के दूध में दिमाग को तेज करने वाले न्यूट्रिएंट्स कोलैस्ट्रौल, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड पाए जाते हैं.

ब्रैस्ट मिल्क को बच्चा आसानी से पचा लेता है क्योंकि इस में फैट की मात्रा बहुत कम होती है, जिस से बच्चे को कब्ज जैसी शिकायतों का भी सामना नहीं करना पड़ता, जबकि बच्चे के लिए फौर्मूला मिल्क को पचाना काफी मुश्किल हो जाता है और जब यह पचता नहीं है तो बच्चे को उलटी, पेट दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसलिए पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने के लिए ब्रैस्ट फीड है बैस्ट.

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एसआईडीएस का खतरा कम:

एक शोध से यह पता चला है कि कम से कम 2 महीने तक ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से एसआईडीएस मतलब सडन इन्फैंट डैथ सिंड्रोम का खतरा 50% तक कम हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो बच्चे स्तनपान करते हैं, वे आसानी से अच्छी नींद सोते हैं, जो उन की इम्यूनिटी को बढ़ाने में भी अहम रोल निभाता है. तो फिर अपने शिशु को हैल्दी रखने के लिए करवाएं ब्रैस्ट फीड.

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