romantic story in hindi
romantic story in hindi
जल्दीजल्दी वह भीड़ से निकल कर मेले के बाहर बरगद के पेड़ की आड़ में खड़ी हो गई और अपने रूमाल से चेहरा छिपा कर रो पड़ी. 2 मिनट बाद रूमाल हटा कर उसी से अपना चेहरा साफ करने लगी. पूरा चेहरा आंसुओं से भीग चुका था. दिल दर्द से भरा हुआ था. किसी तरह से उस ने अपने ऊपर काबू किया और जैसे ही वह मुड़ी, सामने किशोर मुसकराता हुआ खड़ा था. अब भला पुष्पा अपने ऊपर काबू कैसे रख पाती. किशोर के प्रेम को पूरे एक साल तक उस ने दिल में ही दबा कर रखा था. इस समय वह अपने को रोक नहीं पाई.
किशोर को सामने पा वह सब भूल कर उस के सीने से लग कर फिर से सिसक पड़ी. ‘ओ किशोर, कहां थे अभी तक, कब से तुम्हें ढूंढ़ रही थी? अब तो निराश हो गई थी. तुम से मिलने की आशा भी छोड़ चुकी थी,’ रोते हुए पुष्पा बोली.
‘मैं भी सुबह से तुम्हें मेले में ढूंढ़ रहा हूं. मुझे लगा तुम सब भूल गई हो और मैं निराश हो कर मेले से बाहर निकल आया. यहां आ कर मैं ने तुम्हें रोते हुए देखा तो सब समझ गया और तुम्हारे पीछे खड़ा हो गया.’
किशोर की बांहें भी पुष्पा की पीठ पर कस गईर् थीं. थोड़ी देर तक दोनों दीनदुनिया से बेखबर एकदूसरे की बांहों में समाए हुए एकदूसरे की धड़कनें गिनते रहे. बरगद की शाखों पर बैठे पक्षी उन के प्रेम के साक्षी थे. उन के सामने के वृक्ष पर पत्तों के झुरमुट से एक कबूतर का जोड़ा आपस में लिपटे हुए उन्हीं दोनों को निहार रहा था. उन को मेले से कुछ लेनादेना नहीं था. दोनों वहीं बैठ गए और एकदूसरे के बारे में जानने की कोशिश करने लगे.
किशोर ने बताया, ‘मेरा इंग्लिश से एमए पूरा हो चुका है और अब नौकरी की तलाश में हूं. ‘तुम क्या कर रही हो?’
‘मेरा इंटर पूरा हो चुका है और घर में शादी की बात चल रही है,’ पुष्पा ने सिर झुका कर जवाब दिया.
बातें करतेकरते कितना समय बीत गया, दोनों को पता नहीं चला. बरगद के पेड़ पर पक्षियों का कलरव सुन कर जैसे वे होश में आ गए. फिर से एक बार बिछड़ने का समय आ गया था. जुदा होने के एहसास से ही पुष्पा की आंखें फिर से भीग गईं. तब किशोर ने उस के आंसू पोंछते हुए समझाया, ‘पुष्पा, अगर समय ने चाहा तो हम फिर मिलेंगे. हम एकदूसरे की जिंदगी में तो शामिल नहीं हो सकते पर एकदूसरे के दिल में हमेशा रहेंगे. मैं जिंदगीभर तुम्हें भूल नहीं पाऊंगा, शायद तुम भी.’
किशोर चला गया और पुष्पा भी भारी कदमों से अपने को घसीटती हुई घर आ गई थी. उस समय लड़का या लड़की किसी को भी इतनी इजाजत नहीं थी कि वह अपने दिल की बात अपने घर वालों को बता सके, न ही इतनी छूट थी कि वे एकदूसरे से मिल सकें. किशोर दूर के गांव में ठाकुर के घर का बेटा था और पुष्पा ब्राह्मण की बेटी, इसलिए ये दोनों कुछ सोच भी नहीं सकते थे.
कुछ दिनों बाद ही अच्छा लड़का देख कर पुष्पा की शादी कर दी गई. वह अपनी घरगृहस्थी में लग गई. धीरेधीरे किशोर की यादें उस के दिल के कोने में परतदरपरत दबती चली गईं.
अब की बार पुष्पा मायके आई तो मेला चल रहा था. आज 25 सालोें बाद वह फिर उसी मेले में आई. दिन भी वही. पति से बच्चों को घुमाने को बोल कर पुष्पा सिरदर्द का बहाना कर मेले के बाहर उसी बरगद के पेड़ के नीचे आ कर घास पर बैठ गई.
इस समय वह सब भूल कर किशोर की याद में डूब गईर् और अपने आंसुओं को रोक नहीं पाई. दिल पर लिखा हुआ किशोर का नाम जो वक्त के साथ धुंधला पड़ गया था, आज अचानक वह फिर से उभर गया था. वह अपने पर्स से रूमाल निकाल कर अपने आंसू पोंछने लगी पर आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. थोड़ी देर बाद ही सामने कुछ दूर एक गाड़ी आ कर रुकी. पुष्पा अपने आंसू पोंछने में लगी रही, सोचा, होगा कोई, उसे क्या.
गाड़ी ठीक उस के सामने ही रुकी थी. सो, न चाहते हुए भी उस की नजर उस पर पड़ रही थी. उस ने देखा गाड़ी में से एक लंबा सा आदमी फ्रैंचकट दाढ़ी में आंखों पर काला चश्मा लगाए हुए निकल कर उसी की ओर बढ़ा आ रहा है. उसे इस समय किसी का ध्यान नहीं है. वह यह भी भूल गई थी कि उस के पति व बच्चे मेले में हैं. इस समय वह खुद को भी भूल कर सिर्फ किशोर के खयालों में डूबी थी.
बरसों बाद उस की भावनाएं आज सारी परतें खोल कर बाहर आ गई थीं. वह आदमी उस के करीब आता जा रहा था. पुष्पा को लगा वह इसी रास्ते से मेले में जा रहा है. पुष्पा धीरेधीरे सिसकती हुई अपने पर काबू पाने की कोशिश भी करती जा रही थी. इतने में उस के कानों में धीरे से एक आवाज टकराई, ‘‘पुष्पा.’’
वह चौंक पड़ी, नजर उठा कर देखा वही आदमी उस के सामने खड़ा था. पुष्पा हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई. जल्दीजल्दी आंखें साफ कर के बोली, ‘‘जी, कहिए?’’
तब तक उस आदमी ने अपना चश्मा उतार लिया. अब पुष्पा उसे देख कर सिहर उठी, ‘‘कि…शो…र.’’ इस के आगे वह कुछ भी नहीं बोल पाई. आंखें फिर से बरस पड़ीं.
‘‘नहीं पुष्पा, रोना नहीं है. बस, थोड़ी देर मेरी बात सुनो. मैं कभी तुम्हें भूला नहीं. हर साल मैं इसी दिन मेले में आता रहा कि शायद कभी तुम से मुलाकात हो जाए और पूरा यकीन था कि एक न एक दिन तुम जरूर मिलोगी. मैं ने तो तुम्हें पहले ही बोला था कि मैं तुम्हारी जिंदगी में शामिल नहीं हो सकता पर तुम को कभी भी भूल नहीं पाऊंगा और देखो, मैं आज तक भूल नहीं पाया. पर आज के बाद अब कभी मेले में नहीं आऊंगा. एक बार तुम से मिलने की इच्छा थी जो आज पूरी हो गई. अब कोई इच्छा शेष नहीं,’’ कहते हुए किशोर भावुक हो गया.
‘‘कि…शो…र’’ पुष्पा के आंसू नहीं रुक रहे थे.
‘‘हां पुष्पा, तुम से मिलने की चाह मुझे मेले में खींच लाती थी हर साल.’’
इतनी देर में पुष्पा अपने को कुछ संभाल चुकी थी और उसे अपनी हालत का भान हो चुका था. वह धीरे से बोली, ‘‘अकेले आए हो? शादी की या नहीं? बच्चों को क्यों नहीं लाए?’’ पुष्पा ने एकसाथ कई सवाल कर दिए.
‘‘बच्चे होते, तो लाता न. तुम दिल से कभी गई ही नहीं. तो फिर कैसे किसी को अपना बनाता? मैं ने शादी नहीं की. अब इस उम्र में तो सवाल ही नहीं उठता. पर मैं बहुत खुश हूं कि तुम्हारी यादों के सहारे जिंदगी आराम से कट रही है. बस, एक बार तुम्हें देखने की इच्छा थी जो पूरी हो गई. अब कभी तुम्हारे सामने नहीं पडं़ूगा, चलता हूं. तुम्हारे पति आते होंगे.’’ इतना कह कर किशोर पलट कर चल पड़ा.
पुष्पा जैसे नींद से जागी, किशोर के मुंह से पति का नाम सुन कर वह पूरी तरह यथार्थ के धरातल पर आ चुकी थी.
किशोर चला जा रहा था और वह चाह कर भी उसे रोक नहीं पा रही थी. वह उसे पुकारना चाहती थी, कुछ कहना चाहती थी पर कोई अदृश्य शक्ति उसे ऐसा करने से रोक रही थी. वह अपनी जगह से हिल न सकी, न ही उस के कोई बोल फूटे, पर दिल में एक टीस सी उठी और आंखों से न चाहते हुए भी दो बूंद आंसू लुढ़क कर उस के गालों पर लकीर खींचते हुए उस के आंचल में समा गए हमेशा के लिए. वह किशोर को तब तक देखती रही जब तक वह गाड़ी में बैठ कर उस की नजरों से ओझल नहीं हो गया. एक छोटी सी प्रेम कहानी मेले से शुरू हो कर मेल में ही खत्म हो गई थी.
पुष्पा ने अपने दिल के किवाड़ बंद किए और सामान्य दिखने की कोशिश करने लगी. उस ने वहीं पास के हैंडपंप से पानी खींच कर मुंह धोया और अपनी गाड़ी में आ कर बैठ गई. अतीत से वर्तमान में आ चुकी थी पुष्पा. किशोर की यादों को उस ने अपने दिल की पेटी में सब से नीचे दबा दिया फिर कभी न खोलने के लिए. थोड़ी देर बाद ही सब मेले से वापस घर आ गए और 2 दिनों बाद ही सब शहर के लिए रवाना हो गए.
इस बात को लगभग 2 महीने बीत चुके थे. कभीकभी वह अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती थी किशोर के लिए. वह खुद तो एक बेहद प्यार करने वाले पति और बच्चों के साथ सुखद गृहस्थ जीवन जी रही थी पर किशोर उस के कारण अकेलेपन को गले लगा कर बैठा था. पर करे क्या वह, कुछ समझ नहीं पा रही थी. यों तो पुष्पा ने अपने दिल के भीतर किशोर की यादों को दबा कर किवाड़ बंद कर दिया था, पर कभीकभी पुष्पा को अकेली पा कर वे यादें किवाड़ खटखटा दिया करती थीं. अचानक फोन की घंटी बजी, फोन उठा लिया पुष्पा ने.
‘‘हैलो.’’
‘‘अच्छा…’’
‘‘वही ना जिन की शादी के एक महीने बाद ही…’’
‘‘ठीक…’’
‘‘अच्छी बात है…’’
‘‘कर देती हूं.’’
आगे पढ़ें- अशोक हमेशा उस के बारे में…
अशोक (उस के पति) का फोन था. उन की दूर की बहन आरती आ रही थी. वह प्राइमरी टीचर थी और उस का स्थानांतरण पुष्पा के शहर में हुआ था. कुछ दिन साथ रह कर फिर वह अपने लिए कोई ढंग का कमरा देख लेगी. इस शहर में अशोक और पुष्पा के सिवा और कोईर् भी नहीं था उस का.
अशोक हमेशा उस के बारे में पुष्पा से बातें करते रहते थे. आरती की शादी के एक महीने बाद ही होली के दिन उस के पति की डूब कर मृत्यु हो गई थी. होली खेलने के बाद वे नदी में स्नान करने के लिए गए थे, फिर वापस नहीं आए. उस दिन से आरती कभी ससुराल नहीं गई. कई बार उस ने जाने की जिद की, पर उस के मायके वालों ने जाने नहीं दिया. सभी इस कोशिश में थे कि कोई अच्छा लड़का मिल जाए तो आरती की दोबारा शादी कर दी जाए. चूंकि वह एक महीने की सुहागिन विधवा थी, इसलिए विवाह में समस्या आ रही थी. दूसरे, वह भी इस के लिए राजी नहीं हो रही थी. अशोक भी उस की शादी के लिए कोशिश कर रहे थे.
पुष्पा ने बच्चों के कमरे में आरती के रहने का इंतजाम कर दिया. आरती लंबी सी भरेपूरे शरीर की खूबसूरत, हिम्मती, हौसलेमंद, स्वभाव की नेक और बच्चों में घुलमिल कर रहने वाली खुशदिल युवती थी. उस के आने से घर में रौनक हो गई थी. बच्चे भी खुश थे.
पता ही नहीं चला कि आरती के आए हुए एक सप्ताह हो गया था. उस दिन शाम को आरती और बच्चे आराम से बालकनी में बैठ कर कैरम खेल रहे थे. इतने में अशोक की गाड़ी की आवाज सुन कर पुष्पा चौंक पड़ी. उस ने सवालिया निगाहों से आरती की तरफ देखा और बोली, ‘‘आज, इतनी जल्दी कैसे?’’
जल्दी से नीचे आ कर उस ने गेट खोला और फिर से वही बात अशोक से बोली, ‘‘आज इतनी जल्दी कैसे?’’
अशोक गाड़ी से नाश्ते का समान निकालते हुए बोले, ‘‘मेरे एक मित्र अभी आ रहे हैं, इसलिए आज जल्दी आना पड़ा. वे जर्नलिस्ट हैं, कल ही उन्हें वापस दिल्ली जाना है, इसीलिए उन्हें आज ही घर पर बुलाना पड़ा. तुम से बताने का समय भी नहीं मिला. जल्दी से आरती के साथ मिल कर तैयारी कर लो. बस, वे आते ही होंगे.’’ बात करते हुए दोनों भीतर आ गए थे.
पुष्पा ने जल्दी से आरती को आवाज दी और खुद ड्राइंगरूम सही करने में जुट गई. इतने में अशोक ने पुष्पा को इशारे से बैडरूम में बुला कर धीरे से कहा, ‘‘ध्यान से देख लेना, मैं चाहता हूं कि किसी तरह आरती का विवाह इस से करा सकूं. वरना इस उम्र में आरती के लिए कोई भी अविवाहित लड़का मिलना बहुत मुश्किल है.’’
‘‘अच्छा, तो यह बात है,’’ पुष्पा खुशी से चहक उठी. अशोक ने मुंह पर उंगली रख कर उसे चुप रहने को कहा और गेट की तरफ बढ़ गया.
पुष्पा की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह इन 6-7 दिनों में ही आरती से बहुत घुलमिल गईर् थी. लग ही नहीं रहा था कि वे दोनों पहली बार मिली थीं. एक दोस्ती का रिश्ता बन गया था दोनों में. दोनों ने मिल कर तैयारी कर ली थी.
थोड़ी देर बाद ही सफेद रंग की लंबी सी गाड़ी दरवाजे पर आ कर रुकी. पुष्पा समझ गई, वे आ गए थे जिन की प्रतीक्षा हो रही थी. पुष्पा ने आरती को कोल्डड्रिंक ले कर जाने की जिम्मेदारी सौंप दी थी और खुद कौफी बनाने की तैयारी में लग गई. वह चाहती थी कि ज्यादा से ज्यादा आरती को मौका मिले उसे देखने का ताकि उसे विवाह के लिए राजी किया जा सके.
थोड़ी देर बाद अशोक ने पुष्पा को आवाज दिया. पुष्पा ने कौफी की ट्रे आरती को दी और खुद दूसरी ट्रे में नमकीन ले कर उस के पीछे चल दी. और जैसे ही पुष्पा ने ट्रे मेज पर रख कर दोनों हाथ जोड़ कर अभिवादन के लिए सामने बैठे व्यक्ति के ऊपर नजर डाली, उस के दिमाग को एक झटका लगा. कुछ यही हाल उस व्यक्ति का भी था. वह भी उसे देख कर सन्न रह गया था. दोनों हाथ जोड़े हैरान से खड़े थे. पर उन के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. उन दोनों को यों खड़े देख कर अशोक ने दोनों का परिचय कराया, ‘‘ये पुष्पा, मेरी पत्नी और ये मेरे मित्र किशोर राजवंशी.’’
पुष्पा का दिल जोरजोर से धड़क रहा
था. समय ने फिर से उन दोनों को
एकदूसरे के सामने ला खड़ा किया था. उस ने तो दिल के दरवाजे किशोर के लिए सदा के लिए बंद कर दिए थे, फिर कुदरत ने दोबारा उसे मेरे सामने ला कर क्यों खड़ा कर दिया. मन में एक बेचैनी और उलझन लिए पुष्पा किशोर की आवभगत में लगी रही.
यही हाल किशोर का भी था. जिसे भुलाने की लाख कोशिशों के बाद भी वह उसे भुला नहीं सका था वह फिर से एक बार उस के सामने थी. थोड़ी देर बार किशोर ‘किसी काम के लिए जल्दी जाना है,’ कह कर चला गया. अशोक उसे बाहर तक छोड़ने गए.
पुष्पा के मन में भी हजारों विचार आ रहे थे. अभी 2 महीने पहले ही तो अचानक किशोर से मुलाकात हुई थी तब उस ने सोचा था कि यह आखिरी मुलाकात होगी. पर दोबारा यों अपने ही घर में…उस ने सोचा भी नहीं था. किसी तरह उस ने काम समेटा. उस के सिर में दर्द होने लगा था. वह आ कर अपने कमरे में लेट गईर्. जैसे ही उस ने अपनी आंखें बंद कीं उस के सामने वर्षों पहले की सारी यादें फिर से चलचित्र की भांति घूमने लगीं.
सोचतेसोचते अचानक ही पुष्पा की आंखें चमक उठीं. वह कुछ सोच कर बहुत खुश हो गई.
दोनों ने मिल कर आरती को किशोर से विवाह करने के लिए राजी कर लिया था. उस के घर में भी सब को बता दिया गया था. सभी लोग बहुत खुश थे इस रिश्ते से.
किशोर की बात अब हमेशा घर में होने लगी थी. कई बार पुष्पा ने सोचा कि वह अशोक को सब बता दे, पर न जाने क्या सोच कर हर बार चुप रह जाती. अब जबतब किशोर का फोन भी आने लगा था.
एक दिन अशोक, आरती और बच्चे सभी मिल कर लौन में बैडमिंटन खेल रहे थे. पुष्पा सब्जी काटते हुए टीवी पर सीरियल देख रही थी. इतने में अशोक का मोबाइल बज उठा. पुष्पा ने मोबाइल उठा कर देखा. किशोर का फोन था. उस ने कुछ सोचा, फिर फोन उठा लिया, कहा, ‘‘हैलो.’’
‘‘कैसी हो?’’ उधर से किशोर की गंभीर आवाज आई.
एक बार फिर से पुष्पा का दिल
धड़का पर वह अच्छी तरह से
जानती थी अपनी हालत. उस ने अपनी आवाज को संभाल कर जवाब दिया, ‘‘मैं अच्छी हूं, तुम कैसे हो?’’
‘‘मैं भी ठीक हूं पुष्पा, मैं इस जीवन में किसी और से विवाह की सोच भी नहीं सकता. कैसे मना करूं मैं अशोक को? मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि तुम से इस तरह से कभी जीवन में फिर से मुलाकात होगी.’’
‘‘किशोर, हम दोनों जीवन में बहुत आगे बढ़ चुके हैं. और तुम ने ही तो कहा था कि हम एकदूसरे के जीवन में हों या न हों, पर एकदूसरे के दिल में हमेशा रहेंगे, तो अब पीछे क्यों हट रहे हो. मैं अपने पति से बहुत प्रेम करती हूं और अपनी गृहस्थी में बहुत खुश हूं तो तुम क्यों खुद को सजा दे रहे हो. हमारा प्रेम सच्चा था. हम ने एकदूसरे से कुछ नहीं मांगा था, न ही कुछ चाहा था. कुदरत ने एक मौका दिया है, तो हम एक अच्छे मित्र बन कर क्यों नहीं रह सकते. और अब तो हमारा एक रिश्ता भी बनने जा रहा है. क्या तुम्हें आरती में कोई कमी दिख रही है या वह तुम्हारे लायक नहीं?’’ पुष्पा ने कहा.
‘‘नहीं पुष्पा, आरती बहुत अच्छी लड़की है. मैं कैसे कह दूं कि वह मेरे लायक नहीं है. शायद, मैं ही नहीं उस के लायक,’’ कुछ मायूस स्वर में किशोर ने कहा.
‘‘नहीं किशोर, ऐसा मत कहो. तुम से बहुत कम समय के लिए मिली हूं. पर इतना तो समझ ही गई हूं कि तुम एक अच्छे और नेकदिल इंसान हो. आरती भी बहुत अच्छी लड़की है. किशोर, हम इस नए रिश्ते को कुदरत की मरजी मान कर पूरे सम्मान से अपना लेते हैं,’’ पुष्पा ने किशोर को समझाते हुए कहा.
‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा. मुझे कोई एतराज नहीं इस रिश्ते से,’’ किशोर ने कहा.
यह सुन कर पुष्पा खुश हो गई, बोली, ‘‘किशोर, मैं बहुत खुश हूं. मेरे दिल पर एक बोझ था, वह आज उतर गया. मैं बहुत खुश हूं, किशोर. बहुत खुश. और हां, अब हम कभी एकदूसरे से अलग नहीं होंगे क्योंकि अब हम रिश्तेदार के साथसाथ अच्छे मित्र भी हैं. वादा करो किशोर कि अब तुम इस मित्र का हाथ कभी नहीं छोड़ोंगे. वादा करो किशोर, वादा करो.’’ यह सब बोलते हुए पुष्पा की आवाज कांप गई, आंखों से दो बूंद आंसू उस के गालों पर लुढ़क पड़े.
‘‘वादा रहा, पुष्पा, वादा रहा,’’ कहते हुए किशोर का गला भर्रा गया.
फूलपुर गांव के एक तरफ तालाब के किनारे मंदिर था तो दूसरी तरफ ऐसा स्थल जहां साल में एक बार 9 दिनों का मेला लगता था. मंदिर के आगे गांव वालों के खेत शुरू हो जाते थे. खेतों की सीमा जहां खत्म होती थी वहां से शुरू होता था एक विशाल बाग. इस बाग के दूसरी तरफ एक पतली सी नदी बहती थी. आमतौर पर बाग के बीच के खाली मैदान का प्रयोग गांव वाले खलिहान के लिए किया करते थे पर साल में एक बार यहां बहुत बड़ा मेला लगता था. मेले की तैयारी महीनों पहले से होने लगती. मेला घूमने लोग बहुत दूरदूर से आते थे.
आज बरसों बाद पुष्पा मेले में कदम रख रही थी. तब में और आज में बहुत फर्क आ गया था. तब वह खेतों की मेंड़ पर कोसों पैदल चल के सखियों के साथ मेले में घूमती थी. आज तो मेले तक पहुंचने के लिए गाड़ी की सुविधा है. पुष्पा पति व बच्चों के साथ मेला घूमने लगी. थोड़ी देर घूमने के बाद वह बरगद के एक पेड़ के नीचे बैठ गई. पति व बच्चे पहली बार मेला देख रहे थे, सो, वे घूमते रहे.
पुष्पा आराम से पेड़ से पीठ टिका कर जमीन की मुलायम घास पर बैठी थी कि उस की नजर ऊपर पेड़ पर पड़ी. उस ने देखा, पेड़ ने और भी फैलाव ले लिया था, उस की जटाएं जमीन को छू रही थीं. बरगद की कुछ डालें आपस में ऐसी लिपटी हुई थीं जैसे बरसों के बिछड़े प्रेमीयुगल आलिंगनबद्ध हों. पक्षियों के झुंड उन पर आराम कर रहे थे. उस ने अपनी आंखें बंद करनी चाहीं, तभी सामने के पेड़ पर उस की नजर पड़ी जो सूख कर ठूंठ हो गया था. उस की खोह में कबूतरों का एक जोड़ा प्रेम में मशगूल था. उस ने एक लंबी सांस ले कर आंखें बंद कर लीं.
आंखें बंद करते ही उस के सामने एक तसवीर उभरने लगी जो वक्त के साथ धुंधली पड़ गई थी. वह तसवीर किशोर की थी जिस से उस की पहली मुलाकात इसी मेले में हुई थी और आखिरी भी. किशोर की याद आते ही उस से जुड़ी हर बात पुष्पा को याद आने लगी.
उस दिन वह 4 सहेलियों के साथ सुबह ही घर से निकल पड़ी थी ताकि तेज धूप होने से पहले ही सभी मेले में पहुंच जाएं. सुबह के समय मंदमंद चलती ठंडी हवा, आसपास पके हुए गेंहू के खेत और मेला देखने की ललक, बातें करती, हंसतीखिलखिलाती वे कब मेले में पहुंच गईं, उन्हें पता ही न चला.
वे मेला घूमने लगीं. मेले में घूमतेघूमते पुष्पा को लगा कि कोई उस का पीछा कर रहा है. थोड़ी देर तक तो उस ने सोचा कि उस का वहम है पर जब काफी समय गुजर जाने के बाद भी पीछा जारी रहा तब उस ने पीछे मुड़ कर देखा. एक पतलादुबला, गोरा, सुंदर सा युवक उस के पीछेपीछे चल रहा था. उस ने किशोर को कड़ी नजरों से देखा था लेकिन जवाब में किशोर ने हलके से मुसकरा आंखों ही आंखों से अभिवादन किया था. उस का मासूम चेहरा देख कर क्षणभर में ही पुष्पा का गुस्सा जाता रहा. किशोर की आंखों की भाषा पुष्पा के दिल तक पहुंच गई थी. एक अजीब सा एहसास उस के दिल को धड़का गया था. शाम तक किशोर पुष्पा के साथसाथ घूमता रहा बिना किसी बातचीत किए हुए.
पुष्पा जहां जाती, वह उस के पीछेपीछे जाता. पुष्पा को अच्छे से एहसास था इस बात का पर उसे भी न जाने क्यों उस का साथ अच्छा लग रहा था. पूरा दिन घूमने के बाद शाम को वापसी के समय वह अपनी सहेलियों से थोड़ा अलग हट कर चूडि़यों की दुकान पर खड़ी हो गई. इतने में उस ने आ कर भीड़ का फायदा उठाते हुए एक कागज का टुकड़ा पुष्पा की हथेली में पकड़ा दिया. पुष्पा का दिल जोर से धड़क उठा. उस ने उस की आंखों में देखते हुए अपनी मुट्ठी बंद कर ली. दोनों ने आंखों ही आंखों में एकदूसरे से विदा ली और वापस अपनेअपने घर की तरफ चल दिए. पर अकेला कोई भी नहीं था, दोनों ही एकदूसरे के एहसास में बंध गए थे. एकदूसरे के खयालों में खोए दोनों अपनी मंजिल की तरफ बढ़े जा रहे थे.
घर पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो चुका था. सभी सहेलियां अपनेअपने घर चली गईं. मां ने हलकी सी डांट लगाई, ‘कितनी देर कर दी पुष्पी, मेले से थोड़ा पहले नहीं निकल सकती थी? पर तुझे समय का खयाल कहां रहता है, सहेलियों के साथ घूमने को मिल जाए, बस.’ अब पुष्पा कैसे बताती मां को कि सच में उसे समय का खयाल नहीं रहा. उसे तो लग रहा था कि थोड़ी देर और रह जाए मेले में उस अजनबी के साथ. मां कमरे के बाहर चली गईं. पुष्पा ने दरवाजा बंद किया और वह मुड़ातुड़ा कागज का टुकड़ा निकाल कर पढ़ने लगी जिस में लिखा था :
‘मुझे नहीं पता आप का नाम क्या है, जानने की जरूरत भी नहीं समझता, क्योंकि शायद ही हम दोबारा मिल पाएं. पर हां, अगर परिस्थितियों ने साथ दिया तो अगले साल इसी दिन मैं मेले में आप का इंतजार करूंगा. किशोर.’
पत्र पढ़ कर पुष्पा की आंखें न जाने क्यों भीग गईं. उस से तो उस की बात भी नहीं हुई, सिर्फ कुछ घंटों का साथभर था. पर उस के एहसास से वह भीतर तक भर गई थी. ऊपर से उस के शब्दों में एक कशिश थी जिस में वह बंधी जा रही थी. उसे तो यह भी नहीं पता था कि वह किस गांव का है? कौन है? उसी के खयालों में डूबी हुई वह न जाने कब सो गई. सुबह उठ कर उस ने सब से पहले वह पर्चा अपनी डायरी में दबा कर डायरी को बक्से में छिपा दिया.
धीरेधीरे समय बीतने लगा. पर्चा डायरी में दबा रहा और किशोर का एहसास दिल में दबाए पुष्पा अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी करने लगी.
कभीकभी अकेले में डायरी निकाल कर वह पर्चा पढ़ लेती. अब तक न जाने कितनी बार पढ़ चुकी थी. 12वीं के बाद घर में उस की शादी की चर्चा चलने लगी थी. जब भी वह मांबाबूजी को बात करते सुनती, उसे किशोर की याद आ जाती और उस का दिल रो पड़ता. तब वह खुद ही खुद को समझाती कि किशोर से उस का क्या नाता है? मेले में ही तो मिला था. न जाने कितने लोग मिलते हैं मेले में. न जाने कौन है. अब वह जाने कहां होगा. मैं क्यों सोचती हूं उस के बारे में. उसे मैं याद हूं भी कि नहीं? उस का एक पर्चा ले कर बैठी हूं मैं. नहीं, अब नहीं सोचूंगी उस के बारे में, कभी नहीं सोचूंगी.
पुष्पा ने अपने मन में सोचा पर यह सब इतना भी आसान न था. उस ने अनजाने में ही अपने दिल के कोरे कागज पर किशोर का नाम लिख लिया था. अब यह नाम मिटाना आसान नहीं था उस के लिए.
देखतेदेखते साल बीत गया और मेले का समय नजदीक आ गया. जैसेजैसे वह दिन नजदीक आ रहा था, पुष्पा के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थी. उसे किशोर से मिलने की ललक मेले की ओर खींच रही थी.
मेले में जाने की तैयारी हो गईर् थी पुष्पा की. इस साल उस के साथ सिर्फ
2 ही सहेलियां थी, क्योंकि 2 सहेलियों की शादी हो गई थी. इन दोनों की भी शादी तय हो चुकी थी. घर वालों ने भी इजाजत दे दी कि न जाने शादी के बाद फिर कब मेला घूमना नसीब हो इन्हें. तीनों सुबह ही निकल पड़ीं मेले के लिए.
मेले में पहुंचने के बाद दोनों तो अपनी शादी के लिए शृंगार का सामान खरीदने में लग गईं जबकि पुष्पा की निगाहें किसी को ढूंढ़ रही थीं. उस का मेला घूमने में मन नहीं लग रहा था. मन बेचैन था. वह सोचने लगी, ‘पता नहीं उसे याद भी है कि नहीं. बेकार ही मैं परेशान हो रही हूं. इतनी छोटी सी बात उसे क्यों याद होगी? उसे तो मेरा नाम भी नहीं पता.’ पुष्पा को अपनी बेबसी पर रोना आ गया. उसे लगा कि वह अभी रो देगी.
आगे पढ़ें- किशोर को सामने पा वह सब…