REVIEW: दिल को छू लेने वाली खूबसूरत कथा ‘दरबान’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः बिपिन नाडकर्णी और योगेश  बेल्डर

निर्देशकः बिपिन नाडकर्णी

कलाकारः शारिब हाशमी, शरद केलकर,  हर्ष छाया, रसिका दुग्गल, फ्लोरा सैनी, सुनीता सेन गुप्ता व अन्य.

अवधिः एक घंटा 28 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

रवींद्र नाथ टैगोर की एक लघु कहानी पर 1960 में बंगला फिल्म ‘‘खोकाबाबू प्रत्यावर्तन’’बनी थी, उसी पर मराठी भाषी फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजे जा चुके फिल्मकार बिपिन नाडकर्णी हिंदी फिल्म ‘‘दरबान’’लेकर आए हैं, जिसमें कई मनोवैज्ञानिक व समाजशास्त्रीय सवाल अनुत्तरित रह गए हैं. पर रिश्तों के भावनात्मक पक्ष के साथ नौकर आखिर सेवा करने के लिए बना होता है, इस बात को रेखांकित करने वाली कहानी बनकर रह गयी है. यह कहानी उस इंसान की है, जो कि  रिश्तों के लिए अपनी भावनाओं का त्याग करता है.

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कहानीः

कहानी 1971 में शुरू होती हैं और कहानी के केंद्र में रायचरण उर्फ रायचू हैं. जब रायचरण बारह वर्ष के थे, तभी उनकी शादी हो गयी थी और उन्हे शहर में कोयले की खदान के मालिक नरेन त्रिपाठी(हर्ष छाया) ने अपने घर पर नौकर की नौकरी दे दी थी. नरेन त्रिपाठी व सुषमा(सुनीता सेन गुप्ता) के बेटे अनुकूल की चडढी बदलने से लेकर उसके साथ खेलना व उसकी परवरिश करना रायचरण का काम था. नरेन व सुषमा ने रायचरण को कभी भी नौकर नहीं समझा और रायचरण( शारिब हाशमी) ने कभी भी नरेन को मालिक नही समझा. मगर अचानक सरकार ने कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण कर उन्हे अपने अधिकार में ले लिया, तब नरेन ने सभी नौकरों को निकाल दिया. अपनी हवेली बेच दी और कहीं छोटी जगह रहने चले गए. रायचरण अपने गॉंव अपनी पत्नी भूरी(रसिका दुग्गल)के पास आ गए और खेती करने लगा. बीस साल का वक्त बीत जाता है. पर रायचरण पिता नही बन पाते हैं. उधर अनुकूल(शरद केलकर) बड़े होकर पुलिस अफसर बन चुके हैं. उनकी रूचा से शादी हो चुकी है. अनुकूल के पिता की मौत हो चुकी है. पर मां सुषमा है और अनुकूल ने अपने पिता की हवेली को फिर से खरीद लिया है. एक दिन अनुकूल, रायचरण के गॉव पहुंचकर उसे पुनः हवेली बुला लाते हैं और अब रायचरण, अनुकूल के बेटे सिद्धांत उर्फ सिद्धू की देखभाल करने लगते हैं. सिद्धू,  रायचरण को चन्ना बुलाता है. अनुकूल को रायचरण पर पर अटूट विश्वास है, मगर रूचा(फ्लोरा सैनी) को नहीं है. एक दिन जब घर पर मेहमान आते हैं, तो रायचरण, सिद्धू को घुमाने नदी किनारे के गार्डेन मंे ले जाते हैं, जहां सिद्धू गायब हो जाता है. बारिश भी शुरू हो जाती है. रायचरण अपनी तरफ से उसे ढूढ़ते हैं, पर नहीं मिलता. पुलिस प्रशासन भी सिद्धू को तलाशने में नाकाम होता है. रूचा, रायचरण पर सिद्धू को चुराने का आरोप लगाती है. पुलिस रायचरण को पकड़कर ले जाने लगती है, पर अनुकूल कहते हंै कि इसे छोड़ दो. उसके बाद रायचरण पुनः अपने गॉंव आ जाते हैं. पर अब किसी से मोह नहीं रहा. वह खेती करने के अलावा खुद को व्यस्त रखने के लिए नौकरी भी करने लगते हैं. दो वर्ष बीत जाते हैं. उसके बाद रायचरण की पत्नी भूरी एक बेटे को जन्म देकर मर जाती हैं. रायचरण अपने बेटे की तरफ ध्यान नहीं देता. रायचरण की बहन ही उसकी देखभाल करती है. एक दिन रायचरण का बेटा उन्हे चन्ना कहकर बुलाता है, तो रायचरण को लगता है कि सिद्धू वापस आ गया और वह उसे सिद्धू उर्फ छोटे बाबा कहकर परवरिश करते हैं. उसे अंग्रजी माध्यम में पढ़ने भेजते है. दस साल बीत जाते हैं. एक दिन नरेन का पुराना ड्रायवर शिवदयाल मिल जाता है. वह कहता है कि रायचरण का बेटा उसका नही बल्कि अनुकूल का है, जिसे उसने चुरा लिया है. तब अपने खेत बेचकर रातो रात बेटे सिद्धू के साथ रायचरण गंगटोक पहुंच जाते हैं. वहां एक दिन स्कूल के प्रिंसिपल रायचरण को बुलाकर बताते हैं कि उनका बेटा पढ़ने में बहुत तेज है और अब उसे सोचना चाहिए कि उसे पढ़ने के लिए अमरीका, इंग्लैड या कहां भेजे?  प्रिंसिपल की बात सुनकर घर की तरफ जा रहे रायचरण सोच में पड़ जाते हैं कि इस स्कूल की फीस तो वह बामुश्किल दे पा रहे हैं, ऐसे मंे वह सिद्धू को अमरीका पढ़ने कैसे भेज सकते हैं. तभी फिर से शिवदयाल मिल जाते हैं और वह सड़क पर सिद्धू व अन्य लोगों के सामने रायचरण पर चोरी का आरोप लगाते हैं. भीड़ के सामने रायचरण रोते हुए कहते हैं कि वह चोर नहीं है, सिद्धू उनका अपना बेटा है. पर रात में वह एक निर्णय लेकर अनुकूल व रूचा को सिद्धू सौंप कर खुद को चोर बता देते हैं. अनुकूल उसे रूकने के लिए नहीं कहते. रायचरण वापस बनारस जाकर एक अनाथाश्रम में दरबान की नौकरी करने लगते हैं.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मकार ने इस बात को बड़ी शिद्दत से उकेरा है कि सेवा और सेवाभक्ति कभी नही बदलती. मगर फिल्मकार ने इसमें इस मनोवैज्ञानिक पहलू पर ध्यान नही दिया कि आखिर रायचरण क्यों नौकर बनने दुबारा आते है. जबकि उसके पास गांव में अच्छी खेती है और नौकरी भी कर रहे हैं. इतना ही नही उसे पैसों की खास जरुरत भी नही है. फिल्म के कई दृश्य ऐसे है जो कि दर्शक की आंखें गीली कर देते हैं. फिल्मकार चाहते तो रायचरण का किरदार सामंती व्यवस्था के लिए अपनी वफादारी को लेकर सवाल उठा सकता थे और कहानी ज्यादा रोचक हो सकती थी, पर रायचरण तीन पीढ़ियों तक ऐसे ही चिपके रहते हैं. फिल्मकार ने रवींद्र नाथ टैगोर की अतिशयोक्तिपूर्ण निष्ठा, पहचान, मान मनोविज्ञान का रायचरण के किरदार के साथ चित्रित करने का सफल प्रयास किया है. और इस किरदार में शारिब हाशमी का चयन कर वह आधे से ज्यादा लड़ाई पहले ही जीत लेते हैं. नरेन व उनके परिवार की सेवा के चलते रायचरण जिस तरह अपनी पत्नी की उपेक्षा करते हैं, उस पक्ष को इस फिल्म में जगह नहीं दी गयी है. फिल्मकार ने नरेन व रायचरण के बीच के संबंधो को परदे पर चित्रित करने की बनिस्बत सूत्रधार अन्नू कपूर से शब्दों में कहला दिया है. यह लेखक व निर्देशक दोनों की कमजोरी है. फिर भी बिपिन नाडकर्णी की स्वाभाविक निर्देशकीय शैली अच्छी है.  लेखन की कमजोरी के चलते इसमें वह गहराई नही आ पायी, जो आनी चाहिए थी.

कैमरामैन अमलेंदु चैधरी की तारीफ करनी पड़ेगी. उन्होने झरिया,  झारखंड और गंगटोक,  सिक्किम के कुछ दृश्य कैमरे के माध्यम से काफी बेहतर पकड़े हैं.

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अभिनयः

‘एक घरेलू नौकर के किरदार में शारिब हाशमी का अभिनय दिल को छू लेने वाला है. उन्होने रायचू की भावभंगिमआों को बहुत सटीक अपने अभिनय से उतारा है. अनुकूल के बेटे के खो जाने के बाद अनुकूल और खासकर उनकी पत्नी रूचा का व्यवहार रायचरण की मानसिक स्थिति  को प्रभावित करती है, उसका जीवंत चित्रण शारिब हाशमी ने अपने अभिनय से किया है. ‘किस्सा’, ‘मंटो’ और ‘मिर्जापुर’में अपने अभिनय से लोगों के दिलों मे जगह बना चुकी रसिका दुग्गल ने भूरी के छोटे से किरदार में जान डाल दी है. लोगों को उनका अभिनय याद रह जाता है. शरद केलकर और हर्ष छाया की प्रतिभा कोजाया किया गया है. दोनों बाल कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है, यह दोनों बाल कलाकार बधाई के पात्र हैं.

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