लेखक- वीरेन्द्र बहादुर सिंह
एक कार्पोरेट कंपनी में सीए धर्मेश अपने काम से काम रखने वाला युवक था. इसलिए उसे किसी लड़की से प्रेम करने का मौका ही नहीं मिला. उसके मां-बाप ने उसके लिए लड़की खोजनी शुरू कर दी. कई लड़कियां देखने के बाद यात्री नाम की एक लड़की उन्हें पसंद आ गई. यात्री ने एमकाॅम कर रखा था. वह एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर थी. वह सुंदर और प्रतिभाशाली युवती थी. मैनेजमेंट को उस पर गर्व था. मनचाहा परिणाम लाती थी वह.
यात्री और धर्मेश ने एकदूसरे को पसंद कर लिया था. एक दो बार मिले, रेस्टोरेंट में साथ खाना खाया, थोड़ा घूमे-फिरे, एकदूसरे के विचारों को जाना. धर्मेश की मां का स्पष्ट कहना था कि लड़के और लड़की ने एकदूसरे को पसंद कर लिया, बात पूरी हो गई. बाकी सब गौड़ है. यात्री और धर्मेश की खुशीखुशी शादी हो गई. दोनों हनीमून टूर पर विदेश गए. सब कुछ बढ़िया चल रहा था. बस, एक बात की तकलीफ थी. यात्री का स्वभाव सीधी लाइन जैसा नहीं था. वैसे तो वह योग्य और प्रतिभाशाली थी, पर बातबात में उसकी नाराज हो जाने की आदत थी. उसे जो चाहिए, वह नहीं मिलता तो वह नाराज हो जाती. उसके मन का काम न होता तो वह खाना न खाती.
वैसे तो दांपत्यजीवन में रिसाने और मनाने का एक अलग ही मजा और लिज्जत होता है. पर यहां बात एकदम अलग थी. यहां यात्री बारबार जो नाराज हो रही थी, वह इमोशनल ब्लैकमेलिंग थी. शुरूआत के दिनों में तो धर्मेश ने यह सब सहम किया, पर बात गले तक आ गई तो परशानी होने लगी. पति के रूप में उसे जितना सहन करना चाहिए था, उसने सहन किता. वह एक परिपक्व और समझदार पति था. वह घंटोंघंटो यात्री को समझाता. वह कहता कि यात्री तुम यह जो कर लही हो, वह उचित नहीं है. तुम्हारा हर मामले में रोकटोक लगना ठीक नहीं है. जब देखो, तब तुम नाराज हो जाती हो और घर वालों से बोलना बंद कर देती हो.
दूसरी ओर यात्री के लिए अपना स्वभाव बदलना मुश्किल था. समयसमय पर वह अपने स्वभाव के अनुसार घर में अपनी चलाती, जिससे घर का वातावरण भारी हो जाता. धर्मेश के माता-पिता दुखी हो ग्ए. हंसता-खेलता, किल्लोल करता परिवार अचानक मौन हो गया. जब देखो, तब घर का वातावरण भारी रहता.
ऐसा अक्सर होता है. इमोशनल ब्लैकमेलिंग एक तरह की बीमारी है. यह एक तरह की अवस्था है. ऐसे तमाम लोग होते हैं, जिनकी इमोशनल ब्लैकमेलिंग करने की गलत आदत होती है. भावनात्मक ब्लैकमेल एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोई व्यक्ति जो चाहता है, उसे पाने के लिए धमकाता है. ये धमकियां अलग-अलग स्तर की होती हैं. भावनात्मक ब्लैकमेलिंग इस तरह का वातावरण बना देती है, जिसमें वातावरण बोझिल, भारी, तनावपूर्ण, अनिश्चित और दुखी करने वाला हो जाता है.
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ब्लैकमेल करने वाले व्यक्ति की एक निश्चित प्रकार की मानसिकता होती है. इमोशनल ब्लैकमेलिंग कर के अपना काम कराने की उसकी गंदी आदत पड़ चुकी होती है. इमोशनल ब्लैकमेलिंग करने वाला व्यक्ति प्यार को एक हथियार के रूप में काम करता है. इस तरह के व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति के हृदय की संवेदना का क्रूर उपयोग करते हैं.
प्रेम तीन स्तर पर व्यक्त किया जाता है.
1) संवेदना
2) स्नेह
3) भावनात्मकता
संवेदना प्रेम को व्यक्त करने का सर्वोत्तम स्तर है. संवेदना प्रेम का एक स्वरूप है. स्नेह के स्तर पर प्रेम व्यक्त होता है. स्नेह के स्तर पर व्यक्त किए जाने वाले प्रेम में संबंध चमकते रहते हैं. संबंधों के अलग-अलग शेड होते हैं. संबंधों के अलग-अलग प्रवाह होते हैं. हर संबंध की तरह सौंदर्य होता है, उसी तरह हर शब्द के अंदर का और बाहर का भी प्रवाह होता है. इसी प्रवाह के अनुरूप लगाव उसके साथ जुड़ा होता है. स्नेहशीलता प्रेम का ही एक स्वरूप है. स्नेहशीलता व्यक्त करने वाला प्रेम मुग्ध होता है. ये ऊपरी भी हो सकता है और छिछला भी. इस प्रेम में प्रेम करने वाले का व्यवहार प्रतिबिंबित होता रहता है. महिलाएं प्रेम का स्वरुप हैं. महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक श्रद्धा और प्रेम के आधार पर सोचती और जीती हैं. महिला यानी प्रेम, ममता, वात्सल्य, भावना, स्नेह, करुणा के फूलों की क्यारी. महिला और पुरुष में तार्किक फर्क यह है कि महिला पहले श्रद्धा और प्रेम के आधार पर जीती है. जब श्रद्धा थक जाती है, तब बुद्धि की शरण में जाती है. पुरुष का इससे उल्टा है. पुरुष बुद्धिप्रधान है. वह बुद्धि से सोचता और जीता है. जब उसकी बुद्धि थक जाती है, तब वह प्रेम की शरण में जाता है.
महिलाएं स्नेह के आधार पर सोचती हैं, तभी ठगी जाती हैं. अनेक परिवारों में संतानें मां को महिला के रूप में इमोशनल ब्लैकमेल करते रहते हैं. कभी-कभी यह काम पति भी करते हैं. अगर भारत की महिलाएं स्नेहशीलता से ऊपर उठ कर भावना या संवेदना की भूमिका में जीवन जीने लगेंगी, तब वे अच्छी तरह प्रेम व्यक्त कर सकेंगी और उचित प्रेम पा भी सकेंगीं.
महिलाएं अपने साथ हुए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खराब या कड़वे अनुभव की वजह से इमोशनल ब्लैकमेलिंग के लिए प्रेरित होती हैं. शुरू में यात्री की जो बात की गई है, उसके मामले में भी ऐसा ही हुआ है. यात्री की मम्मी उर्मिला के जीवप में भारी उथल-पुथल हुई थी. उनका जीवन अनेक समस्याओं और आरोह-अवरोह से भरा था. यात्री के पालन-पोषण में तमाम कमियां रह गईं थीं. जब वह बच्ची थी, तब घर में उसे सहज रूप से कुछ नहीं मिलता था. एकाध बार उसने जिद की, भावनात्मक ब्लैकमेलिंग की, तुरंत उसका काम हो गया. उसे पता चल गया कि अपने मन का कराने का यह शार्टकट है. यह उत्तम रास्ता है. बस, उसी के बाद उसकी आदत पड़ गई. सहजता और सरलता से जो मिलता, वह उसे अच्छा न लगता. वह ब्लैकमेल कर के लेती, तब उसे लगता, यह ठीक है.
मानव मन बहुत जटिल है. अगर इसे सही दिशा में ले जाया जाए तो निश्चित यह बढ़िया परिणाम देता है. अगर इसे गलत दिशा में विकसित किया जाए तो यह गलत बर्ताव करता है. इसकी शक्ति तो है ही, इस शक्ति का रचनात्मक उपयोग किया जाए तो सब बढ़िया होगा. धर्मेश ने एक मनोचिकित्सक से संपर्क किया. पूरी घटना को समझ कर मनोचिकित्सक ने रास्ता बताया.
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वह रास्ता धीरज और संयम का था. धर्मेश अपनी जगह दृढ़ था. वह किसी भी संयोग में अपने विशाल परिवार को हरा-भरा और खुशहाल देखना चाहता था. उसे अपने प्रेम पर विश्वास था. समय बीतता गया और समय के साथ यात्री के स्वभाव में परिवर्तन आता गया. कुछ समय में यात्री की इमोशनल ब्लैकमेलिंग करने की मंशा और आदत लगभग छूट गई. धर्मेश का मानना है कि दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिजका हल नहीं है. समस्या मात्र, हल के पात्र, अगर धीरज से, सच्ची निष्ठा से, प्रेम से समस्या हल की जाए तो परिणाम निश्चित और अच्छा आता है. धर्मेश ने इमोशनल शब्द से इमोशंस को पकड़ा. सच्चे प्यार में ताकत होती है. उसने उसी शक्ति का प्रयोग और विनियोग किया.
हर बार इसी तरह जीत मिल जाए ऐसा भी नहीं है. इमोशनल ब्लैकमेलिंग के मामले में अलग-अलग समाधान खोजना पड़ता है. कभी-कभी ब्लैकमेलिंग करने वाले के सामने सख्त होना पड़ता है. कभी-कभी सख्ती और प्रेम दोनों से काम लेना पड़ता है. जिंदगी अजब है, गजब है. प्रेम के बिना जिया नहीं जा सकता और वही प्रेम अलग-अलग स्वरूप में प्रकट होता है. जिंदगी के हर स्वरूप के आनंद को स्वीकार कर जीने में ही सच्ची मजा है.