बदले की आग: क्या इकबाल बेटी और पत्नी को बचा पाया

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बदले की आग: भाग 3- क्या इकबाल बेटी और पत्नी को बचा पाया

लेखक- जावेद राही

असलम ने माफी भी मांगी, लेकिन सुरैया नरम नहीं पड़ी. असलम चला गया. सुरैया अक्को कुली को कुछ न कुछ देती रहती थी, क्योंकि उसी की वजह से वह इस कोठे पर बैठी थी. पूरे शहर में शाहिदा और असलम के चरचे थे.

मां बेटी बनठन कर रोज शाम को तांगे में बैठ कर निकलतीं तो लोग उन्हें देखते रह जाते. तांगे पर उन का इस तरह निकलना कारोबारी होता था, इस से वे रोज कोई न कोई नया पंछी फांस लेती थीं.

एक दिन शावेज अपनी बहन शाहिदा और मां से उलझ गया. बात हाथापाई तक पहुंच गई. उस ने शाहिदा के मुंह पर इतनी जोरों से थप्पड़ मारा कि उस के गाल पर निशान पड़ गया. सुरैया को गुस्सा आया तो उस ने उसे डांटडपट कर घर से निकाल दिया.

शावेज गालियां देता हुआ घर से निकल गया और एक हकीम की दुकान पर जा बैठा. वहां वह अकसर बैठा करता था. उस की मां को वहां बैठने पर आपत्ति थी, क्योंकि उसे लगता था कि वही हकीम उसे उन के खिलाफ भड़काता है. शावेज ने असलम और एक दो ग्राहकों से भी अभद्र व्यवहार किया था.

वेश्या बाजार के वातावरण ने शावेज को नशे का आदी बना दिया था, वह जुआ भी खेलने लगा था. उस के खरचे बढ़ रहे थे, लेकिन उस की मां उसे खरचे भर के ही पैसे देती थी. वह जानबूझ कर लोगों से लड़ाईझगड़ा मोल लेता था. इसी चक्कर में वह कई बार थाने की यात्रा भी कर आया था, जिस की वजह से उस के मन से पुलिस का डर निकल गया था.

रात गए तक शावेज हकीम की दुकान के आगे बैठा रहा. जब बाजार बंद हुआ तो सुरैया को शावेज की चिंता हुई. मांबेटी उसे देखने आईं तो वह हकीम की दुकान पर बैठा मिला. दोनों उसे मना कर कोठे पर ले गई.

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उधर इकबाल को पता चला कि उस की बीवी और बेटी हुस्न के बाजार में बैठ कर उस की इज्जत का जनाजा निकाल रही हैं तो अपनी इज्जत बचाने के लिए वह परेशान हो उठा.

उस ने अपनी पत्नी सुरैया और बच्चों के घर से जाने की खबर पुलिस को नहीं दी थी. 8 सालों बाद एक दिन उस के एक जानने वाले ने सुरैया और उस की बेटी को कोठे पर बैठे देखा तो यह बात उसे बताई थी.

इकबाल चाहता तो पुलिस को सूचना दे कर उन्हें अपने साथ ले जा सकता था. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. हुस्न का बाजार जनरल बसस्टैंड के पास था. इकबाल ने वहां पास के एक होटल में कमरा लिया और शाम होने का इंतजार करने लगा.

शाम होते ही वेश्या बाजार सज गया. इकबाल ने कमरा लौक किया और रेडलाइट एरिया में आ गया. उसे सुरैया बेगम का कोठा ढूंढने में कोई परेशानी नहीं हुई.

मां बेटी दोनों सजसंवर कर ग्राहकों के इंतजार में बैठी थीं. इकबाल को देख कर दोनों पत्थर की मूर्ति बन गईं. दोनों उठीं और इकबाल को कमरे के अंदर आने के लिए इशारा किया.

इकबाल उन के पीछे कमरे में अंदर गया तो देखा शावेज टीवी देख रहा था. पिता को देख कर वह खड़ा हो गया. चारों एकदूसरे को देख रहे थे.

इकबाल ने कहा, ‘‘सुरैया, तुम ने इतनी छोटी गलती के लिए मुझे इतनी बड़ी सजा दी. तुम्हारे घर से निकलने के बाद मैं ने तुम्हारे लिए अपनी दूसरी पत्नी को भी छोड़ दिया. कहांकहां नहीं ढूंढा तुम्हें. शायद मैं यह दिन देखने के लिए जिंदा था. काश, मैं पहले ही मर गया होता.’’

इकबाल की आंखों से आंसू निकलने लगे. सुरैया के मन में पति का प्रेम उमड़ पड़ा. वह उस के आंसू पोंछने पास गई और गुजरी स्थितियों के बारे में बताने लगी. दोनों बच्चे भी अपने पिता से लिपट कर रो पड़े. उन सब को रोता देख चौधरी दारा अंदर आया तो इकबाल को देख कर ठिठक गया. सुरैया ने बताया कि यह उस के पति हैं.

जब सब रो चुके तो इकबाल ने सुरैया से घर चलने को कहा. लेकिन उस ने यह कह कर मना कर दिया कि अब वे शरीफ लोगों में नहीं जा सकते. हां, अगर शावेज जाना चाहे तो इसे ले जा सकते हो.

इकबाल अपनी बेटी शाहिदा से चलने को कहा तो उस ने मां के स्वर में स्वर मिलाया, ‘‘अब्बू, अम्मी ठीक कह रही हैं, मैं आप के साथ नहीं जा सकती.’’

जबकि शावेज ने अपने पिता से कहा, ‘‘अब्बू चलिए, मैं आप के साथ चलूंगा.’’

दोनों कमरे से निकल कर चले गए और होटल के कमरे पर आ गए. शावेज अपने पिता के साथ अपने आप को बहुत सुरक्षित महसूस कर रहा था. बाप बेटे अपनीअपनी कहानी सुनाते सुनाते सो गए. सुबह नाश्ता करने के बाद शावेज अपने पिता से इजाजत ले कर अपनी मां और बहन को समझा कर लाने के लिए चला गया. सुरैया ने शावेज को देख कर कहा, ‘‘एक रात भी नहीं काट सका अपने बाप के साथ?’’

इस पर शावेज बोला, ‘‘नहीं मां, यह बात नहीं है. तुम्हें इस सच्चाई का पता है कि यह सब तुम्हारा ही कियाधरा है. तुम ने ही हमें शराफत की दुनिया से निकाल कर इस गंदगी के ढेर पर ला पटका है.’’

शाहिदा ने गुस्से से फुफकारते हुए कहा, ‘‘यह भाषण देना बंद कर. अगर यहां रहना है तो शराफत से रह, नहीं तो अपना बोरियाबिस्तर उठा और जा यहां से.’’

‘‘तू अपनी बकवास बंद कर, मैं अम्मा से बात कर रहा हूं.’’

‘‘यह ठीक कह रही है शावेज, अगर तुझे यहां रहना है तो रह, नहीं तो मेरी भी सलाह यही है कि यहां से चला जा,’’ सुरैया ने कहा.

‘‘मां इतनी पत्थर दिल न बनो, अब्बू अपनी गलती पर बहुत शर्मिंदा हैं. अब वह भी तुम्हें ले जाने के लिए तैयार हैं. इस गंदगी से निकलो और मेरे साथ चलो.’’

इस पर शाहिदा बिफर पड़ी और चिल्ला कर उसे वहां से बाहर निकल जाने को कहा.

शावेज उस के इस व्यवहार से इतना दुखी हुआ कि वह तेजी से ऊपर वाले कमरे की ओर दौड़ा. वह वापस लौटा तो हाथ में चमकीली कटार लिए हुए था. सुरैया कुछ बोलती, इस से पहले ही उस ने कटार शाहिदा के पेट में भोंक दी. मां बचाने आई तो उस ने दूसरा वार मां पर कर दिया.

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दोनों फर्श पर गिर कर तड़पने लगीं, वह तब तक वहां खड़ा रहा, जब तक वे ठंडी नहीं हो गईं. जब उसे यकीन हो गया कि दोनों जीवन की बाजी हार चुकी हैं तो कटार हाथ में लिए वह बाहर निकल गया. उस पर जिस की भी नजर पड़ी, वह इधरउधर छिप गया.

बाहर आ कर शावेज ने तांगा रोका और उस में बैठ कर सीधा थाने पहुंचा. वहां इंसपेक्टर मौजूद था. शावेज ने खूनसनी कटार इंसपेक्टर की मेज पर रख कर अपनी मां और बहन की हत्या के बारे में बता कर अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पोस्टमार्टम के बाद इकबाल मां बेटी की लाशों को अपने घर ले गया और अपने बेटे के खिलाफ थाने में हत्या की तहरीर लिख कर दे दी. इस तरह एक व्यक्ति की गलती की वजह से हंसता खेलता पूरा परिवार बरबाद हो गया.

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बदले की आग: भाग 2- क्या इकबाल बेटी और पत्नी को बचा पाया

लेखक- जावेद राही

‘‘कालबैल बजाने के थोड़ी देर बाद एक लड़की ने दरवाजा खोला. मैं ने अनुमान लगा लिया कि यही वह लड़की है, जिस ने मेरे जीवन में जहर घोला है. वह भी समझ गई कि मैं इकबाल की पत्नी हूं. उस ने मुझे अंदर आने को कहा. मैं अंदर गई, कमरे में सामने इकबाल की बड़ी सी फोटो लगी थी, उसे देखते ही मेरे शरीर में आग सी लग गई.

‘आपी, मैं ने उन से कई बार कहा कि वह अपने बच्चों के पास जा कर रहें, लेकिन वह मुझे डांट कर चुप करा देते हैं.’ उस ने कहा. इस के बाद उस ने मुझे पीने के लिए कोक दी.

‘‘मैं ने उस के पहनावे पर ध्यान दिया, वह काफी महंगा सूट पहने थी और सोने से लदी थी. इस से मैं ने अनुमान लगाया कि इकबाल उस पर दिल खोल कर खर्च कर रहे हैं. जबकि हमें केवल गुजारे के लिए ही पैसे देते हैं. उस ने अपना नाम नाहिदा बताया.

मैं ने कहा, ‘देखो नाहिदा, तुम इकबाल को समझाओ कि वह तुम्हें ले कर घर में आ कर रहें. हम सब साथसाथ रहेंगे. बच्चों को उन की बहुत जरूरत है. उस ने कहा, ‘आपी, मैं उन्हें समझाऊंगी.’

‘‘उस से बात कर के मैं घर आ गई. जो आंसू मैं ने रोक रखे थे, वह घर आ कर बहने लगे. शाम को इकबाल का फोन आया. उन्होंने मुझे बहुत गालियां दीं, साथ ही कहा कि मेरी हिम्मत कैसे हुई उन का पीछा करने की. मैं ने 2-3 बार उन्हें फोन किया, उन्होंने केवल इतना ही कहा कि उन्हें मेरे ऊपर भरोसा नहीं है. बच्चों के बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें शक है कि ये उन के बच्चे नहीं हैं. फिर मैं ने सोच लिया कि अब मुझे उन के साथ नहीं रहना. वह पत्थर हो चुके हैं.’’

इतना कह कर सुरैया सिसकियां भरभर कर रो पड़ी. अक्को और उस की मां ने कहा, ‘‘आप रोएं नहीं, जब तक आप का दिल चाहे, आप यहां रहें, आप को किसी चीज की कमी नहीं रहेगी.’’

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जिस आबादी में अक्को कुली का घर था, उस के आखिरी छोर पर नई आबादी थी. वह रेडलाइट एरिया था. गरमियों के दिन थे, छत पर चारपाइयां लगा दी जातीं. सब लोग छत पर ही सोते थे. शाम होते ही नई आबादी में रोशनी हो जाती, संगीत और घुंघरुओं की आवाज पर सुरैया बुरी तरह चौंकी.

अक्को ने बताया कि ये रेडलाइट एरिया है, यहां शाम होते ही नाचगाना शुरू हो जाता है. मोहल्ले वालों ने बहुत कोशिश की कि रेडलाइट एरिया यहां से खत्म हो जाए, लेकिन किसी की नहीं सुनी गई. अब हमारे कान तो इस के आदी हो गए हैं.

ऊपर छत पर खड़ेखड़े बाजार में बैठी वेश्याएं और आतेजाते लोग दिखाई देते थे. शाहिदा ने वहां का नजारा देख कर एक दिन अपने भाई शावेज से पूछा, ‘‘भाई, इन दरवाजों के बाहर कुरसी पर जो औरतें बैठी हैं, वे क्या करती हैं? कभी दरवाजा बंद कर लेती हैं तो थोड़ी देर बाद खोल देती हैं. फिर किसी दूसरे के साथ अंदर जाती हैं और फिर दरवाजा बंद कर लेती हैं.’’

शावेज ने जवाब दिया, ‘‘मुझे क्या पता, होगा कोई उन के घर का मामला.’’

उस समय शावेज भी खुलते बंद होते दरवाजों को देख रहा था. सुरैया भी यह सब रोजाना देखती थी, कुछ इस नजरिए से मानो कोई फैसला करना चाहती हो. जो पैसे वह अपने साथ लाई थी, धीरेधीरे वे खत्म हो रहे थे. बस कुछ जेवरात बाकी थे, जिन में से एक लौकेट और चेन बिक चुकी थी.

एक दिन अक्को कुली और सुरैया छत पर बैठे दीवार के दूसरी ओर उन दरवाजों को खुलता और बंद होते देख रहे थे. तभी सुरैया ने पूछा, ‘‘अक्को, धंधा करने वाली इन औरतों को पुलिस नहीं पकड़ती?’’

अक्को ने बताया कि उन्हें सरकार की ओर से धंधा करने का लाइसेंस दिया गया है. उन्हें लाइसेंस की शर्तों पर ही काम करना होता है.

सुरैया ने पूछा, ‘‘अक्को, क्या तुम कभी उधर गए हो?’’

‘‘एकआध बार अनजाने में उधर चला गया था, लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रही हो?’’ अक्को ने आश्चर्य से पूछा.

सुरैया कहने लगी, ‘‘मेरे अंतरमन में एक अजीब सी लड़ाई चल रही है. मैं इकबाल को यह बताना चाहती हूं कि औरत जब बदला लेने पर आ जाए तो सभी सीमाएं लांघ सकती है.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं?’’ अक्को चौंका.

‘‘मैं इस बाजार की शोभा बनना चाहती हूं.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है?’’ अक्को ने साधिकार उसे डांटते हुए कहा.

‘‘अक्को तुम मेरे जीवन के उतारचढ़ाव को नहीं जानते. मैं ने इकबाल के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया. उस की खूब सेवा भी की और इज्जत भी बना कर रखी. लेकिन उस ने मुझे क्या दिया?’’ सुरैया की आवाज भर्रा गई.

अक्को ने उसे सांत्वना दे कर पूछा, ‘‘तुम अपनी सोच बताओ, फिर मैं तुम्हें कोई सलाह दूंगा.’’

वह कुछ सोच कर बोली, ‘‘मैं शाहिदा को नाचनागाना सिखाना चाहती हूं.’’

अक्को कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘अच्छा, मैं इस बाजार के चौधरी दारा से बात करूंगा.’’

अगले दिन उस ने दारा से बात कर के सुरैया को उस से मिलवा दिया. शाहिदा के भोलेपन, सुंदरता और सुरैया की भरपूर जवानी ने दारा के दिल पर भरपूर वार किया. उस ने चालाकी से अपना घर उन के लिए पेश कर दिया और थाने जा कर सुरैया और शाहिदा का वेश्या बनने का प्रार्थना पत्र जमा कर दिया.

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कुछ ही दिनों में मां बेटी ने उस इलाके के जानेमाने उस्तादों से नाचनेगाने की ट्रेनिंग ले ली. पहली बार मां बेटी सजधज कर कोठे पर बैठीं तो लोगों की भीड़ लग गई. शाहिदा की आवाज में जादू था, फिर पूरे बाजार में यह बात मशहूर हो गई कि यह किसी बड़े घर की शरीफ लड़की है, जिस ने अपनी इच्छा से वेश्या बनना पंसद किया है. दारा चूंकि शाहिदा को अपनी बेटी बना कर कोठे पर लाया था, इसलिए दोनों की इज्जत थी.

पूरे शहर में शाहिदा के हुस्न के चर्चे थे. देखतेदेखते बड़ेबड़े रईसजादे उस की जुल्फों में गिरफ्तार हो गए. जब शाहिदा अपनी आवाज का जादू चला तो नोटों के ढेर लग जाते. उस के एक ठुमके पर नोट उछलउछल कर दीवारों से टकरा कर गिरने लगते.

शाहिदा के भाई शावेज के खून में बेइज्जती तो आ गई थी, लेकिन जब कभी उस के शरीर में खानदानी खून जोश मारने लगता तो वह अपनी मांबहन से झगड़ने लगता. लेकिन वे दोनों उस की एक भी नहीं चलने देती थीं.

शाहिदा की नथ उतराई की रस्म शहर के बहुत बड़े रईस असलम के हाथों हुई, जिस के एवज में लाखों की रकम हाथ लगी. असलम जब आता, ढेरों सामान ले कर आता. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. असलम शहर का बदमाश भी था. बातबात पर वह रिवौल्वर निकाल लेता था, लेकिन वही असलम शाहिदा के पैरों की मिट्टी चाटने लगता था.

एक दिन दबी जुबान से असलम ने उस की मां से शाहिदा को कोठे पर मुजरा न करने के लिए कहा तो उस की मां ने कहा, ‘‘उतर जाओ इस कोठे से, तुम से बढ़ कर सैकड़ों धनवान है मेरी शाहिदा के चाहने वाले. अब कभी इस कोठे पर आने की हिम्मत भी न करना.’’

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बदले की आग: भाग 1- क्या इकबाल बेटी और पत्नी को बचा पाया

लेखक- जावेद राही

पूरा प्लेटफार्म रोशनी में नहाया हुआ था. कराची एक्सप्रेस अभी अभी आई थी, जो यात्रियों को उतार कर आगे बढ़ गई थी. प्लेटफार्म पर कुछ यात्रियों और स्टेशन स्टाफ के अलावा काली चादर में लिपटी अपनी 10 वर्षीया बेटी और 8 वर्षीय बेटे के साथ एक जवान औरत भी थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किसी की प्रतीक्षा कर रही हो. अक्की अकबर उर्फ अक्को कुली उस के पास से दूसरी बार उन्हें देखते हुए उधर से गुजरा तो उस महिला ने उसे इशारा कर के अपने पास बुलाया.

अक्को मुड़ा और उस के पास जा कर मीठे स्वर में पूछा, ‘‘जी, आप को कौन सी गाड़ी से जाना है?’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना, मैं ने तो केवल यह पूछने के लिए बुलाया है कि यहां चाय और खाने के लिए कुछ मिल जाएगा?’’

‘‘जी, बिलकुल मिल जाएगा, केक, रस, बिस्किट वगैरह सब कुछ मिल जाएगा.’’ अक्को ने उस महिला की ओर ध्यान से देखते हुए कहा.

गोरेचिट्टे रंग और मोटीमोटी आंखों वाली वह महिला ढेर सारे गहने और अच्छे कपड़े पहने थी. वह किसी अच्छे घर की लग रही थी. दोनों उस से लिपटे हुए थे. महिला के हाथ से सौ रुपए का नोट ले कर वह बाहर की ओर चला गया. कुछ देर में वह चाय और खानेपीने का सामान ले कर आ गया. चाय पी कर महिला बोली, ‘‘यहां ठहरने के लिए कोई सुरक्षित मकान मिल जाएगा?’’

महिला की जुबान से ये शब्द सुन कर अक्को को लगा, जैसे किसी ने उछाल कर उसे रेल की पटरी पर डाल दिया हो. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘जी, मैं कुछ समझा नहीं?’’

‘‘मैं अपने घर से दोनों बच्चों को ले कर हमेशा के लिए यहां आ गई हूं.’’ उस ने दोनों बच्चों को खुद से सटाते हुए कहा.

‘‘आप को यहां ऐसा कोई ठिकाना नहीं मिल सकता. हां, अगर आप चाहें तो मेरा घर है, वहां आप को वह सब कुछ मिल जाएगा, जो एक गरीब के घर में होता है.’’ अक्को ने कुछ सोचते हुए अपने घर का औफर दिया.

महिला कुछ देर सोचती रही, फिर अचानक उस ने चलने के लिए कह दिया. अक्को ने उस की अटैची तथा दोनों बैग उठाए और उन लोगों को अपने पीछे आने को कह कर चल दिया.

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मालगोदाम वाला गेट टिकिट घर के पीछे था, जहां लोगों का कम ही आनाजाना होता था. महिला को उधर ले जाते हुए उसे कोई नहीं देख सकता था. अक्को ने वही रास्ता पकड़ा. बाहर आ कर उस ने एक औटो में सामान रखा और महिला के बेटे को अपनी गोद में ले कर अगली सीट पर बैठ गया.

औटो चल पड़ा. रेलवे फाटक पार कर के अक्को ने औटो वाले से टैक्सी वाली गली में चलने को कहा. उस गली में कुछ दूर चल कर रास्ता खराब था, जिस की वजह से औटो वाले ने हाथ खड़े कर दिए. अक्को सामान उठा कर पैदल ही उन सब को अपने घर ले गया. दरवाजे पर पहुंच कर उस ने आवाज लगाई, ‘‘अम्मा.’’

अंदर से कमजोर सी आवाज आई, ‘‘आई बेटा.’’

मां ने दरवाजा खोला. पहले उस ने अपने बेटे को देखा, उस के बाद हैरानी भरी निगाह उन तीनों पर जम गई. अक्को सामान ले कर अंदर चला गया. वह एक छोटा सा 2 कमरों का पुराने ढंग का मकान था. इस घर में मां बेटे ही रह रहे थे. बहन की शादी हो चुकी थी, पिता गुजर गए थे.

बाप कुली था, इसलिए बाप के मरने के बाद बेटे ने लाल पगड़ी पहन ली थी और स्टेशन पर कुलीगिरी करने लगा था. मां ने महिला और उस के दोनों बच्चों के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और अक्को की ओर देखने लगी.

अक्को ने कहा, ‘‘मां, ये लोग कुछ दिन हमारे घर मेहमान बन कर रहेंगे.’’

मां उन लोगों की ओर देख कर बोली, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, मेहमानों के आने से तो घर में रौनक आ जाती है.’’

सुबह हो चुकी थी, अक्को ने मां से कहा, ‘‘अम्मा, तुम चाय बनाओ, मैं नाश्ते का सामान ले आता हूं.’’

कुछ देर में वह सामान ले आया. मां, बेटे और बेटी ने नाश्ता किया. अक्को ने अपना कमरा मेहमानों को दे दिया और खुद अम्मा के कमरे में चला गया. नाश्ते के बाद तीनों सो गए.

मां ने अक्को को अलग ले जा कर पूछा, ‘‘बेटा, ये लोग कौन हैं, इन का नाम क्या है?’’

उस ने जवाब दिया, ‘‘मां, मुझे खुद इन का नाम नहीं मालूम. ये लोग कौन हैं, यह भी पता नहीं. ये स्टेशन पर परेशान बैठे थे. छोटे बच्चों के साथ अकेली औरत कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाए, इसलिए मैं इन्हें घर ले आया. अम्मा तुम्हें तो स्टेशन का पता ही है, कैसेकैसे लोग आते हैं. किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता.’’

‘‘बेटे, तुम ने यह बहुत अच्छा किया, जो इन्हें यहां ले आए. खाने के बाद इन से पूछेंगे.’’

दोपहर ढलने के बाद वे जागे. कमरे की छत पर बाथरूम था, तीनों बारीबारी से नहाए और कपड़े बदल कर नीचे आ गए. मां ने खाना लगा दिया. आज काफी दिनों बाद उन के घर में रौनक आई थी. सब ने मिल कर खाना खाया.

खाने के बाद महिला ने मां से कहा, ‘‘मेरा नाम सुरैया है, बेटे का नाम शावेज और बेटी का शाहिदा. हम बहावलपुर के रहने वाले हैं. मेरे पति का नाम मोहम्मद इकबाल है. वह सरकारी दफ्तर में अफसर हैं.’’ कह कर सुरैया मां के साथ बरतन साफ करने लगी. इस के बाद उस ने खुद ही चाय बनाई और चाय पीते हुए बोली, ‘‘आप की बड़ी मेहरबानी, जो हमें रहने का ठिकाना दे दिया.’’

मां ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटी, जिस ने पैदा किया है, वह रहने का भी इंतजाम करता है और खाने का भी. लेकिन यह बताओ बेटी कि इतना बड़ा कदम तुम ने उठाया किस लिए?’’

‘‘मां जी, मेरे साथ जो भी हुआ, वह वक्त का फेर था. मेरे साथसाथ बच्चे भी घर से बेघर हो गए. मेरे पति और मैं ने शादी अपनी मरजी से की थी. मेरे मां बाप मेरी मरजी के आगे कुछ नहीं बोल सके. शादी के कुछ सालों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन धीरेधीरे पति का रवैया बदलता गया.’’

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थोड़ा रुक कर वह आगे बोली, ‘‘शाहिदा के बाद शावेज पैदा हुआ. इस के जन्म के कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि इकबाल ने दूसरी शादी कर ली है. मैं ने एक दिन उन से कहा, ‘तुम ने दूसरी शादी कर ली है तो उसे घर ले आओ. हम दोनों बहनें बन कर रह लेंगे. तुम 2-2 दिन घर नहीं आते तो बच्चे पूछते हैं, मैं इन्हें क्या जवाब दूं?’

‘‘उस ने कुछ कहने के बजाए मेरे मुंह पर थप्पड़ मारने शुरू कर दिए. उस के बाद बोला, ‘मैं ने तुम्हें इतनी इजाजत नहीं दी है कि तुम मेरी निजी जिंदगी में दखल दो. और हां, कान खोल कर सुन लो, तुम अपने आप को अपने बच्चों तक सीमित रखो, नहीं तो अपने बच्चों को साथ लो और मायके चली जाओ.’

‘‘इस के बाद इकबाल अपना सामान ले कर चला गया और कई दिनों तक नहीं आया. फोन भी नहीं उठाता था. एकदो बार औफिस का चपरासी आ कर कुछ पैसे दे गया. काफी छानबीन के बाद मैं ने पता लगा लिया कि उन की दूसरी बीवी कहां रहती है. बच्चों को स्कूल भेज कर मैं उस के फ्लैट पर पहुंच गई.

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