डायबिटीज से बचना है, तो ऐक्सपर्ट के इन टिप्स को करें फौलो

डायबिटीज यानी मधुमेह एक ऐसी स्थिति है जब आप के शरीर में रक्त शर्करा (ग्लूकोज) का स्तर बहुत अधिक हो जाता है. यह तब विकसित होता है जब आप का आगनाशय पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता है या बिलकुल भी नहीं बनाता है या आप का शरीर इंसुलिन के प्रभावों पर ठीक से प्रतिक्रिया नहीं करता है. डायबिटीज किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है. अगर इस का सही तरीके से इलाज न कराया जाए तो यह शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित कर सकती है और अन्य बीमारियों को जन्म दे सकती है. कुछ सरल उपायों से डायबिटीज की जटिलताओं से बचा जा सकता है.

आइए, जानते हैं मैरिंगो एशिया हौस्पिटल गुरुग्राम के डा. शिबल भट्टाचार्य से कि इस की जटिलताओं से कैसे बचा जा सकता है:

नियमित ब्लड शुगर की जांच करें

डायबिटीज के कौंप्लिकेशन से बचने के लिए सब से जरूरी है कि आप अपने ब्लड शुगर के स्तर को नियमित रूप से जांचते रहें. ब्लड शुगर की जांच से आप को पता चलेगा कि आप का शुगर लैवल सही है या नहीं. अगर यह नौर्मल  स्तर से ऊपर है तो आप को इसे कंट्रोल करने के लिए कदम उठाने की जरूरत होगी.

ब्लड शुगर की जांच के लिए घर पर ग्लूकोमीटर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के अलावा समयसमय पर डाक्टर से सलाह लेना भी जरूरी है. डाक्टर आप को शुगर कंट्रोल करने के लिए जरूरी दवाइयां और डाइट प्लान दे सकते हैं.

सही डाइट फौलो करें

डायबिटीज के मरीजों को अपने खानेपीने का विशेष ध्यान रखना चाहिए. अनियंत्रित खानपान से शुगर लैवल बढ़ सकता है, जिस से कई प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए डायबिटीज के मरीजों को संतुलित और हैल्दी डाइट का पालन करना चाहिए.

फाइबर युक्त भोजन करें: फाइबर युक्त भोजन जैसे साबूत अनाज, सब्जियां और फल खाने से शुगर लैवल नियंत्रित रहता है.

प्रोटीन का सेवन बढ़ाएं: दाल, अंडा, मछली और दही जैसे प्रोटीन युक्त आहार से शरीर को ऐनर्जी मिलती है और शुगर भी कंट्रोल में रहता है.

मीठे का सेवन कम करें: मीठे खाने का सेवन करने से शुगर लैवल तेजी से बढ़ सकता है. इसलिए मिठाई, शुगर युक्त पेय और पैकेज्ड फूड्स से बचें.

छोटेछोटे भाग में खाना खाएं: दिन में 5-6 बार छोटेछोटे मील्स लेने से ब्लड शुगर लैवल स्थिर रहता है.

नियमित व्यायाम करें

व्यायाम से शरीर में शुगर का स्तर कंट्रोल में  रहता है और वजन भी कंट्रोल में रहता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए नियमित व्यायाम करना बहुत जरूरी है. व्यायाम से न केवल ब्लड शुगर नियंत्रित होती है, बल्कि यह हृदय, फेफड़ों और शरीर के अन्य अंगों को भी स्वस्थ रखता है.

ब्रिस्क वाक: हर रोज 30 मिनट तक तेज चलने की आदत डालें. इस से शरीर में इंसुलिन का उपयोग सही तरीके से होता है.

योग और ध्यान: योग और ध्यान से तनाव कम होता है, जिस से शुगर लैवल कंट्रोल में रहता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए प्राणायाम और हलके योगासन भी लाभकारी होते हैं.

स्ट्रैंथ ट्रेनिंग: हलका वजन उठाने से मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है और शरीर में शुगर की खपत होती है, जिस से ब्लड शुगर कंट्रोल रहती है.

तनाव से बचें

तनाव डायबिटीज के मरीजों के लिए एक बड़ा दुश्मन है. जब हम तनाव में होते हैं तो शरीर में कोर्टिसोल नामक हारमोन का स्तर बढ़ जाता है जो ब्लड शुगर को बढ़ा सकता है. इसलिए तनाव से बचना जरूरी है.

मैडिटेशन करें: मैडिटेशन करने से मानसिक शांति मिलती है और तनाव कम होता है.

अच्छी नींद लें: पर्याप्त और गहरी नींद से शरीर को आराम मिलता है, जिस से तनाव कम होता है.

पसंदीदा गतिविधियों में शामिल हों: जो चीजें आप को खुशी देती हैं जैसेकि पढ़ना, संगीत सुनना या चित्रकारी करना, उन्हें अपने रूटीन में शामिल करें.

दवाइयों का सही तरीके से सेवन करें

डायबिटीज को कंट्रोल करने के लिए अकसर दवाइयों की जरूरत होती है. आप को अपनी दवाइयों का सेवन समय पर और डाक्टर के निर्देशानुसार ही करना चाहिए. अगर आप दवाइयों का सही तरीके से सेवन नहीं करते हैं

तो इस से ब्लड शुगर का स्तर असामान्य हो सकता है और इस से कौंप्लिकेशन का खतरा बढ़ जाता है.

डाक्टर से नियमित जांच कराएं: अपनी दवाइयों की सही खुराक और असर के बारे में जानने के लिए डाक्टर से समयसमय पर परामर्श लें.

इंसुलिन का सही तरीके से इस्तेमाल करें: अगर आप को इंसुलिन लेने की जरूरत है तो इसे सही तरीके से और समय पर लें.

धूम्रपान और शराब से बचें

धूम्रपान और शराब दोनों डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं. धूम्रपान करने से हृदयरोग, फेफड़ों की बीमारी और नसों को नुकसान हो सकता है, वहीं शराब का अधिक सेवन ब्लड शुगर लैवल को अस्थिर कर सकता है.

धूम्रपान छोड़ें: अगर आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे तुरंत बंद करें. यह डायबिटीज के कौंप्लिकेशन को रोकने में मदद करेगा.

शराब का सेवन न करें: अगर आप शराब का सेवन करते हैं तो इसे तत्काल छोड़ दें.

मुझे डायबिटीज है, क्या इस के कारण गर्भधारण करने में परेशानी हो रही है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी उम्र 32 साल है. मेरी शादी को 3 साल हो गए लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है? मुझे डायबिटीज है. क्या इस के कारण गर्भधारण करने में परेशानी हो रही है?

जवाब

कई अनुसंधानों में यह बात सामने आई है कि वे महिलाएं जिन्हें भी डायबिटीज है उन्हें उन महिलाओं की तुलना में गर्भधारण करने में समस्या आती है जिन्हें डायबिटीज नहीं है. डायबिटीज से पीडि़त महिलाओं में पौलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) और डिसमैटाबोलिक सिंड्रोम एक्सैस दोनों की आशंका अत्यधिक बढ़ जाती है जो महिलाओं में बां?ापन के सब से बड़े कारण हैं. अगर आप का वजन अधिक है तो उसे कम करने का प्रयास करें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, अपने खानपान का ध्यान रखें, तनाव न पालें. डाक्टर द्वारा सु?ाई दवाएं ठीक समय पर लें. जितने बेहतर तरीके से डायबिटीज का प्रबंधन करेंगी आप के लिए गर्भधारण करना उतना आसान होगा.

ये भी पढ़ें-

सवाल

मैं 46 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मुझे डायबिटीज है और मेरा वजन सामान्य से 20 किलोग्राम अधिक है. क्या वजन अधिक होने से डायबिटीज के प्रबंधन में परेशानी आती है?

जवाब

मोटापे के कारण इंसुलिन की कार्यक्षमता कम हो जाती है. मोटे लोगों के शरीर में इंसुलिन होता तो है, लेकिन काम नहीं कर पाता जिस से शुगर का स्तर बढ़ जाता है. वजन कम होने से इंसुलिन की कार्यक्षमता बढ़ती है. अपना स्वस्थ वजन बनाए रखें. अगर वजन अधिक है तो उसे कम करने का प्रयास करें. अगर रोजाना आप अपनी जरूरत से 100-150 कैलोरी का इनटैक कम करेंगी तो 1 साल में बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के अपना वजन 7 से 10 किलोग्राम तक कम कर लेंगी. आप जिम जौइन कर सकती हैं या अपना मनपसंद कोई दूसरा वर्कआउट जैसे वाकिंग, रनिंग, स्विमिंग या साइक्लिंग भी कर सकती हैं ताकि आप का वजन तेजी से कम हो जाए.

ये भी पढ़ें-

सवाल

मैं 42 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे पिछले 4 साल से डायबिटीज है. सामान्य जीवन जीने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब

डायबिटीज के मरीजों के लिए जरूरी है कि वे अपना ब्लड प्रैशर 130/80 से कम रखें और खाली पेट रक्त में शुगर की मात्रा 110 मिलीग्राम और खाना खाने के 2 घंटे बाद 150 मिलीग्राम से कम रखें. सब से जरूरी है महिलाएं अपनी कमर का घेरा 32 इंच से कम रखें. बुरे कोलैस्ट्रौल (एलडीएल) को 100 से कम और अच्छे कोलैस्ट्रौल (एचडीएल) 50 से अधिक रखें. ये सभी सावधानियां डायबिटीज के मरीजों को लंबा और सामान्य जीवन जीने में सहायक होती हैं.

डा. ए.के. झिंगन

चेयरमैन, डेल्ही डायबिटीज रिसर्च सैंटर,

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बच्चों को डायबिटीज से कैसे बचाएं

डायबिटीज एक क्रोनिक रोग है जो हर उम्र के लोगों को प्रभावित करता है. टाइप 1 डायबिटीज बच्चों और किशोरों में ज्यादा पाई जाती है, जबकि टाइप 2 डायबिटीज ज्यादातर युवा और वयस्कों को होती है. डायबिटीज से पीडि़त बच्चों की देखभाल करना मुश्किल हो सकता है खासतौर पर तब जब आप को पता हो कि आप के बच्चे को जीवनभर इसी के साथ जीना पड़ सकता है.

मातापिता की तरह डायबिटीज का असर बच्चों के मन पर भी पड़ता है. वे हमेशा अपनेआप को दूसरे बच्चों से अलग महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें कई चीजों के लिए रोका जाता है. ऐसे में इन बच्चों का आत्मविश्वास भी कम हो सकता है.

पेश हैं, इस संदर्भ में डा. मुदित सबरवाल (कंसलटैंट डायबेटोलौजिस्ट एवं हैड औफ मैडिकल अफेयर्स, बीटो) के कुछ सु झाव:

डायबिटीज से ग्रस्त बच्चे का जीवन

टाइप 1 डायबिटीज एक क्रोनिक रोग है. इस स्थिति में पैंक्रियाज में इंसुलिन नहीं बनता है या कम मात्रा में बनता है. इसलिए शरीर को बाहर से इंसुलिन देना पड़ता है.

टाइप 1 डायबिटीज से पीडि़त बच्चा तनाव और थकान महसूस करता है. वह अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो सकता है. ‘डायबिटीज बर्नआउट’ एक ऐसी स्थिति है जिस में व्यक्ति अपनी डायबिटीज को नियंत्रित करतेकरते थक जाता है. ऐसी स्थिति में बच्चे अपने ब्लड ग्लूकोस लैवल को मौनिटर करना, इसे रिकौर्ड करना या इंसुलिन लेना नहीं चाहते.

ऐसे में मातापिता होने के नाते आप को अपने बच्चे के डायबिटीज मैनेजमैंट में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है. बच्चे को खुद अपनी स्थिति पर नियंत्रण रखने दें. इस बीच उसे पूरा सहयोग दें और मार्गदर्शन करें.

डायबिटीज से पीडि़त बच्चों की देखभाल

डायबिटीज मैनेजमैंट में सब से जरूरी चीज है ब्लड शुगर लैवल को सही रेंज में रखना. इस के लिए आप के बच्चे को इंसुलिन लेना पड़ सकता है, हर बार के खाने में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा सीमित करनी पड़ती है और साथ ही ऐक्टिव भी रहना होता है.

रोजाना डाक्टर की सलाह के अनुसार निर्धारित समय पर ब्लड शुगर नापें. इस के लिए आप बीटो का स्मार्टफोन कनैक्टेड ग्लूकोमीटर इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के साथ ब्लड शुगर को मौनिटर करना बेहद आसान हो जाता है. आप जब चाहें, जहां चाहें ब्लड ग्लूकोस नाप सकते हैं.

मातापिता के लिए सुझाव

जरूरत से ज्यादा रोकटोक न करें:

आप को अपने बच्चे को अनचाही जटिलताओं से सुरक्षित रखना है. लेकिन ध्यान रखें कि उसे स्पेस दें. आप की मदद से बच्चा खुद अपनी जिम्मेदारी सम झेगा और डायबिटीज मैनेजमैंट कर सकेगा. इस से बच्चे में आत्मविश्वास भी पैदा होगा.

उस की सामान्य जीवन जीने में मदद करें:

हमेशा बच्चे का उत्साह बढ़ाएं. जिस चीज में उस की रुचि है उसे वह करने का मौका दें. आप उसे सिंगिंग, पेंटिंग, स्विमिंग क्लासेज में भेज सकते हैं. देखें कि उसे किस चीज का शौक है.

उसे सिखाएं कि अगर कोई उसे चिढ़ाता है तो उसे क्या करना है:

अकसर डायबिटीज से पीडि़त बच्चे को क्लास के दूसरे बच्चे चिढ़ाते हैं. ऐसे में बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर असर हो सकता है. ध्यान रखें कि इन चीजों का बच्चे पर बुरा असर न पड़े. इस की वजह से वह स्कूल में ब्लड ग्लूकोस मौनिटर करना बंद न कर दे. अगर आप के बच्चे के साथ ऐसा होता है, तो उसे सिखाएं कि उसे ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए, साथ ही दूसरे बच्चों को भी सम झाएं कि वे ऐसा न करें. इस के लिए आप उन के मातापिता, अभिभावकों या अन्य साथियों की मदद ले सकते हैं.

उसे सिखाएं कि उसे सही पोषक आहार ही खाना चाहिए:

बच्चों को चौकलेट, फास्ट फूड बहुत पसंद होता है. हालांकि डायबिटीज से पीडि़त बच्चों को थोड़ा सतर्क रहना होता है. बच्चे को डांटने के बजाय आराम से सम झाएं कि पोषक और सेहतमंद आहार से ही उसे फायदा होगा. उसे साबूत अनाज, ताजा फल और सब्जियां, लीन प्रोटीन और सेहतमंद फैट्स का सेवन करने के लिए कहें.

किसी डायबिटीज ग्रुप के साथ जुड़े:

डायबिटीज से पीडि़त बच्चे की देखभाल करना मुश्किल हो सकता है. इस के लिए आप किसी डायबिटीज गु्रप में शामिल हो सकते हैं जहां आप अपनी समस्याओं पर चर्चा कर सकते हैं. जरूरत पड़ने पर नोट्स बनाएं, एकदूसरे के सु झाव लें. इस के अलावा अपने पार्टनर की मदद लें. ऐसे बच्चे के लिए परिवार का सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण होता है.

ध्यान रखें:

अगर बच्चे में डिप्रैशन के लक्षण दिखते हैं जैसे उदासी, चिड़चिड़ापन, थकान, भूख में बदलाव, सोने की आदत में बदलाव तो डाक्टर से संपर्क करें. नियमित रिमाइंडर्स और नोटिफिकेशंस के द्वारा आप डायबिटीज को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं. बीटो ऐप डायबिटीज मैनेजमैंट के लिए हर जरूरी समाधान उपलब्ध कराता है.

माता-पिता को डायबिटीज होने से क्या मुझे भी खतरा है, इलाज बताएं?

सवाल-

मैं 43 वर्षीय महिला हूं. मेरा स्वास्थ्य सामान्य है. पर मेरे मातापिता दोनों को ही डायबिटीज थी, जिस के कारण उन्हें ढेरों परेशानियां उठानी पड़ीं. क्या परिवार में मातापिता, भाईबहन को यह रोग हो तो इस के होने का खतरा बढ़ जाता है? मुझे डायबिटीज न हो, इस के लिए मुझे क्याक्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

जवाब-

यह बात सच है कि जैनेटिक कारणों से डायबिटीज कई परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी पाई जाती है. रक्त संबंधियों जैसे मातापिता और सगे भाईबहन को डायबिटीज हो तो व्यक्ति को डायबिटीज होने का रिस्क कई गुना बढ़ जाता है. टाइप 2 डायबिटीज में पिता के डायबिटिक होने पर संतान में डायबिटीज की दर 14%, मां के डायबिटिक होने पर 19% और मातापिता दोनों के डायबिटिक होने पर 25% आंकी गई है. भाई या बहन को डायबिटीज हो तो 75% मामलों में दूसरे भाईबहनों को भी डायबिटीज होती है. डायबिटीज होने का यह रिस्क कई दूसरी चीजों के साथ भी बढ़ जाता है. जैसेजैसे उम्र बढ़ती है और 45 पार करती है, वैसेवैसे डायबिटीज का खतरा बढ़ता जाता है. इसी प्रकार शरीर पर चरबी बढ़ने, पूरापूरा दिन बैठेबैठे बिताने और शारीरिक कामकाज, व्यायाम के लिए समय न देने, ब्लडप्रैशर 140/190 अंकों से अधिक हो जाने, एचडीएल कोलैस्ट्रौल का प्रतिशत 35 मिलीग्राम से कम होने व ट्राइग्लिसराइड का प्रतिशत बढ़ कर 250 मिलीग्राम के पार जाने और धमनियों में रुकावट के लक्षण उपजने पर डायबिटीज का रिस्क बढ़ जाता है. जिस स्त्री को पोलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज रही होती है या जिस स्त्री की प्रैगनैंसी में ब्लडशुगर बढ़ने की हिस्ट्री होती है या जिस स्त्री ने पहले कभी 9 पाउंड से अधिक वजन के बच्चे को जन्म दिया होता है, उसे भी ब्लडशुगर पर खास निगरानी रखने की जरूरत होती है.

लेकिन इन जानकारियों को पा कर आप न तो घबराएं ही, न ही परेशान हों. अगर आप सही जीवनशैली अपना लें, तो बहुत संभव है कि आप इस रोग से साफ बच जाएं. संतुलित खानपान, नियमित व्यायाम और वजन पर विशेष ध्यान रखने से टाइप 2 डायबिटीज की दर 50-60% घटाई जा सकती है. संतुलित खानपान का माने है कि रोजाना कैलोरी जरूरत के मुताबिक ही लें. फैट कम मात्रा में लें यानी जंक फूड और फास्ट फूड को तिलांजलि दे दें और घी, मक्खन सीमित मात्रा में प्रयोग करें. खाना पकाने के लिए सूरजमुखी, सरसों और मूंगफली का तेल मिला कर इस्तेमाल करें और भोजन में प्राकृतिक रेशेदार चीजों पर जोर रखें. रोजाना नियम से शारीरिक कसरत करें. चुस्त चाल से की गई सैर, तैराकी, साइक्लिंग और बैडमिंटन जैसा कोई खेल इस दृष्टि से अच्छा होता है. तीसरी बात यह है कि यदि वजन अधिक है, तो उसे घटाने की पूरी कोशिश करें. मात्र 5% वजन कम करने से भी डायबिटीज का जोखिम घट जाता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मुझे डायबिटीज है तो क्या मुझे फल खाना बंद कर देना चाहिए?

सवाल

मुझे फल खाना बहुत पसंद है, लेकिन मुझे डायबिटीज है. ऐसे में क्या मुझे इन्हें खाना बंद कर देना चाहिए?

जवाब

यह एक सामान्य लेकिन पूरी तरह से गलत धारणा है. जिन्हें डायबिटीज है वे सामान्य लोगों की तरह सभी फल खा सकते हैं, लेकिन उन्हें केवल मात्रा का ध्यान रखना चाहिए. आप रोज 150-200 ग्राम फल बिना किसी परेशानी के खा सकती हैं. जिन्हें डायबिटीज है उन्हें ऐसे फल खाना चाहिए जिन का ग्लाइसेमिक इंडैक्स कम हो, जैसे सेब, संतरा, पपीता, नाशपाती, अमरूद, अनार. अंगूर, आम, चीकू, पाइनऐप्पल से परहेज करना चाहिए, लेकिन अगर बहुत मन करे तो कभीकभार बिलकुल थोड़ी मात्रा में इन्हें ले सकते हैं.

ये भी पढ़ें-

सवाल

मेरे 12 वर्षीय बेटे को डायबिटीज है. मैं जानना चाहती हूं जुवेनाइल डायबिटीज के प्रबंधन में कैसे करूं?

जवाब

टाइप 1 डायबिटीज टाइप 2 डायबिटीज से ज्यादा गंभीर होती है क्योंकि इस का प्रबंधन मुश्किल होता है. जब एक बार बच्चे इंसुलिन पर निर्भर हो जाते हैं, तो फिर हमेशा उन्हें इस की जरूरत पड़ती है. लेकिन खानपान में बदलाव ला कर इंसुलिन पर निर्भरता को कम किया जा सकता है. डाक्टर से मिल कर डाइट चार्ट तैयार कराएं और अपने बच्चे को इस का कड़ाई से पालन करने के लिए प्रेरित करें. अपने खानपान में भी बदलाव लाएं ताकि बच्चा खुद को अलगथलग महसूस न करे. उसे अपने साथ वाक पर ले जाएं, ऐक्सरसाइज और योग करने के लिए प्रेरित करें. जुवेनाइल डायबिटीज से पीडि़त बच्चों में कभीकभी रक्त में शुगर का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है. इसलिए स्कूल में भी बताएं कि आप का बच्चा जुवेनाइल डायबिटीज से पीडि़त है. उस के दोस्तों को भी इस बारे में बताएं ताकि किसी आपातकालीन स्थिति से निबटने में परेशानी न हो.

ये भी पढ़ें-

सवाल

मेरे पति को पिछले 10 साल से डायबिटीज है. मैं आजकल डायबिटीज रिवर्सल के बारे में बहुत सुन रही हूं. डायबिटीज रिवर्सल क्या होता है? क्या अब डायबिटीज से छुटकारा पाना संभव है?

जवाब

डायबिटीज रिवर्सल उस स्थिति को कहते हैं जब मरीज का शुगर लैवल सामान्य रेंज में है और उसे दवाइयां लेने की जरूरत नहीं होती है. लेकिन इसे क्योर नहीं रिवर्सल इसलिए कहा जाता है क्योंकि शरीर में डिजीज मैकेनिज्म और पैथोलौजी बनी रहती है. किसी भी बीमारी के लिए क्योर शब्दावली तभी इस्तेमाल की जाती है जब यह कभी दोबारा न हो. लेकिन डायबिटीज रिवर्सल में दोबारा होने का खतरा बना रहता है. डायबिटीज रिवर्सल टाइप 2 डायबिटीज में होता है. यह टाइप 1 डायबिटीज में नहीं होता है क्योंकि यह इंसुलिन डिपैंडैंट होता है.

डायबिटीज रिवर्सल तभी हो पाता है, जब मरीज डाक्टर की देखरेख में एक अत्यधिक अनुशासित जीवनशैली का पालन करता है, संतुलित भार बनाए रखता है, नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करता है और खानपान पर नियंत्रण रखता है.

डा. ए.के. झिंगन

चेयरमैन, डेल्ही डायबिटीज रिसर्च सैंटर,

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.  नई दिल्ली 

डायबिटीज के चपेट में परिवार भी

भारत में हर व्यक्ति किसी न किसी ऐसे व्यक्ति को जानता होगा जिसे डायबिटीज की बीमारी होगी क्योंकि यहां 6.20 करोड़ लोग इस मर्ज से पीडि़त हैं. अनुमान है कि 2030 तक पीडि़तों की संख्या 10 करोड़ तक पहुंच जाएगी. अस्वस्थ खानपान, शारीरिक व्यायाम की कमी और तनाव डायबिटीज का मुख्य कारण बनते हैं.

इस बीमारी से भविष्य में मरीजों के साथसाथ उन के परिवारों और देश पर पड़ने वाले आर्थिक व मानसिक बोझ को देखते हुए इस से बचाव और समय पर इस का प्रबंधन बेहद जरूरी है. एक अध्ययन के मुताबिक, डायबिटीज और इस से जुड़ी बीमारियों के इलाज व मैनेजमैंट का खर्च भारत में 73 अरब रुपए है.

पेनक्रियाज जब आवश्यक इंसुलिन नहीं बनाती या शरीर जब बने हुए इनसुलिन का उचित प्रयोग नहीं कर पाता तो डायबिटीज होती है जो कि एक लंबी बीमारी है. इंसुलिन वह हार्मोन है जो ब्लडशुगर को नियंत्रित करता है. अनियंत्रित डायबिटीज की वजह से आमतौर पर ब्लडशुगर की समस्या हो जाती है. इस के चलते आगे चल कर शरीर के नाड़ी तंत्र और रक्त धमनियों सहित कई अहम अंगों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है.

रोग, रोगी और बचाव

डायबिटीज बचपन से ले कर बुढ़ापे तक किसी भी उम्र में हो सकती है. गोरों के मुकाबले भारतीयों में यह बीमारी 10-15 साल जल्दी हो जाती है. चूंकि इस का अभी तक कोई पक्का इलाज नहीं है और नियमित इलाज पूरी उम्र चलता है, इसलिए बाद में दवा पर निर्भर होने से बेहतर है अभी से बचाव

कर लिया जाए. जीवनशैली में मामूली बदलाव कर के डायबिटीज होने के खतरे को कम किया जा सकता है, कुछ मामलों में तो शुरुआती दौर में इसे ठीक भी किया गया है.

परिवार पर मार

दूसरी बीमारियों के मुकाबले डायबिटीज एक पारिवारिक रोग सरीखा है. इस के प्रभाव एक व्यक्ति पर नहीं पड़ते. घर के किसी सदस्य के डायबिटीज से पीडि़त होने पर पूरे परिवार को अपने खानपान व जीवन के अन्य तरीके बदलने पड़ते हैं. रोग का परिवार के बजट पर भी गहरा असर पड़ता है.

पर्सन सैंटर्ड केयर इन द सैकंड डायबिटीज एटीट्यूड, विशेज ऐंड नीड्स: इंसपीरेशन फ्रौम इंडिया नामक एक मल्टीनैशनल स्टडी में पता चला कि डायबिटीज की वजह से शारीरिक, आर्थिक व भावनात्मक बोझ पूरे परिवार को उठाना पड़ता है. इस के तहत दुनियाभर के 34 प्रतिशत परिवार कहते हैं कि किसी परिवारजन को डायबिटीज होने से परिवार के आर्थिक हालात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जबकि भारत में ऐसे परिवारों की संख्या 93 से 97 प्रतिशत तक है.

दुनियाभर में 20 प्रतिशत पारिवारिक सदस्य मानते हैं कि डायबिटीज की वजह से लोग उन के अपनों से भेदभाव करते हैं. दरअसल, जिस समाज में वे रहते हैं उसे डायबिटीज पसंद नहीं है जबकि भारत में ऐसे 14-32 प्रतिशत परिवार ऐसा ही महसूस करते हैं.

वक्त पर इस का प्रबंधन करने के लिए डायबिटीज के रोगी के परिवार की भूमिका अहम होती है. यह साबित हो चुका है कि परिवार का सहयोग न मिलने पर रोगी अकसर अपनी दवा का नियमित सेवन और ग्लूकोज पर नियंत्रण नहीं रख पाता. इसलिए जरूरी है कि परिवार का एक सदस्य शुरुआत से ही इन सब बातों का ध्यान रखने में जुट जाए. डाक्टर के पास जाते वक्त साथ जा कर पारिवारिक सदस्य न सिर्फ काउंसलिंग सैशन का हिस्सा बन सकता है बल्कि यह भी समझ सकता है कि इस हालत को वे बेहतर तरीके से कैसे मैनेज कर सकते हैं.

कैसे करें शुगर प्रबंधन

डायबिटीज को मैनेज किया जा सकता है. अगर उचित कदम उठाए जाएं तो इस के रोगी लंबा व सामान्य जीवन गुजार सकते हैं. प्रबंधन के लिए कुछ कदम इस प्रकार हैं :

–  पेट के मोटापे पर नियंत्रण रख के इस से बचा जा सकता है क्योंकि इस का सीधा संबंध टाइप 2 डायबिटीज से है. पुरुष अपनी कमर का घेरा 40 इंच और महिलाएं 35 इंज तक रखें. सेहतमंद और संतुलित खानपान, नियमित व्यायाम मोटापे पर काबू    पाने में मदद कर सकता है.

–  गुड कोलैस्ट्रौल 50 एमजी रखने से दिल के रोग और डायबिटीज से बचा जा सकता है.

–  ट्रिग्सीसाइड एक आहारीय फैट है जो मीट व दुग्ध उत्पादों में होता है जिसे शरीर ऊर्जा के लिए प्रयोग करता है और अकसर शरीर में जमा कर लेता है. इस का स्तर 150 एमजी या इस से ज्यादा होने पर यह डायबिटीज का खतरा बढ़ा सकता है.

–  आप का सिस्टौलिक ब्लडप्रैशर 130 से कम और डायस्टौलिक ब्लडप्रैशर 85 से कम होना चाहिए. तनावमुक्त रह कर ऐसा किया जा सकता है.

–  खाली पेट ग्लूकोज 100 एमजी या ज्यादा होने से डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.

–  दिन में 10,000 कदम चलने की सलाह दी जाती है.

परिवार मिल कर सप्ताह में 6 दिन सेहतमंद खानपान और रविवार को चीट डे के रूप में अपना सकते हैं ताकि नियमितरूप से हाई ट्रांस फैट और मीठा खाने से बचा जा सके. रविवार को बाहर जा कर शारीरिक व्यायाम करने के लिए भी रखा जा सकता है. परिवार में तनावमुक्त जीवन जीने की प्रभावशाली तकनीक बता कर सेहतमंद व खुशहाल जीवन जीने के लिए उत्साहित कर के एकदूसरे की मदद की जा सकती है.

(लेखक एंडोक्राइनोलौजिस्ट हैं.)

सास को डायबिटीज में चश्मा लगाने के बाद भी धुंधला दिखाई देता है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी सास को डायबिटीज है. उन्हें चश्मा लगाने के बाद भी धुंधला दिखाई देता है. क्या यह आंखों से संबंधित किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या का संकेत है?

जवाब-

यह समस्या उन्हें डायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण हो रही है. रक्त में शुगर के उच्च स्तर के कारण रेटिना क्षतिग्रस्त हो जाता है. अगर समय रहते इस का उपचार न कराया जाए तो आंखों की रोशनी भी जा सकती है. इसलिए जिन लोगों को डायबिटीज है उन्हें हर 6 महीनों में अपनी आंखों की जांच कराने के लिए कहा जाता है. आप तुरंत उन की आंखों की जांच कराएं और रक्त में शुगर के स्तर को अनियंत्रित न होने दें.

ये भी पढ़ें- मेरी एड़िया काली पड़ने लग गई हैं, मैं क्या करुं?

ये भी पढ़ें- 

मधुमेह यानी डायबीटिज खतरनाक रोग है, जो शरीर को धीरेधीरे खोखला कर देता है. इस बीमारी में रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है. चूंकि हमारे शरीर के हर हिस्से में रक्तसंचार होता है, इसलिए मधुमेह होने पर शरीर का कोई भी हिस्सा खराब हो सकता है. मधुमेह होने पर हार्टअटैक, किडनियों के खराब होने और आंखों की रोशनी तक चले जाने की बहुत संभावना रहती है.

पहले यह बीमारी एक निश्चित वर्ग और उम्र के लोगों को ही होती थी, लेकिन वर्तमान में असंतुलित खानपान और अव्यवस्थित रहनसहन के कारण बच्चों, बूढ़ों और युवाओं सभी को यह बीमारी अपनी चपेट में ले रही है. इस बीमारी से बचने और नजात पाने के निम्न उपाय हैं. जिन पर अमल कर के मधुमेह से बचा जा सकता है:

क्या करें

वजन कम करें: अकसर लोग अपने खानपान पर नियंत्रण नहीं रख पाते. दिन में जितनी बार भी भूख लगती है कुछ भी खा कर पेट भर लेते हैं. ऐसा करने से वजन तो बढ़ता ही है साथ ही असंतुलित आहार शरीर को बीमारियों का घर भी बना देता है. इन बीमारियों में ओबेसिटी यानी मोटापा बेहिसाब और बेवक्त खाने का ही नतीजा होता है. ओबेसिटी के शिकार को डायबिटीज आसानी से अपना शिकार बना लेती है. लेकिन इस का शिकार होने से बचा जा सकता है और इस के लिए ज्यादा मशक्कत करने की भी जरूरत नहीं पड़ती. बस, अपने आहार को छोटेछोटे मील्स में विभाजित कर दीजिए. हर मील का समय निर्धारित हो. इस से आप की भूख भी नियंत्रित हो जाएगी और वजन भी नहीं बढ़ेगा. इस के अलावा वजन कम करने के लिए दिन में 1 बार 30 से 45 मिनट तेज चलने की आदत डालें. इस से ब्लडशुगर कंट्रोल में रहती है. हफ्ते में 4-5 दिन तेज चलें.

जब खतरा हो डायबिटीज का

डाइबिटीज एक तरह का मेटाबौलिज्म  डिसआर्डर है. सामान्यता हमारे द्वारा खाए गए भोजन का अधिकांश हिस्सा ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है. पाचन के बाद ग्लूकोज खून के जरिए कोशिकाओं तक पहुंचता है, जहां कोशिकाएं इस का उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने और उस की वृद्धि में करती हैं. इस कार्य में मददगार होता है पैंक्रियाज से निकलने वाला खास हारमोन इंसुलिन. डाइबिटीज से पीडि़त व्यक्तियों के शरीर से इंसुलिन निकलना बंद हो जाता है या कम होता है या फिर शरीर इस इंसुलिन का उपयोग ही नहीं कर पाता. ऐसे में शरीर में रक्त शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, जो पेशाब के जरिए बाहर आने लगती है.

मुख्य रूप से डाइबिटीज 2 तरह की होती है :

टाइप 1 : इस में इम्यून सिस्टम इंसुलिन उत्पाद करने वाली बीटा कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट करने लगता है, जिस से इंसुलिन की कमी हो जाती है और शरीर में रक्त शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है.

इस के मुख्य लक्ष्ण हैं- प्यास ज्यादा लगना, बारबार पेशाब आना, भूख बढ़ना, वजन कम होना, धुंधला नजर आना और बहुत ज्यादा थकावट महसूस करना.

टाइप 2 : 90 से 95% लोग टाइप 2 डाइबिटीज से पीडि़त होते हैं. इस स्थिति में पैंक्रियाज से इंसुलिन तो काफी मात्रा में निकलता है पर शरीर इस का सही उपयोग नहीं कर पाता है. इस अवस्था को इंसुलिन रिजिस्टेंस कहा जाता है. समय के साथ इंसुलिन उत्पादन भी घटने लगता है.

ये भी पढ़ें- इन 6 तरीकों में नींद हो सकती है आपकी सुपर पावर

टाइप 2 डाइबिटीज के लक्षण धीरेधीरे  विकसित होते हैं. इन में प्रमुख हैं- थकान होना, अधिक प्यास लगना, ज्यादा भूख लगना, वजन में परिवर्तन, नजर का धुंधला पड़ना, व्याकुलता होना, इन्फैक्शन होना (स्किन इन्फैक्शन, यूटीआई), घाव भरने में वक्त लगना आदि. इस समस्या के लिए मुख्य रूप से मोटापा और अधिक उम्र जिम्मेदार होती है. टाइप 2 से पीडि़त 80% लोग अधिक वजन के होते हैं. इस के अलावा डाइबिटिक फैमिली हिस्ट्री, शारीरिक असक्रियता, तनाव, इन्फैक्शन, हाइपरटेंशन आदि मुख्य कारण हैं. डाइबिटीज की वजह से किडनी, दिल, नर्वस सिस्टम और आंखोें पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए इस से बचाव बहुत जरूरी है. साधारणतया, डाइबिटीज की समस्या पूरी तरह ठीक नहीं हो पाती, मगर नियमित दवा लेने, व्यायाम करने, शारीरिक सक्रियता और खानपान का ध्यान रख कर हम इसे कंट्रोल में रख सकते हैं. मसलन :

अपने भोजन में पोषक तत्त्वों, जैसे विटामिन बी6, विटामिन सी,ई,डी, जिंक, मैग्नीशियम, बायोटिन, क्रोमियम, ओमेगा 3 आदि की संतुलित मात्रा लेने का प्रयास करें. हाई फाइबर वाली सब्जियां खाएं. जंक फूड, सैचुरेटेड फैट या कोलैस्ट्रौल बढ़ाने वाली चीजें कम लें.

शारीरिक सक्रियता बनाए रखें. रोज कम से कम 30 मिनट जरूर टहलें.

ब्लडप्रैशर व कोलैस्ट्रौल नियमित रखें और इन की नियमित जांच कराते रहें. ब्लड ग्लूकोज की जांच भी नियमित अंतराल पर कराएं.

ताजा रिसर्च में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने पाया है कि बहुत से हर्बल सप्लीमैंट, जैसे बिल्बरी, गर्लिक, त्रिफला, ओनियन, नोपल कैक्टस, मेलन वगैरह भी ग्लूकोज लेवल घटाने में सहायक हैं. अत: इन का उपयोग भी किया जा सकता है.

वजन न बढ़ने दें और तनाव से भी बचें.

ये भी पढ़ें- इन 6 वार्निंग सिग्नल्स न करें अनदेखा

‘वर्ल्ड डायबिटिक डे’ पर रेटिनोपैथी के बारें में जाने यहां

सुमति जब नींद से उठी, तो उसकी आँखों के आगे दिवार पर कुछ काले-काले धब्बे दिखाई पड़ रही थी, ऐसा लग रहा था मानों आँखों में कुछ डाला गया हो. सुमति को कुछ पता नहीं चल पा रहा था और हर चीज उसे धुंधली दिख रही थी.सुमति ने घर में पड़ी ऑय ड्राप दो से तीन बार डाली, जिससे धीरे-धीरे आँख कुछ ठीक हुआ, लेकिन फिर आँखों में खून के थक्के दिखाई पड़ने लगी. मोबाइल की बटन भी धुंधली थी. अब उसे चिंता सताने लगी और वह आंख के डॉक्टर के पास गयी, जहाँ उसे डॉक्टर ने जांच की और उसे कुछ जांच करवाने की सलाह दी. जांच के बाद पता चला कि उसकी शुगर लेवल 204 थी, जिसे काफी अधिक माना जाता है. सुमति अब डायबिटीज की डॉक्टर के पास गयी, जहाँ उसे नियमित मधुमेह की दवा लेने की सलाह दी गयी, लेकिन तब भी सुमति अपनी आँखों को लेकर चिंतित थी, क्योंकि आज हर काम के लिए मोबाइल का प्रयोग करना पड़ता है, ऐसे में आँखों पर अधिक जोर पड़ने से उसकी आँखों में दर्द भी होता था, लेकिन नियमित डॉक्टर की सलाह और दवा से वह कुछ ठीक हुई है.

असल में डायबिटीज रोगी की आँखों में सामान्य व्यक्ति की तुलना में रौशनी गवाने की आशंका 20 गुना अधिक होती है. इसलिए समय रहते अगर इसे काबू में न किया जाय, तो आँखों की समस्या बढती जाती है. डायबिटीज की वजह से होने वाली आँखों की इस समस्या को रेटिनोपैथी कहा जाता है. इस बीमारी के लगातार बढ़ने और जागरूकता को बढ़ाने के लिए हर साल 14 नवम्बर को‘वर्ल्ड डायबिटीज डे’ मनाया जाता है.

इस बारें में ‘साईटसेवर्स’ संस्था की ऑय एक्सपर्ट डॉ. संदीप बूटान कहते है कि भारत में मधुमेह के रोगी तेजी से बढ़ता जा रहा है और अब तक यह6.5 करोड़ वयस्कों को प्रभावित कर चुका है. इस रोग से प्रभावित होने वाली रोगियो की संख्या वर्ष2045तक बढ़कर 13 करोड़ से अधिक होने की संभावना है. डायबिटीज के सभी केसेज में लगभग हर पाँचवे व्यक्ति को आँखों से संबंधित कुछ गंभीर समस्याएँ विकसित होने की संभावना होती है, इन सभी समस्याओं में से सबसे ज्यादा होने वाली समस्या डायबिटिक रेटिनोपैथी की है. डायबिटिक रेटिनोपैथी पहले से ही दक्षिण एशिया में कम दृष्टि और अंधेपन का एक महत्वपूर्ण कारण रहा है. यह रोग तब तक बढेगा, जबतक डायबिटिक रेटिनोपैथी के मामलों को कम करने और इसके इलाज को प्रभावी तरीके से अपनाया नहीं जाता.

ये भी पढ़ें-Testosterone का स्‍तर कम होना है खतरनाक

शुरूआती लक्षण

ज्यादातर शुरुआती केसेज में आँखोंपर किसी प्रकार के महत्वपूर्ण लक्षण नहीं दिखाई देते.  कुछ मामलों में, आँखों के सामने छोटे-छोटे काले धब्बे दिखाई दे सकते है और केवल कुछ रोगियों को ही धुंधली दृष्टि की शिकायत हो सकती है, क्योंकि ये शुरूआती मैकुलर एडीमा (आँखों के पीछे की तरफ सूजन) के लक्षण है.

रोकने के उपाय

डॉ संदीप का आगे कहना है कि शुरूआती दिनों में, आँखों की गंभीर समस्याओं के विकास और इसे फैलने से रोकने के लिए ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर पर सख्त नियंत्रण रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है. आँखों में शुरुआती बदलावों (आँखों के पीछे की ओर छोटी रक्त वाहिकाओं से रिसाव) का उपचार लेजर थेरेपी से किया जा सकता है और रेटिना (मैक्यूलर ऐडिमा) के केंद्रीय भाग में सूजन आने की स्थिति में, इंट्रा-विट्रियल इंजेक्शन की आवश्यकता पड़ सकती है.अधिक गंभीर मामलों में, बड़ी रेटिनल सर्जरी की आवश्यकता होती है, लेकिन इसके द्वारा रोग का सफलतापूर्वक निदानहोने की संभावना बहुत ही कम होती है. डायबिटिक रेटिनोपैथी के लिए किसी भी उपचार का परिणाम काफी हद तक उस चरण पर निर्भर करता है, जिसमें इसका इस्तेमाल किया जाता है, खासकर शुरूआती चरणों में इसके सफल होने की संभावनाएँ अधिक होती है.

रोगियों की बढती संख्या

डायबिटीज के रोगियों में, रोग की बढ़ती अवधि के दौरान रेटिनोपैथी के विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है. डायबिटीज के लगभग 10 से 25 प्रतिशतरोगियों में रेटिना में परिवर्तन होने की संभावना होती है और इनमें से लगभग दसवें भाग तक के रोगियों में एडवांस्ड स्टेज में होती है, जिन्हें जल्दी उपचार कराने की जरुरत होती है.

क्या है सही इलाज

डॉ. संदीप कहते है कि डायबिटिक रेटिनोपैथी की सही ट्रीटमेंट इसे जल्दी पता कर औरमेटाबोलिज्म को कंट्रोल कर इलाज करवाना है. इसके अलावा नियमित और विस्तृत नेत्र परिक्षण हर साल करवाने से इसका जल्दी पता चल जाता है. मुख्य बीमारी को नियंत्रण में रखने के लिए उचित आहार,सही आदतें और जीवनशैली में बदलाव भी इस बीमारी की गति को रोकने में सफल होती है, साथ ही समय पर रोज डायबिटीज की दवा लेना और शुगर लेवल चेक करना भी जरुरी है, खासकर महिलाओं को इस बारें में अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है.

ये भी पढ़ें- Winter Special: जाड़े में भी स्वस्थ रहेंगे अस्थमा के रोगी

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें