फिल्म ‘बुलबुल’ में बंगाल के जमींदार पत्नी की भूमिका निभाकर चर्चित होने वाली अभिनेत्री तृप्ति डिमरी उत्तराखंड की है, लेकिन उसकी पढाई दिल्ली में हुई. उसे बचपन से अभिनय पसंद था. मॉडलिंग से उसने अपने कैरियर की शुरुआत की और फिल्मों में आई. लॉक डाउन में तृप्ति ने खाना बनाना, फिल्में देखना, किताबें पढना आदि किया है और अपने परिवार के साथ समय बिता रही है. स्वभाव से नम्र और हंसमुख तृप्ति आज ओटीटी प्लेटफार्म पर अपनी फिल्म की वजह से पोपुलर हो चुकी है. वह आजकल डिजिटल पर प्रसंशकों की तारीफे पढ़ती है और खुश होती है. गृहशोभा के लिए उसने ख़ास बात की पेश है कुछ अंश.
सवाल-‘बुलबुल’ फिल्म इतनी सफल होगी, क्या आपने सोचा था ?
ये फिल्म इतनी सफल होगी मुझे पता नहीं था. मुझे ख़ुशी इस बात से हो रही है कि लोग हमारी बात को समझ रहे है, जो हमने उस फिल्म के ज़रिये कहने की कोशिश की है. इसमें सबके काम की तारीफ की जा रही है. शुरू में कहानी रूचिकर लगी थी, ये सोचकर हाँ कर दी थी.
सवाल-महिलाओं की भावनाओं की कद्र आज भी नहीं की जाती, इसकी वजह क्या मानती है?
मेरे हिसाब से ये परिवार से ही शुरू होता है. महिलाओं को सम्मान देने और उनकी भावनाओं को कद्र देने की सीख उनके माता-पिता ही दे सकते है. मेरे परिवार में मेरे पेरेंट्स ने बचपन से समान अवसर दिया है. अगर भाई बाहर जा सकता है तो मैं भी बाहर जा सकती हूं. बराबरी की ये आदत बचपन से ही बच्चे को घर में दी जानी चाहिए. लिंग भेद उनमें नहीं आनी चाहिए, क्योंकि बचपन की सीख ही उन्हें एक अच्छा इंसान बनाती है, ऐसा होने पर हर घर में समस्या आधी हो जाएगी.
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सवाल-इस फिल्म में जमींदार की पत्नी की भूमिका निभाने के लिए कितनी तैयारियां की?
निर्देशक अन्विता दत्त के साथ काम करते हुए ही सब कुछ सीखा है, उन्होंने पहले ही कह दिया था कि अभिनय आसान नहीं है. मेरे पास तैयारी के लिए दो महीने थे. उस समय मैंने निर्देशक के साथ मिलकर चरित्र को समझने की कोशिश की. इसमें मेरी दो भूमिका है, ,जिसमें जमींदारिन की भूमिका निभाना मेरे लिए कठिन था, क्योंकि उस किरदार से मैं काफी दूर हूं. वह चरित्र काफी संभला हुआ स्थिर चरित्र है. मेहनत अधिक करनी पड़ी. किरदार की तरह बोलना, सोचना, चलना आदि सीखा और उस चरित्र को आत्मसात किया.
सवाल-अभिनय में आना एक इत्तफाक था या बचपन से ही सोचा था?
हर इन्सान के अंदर अभिनय करने की इच्छा होती है. मेरे अंदर भी थी, पर बड़े पर्दे पर कर पाऊँगी सोचा नहीं था, क्योंकि पूरे परिवार से कोई भी फिल्म इंडस्ट्री में नहीं था. मन था पर सोचा नहीं था. तैयारी भी नहीं किया. मेरे भाई के एक दोस्त ने मेरी फोटोग्राफी की. मेरी तस्वीर उसने कई एजेंसियों में भेज दी. मैं चुन ली गयी और धीरे-धीरे मॉडल और अब एक्टर बनी. मैं सही समय पर सही जगह पहुँच जाती थी और चीजें होती जाती थी. पोस्टर बॉयज के समय मुझे एक्टिंग नहीं आती थी और मैं कुछ अलग करने की कोशिश कर रही थी. मैने फिल्म किया, लेकिन लैला मजनू के समय मैने एक्टिंग क्लासेस लिया और एक्टिंग से मुझे प्यार हो गया.
सवाल-परिवार का सहयोग कितना था?
परिवार का सहयोग पहले नहीं था, क्योंकि उन्हें लगता था कि अकेली लड़की मुंबई जाकर कैसे रहेगी. वे डरे हुए थे. फिल्म पोस्टर बॉयज को देखने के बाद उन्हें लगा कि लड़की सही दिशा में जा रही है. वे कभी नहीं चाहते थे कि मैं इस इंडस्ट्री में आकर संघर्ष करूँ और अपना समय बर्बाद करूँ, पर आज वे खुश है. मुझसे अधिक उत्साहित वे मेरे किसी भी फिल्म के लिए रहते है.
सवाल-लॉक डाउन का फायदा ओटीटी प्लेटफॉर्म को मिला है, कलाकारों को कितना फायदा हुआ है?
आज कलाकार को फायदा अधिक है, क्योंकि ओ टी टी की वजह से आधे से अधिक कलाकारों की जिंदगी सुधर गयी है. शुरू में मैं जब मुंबई आई थी और लोगों से मिलती थी तो लोग कहते थे कि काम यहाँ नहीं है, पर अब सब व्यस्त है. काम अब अधिक हो रहा है. सबको काम मिल रहा है. कलाकारों को एक्स्प्लोर करने का अधिक मौका मिल रहा है. सिनेमा हॉल का मज़ा अलग है, उसके खुलने का इंतज़ार है, क्योंकि हर कलाकार अपने आप को बड़े पर्दे पर देखना चाहता है. लॉक डाउन में डिजिटल प्लेटफॉर्म होने की वजह से लोगों को मनोरंजन मिल रहा है. नहीं तो मुश्किलें और अधिक होती.
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सवाल-डिजिटल पर सर्टिफिकेशन नहीं होती, ऐसे में निर्माता, निर्देशक की जिम्मेदारी कितनी होती है कि वे ऐसे फिल्म बनांये, जिसे परिवार के सभी देख सके?
आज़ादी होने पर कुछ भी बना देना सही नहीं. स्टोरी पर फोकस करने की जरुरत है. बिना जरुरत के कुछ भी दिखा देना सही नहीं. मेरी फिल्म में भी काफी इंटिमेट सीन्स है, जिसके लिए काफी लोगों ने मुझे कहा भी है कि ये दृश्य देखना उनके लिए कठिन था,पर स्टोरी के वह जरुरी था, क्योंकि उसके बाद लड़की की जिंदगी बदल जाती है. जिसके बाद से वह ठान लेती है कि वह किसी को अपने उपर हुक्म चलाने नहीं देगी. हमारे समाज में घटित फैक्ट को दिखाने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.
सवाल-फिल्मों में अन्तरंग दृश्य करने में आप कितनी सहज होती है?
अगर कोई दृश्य फिल्म के लिए जरुरत है तो उसे करने में कोई समस्या नहीं. दर्शकों के मनोरंजन के लिहाज से डाले गए अन्तरंग दृश्य करने में सहज नहीं.
सवाल-गृहशोभा के ज़रिये क्या मेसेज देना चाहती है?
मेरे हिसाब से ये बहुत अच्छा समय है, क्योंकि पहली बार लॉक डाउन की वजह से सारे परिवार साथ में मिलकर काम कर रहे है. जितना हो सके इस समय को हंसते-हँसते अपने परिवार के साथ बिताएं. ये मौका बार-बार नहीं मिलेगा. अभी बाहर बहुत समस्या है. लोगों को दो वक़्त पेट भर खाना मिलना मुश्किल हो रहा है, ऐसे में अगर मुझे वह मिल रहा है तो हम लकी है. खुश रहिये.