Film Review : दिल को छू लेगी सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म, हर सीन में हैं इमोशन

रेटिंग – 3 स्टार

निर्माता – फॉक्स स्टार स्टूडियो

निर्देशक – मुकेश छाबड़ा

कलाकार – स्वर्गीय सुशांत सिंह राजपूत, संजना सांघी, साहिल वैद्द्य.

ओटीटी प्लेटफॉर्म हॉटस्टार डिजनी

अवधि – एक घंटा 41 मिनट

हॉलीवुड फिल्म “द फास्ट इन अवर स्टास” की हिंदी रीमेक फिल्म “दिल बेचारा” दो कैंसर मरीजों की खूबसूरत प्रेम कहानी है. जिसमें जीवन और मृत्यु को लेकर भावुक और दार्शनिक बातें भी हैं. फिल्म में खूबसूरत संवाद है -“जीना और मरना तो हम डिसाइड नहीं करते लेकिन कैसे जीना है यह हम डिसाइड कर सकते हैं.”

कहानी

फिल्म की शुरुआत में एक बहुत पुरानी लघुकथा है -एक था राजा, एक थी रानी ,दोनों मर गए, खत्म हो गयी कहानी. यह कहानी है किज्जी (संजना सांघी) और इमैन्युअल राजकुमार ज्यूनियर उर्फ मैनी (सुशांत सिंह राजपूत) की. अफ्रीका के जांबिया में जन्मी किजजी( संजना सांघी )अब अपने माता पिता के साथ जमशेदपुर में रहती है. वह थायराइड कैंसर की मरीज है .हमेशा ऑक्सीजन के सिलिंडर के साथ ही रहती है . जबकि मैनी हड्डी कैंसर का मरीज है.

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मगर मस्त मौला है.यह एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं. जहां मैनी का खास दोस्त जे.पी (साहिल वैद्य) है, जिसे आंखों का कैंसर है. किज्जी को संगीतकार गायक अभिमन्यु वीर ( सैफ अली ) की तलाश है, जिन्होंने एक गाना अधूरा छोड़ दिया था. इन सभी का इलाज डॉक्टर झा ( पुनीत टंडन) कर रहे हैं .मैनी बीमारी के बावजूद भरपूर जिंदगी जीने में यकीन करता है. किज्जी और मैनी की नजदीकियां बढ़ती है .किज्जी अपनी मां और मैनी के साथ अभिमन्यु वीर से मिलने पेरिस जाती है. जहां अभिमन्यु कहता है कि जिंदगी ही अधूरी है ,इसलिए उनका गीत अधूरा है.पेरिस से लौटते ही मैनी की तबीयत बिगड़ती है और फिर उसकी मौत हो जाती है.

लेखन व निर्देशन:

फिल्म” दिल बेचारा” महज एक फिल्म नहीं है ,बल्कि एक भावुक यात्रा हैं. फिल्म देखते हुए हम सुशांत सिंह राजपूत तक पहुंचना भी चाहते हैं, जो कि संभव नहीं. पर अब सुशांत अमर है. पर फिल्म की पटकथा और निर्देशन काफी कमजोर है. यदि पटकथा लेखन पर थोड़ी सी मेहनत की गयी होती और निर्देशक मुकेश छाबड़ा ने ध्यान दिया होता तो यह एक क्लासिक फिल्म होती.फिल्म में एक दो दृश्य व संवाद ऐसे हैं , जिनकी वजह से यह साफ सुथरी फिल्म नहीं रही, जबकि इन दृश्यों के ना होने से कहानी पर असर नहीं पड़ना था.मगर निर्देशक के रूप में मुकेश छाबड़ा बुरी तरह से मात खा गए हैं. फिर भी यह फिल्म देखना एक भावना पूर्ण यात्रा है. इतना ही नहीं फिल्म में जिंदगी को लेकर एक अच्छा संदेश है .

लेकिन दिल बेचारा में मृत्यु की छाया घनी है. एक छोटे से दृश्य में सैफ अली का संवाद है, ‘जब कोई मर जाता है तो उसके साथ जीने की उम्मीद भी मर जाती है पर हमें मौत नहीं आती. खुद को मारना इलीगल है इसलिए जीना पड़ता है.’ इंसानी जीवन को लेकर बहुत कुछ कह जाता है.

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अभिनय

सुशांत सिंह राजपूत ने काफी संजीदा व उत्कृष्ट अभिनय किया है. संजना सांघी की यह पहली फिल्म है ,मगर उनकी परफॉर्मेंस भी अच्छी है .स्वस्तिका मुखर्जी और सास्वत चटर्जी ने अच्छा काम किया है .छोटी सी भूमिका में सैफ अली खान अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

सुशांत सिंह राजपूत के प्रशंसकों को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए..

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