रेटिंगः दो स्टार
निर्माताः धर्मा प्रोडक्शंस,वायकाम 18 और जोउस्का फिल्मस
निर्देशनः शकुन बत्रा
लेखनःआयशा देवित्रे , सुमित रॉय , यश सहाय और शकुन बत्रा
कलाकारः दीपिका पादुकोण,अनन्या पांडे,सिद्धांत चतुर्वेदी,धैर्य करवा ,नसिरूद्दीन शाह व अन्य.
अवधिः दो घंटे 28 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः अमजान प्राइम वीडियो
शहरों में रह रही अंग्रेजीदां युवा वर्ग जिस तरह से अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए रिश्तें के हर मापदंड को दरकिनार करती जा रही है,वह जिस तरह बचपन की दोस्ती,प्यार के रिश्ते व संबंधों को पैसे व महत्वाकांक्षा की तराजू पर तौलने लगी है,उसी का चित्रण करने वाली,अति बोल्ड दृश्यों की भरमार व अति धीमी गति वाली फिल्म ‘‘गहराइयां’’ लेकर फिल्मकार शकुन बत्रा आए हैं,जो कि ग्यारह फरवरी से अमेजान प्राइम पर स्ट्रीम हो रही है.
कहानीः
कहानी के केंद्र में दो चचेरी बहने आलिशा(दीपिका पादुकोण ) और टिया(अनन्या पांडे ) हैं. इनके पिता सगे भाई व व्यापार में भागीदार थे. इनका अलीबाग में भी बंगला है. मगर जब टिया व आलिशा छोटी थीं,तभी कुछ रिश्तें में आयी एक जटिलता के चलते आलिशा के पिता(नसिरूद्दीन शाह) सब कुछ छोड़कर पूरे परिवार के साथ नाशिक रहने चले गए थे तथा वह की आलिशा मां को दोषी मानते रहे. अंततः घुटघुटकर जिंदगी जीने की बजाय एक दिन आलिशा की मां ने खुदकुशी कर ली थी. इसका आलिशा के मनमस्तिक पर गहरा असर पड़ा. बादा में टिया पढ़ाई करने अमरीका चली जाती है. जहां उसकी मुलकात अतिमहत्वाकांक्षी जेन से होती है और दोनो रिश्ते में बंध जाते हैं. इधर महत्वाकांक्षी आलिशा योगा शिक्षक है और अपने प्रेमी करण के साथ मुंबई में रहती है. उसकी तमन्ना अपना योगा का ऐप शुरू करने का है. करण एक एड एजंसी की नौकरी छोड़कर किताब लिख रहा है. उस पर लेखक बनने का भूत सवार है.
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फिल्म वहां से शुरू होती है, जब अलीशा खन्ना खुद को जीवन में एक चैराहे पर पाती हैं. उसे लग रहा है कि उसका छह वर्ष का करण के साथ लंबा रिश्ता नीरस हो गया है. उसके करियर में काफी बाधाएं आयीं और अब उसने इस वास्तविकता को अपरिवर्तनीय मान लिया है. तभी उसकी चचेरी बहन बहन टिया अपने मंगेतर जेन के साथ मंुबई वापस आती है और आलीशा व करण को अपने साथ अलीबाग चलने के लिए कहती हैं. यहीं से इन चारों के बीच के रिश्ते में काफी उथल पुथल मचने लगती है. अतीत के घटनाक्रम भी सामने आते हैं. रिश्तों का बांध टूटता है. आलीशा व जेन के बीच एक रिश्ता विकसित होता है,जिसका दुःखद अंत सामने आता है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. दो वर्ष के अंतराल के बाद आलिशा व टिया पुनः मंुबई में तब मिलते हैं,जब करण,अनिका से सगाई कर रहा होता है.
लेखन व निर्देशनः
पूरे छह वर्ष बाद फिल्म सर्जक शकुन बत्रा ने फिल्म ‘‘गहराइयां’’ से वापसी की है. लेकिन कहानी में कुछ भी नया नही है. सब कुछ वही बौलीवुड फिल्मो की घिसी पिटी व हवा हवाई बातें. जी हॉ! अति धीमी गति से आगे बढ़ने वाली इस फिल्म में मनोरंजन व रोमांच का घोर है. फिल्मकार ने रिश्तों में बनावटी जटिलता,बनावटी प्यार,बनावटी बेवफाई के साथ ही अविश्वसनीय घटनाक्रमों का मुरब्बा परोसा है. नकली-बनावटी किरदार, दिखावे की यॉट से लेकर फाइव स्टार होटल, महंगी शराब, चिकने बाथटब, गद्देदार बिस्तर, करोड़ों-करोड़ की हाई-फाई बातें फिल्म को उठाने की बजाय गहराईयों में डुबाने का ही काम करती हैं. लेखक व निर्देशक ने दर्शकों को मूर्ख बनाने का ही काम किया है. इसीलिए कहानी मुंबई व अलीबाग में चलती है. सभी जानते हैं कि मुंबई में किसी भी इंसान को मूर्ख कहने के लिए कहा जाता है-‘अलीबाग से आया है क्या?’
फिल्म हिंदी भाषा में है,मगर ठेठ हिंदी भाषी दर्शकों के सिर के उपर से यह गुजरती है. क्योंकि मोबाइल से आदान प्रदान किए जाने वाले संदेशों के अलावा काफी संवाद अंग्रेजी भाषा में हैं. लेखक व निर्देशक यह कैसे भूल जाते हैं कि उनका असली दर्शक आज भी हिंदी भाषी ही है,जो कि अच्छी बौलीवुड फिल्मों के अभाव में हिंदी में डब की गयी दक्षिण भारत की अच्छी मनोरंजक फिल्में देखता हुआ पाया जाता है. वैसे शकुन बत्रा से यह उम्मीद करना कि वह भारतीयों और हिंदी भाषियों के लिए कहानी लिखेंगे या फिल्म बनाएंगे,बेमानी है. क्योंकि उन्हें तो हिंदी भाषी पत्रकारों से बात करना भी गवारा नही होता. वह तो चाहते हैं कि पत्रकार उनसे वही बात करे,जो वह चाहते हैं.
माना कि लेखक व निर्देशक ने फिल्म में इस बात का सटीक चित्रण किया है कि वर्तमान समय में शहरी मध्यमवर्गीय अंग्रेजीदां युवा पीढ़ी किस तरह अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के साथ-साथ पैसा कमाने के लिए रिश्तांे का दुरुपयोग करती है. आज की युवा पीढ़ी अपनी महत्वाकांक्षा व स्वार्थपूर्ति के लिए प्यार के रिश्ते को भी कपड़े की तरह बदलती है,इसका भी चित्रण बहुत ही उपरी सतह पर किया गया है. क्या वर्तमान शहरी मध्यमवर्गीय युवा पीढ़ी महज बिना किसी रोक-टोक के शारीरिक संबंधों @इंटीमसी में यकीन करती हैं? रिश्तों की जटिलता को लेकर फिल्मकार एक परिपक्व व गंभीर फिल्म लेकर आए हैं,मगर इसमें कहीं भी परिपक्वता नजर नही आती. शकुन बत्रा यह भी भूल गए कि उन्होेने फिल्म हिंदी में हिंदी भाषियों के लिए बनाया है. फिल्म का क्लामेक्स भी काफी गड़बड़ है. फिल्मसर्जक ने सेक्सी बोल्ड दृश्यों को परोसने में कोई कंजूसी नही दिखायी. शायद सही वजह है कि फिल्म का प्रचार भी इस तरह किया गया, जैसे कि ‘कामसूत्र’ का विज्ञापन किया जा रहा हो. वास्तव में शकुन बत्रा ने एडल्ट फिल्म बना डाली,मगर उनके अंदर इस तरह के विषय व परिपक्वता का घोर अभाव है.
इंसान का अतीत किस तरह उसका पीछा करता है, इसका कुछ हद तक सही चित्रण है. फिल्म में एक जगह अंग्रेजी में नसिरूद्दीन शाह का संवाद है- ‘‘अतीत से भागने की जरुरत नहीं,उसे स्वीकार करो. ’
इस फिल्म में दो चरित्र विभाजित परिवार यानी कि डिस्फंक्ंशनल परिवार से हैं. मगर फिल्मकार इस बात को सही ढंग से रेखांकित करने में असफल रहे है कि माता पिता के बीच के संबंधो व डिस्फंक्शनल परिवार के बच्चांे पर कैसा असर पड़ता है.
निर्देशक ‘शकुन बत्रा ने इसफिल्म के माध्यम से इस बात की ओर भी इशारा किया है कि भले ही 21वीं सदी की युवा पीढ़ी रिश्तों में किसी भी तरह के मापदंडों में यकीन न करती हो,मगर वह रिश्ते में स्थायित्व व भरोसे की तलाश में भटकती रहती है.
अभिनयः
‘गहराइयां’की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी अनन्या पंाडे ही हैं. अनन्या पंाडे को अभी अपने अभिनय में निखार लाने के लए काफी मेहनत करने की जरुरत है. उनके चेहरे पर एक्सप्रेशन भाव नजर ही नही आते. आलीशा के किरदार के माध्यम से इंसानी मन की द्विविधा व असमंजसता को काफी बेहतर तरीके से दीपिका पादुकोण ने अपने अभिनय से उकेरा है. आलीशा के दिमाग मे बचपन की घटना के चलते बनी ग्रंथी,आलीशा के चरित्र की जटिलता,उसके मनोभावों,रिश्तें में भरोसेे की तलाश आदि को दीपिका पादुकोण ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. मगर फिल्मों का चयन करते समय दीपिका को सावधान रहने की जरुरत है. ‘गहराइयां’ जैसी फिल्म को उनका बेहतरीन अभिनय भी दर्शक नही दिला सकता. अनन्या पांडे के बाद महत्वाकांक्षी जेन के किरदार में सिद्धांत चतुर्वेदी भी कमेजार कड़ी हं. उनका अभिनय निराश ही करता है. वह अपने हाव भाव या बौडी लैंगवेज या अभिनय से दर्शक को आकर्षित करने में विफल रहे हैं. धैर्य करवा व नसिरूददीन शाह के हिस्से करने को कुछ खास आया ही नही.