डिप्रेशन से कैसे करें डील?

WHO के अनुसार, अवसादग्रस्तता विकार (जिसे डिप्रेशन भी कहा जाता है) एक सामान्य मानसिक विकार है. इसमें उदास मनोदशा या लंबे समय तक गतिविधियों में आनंद या रुचि की हानि शामिल है.

डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है. जो लोग दुर्व्यवहार, गंभीर नुकसान या अन्य तनावपूर्ण घटनाओं से गुज़रे हैं उनमें अवसाद विकसित होने की संभावना अधिक होती है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अवसाद होने की संभावना अधिक होती है.

डिप्रेशन के कुछ लक्षण, जिनमें शामिल हो सकते हैं:

  •  कमज़ोर एकाग्रता
  • कम आत्मसम्मान की भावनाएँ
  •  भविष्य के प्रति निराशा
  • मरने या आत्महत्या के बारे में विचार
  • नींद में खलल
  • भूख या वजन में परिवर्तन
  • बहुत अधिक थकान या ऊर्जा की कमी महसूस होना।

डिप्रेशन या अवसाद से कुछ इस तरह लड़ा जा सकता है:

  1. किसी थेरेपिस्ट से बात करें

एक चिकित्सक के साथ काम करना अक्सर डिप्रेशन को सफलतापूर्वक प्रबंधित करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. मनोचिकित्सा लोगों को उनकी जीवनशैली को संभव तरीकों से समायोजित करने, उनके तनाव को कम करने और तनाव से निपटने में मदद करने पर ध्यान केंद्रित करती है.जिन मुद्दों को आप मिलकर संबोधित कर सकते हैं उनमें ये हैं कि अपने आत्म-सम्मान को कैसे सुधारें, नकारात्मक से सकारात्मक सोच की ओर कैसे जाएं और तनाव प्रबंधन का अभ्यास कैसे करें.

2. लेखन में स्वयं को अभिव्यक्त करें 

जर्नल में लिखना एक बेहतरीन थेरेपी है और यह अवसाद को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है. आप अपने लेखन में अपने विचारों, भावनाओं और चिंताओं के बारे में खुलकर बात करके तनाव से राहत पा सकते हैं. अपनी निजी पत्रिका में पूरी तरह ईमानदार रहें. अवसाद से जुड़ी अपनी भावनाओं और चुनौतियों को लिखने से दबी हुई भावनाएं दूर हो सकती हैं. आप यह देखकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि हर दिन बस कुछ मिनटों के लिए कागज पर कलम रखने के बाद आप कितना बेहतर महसूस करते हैं.

3. अपनी आत्म-छवि को बढ़ावा दें

स्ट्रेस और डिप्रेशन से ग्रस्त लोग अक्सर कम आत्मसम्मान का अनुभव करते हैं, इसलिए अपने बारे में बेहतर महसूस करने के तरीके ढूंढना उपचार का एक महत्वपूर्ण पहलू है. अपने विचारों को अपने सर्वोत्तम गुणों पर केंद्रित करके सकारात्मक सोच का अभ्यास करें. आप जीवनशैली में बदलाव भी कर सकते हैं जो आपके आत्म-सम्मान में सुधार कर सकता है, जैसे स्वस्थ आहार खाना, नियमित व्यायाम करना और उन दोस्तों के साथ समय बिताना जो आपको अच्छा महसूस कराते हैं.

4. शामिल रहें 

यदि आप अवसाद का अनुभव कर रहे हैं, तो आपको ऐसा महसूस हो सकता है कि आप कम आत्मसम्मान या रुचि की कमी के कारण सामाजिक रूप से अलग हो जाना चाहते हैं और अपने तक ही सीमित रहना चाहते हैं. लेकिन याद रखें कि सामाजिक जीवन महत्वपूर्ण है. अपने दोस्तों के साथ जुड़े रहने के लिए खुद को प्रेरित करें. सामाजिक संपर्क आपको गहरे डिप्रेशन में जाने से और अकेले होने से बचाने में मदद कर सकता हैं. फ़िल्म देखने जाएँ, सैर करें, या बस किसी करीबी दोस्त से मिलें या बाहर डिनर करने चले जाएं, इससे आपका उत्साह बढ़ेगा और आप बेहतर महसूस करेंगे.

5. दूसरों पर निर्भर रहना 

जब अवसाद आपको उदास कर देता है तो परिवार और दोस्त आपको अपने बारे में बेहतर महसूस करने में मदद कर सकते हैं. जब आपको प्रियजनों की आवश्यकता हो तो स्वयं को उन पर निर्भर रहने दें. वे आपको अपनी उपचार योजना का पालन करने, व्यायाम करने, स्वस्थ आहार खाने और आम तौर पर अपना ख्याल रखने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं. आप अन्य लोगों से बात करने के अवसर के लिए अवसादग्रस्त लोगों के लिए एक सहायता समूह में भी शामिल हो सकते हैं जो समझते हैं कि आप किस दौर से गुजर रहे हैं.

6. भोजन और मनोदशा का संबंध बनाएं 

कुछ अध्ययनों से पता चला है कि ओमेगा-3 का उच्च दैनिक सेवन, जो आपको सैल्मन जैसी मछली से या मछली के तेल की खुराक के माध्यम से मिल सकता है, मूड में सुधार कर सकता है. आहार के तत्वों और अच्छे पोषण और डिप्रेशन के बीच कई संबंध हैं. स्वस्थ आहार खाने से आप स्वस्थ, फिट और आकर्षक महसूस कर सकते हैं, जिससे आपका मूड लाइट होगा और साथ ही आत्म-सम्मान में सुधार भी होता है, जबकि अस्वस्थ महसूस करने से डिप्रेशन बढ़ सकता है और नकारात्मक आत्म-धारणा हो सकती है.

7. व्यायाम करें 

व्यायाम शारीरिक लाभ प्रदान करता है जो स्ट्रेस, एंजाइटी या डिप्रेशन से गुजर रहे लोगों की मदद कर सकता है. शारीरिक गतिविधि तनाव से राहत दिलाती है और आपको अच्छा महसूस करा सकती है. साथ ही, एक आकर्षक और चुनौतीपूर्ण कसरत को पूरा करने से आपको जो संतुष्टि मिलती है, वह आपके आत्म-सम्मान को बढ़ा सकती है क्योंकि आप मजबूत और शारीरिक रूप से अधिक फिट हो जाते हैं. जब आप नियमित व्यायाम से अवसाद से लड़ते हैं, तो आप भावनात्मक और शारीरिक रूप दोनो से ही बेहतर महसूस करेंगे.

8. शराब को कहें ना 

जब आप अवसाद से जूझ रहे हों तो शराब कोई समाधान नहीं है, लेकिन कई लोग प्रोब्लम से दूर भागने के लिए शराब का सहारा लेते है. हालांकि, शराब पीने से अवसाद के लक्षण और भी बदतर हो सकते हैं, और इसको नियंत्रित करने के लिए आप जो दवाएं ले रहे हैं, उन पर शराब का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है. अवसाद को प्रबंधित करने के लिए एक स्वस्थ जीवन शैली की आवश्यकता होती है, और नशीली दवाओं और शराब से बचना एक स्वस्थ जीवन शैली की कुंजी है.

कहीं आप डिप्रेस्ड तो नहीं?

डिप्रेशन एक आम बिमारी बन गई है. कुछ लोग समझते हैं कि एक सीमित वर्ग के लोग ही डिप्रेस्ड होते हैं.  पर पहले की तुलना में अब कहीं ज्यादा लोग डिप्रेशन के बारे में जानते हैं. कुछ समय पहले तक तो लोग इस बीमारी के बारे में जानते तक नहीं थे. डिप्रेशन को अक्सर पागलपन से जोड़कर देखा जाता था लेकिन अब इसके प्रति लोग काफी जागरुक हो गए हैं.

डिप्रेशन भले ही एक मानसिक स्थिति है लेकिन इसके कुछ शारीरिक लक्षण भी होते हैं. मानसिक लक्षणों के साथ-साथ अगर इन शारीरिक लक्षणों पर भी ध्यान दिया जाए तो डिप्रेशन की पहचान करना और इसका इलाज करना काफी आसान हो जाएगा.

डिप्रेशन से जूझ रहा शख्स अक्सर उदास रहता है, निराश रहता है और नकारात्मक सोच रखने लगता है. हॉर्मोन्स का संतुलन बिगड़ना, आनुवांशिकता, काम का दबाव, रिश्तों का तनाव, खराब माहौल और अकेलापन इसके प्रमुख कारण हो सकते हैं.

अगर डिप्रेशन की पहचान शुरुआती समय में ही कर ली जाए तो इससे छुटकारा पाना आसान है लेकिन अगर इसे लंबे समय से इग्नोर किया जा रहा है तो यह खतरनाक भी हो सकता है. डिप्रेशन से जूझ रहे शख्स की पहचान उसकी मानसिक स्थिति के आधार पर तो की ही जा सकती है, इसके अलावा कुछ शारीरिक लक्षण भी होते हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

1. थकान

डिप्रेशन से जूझ रहा रहा शख्स हर समय थकान का अनुभव करता है. ऐसे इंसान को न तो किसी काम को करने में मन लगता है. अवसादग्रसीत व्यक्ति फीजिकली फिट फील नहीं करता.

2. सरदर्द और बदन दर्द

अवसादग्रसीत व्यक्ति के सिर में दर्द रहता है. अकेलेपन के अंधेरों के कारण ऐसे व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा होती है.

3. वजन का घटना-बढ़ना

डिप्रेशन से जूझ रहे शख्स के वजन पर इसका साफ असर नजर आता है. कई बार तो ऐसे लोगों का वजन बहुत कम हो जाता है तो कई बार बहुत अधिक बढ़ जाता है.

5. भूख न लगना

डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को भूख भी नहीं लगती. चाहे उसकी पसंद की चीज ही क्यों न हो.

6. नींद न आना

डिप्रेस्ड व्यक्ति को नींद भी नहीं आती. अकेलेपन और बेचैनी से वो इमोश्नली कमजोर हो जाता है.

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सवाल

मेरी सहेली को बचपन में पिता का प्यार नहीं मिला. उस की मां ने मेहनत कर के उसे पढ़ायालिखाया. अब उस के पति को  ब्लड कैंसर है, जिस से वह मेरी सहेली से बहुत रूखा व्यवहार करता है. बचपन से अब तक उपेक्षा झेलतेझेलते वह डिप्रैशन का शिकार हो गई है. रातरात भर रोती है. नींद की 2-2 गोलियां खाने पर भी उसे नींद नहीं आती. उसे अपनी मां की परवाह है. उन्हें दुखी नहीं करना चाहती, इसीलिए खुदकुशी नहीं करना चाहती. वह क्या करे कि तनाव से बाहर आ कर खुशहाल जीवन जी सके?

जवाब

जीवन में कमियों के साथ जीने की तो आदत डालनी ही होती है. अगर पति को ब्लड कैंसर है और मां अकेली हैं, तो आप की सहेली को दोगुनी मेहनत कर के दोनों को संभालना होगा वरना सभी नुकसान में रहेंगे, वह खुद भी. नींद की गोलियां खाना इलाज नहीं, क्योंकि इस से समस्या सुलझने वाली नहीं. समस्या तो और ज्यादा काम, चाहे वह घरों की सफाई का हो, दफ्तर का हो या खुद हाथ से मेहनत का, करना ही होगा.

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विश्व में प्रसव के बाद लगभग 13% महिलाओं को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें परेशान कर देता है. प्रसव के तुरंत बाद होने वाले डिप्रैशन को पोस्टपार्टम डिप्रैशन कहा जाता है. भारत और अन्य विकासशील देशों में यह संख्या 20% तक है.  2020 में सीडीसी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार यह सामने आया है कि 8 में से 1 महिला पोस्टपार्टम डिप्रैशन की शिकार होती है. विशेष रूप से टियर 2 और टियर 3 शहरों में  पोस्टपार्टम डिप्रैशन होने के चांसेज ज्यादा होते है.

इस संबंध में बैंगलुरु के मणिपाल हौस्पिटल की कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिक्स व गायनेकोलौजिस्ट डाक्टर हेमनंदीनी जयरामन बताती हैं कि महिलाओं में मानसिक समस्याएं होने पर वे अंदर से टूट जाती हैं. इन्हें परिवार के लोग भी समझ नहीं पाते हैं, जिस से वे खुद को बहुत ही असहाय महसूस करती हैं.

पोस्टपार्टम का मतलब बच्चे के जन्म के तुरंत बाद का समय होता है. प्रसव के तुरंत बाद महिलाओं में शारीरिक, मानसिक व व्यवहार में जो बदलाव आते हैं, उन्हें पोस्टपार्टम कहा जाता है. पोस्टपार्टम की अवस्था में पहुंचने से पहले 3 चरण होते हैं जैसे इंट्रापार्टम यानी प्रसव से पहले का समय और एंट्रेपार्टम यानी प्रसव के दौरान का समय तथा पोस्टपार्टम बच्चे के जन्म के बाद का समय होता है.

भले ही बच्चे के जन्म के बाद एक अनोखी खुशी होती है, लेकिन इस सब के बावजूद कई महिलाओं को पोस्टपार्टम का सामना करना पड़ता है. इस समस्या का इससे कोई संबंध नहीं होता है कि प्रसव नौर्मल डिलिवरी से हुआ है या फिर औपरेशन से. पोस्टपार्टम की समस्या महिलाओं में प्रसव के दौरान शरीर में होने वाले सामाजिक, मानसिक व हारमोनल बदलावों की वजह से होती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्या है पोस्टपार्टम डिप्रैशन

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

डिप्रेशन के खतरे को बढ़ा सकती हैं 5 आदतें

आप शायद पहले से ही जानते होंगे कि बुरी आदतें आपको बीमार कर सकती हैं.  रोज सुबह पनीर सॉसेज अंडे और हर रात पिज्जा खाने से आपका कोलेस्ट्रॉल बढ़ेगा, आपकी कमर की चौड़ाई बढ़ेगी और आपको हार्ट की बीमारी भी हो सकती है.

डॉ. प्रकृति पोद्दार, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, निदेशक पोद्दार वेलनेस के मुताबिक जिस तरह बुरी आदतें आपके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं, उसी तरह कुछ बुरी आदतें आपके मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं. ये आदतें आपके डिप्रेशन के खतरे को बढ़ा सकती हैं, या आपको ज्यादा चिंतित या तनावग्रस्त महसूस करा सकती हैं.

1- पर्फेक्सिनिज्म

किसी भी चीज़ को बेहतर तरीके से करने से आपकी सफलता की संभावना बढ़ सकती है, लेकिन हर समय सही होने की (परफेक्ट) ज़रूरत वास्तव में आपके प्रयासों को कमजोर कर सकती है.

साइकोलॉजिस्ट पर्फेक्सिनिज्म को सकारात्मक या नकारात्मक बताते हैं.  सकारात्मक पर्फेक्सिनिज्म आपको अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में मदद करता है- एक पर्फेक्सिनिस्ट के रूप में आप अपने काम में कोई गलती होने की गुंजाइश नहीं छोड़ते हैं.  सकारात्मक पर्फेक्सिनिज्म की आदतों में वास्तविक लक्ष्य निर्धारित करना, असफलताओं को पीछे छोड़ना, गलतियों को सुधारना, चिंता और तनाव को कम करना और प्रक्रिया के साथ-साथ परिणाम का आनंद लेना शामिल होता है.

नकारात्मक पर्फेक्सिनिज्म की आदतों में आपकी पहुंच से बाहर स्टैंडर्ड स्थापित करना, परफेक्शन से कम होने पर किसी भी चीज़ से असंतोष होना, असफलता या अस्वीकृति के साथ व्यस्तता और गलतियों को अयोग्यता का प्रमाण मानना शामिल होता है.

2- असफलता की मानसिकता

हर किसी के मन में कभी न कभी नकारात्मक विचार आते हैं, और कभी-कभी असफलता की भावनाएँ आमतौर पर कोई मानसिक स्वास्थ्य समस्या पैदा नहीं करती हैं.  हालांकि इन नकारात्मक विचारों को बढ़ावा देने से एक असफल मानसिकता पैदा हो सकती है, जो आपके सफल होने की क्षमता में बाधा डाल सकती है.  नकारात्मक विचार से आपको लग सकता है कि आपका जीवन अंधकारमय, दयनीय है, और बिना किसी आशा या मतलब के न होने से आपको नींद नही आ सकती है, और आपको दिन के दौरान आगे कोई काम करने में बाधा डाल सकता है.  अगर इसका कुछ समाधन न किया जाए तो ये असफलता के विचार आदत बन जाते हैं.

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3. एक्सरसाइज की कमी

एक आलस भरी लाइफस्टाइल आपकी कमर, आपके हार्ट और, आपके मानसिक स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचा सकते है.

नियमित एक्सरसाइज एंडोर्फिन और अन्य “फील गुड” केमिकल को रिलीज़ करके डिप्रेशन को कम कर सकते है, और शरीर के तापमान को बढ़ाकर एक शांत प्रभाव पैदा करता है.  नियमित रूप से एक्सरसाइज करने से आपको आत्मविश्वास भी मिल सकता है, सामाजिक संपर्क में सुधार कर सकता है और स्वस्थ तरीके से जीवन के तनावों से निपटने में आपकी मदद कर सकता है.

4. सोशल मीडिया का बहुत ज्यादा प्रयोग

चाइल्ड माइंड इंस्टीट्यूट का कहना है कि सोशल मीडिया का बहुत ज्यादा प्रयोग युवाओं में एंग्जाइटी को बढ़ा रहा है और आत्मसम्मान को कम कर रहा है.  सोशल मीडिया के उपयोग से उत्पन्न मानसिक स्वास्थ्य समास्याएं वयस्कों को भी प्रभावित कर सकते हैं.  1500 वयस्क फेसबुक और ट्विटर उपयोगकर्ताओं को लेकर एक सर्वे हुआ  था जिसमे  62 प्रतिशत लोगों ने अपर्याप्तता की फीलिंग से पीड़ित होने के बारे में बताया और 60 प्रतिशत ने खुद की तुलना अन्य सोशल मीडिया यूज़र से करने से ईर्ष्या की भावना से पीड़ित होने के बारे में बताया.  तीस प्रतिशत ने कहा कि सोशल मीडिया के इन दो रूपों (ट्विटर और फेसबुक) का उपयोग करने से उन्हें अकेलापन महसूस होता है.

5. ख़राब नींद

नींद शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में मुख्य भूमिका निभाती है.  अपने मस्तिष्क और शरीर को पिछले दिन की कठिनाइयों से उबरने का मौका प्रदान करके नींद आपको आने वाले कल की चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है.  एक या दो रात न सोने  से आप उदास, गुस्सैल और एकाग्र होने में परेशानी महसूस कर सकते हैं, इन सबके अलावा खराब नींद की आदत आपके मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डाल सकती है.  रिसर्च से पता चलता है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित लोगो में  खराब नींद की समस्या देखी गई हैं.

ठोस मानसिक स्वास्थ्य होने का मतलब यह नहीं है कि आप कभी भी बुरे समय से नही गुजरेंगे या भावनात्मक समस्याओं का अनुभव नहीं करेगें.  हम सभी निराशाओं, कमियों और बदलावों से गुजरते हैं जबकि ये सभी जीवन का सामान्य हिस्सा हैं, फिर इनकी वजह से उदासी, डिप्रेशन और स्ट्रेस हो सकता हैं.  लेकिन जिस तरह शारीरिक रूप से स्वस्थ लोग बीमारी या चोट से उबरने में सक्षम होते हैं, उसी तरह मजबूत मानसिक स्वास्थ्य वाले लोग विपरीत परिस्थितियों, ट्रॉमा और तनाव से बेहतर तरीके से उबरने में सक्षम होते हैं.  इसलिए इन बुरी आदतों को छोड़ दें और कठिन परिस्थितियों का सामना करें और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखें.

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डिलीवरी के बाद बढ़ता डिप्रेशन

समीरा की बेबी अभी मात्र डेढ़ माह की है. लेकिन समीरा की स्थिति देख कर पूरे परिवार के लोग काफी उल झन में हैं. उस के पति विमल को आफिस से छुट्टी ले कर घर बैठना पड़ रहा है. इतना ही नहीं, स्थिति यहां तक आ गई कि हार कर उसे गांव से अपनी मां को भी बुलाना पड़ गया. बच्ची की देखभाल का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर है. करीब 2 साल पहले जब समीरा का अचानक गर्भपात हो गया था तब भी इसी तरह की परेशानी हुई थी. तब गोद में बच्चा नहीं था, लेकिन इस बार परेशानी थोड़ी ज्यादा है. करीब 2 सप्ताह से समीरा मानसिक परेशानी और अवसाद के दौर से गुजर रही है और हमेशा अपनेआप में खोई रहती है, सदा चिंतित व परेशान तो रहती ही है खानेपीने की भी कोई सुध नहीं. रात को ठीक से सो भी नहीं पाती, मन ही मन कुछ न कुछ बुदबुदाती रहती है. नन्ही बिटिया की ओर तो वह ताकती तक नहीं.

ऐसी बात भी नहीं कि प्रसव से पहले या बाद में उसे किसी तरह की परेशानी हुई हो. डिलीवरी भी शहर के अच्छे प्राइवेट नर्सिंगहोम में हुई थी, बिना किसी कंप्लीकेशन के. लड़की होने पर वह काफी खुश हुई थी. उस की इच्छा भी थी कि लड़की हो. लेकिन अब वह एकदम से सुधबुध खो बैठी है. जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो विमल उसे ले कर उसी अस्पताल में गया, जहां उस की डिलीवरी हुई थी. जांच करने के बाद पति से डाक्टर ने कहा कि समीरा पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार हो गई है. इसी कारण वह इस तरह का व्यवहार कर रही है. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं, सब कुछ ठीक हो जाएगा. हां, थोड़े दिनों तक मां तथा बच्ची दोनों की निगरानी रखने की जरूरत पड़ेगी.

गंभीर रोग

स्त्रीरोग विशेषज्ञ इसे गंभीर रोग मानते हैं. प्रसव के कुछ माह के बाद कई महिलाएं मानसिक परेशानियों का शिकार होने लगती हैं. इसे चिकित्सकीय भाषा में पोस्टपार्टम डिपे्रशन कहते हैं. ऐसा गर्भपात हो जाने या मृत शिशु के जन्म के बाद भी हो सकता है. ऐसी स्थिति में प्रसूता मानसिक तनाव और डिप्रेशन के दौर से गुजरने लगती है और अपनेआप को एकदम असहाय समझने लगती है. गर्भपात होने या फिर मृत शिशु के जन्म से वह काफी परेशान हो जाती है. भीतर से एकदम से टूट जाती है. लेकिन सुंदर और स्वस्थ बच्चा होने के बावजूद जब प्रसूता डिप्रेशन का शिकार होती है तब वह अपनी संतान के प्रति काफी लापरवाह रहने लगती है. ये लक्षण कुछ माह तक रह सकते हैं और कई बार धीरेधीरे ठीक हो जाते हैं. लेकिन कई बार यह रोग विकराल रूप धारण कर लेता है, जिसे पोस्टपार्टम साइकोसिस कहते हैं.

19 वर्षीय गौरी के बेटे अंकुर की उम्र फिलहाल डेढ़ साल है. जब वह मात्र डेढ़ माह का था तो गौरी को भी समीरा की ही तरह अचानक डिप्रेशन के दौरे पड़ने लगे थे. ऐसी बात नहीं कि उसे ससुराल में किसी चीज की कमी रही हो, न ही पति के साथ किसी तरह का मनमुटाव था. कभी दोनों के बीच तनावपूर्ण संबंध भी नहीं रहे. उस का पति एक बैंक में अधिकारी है और वे अच्छा सा 2 रूम का फ्लैट ले कर कानपुर के एक पौश इलाके में रह रहे हैं. लेकिन अंकुर जब 1 माह का था, तभी गौरी के स्वभाव में अचानक परिवर्तन होने लगा था. मानसिक तनाव और अवसाद के कारण खाने के प्रति उसे एकदम अरुचि हो गई थी. इन चीजों की ओर वह देखना भी नहीं चाहती थी.

धीरेधीरे नींद भी कम आने लगी थी. रातरात भर वह जागती रहती. पति बारबार इस का कारण जानने की कोशिश करते, पर वह कुछ नहीं बोलती थी. ज्यादा कुरेदने पर पति से ही  झगड़ने लगती. धीरेधीरे उस की समस्या कम होने के बजाय बढ़ती चली गई. जब स्थिति ज्यादा बिगड़ने लगी तो उस के पति उसे शहर के एक प्रसिद्ध मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास ले कर गए. चिकित्सक ने पति को बताया कि गौरी पोस्टपार्टम साइकोसिस नामक रोग से पीडि़त है, जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन का वीभत्स रूप है. ऐसी मरीज कई बार आत्महत्या की कोशिश भी कर सकती है. इतना ही नहीं, कई बार ऐसी मरीज अपने नवजात शिशु को भी शारीरिक क्षति पहुंच सकती है. इसलिए बिना देर किए ऐसी मरीज को इलाज के लिए किसी योग्य चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए.

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रोग के कारण

प्रश्न उठता है कि प्रसव के बाद होने वाले इस तरह के मानसिक रोग के क्या कारण हैं? क्यों प्रसव के बाद कोई महिला इस तरह का व्यवहार करने लगती है? प्रसूति विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा गर्भधारण के बाद शरीर में पाए जाने वाले कई तरह के हरमोंस के स्तर में परिवर्तन की वजह से होता है. इस कारण कोई भी महिला प्रसव के बाद कुछ महीनों में ऐसा व्यवहार कर सकती है. बच्चा किसी भी तरह का हो सकता है- जीवित, स्वस्थ या फिर मृत. इस तरह के लक्षण गर्भपात के बाद भी देखने को मिल सकते हैं, क्योंकि इस स्थिति में भी शरीर में हारमोंस में बदलाव होते हैं.

इस के अतिरिक्त कई और दूसरे कारण भी हैं. वे महिलाएं, जो प्रसव के पहले से ही डिप्रेशन नामक रोग की शिकार होती हैं या फिर पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार पहले भी हो चुकी होती हैं, उन्हें भी दोबारा इस के होने की संभावना ज्यादा होती है. यदि परिवार, पति या दोस्तों का सपोर्ट नहीं मिलता है तो भी वे इस तरह की परेशानियों की शिकार हो सकती हैं. ऐसा देखा गया है कि जिन महिलाओं का परिवार के साथ मधुर संबंध नहीं होता या फिर दांपत्य जीवन में हमेशा तनाव रहता है, वे अकसर इस तरह की परेशानियों से घिर जाती हैं यानी परिवार तथा घरेलू वातावरण का प्रभाव गर्भावस्था, प्रसव के समय या फिर प्रसवोपरांत तो पड़ता ही है.

शीघ्र इलाज कराएं

ऐसा नहीं है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है या फिर यह भूतप्रेत के कुप्रभाव का प्रतिफल है. इस का इलाज संभव है. इस के लिए चिकित्सक डिप्रेशन को दूर करने वाली दवा तो देते ही हैं, काउंसलिंग की भी सहायता ली जाती है. कई मरीजों को जब परेशानियां ज्यादा होने लगती हैं तो उन्हें काउंसलिंग और दवा दोनों की जरूरत पड़ती है. वे महिलाएं, जो स्तनपान कराती हैं, उन्हें ऐसी एंटीडिप्रेसिव दवा दी जाती है, जो सुरक्षित हो.

परिवार का सपोर्ट जरूरी

ऐसी स्थिति में पति का सहयोग बहुत जरूरी है. इस के बिना मरीज की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जाएगी और समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चल कर वह पागलपन की भी शिकार हो सकती है. मरीज को कभी नहीं लगना चाहिए कि परिवार के लोग उस की उपेक्षा कर रहे हैं. कई बार अपेक्षित संतान नहीं होने यानी लड़के की चाह में लड़की हो जाने के कारण भी पति या परिवार के दूसरे सदस्य प्रसूता के साथ ठीक व्यवहार नहीं करते. इस कारण भी महिलाएं इस तरह की समस्या की गिरफ्त में आ जाती हैं. इसलिए जरूरी है कि ऐसी स्थिति आने पर मरीज के साथ घर के लोगों का व्यवहार सामान्य तथा सौहार्दपूर्ण हो.

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मरीज और बच्चे को कभी भी एकांत में नहीं छोड़ना चाहिए. मरीज को न तो उदास होने का मौका देना चाहिए और न ही ऊलजलूल सोचने का. एकांत मिलने के साथ ही ऐसे मरीजों के मन में कई तरह के अच्छेबुरे विचार आते हैं. यदि मरीज अपनी संतान के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार अपनाती है, उस की उचित देखभाल करने में कोताही बरतती है तो बच्चे की देखभाल के लिए अलग से कोई व्यवस्था करनी चाहिए. समय पर दूध पिलाने, मलमूत्र साफ करने, नहलानेधुलाने आदि कार्यों के लिए बच्चे को घर की बुजुर्ग महिलाओं के सिपुर्द कर देना चाहिए.

सही इलाज से मरीज अपनेआप बेहतर महसूस करने लगती है. मामूली लक्षणों की स्थिति में मरीज को दवा की जरूरत नहीं होती है. सिर्फ काउंसलिंग के द्वारा ही मरीज को कुछ दिनों में ही फायदा होने लगता है. धीरेधीरे भूख लगने लगती है, चेहरे से मायूसी, तनाव, उल झन और अवसाद के लक्षण गायब होने लगते हैं. शारीरिक स्फूर्ति लौटने लगती है. मन में बुरे विचार आने बंद होने लगते हैं. कई बार मरीज को चिकित्सक कुछ व्यायाम तथा योग करने की भी सलाह देते हैं ताकि तनाव दूर हो और रात को अच्छी नींद आने से मरीज अपनेआप को हलका महसूस करे.

दबे पांव दस्तक देता Depression

रीमा का सारा दिन चिड़चिड़ाने, छोटीछोटी बातों पर गुस्सा करने और बेवजह रोने लग जाने में बीत जाता था. उस के इस व्यवहार से घर के सारे लोग परेशान थे. पति चिल्लाता कि कोई कमी नहीं है, फिर भी यह खुश नहीं रह सकती है. सास अलग ताने मारती कि इसे तो काम न करने के बहाने चाहिए. जब देखो अपने कमरे में जा कर बैठ जाती है.

भौतिकतावादी संस्कृति से उपजी समस्याएं

रीमा की तरह और बहुत लोग हैं, जो इन हालात से गुजर रहे हैं और जानते तक नहीं कि वे डिप्रेशन का शिकार हैं. वक्त जिस तेजी से बदला है और भौतिकवादी संस्कृति और सोशल मीडिया ने जिस तरह से हमारे जीवन में पैठ बनाई है, उस ने डिप्रेशन को बड़े पैमाने पर जन्म दिया है और हर उम्र का व्यक्ति चाहे बच्चा ही क्यों न हो, इस से जू झ रहा है.

मानसिक रूप से लड़ाई लड़ने वाले इंसान को बाहर से देखने पर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि वह भीतर से टूट रहा है. यहां तक कि ऐसे लोग जिन की जिंदगी रुपहले परदे पर चमकती दिखाई देती है, वे भी इस का शिकार हो चुके हैं जैसे आलिया भट्ट, वरुण धवन, मनीषा कोईराला, शाहरुख खान, प्रसिद्ध लेखक जे के रौउलिंग आदि कुछ ऐसे नाम हैं, जो डिप्रैशन का शिकार हो चुके हैं.

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से डिप्रेशन को ले कर समाज में चिंता और ज्यादा बढ़ गई है. केवल पैसे या स्टेटस की कमी ही अब इस की वजह नहीं रही है. भौतिकतावादी संस्कृति ने दिखावे की संस्कृति को बढ़ाया है, जिस की वजह से हर जगह प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और जो इस प्रतिस्पर्धा में खुद को असफल या पीछे रह जाने के एहसास से घिरा पाता है, वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है.

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संघर्ष करने, चुनौतियों का सामना और सहनशीलता कम होने से केवल ‘अपने लिए’ जीने की चाह ने संबंधों में दूरियां पैदा कर दी हैं. यही वजह है कि व्यक्ति समाज से कटा हुआ महसूस करता है और अकेलेपन का शिकार हो जाता है.

चिकित्सक से सलाह लें

‘मैं इन दिनों बहुत डिप्रैस्ड फील कर रही हूं.’ ‘मैं बहुत लो फील कर रहा हूं,’ ये वाक्य अकसर सुनाई देते हैं. तब इन से पता चलता है कि वह डिप्रेशन में है, लेकिन कोई इस स्थिति में जा रहा है, अगर पहले ही पता चल जाए तो समय रहते उसे संभाला जा सकता है और आत्महत्या करने जैसी दुखद पीड़ा से बचाया जा सकता है.

डा. समीर पारेख, ‘डाइरैक्टर, मैंटल हैल्थ ऐंड बिहेवियल साइंसेज, फोर्टिस हैल्थकेयर’ के अनुसार, ‘‘आज भी डिप्रैशन के लिए थेरैपिस्ट की मदद लेने की बात को ले कर एक हिचक कायम है. लेकिन डिप्रेशन से ग्रस्त व्यक्ति को यह सम झाएं कि जैसे चोट लगने पर आप डाक्टर के पास जाते हैं, उसी तरह थेरैपिस्ट से नियमित अंतराल पर मिलना जरूरी है.

यह एक बीमारी है, यह बात स्वीकार कर लेना उन के लिए आवश्यक है. फिर भी वह जाने को तैयार न हो तो उसे मैंडीटेशन करने, संगीत सीखने या किसी हौबी को अपनाने की सलाह दी जा सकती है. इस तरह उसे अपना ध्यान दूसरी जगह लगाने में मदद मिलेगी.’’

कैसे पहचानें

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है, जो आमतौर पर मनोस्थिति में होने वाले उतारचढ़ाव और कम समय के लिए होने वाली भावनात्मक प्रतिक्रिया है, जबकि चिंता में व्यक्ति डर और घबराहट महसूस करता है. जब कोई व्यक्ति किसी स्थिति में खुद को बेबस महसूस करता है, तो इसे चिंता कहते हैं.

लेकिन जब व्यक्ति को लगने लगता है कि उस के जीने का कोई अर्थ नहीं है, तो यह स्थिति डिप्रेशन कहलाती है. डिप्रेशन का अर्थ होता है आशाहीनता की स्थिति.

जब मनुष्य को अपने जीवन में किसी भी प्रकार की उम्मीद या आशा की संभावना नहीं दिखाई देती, तो वह डिप्रेशन की स्थिति में चला जाता है. तब व्यक्ति हमेशा उल झन में और हारा हुआ महसूस करता है. उस के अंदर आत्मविश्वास की कमी हो जाती है, काम में ध्यान नहीं लगा पाता और अकेला रहना पसंद करता है.

समाजशास्त्री एमिल दुरखाइम ने अपनी पुस्तक ‘आत्महत्या’ में लिखा है कि जो लोग अपने समाज से कम जुड़े या कटे होते हैं, अकसर वे ही आत्महत्या अधिक करते हैं. यदि कोई व्यक्ति उदास है, हताश महसूस कर रहा है, तो उसे नजरअंदाज करने के बजाय उसे मनोवैज्ञानिक के पास ले जाएं.

भ्रम होने या किसी बात को ले कर निश्चित न हो पाने, बारबार भूलने, हर छोटी घटना पर अचानक निराश हो जाने, लगातार सोचने, तनाव में रहने. सोचते रहने से एक नकारात्मक दृष्टिकोण बन जाता है और वह हर किसी को शक की नजर से देखने लगता है.

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खुद पर उस का विश्वास उठने से उसे शंका ही घेरे रहती है और अपने ही वजूद पर सवाल खड़े करता रहता है कि मैं आखिर क्यों जी रहा/रही हूं, हर चीज इतनी बुरी क्यों है, मैं इस से बेहतर क्यों नहीं हो सकता/सकती आदि. जब कोई व्यक्ति अपने ही सवालों में उल झा दिखाई दे तो सम झ लें कि वह डिप्रेशन से घिरा है.

सोने के तरीके में आने वाला बदलाव भी इस की बड़ी पहचान है. या तो व्यक्ति बहुत ज्यादा सोएगा या नींद नहीं आएगी, रात में बेचैनी बनी रहेगी और सुबह उठने की इच्छा नहीं होगी. डिप्रेशन होने पर या तो भूख बढ़ जाती है या फिर कम हो जाती है. कुछ का वजन कम होने लगता है तो कुछ का बढ़ने. उसे लगता है वह बीमार है. सिरदर्द, पेट या पीठ दर्द हमेशा बना रहता है.

इस के अतिरिक्त ऐसे लोगों को गुस्सा बहुत आता है, वह भी बिना कारण. डा. समीर पारेख कहते हैं कि इस के शिकार लोगों में सोशल मीडिया की लत देखने को भी मिली है. वे सोशल मीडिया अपडेट के लिए लगातार उसे देखते रहते हैं. निरंतर सोशल मीडिया से जुड़े रहना अनियंत्रित डिप्रेशन को बढ़ाता है.

आप को किसी व्यक्ति में अचानक बदलाव महसूस हो तो उसे डिप्रेशन से बचाने के लिए पहले से तैयारी अवश्य कर लें.

अपने बच्चों को डिप्रेशन से ऐसे बचाएं

कौम्पिटिशन के इस समय में आजकल लोग एक दूसरे से आगे निकले में अपनी सेहत पर ध्यान देना बंद कर चुके हैं. साथ ही काम और पढ़ाई में प्रेशर बढ़ने के कारण किशोरों और युवाओं में डिप्रेशन के मामले तेजी से बढ़ते जा रहा हैं. डिप्रेशन का मुख्य कारण काम, पढ़ाई का प्रेशर, ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की ललक होता है. खासकर अगर हम युवाओं की बात करें तो भारत में सबसे ज्यादा डिप्रेशन के शिकार युवा हो रहे हैं. हाल ही में एक आईआईटी-हैदराबाद में पढ़नेवाले मार्क एंड्रयू चार्ल्स ने पढ़ाई और करियर  के  तनाव की वजह से सुसाइड कर लिया. आज हम आपको बताते है कि डिप्रेशन क्या है, क्यों बढ़ रहा है और इसे कैसे दूर किया जा सकता है.

क्या होता है डिप्रेशन

वैसे तो किसी ना किसी वजह से उदास होना आम बात है, लेकिन जब यह एहसास ज्यादा समय तक बन रहा है तो समझ जाइए कि डिप्रेशन की स्थिती बनती जा रही हैं. डिप्रेशन एक ऐसा मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति को कुछ भी अच्छा नही लगता और उसे लगने लग जाता है कि उसकी जिंदगी में सिर्फ दुख है या उसकी जिंदगी में जीने के लिए अब कुछ नही बचा है.

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महिलाओं को होता है डिप्रेशन का सबसे ज्यादा खतरा

वर्ल्ड हेल्थ ऑग्रजेइशेन के रिपोर्ट मुताबिक महिलाओं के डिप्रेशन के चपेट में आने का खतरा पुरूषों के मुकाबले में कही ज्यादा होता हैं. आधुनिक समय में महिलाओं पर घर, परिवार, बच्चे और करियर के साथ ही अन्य और जिम्मेदारियां होती हैं. साथ ही वीकेंड के दिन भी महिलाएं घर का काम करती है, जिसके कारण उन्हें आराम नही मिलता. महिलाओं मे डिप्रेशन ज्यादा होने का एक मुख्य कारण हार्मोनल बदलाव भी होता है, जिसके कारण वे ज्यादा डिप्रेशन का शिकार होती है.

क्यों होता है डिप्रेशन

नौकरियां और पढ़ाई की वजह से आज युवाओं पर जिस तरह का दबाव और डिप्रेशन बढ़ा है, उसकी वजह से आज कई युवा गलत कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते है. नौकरियों में काम का दबाव बढ़ने और उसमें सफल ना होने के कारण मानसिक रोग अवसाद बन जाता है.

डिप्रेशन से होने वाले नुकसान

हर वक्त का डिप्रेशन इन्सान के शरीर को बहुत नुकसान पहंचाता है, जिसमें सबसे पहला नुकसान हर वक्त का चिड़चिड़ापन, जल्दी गुस्सा आना, नींद कम आना जैसी बातें आम है. डिप्रेशन से ग्रस्त व्यक्ति को हार्ट अटैक आने का खतरा बढ़ जाता है.

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डिप्रेशन से बच्चों को ऐसे बचाएं

– नकारात्मक सोच से ज्यादा से ज्यादा बचने की कोशिश करें.

– वर्तमान में जीना सीखें, जो है उसमें खुश रहें और जो नही उसके बारे में सोचकर अपना आज बर्बाद ना करें.

– खाली समय में अपने आपकों खुश रखने की कोशिश करें.

– भरपूर नींद लें, लेकिन जरूरत से ज्यादा ना सोएं. समय पर सोनें और समय पर उठें.

– दोस्तों व परिवार के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं.

– हेड मसाज, सोना या स्टीम बाथ लें. इससे शरीर को आराम मिलेगा तो दिमाग को राहत मिलेगी.

– ध्यान लगाएं या योग करें. डिप्रेशन से दूर रहने के लिए योग बहुत अच्छा तरीका है.

– कम उम्र के बच्चों को भी ऐसे दौड़ भाग वाले खेलों को अपनाना चाहिये जिससे शारीरिक रसायन का संतुलन बना रहे और निराशा और डिप्रेशन से दूर रहें.

– सभी उम्र के लोगों को प्रकृति में रह कर कुछ समय बिताना चाहिये. जहां उन्हें सूर्य की रोशनी, ताजी हवा और आकाश का साथ मिल सके.

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