बचपन से सुनती आई थी बेटियां बाप की इज्जत होती हैं, भाई का मान होती हैं और विवाह के बाद पति का सम्मान होती हैं, बेटे का हौसला होती हैं. इसी लीक पर समाज की गाड़ी दौड़ रही है यानी जन्म से मृत्यु तक का सफर पुरुष संरक्षण में ही गुजरता है और सबकुछ सामान्य रूप से चलता रहता है. किंतु प्रश्न तब खड़ा होता है जब किसी कारण से किसी लड़की का तलाक हो जाता है यानी गाड़ी पटरी से उतर जाती है.
यहां पर मैं पति के मृत्यु का मुद्दा नहीं उठाऊंगी वह एक अलग प्रश्न है. हालाकि पति की मृत्यु के बाद भी अकेली औरत को दिक्कत तो कमोबेश वैसी ही आती है. किंतु तलाक के केस में लड़की अपने पति से संबंध विच्छेद कर लेती है यानी अस्वीकार कर देती है रिश्ते को.
अमूमन तो लड़कियों को मानसिक रूप से इस बात के लिए बचपन से ही तैयार कर दिया जाता है कि तुम कितना भी पढ़लिख लो तुम्हें शादी के बाद अपने पति और उन के घर वालों के मुताबिक ही जीवन जीना होगा और आज भी मातापिता विवाह के वक्त यह तो देखते हैं कि लड़का आर्थिक रूप से कितना सफल है. किंतु वह नहीं देखते कि लड़की की परवरिश उन्होंने जिस परिवेश में की है उस की भावी ससुराल का परिवेश कमोबेश वैसा ही है या नहीं.
तलाक के बाद
जब हम एक छोटा पौधा ले कर आते हैं तो यह देखते हैं यह पौधा किस तरह की मिट्टी और जलवायु में फूलताफलता है. उसे वैसा ही वातावरण देते हैं या फिर उसे नए पर्यावरण में विकसित होने में ज्यादा समय लगने पर भी धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं. किंतु अफसोस बेटियों को नए घर में एकदम विपरीत परिस्थितियों में भी उन के मातापिता प्रत्यारोपित कर देते हैं और उन के ससुराल वाले भी उन से मनीप्लांट की तरह पानी में, मिट्टी में हर जगह हराभरा रहने की अपेक्षा करने लगते हैं. अगर बेचारी लड़की मनीप्लांट के बजाय गुलाब हुई तो फिर तो कांटों से उस का सामना हर दिन, हर पल होता है.
अब पुन: मूल प्रश्न पर आती हूं. एक पढ़ीलिखी आत्मनिर्भर लड़की या आत्मनिर्भरता की योग्यता रखने वाली लड़की का जीवन तलाक के बाद सामान्य क्यों नहीं रह पाता?
वह कहां रहेगी, यह प्रश्न सौसौ मुंह वाले नाग की तरह फन उठाए डसने को तैयार रहता है. उसे मातापिता या भाईभाभी के साथ ही रहने को कहा जाता है. जहां चाहे उस के आत्मसम्मान को हर पल छलनी ही क्यों न किया जाता हो. वह कमाए भी और घर में दोयम दर्जे का स्थान भी पाए. भाभी के कटाक्ष सहे. मांबाप की आंखों में उन की परवरिश पर धब्बा लगाने का उल्हाना देखे. शायद ही कोई कहता है कि तुम ने ठीक किया. क्यों भई आखिर औरत को अपनी पसंद न पसंद से जीने का अधिकार क्यों नहीं है?
समाज जीने नहीं देता
लड़की अगर यह कह दे कि उन का चाल चलन ठीक नहीं है तो सबसे पहले मां ही कहती है बेटी सुधर जाएगा. तुम प्यार से सम?ाओ आदिआदि या पूरी शाकाहारी बेटी का पति मांसाहारी भोजन करता है तो उस को कहा जाता है तुम भी ढल जाओ. उदाहरण अनगिनत हैं. लड़कियां भी बहुत हद तक बरदाश्त कर जाती हैं या कह लें अंदर से मर जाती हैं. कुछ जिंदा लाश जैसी जीती हैं.
कुछ अगर साहस कर जीने के लिए उस बंधन को तोड़ने का साहस कर भी लेती हैं तो समाज उन्हें जीने नहीं देता. उन के अलग रहने के फैसले को उन की बदचलनी का सुबूत मान लिया जाता है. कुछ अपवाद भी होगे किंतु मैं बात बहुतायत लड़कियों की कर रही हूं. उन्हें सामान्य रूप से अगर ससुराल में कुछ ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों से दोचार होना पड़ता है जो उन्हें लगता है कि बरदाश्त करने योग्य नहीं हैं तो उन्हें बिना दबाव या तनाव के विवाह विच्छेद करने का मौका मिलना चाहिए.
कठिन है रिश्ते को धोना
यहां हम यह नहीं कह रहे कि आप अपनी ससुराल में सामंजस्य न बैठाएं. हम कह रहे हैं कि आप तलाक के बाद होने वाले संघर्षपूर्ण जीवन अपमान आदि से डर कर कुछ ऐसा मत सहें जो कि सहना गलत हो. चाहे पति का आचरण हो या उस के किसी दूरपास के रिश्तेदार द्वारा यौन शौषण हो या सास अथवा ससुराल वालों की अमानवीय यातनाएं हों. मैं उन परिस्थितियों का उदाहरण तो नहीं दे सकती किंतु इतना कहूंगी कि आप अपने आत्मसम्मान को बचा कर ही अपना रिश्ता कायम रखें.
अगर आप का आत्मसम्मान ही मर गया है तो फिर आप के रिश्ते की मृत्यु निश्चित है और मरा हुआ रिश्ता लाश के समान भारी हो जाता है जिसे ढोना बहुत कठिन हो जाता है. हर बीतते दिन के साथ उस से दुर्गंध आती है. फिर कुकुरमुत्ते से उगते हैं अवैथ संबंध. खराब होती हैं कई और जिंदगियां. इसलिए तलाक को समाज का कोढ़ नहीं समझें.
जैसे विवाह एक सामान्य बात है वैसे ही विवाह के टूटने को भी सामान्य रूप से ही लें और तलाक लिए हुए लड़के और लड़की को भी सामान्य इंसान ही सम?ों. उन को अपनी चटपटी खबरों का जरीया न बनाएं. वे जैसे रहना चाहें उन्हें रहने दें. अगर मातापिता के साथ बेटी नहीं रहना चाहती है तो उसे स्वावलंबी बनाने में मदद करें.
जीवन जीने के लिए
पैतृक संपत्ति में से उन के हिस्से को उन्हें दे कर उन्हें सहयोग करें. अगर बेटी पहले से स्वावलंबी है और तलाक के बाद आप के साथ रहती है तो उसे कभी अपमानित या कमतर मत जताएं. अब जब समाज बहुत आगे निकल गया है किसी भी कारण से अगर दोनों का सामंजस्य बहुत सारी ईमानदार कोशिश के बाद भी ठीकठाक नहीं चल रहा है तो दोनों को अपनी राहें अलगअलग करने दें न कि रीतिरिवाज, समाज के भय से जबरदस्ती के बो?ा तले दब कर पूरी जिंदगी बरबाद करने दें.
जीवन सिर्फ जीने के लिए होता है. तिलतिल कर मरने के लिए नहीं. मरना तो तय है तो क्यों न जी लें जरा. झूठी खुशी का मुखौटा पहन कर जो कर बनने से अच्छा है सच के साथ स्वावलंबी जीवन जीएं और किसी भी मोड़ पर कोई नया मुकाम आप को फिर मिल भी सकता है तो उसे सहज रूप से अपनाएं.
अगर आप खुश नहीं हैं तो आप इस बात को गंभीरता से लें. आप सिर्फ समाज के डर से या मातापिता भाई के सम्मान को ठेस लगेगी इस डर से मानसिक तनाव को ?ोलते हुए विवाह में मत बनी रहें. हां, आप को पूरी स्थिति का आकलन बहुत ही गंभीरता से करना होगा. मैं रिश्ते को तोड़ने की वकालत नहीं कर रही हूं बस इतना ही कह रही हूं कि आप अपने रिश्ते को बचाने की पूरी ईमानदार कोशिश करिए और करनी भी चहिए. किंतु अपने आत्मसम्मान और अपनी आजादी को दांव पर लगा कर नहीं. आप की सब से बड़ी जिम्मेदारी आप स्वयं हैं.
खुद को खुश रखिए
खुद के सम्मान और गरिमा को बनाए रखिए. खुद को हद से ज्यादा न झुकाएं न गिराएं और अगर आप को ईमानदारी से पूरी परिस्थिति का अवलोकन करने पर लगता है कि नहीं साथ में रहना संभव नहीं है तो बड़े ही व्यावहारिक रूप से कुछ प्रश्नों के उत्तर तलाशें जैसेकि पति का घर छोड़ने के बाद आप को कहां रहना होगा? क्या करना होगा? स्वावलंबी बनने के लिए आप क्या कर सकती हैं आदिआदि.
पैसों में आप का गुजारा सम्मानपूर्वक हो सकेगा? इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर खोज लेने के बाद ही आप कोई ठोस कदम उठाएं.
ध्यान रखें कि हो सकता है मातापिता या भाईबहन आप को ऐसा फैसला लेने में कोई सहयोग न करें. इस के 2 प्रमुख कारण हैं- पहला यह कि इन्हें ऐसा लगता है कि तलाक लेने को समाज अच्छी नजर से नहीं देखेगा और कहीं न कहीं उन के दामन पर भी दाग दिखेगा और दूसरा कारण है कि कहीं आप उन पर बोझ न बन जाएं. अत: अपने फैसले पर उन से बहुत ज्यादा सकारात्मक उत्तर की अपेक्षा न रखें.
फैसला खुद के हिसाब और परिस्थिति के हिसाब से लें. भावना में बह कर कोई फैसला न लें. बस एक बात कहूंगी कि रिश्तों को बचाने के लिए थोड़ा सा झुक जाएं लेकिन अगर बारबार आप को ही झुकना पड़े तो फिर रुक जाएं. तलाक खुशियों के लिए अपने दरवाजे बंद करना नहीं है. हो सकता है तलाक एक अच्छे जीवन की शुरुआत हो.