REVIEW: अति नाटकीय ऐतिहासिक कास्ट्यूम ड्रामा है ‘द एम्पायर’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः निखिल इडवाणी, मधु भोजवानी

निर्देशकः मिताक्षरा कुमार

कलाकारः कुणाल कपूर,  दृष्टि धामी,  डिनो मोरिया,  शबाना आजमी,  राहुल देव,  आदित्य सील, साहेर बंबा व अन्य.  

अवधिः कुल अवधि – पांच घंटे 42 निमट ,  35 से 52 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉट स्टार डिज्नी

इन दिनों जब वर्तमान सरकार भारत के इतिहास के पुर्नलेखन पर  काम कर रही है, तभी निर्माता निखिल आडवाणी और निर्देशक मिताक्षरा कुमार भारत में मुगल साम्राज्य के उत्थान व पतन पर  छह सीजन तक चलने वाली वेब सीरीज ‘‘द एम्म्पायर ’’ का पहला सीजन लेकर आए हैं. जो कि ब्रिटिश लेखक एलेक्स रदरफोर्ड के छह भाग के उपन्यासों ‘‘एम्पायर औफ द मोगुलः रेडर्स फ्रॉम द नॉर्थ’’पर आधारित है. आठ एपीसोड की यह सीरीज ‘‘हॉट स्टार डिज्नी’’ पर 27 अगस्त से स्ट्रीम हो रही है. अफसोस की बात यह है कि इसमें इतिहास कम, बौलीवुड मसाला फिल्मों के सारे तत्व मौजूद हैं. पहले सीजन में उत्तर मध्य एशिया में 14 वर्ष की उम्र में बादशाह बनने से हिंदुस्तान के शासक बनने व उनकी मौत तक बाबर के जीवन की कहानी है. शायद फिल्मकारों ने वर्तमान हालात में विवादों से बचने के लिए कम से कम इतिहास को छूने की कोशिश की है.

कहानीः

वर्तमान उज्बेकिस्तान 14वीं-15वीं सदी में तुर्क-मंगोलों के अधीन था. वहां स्थित समरकंद और फरगना राज्यों से बाबर की कहानी शुरू होती है. कहानी ‘शुरू होती है 1526 एडी, पानीपत की पहली लड़ाई से, जहां जहां युद्ध के मैदान में लगभग परास्त हो चुका जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर अपनी जिंदगी की यात्रा को याद कर रहा है. फिर कहानी फ्लैशबैक में समरकंद और फरगना पहुंचती है.

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कहानी शुरू होती है खंूखार शासक शैबानी खान (डिनो मोरिया) के अत्याचारों व समरकंद के शासक व उनके तीन बेटांे का सरेआम बुरी तरह से कत्लेआम से. अब उसकी नजर फरगान पर है. फिर कहानी फरगान पहुॅचती है.  किशोरवय बाबर के पिता उसे विश्व के सर्वाधिक खूबसूरत देश हिंदुस्तान में बसने का का ख्वाब दिखाते हैं, जो कि फरगना से काफी दूर है. बाबार के रहम दिल व शेरो शायरी के पिता की राय में तुर्क-मंगोलों-अफगानों की धरती पर जिंदगी की कभी खत्म न होने वाली मुश्किलें हैं और आततायी दुश्मनों से कड़ा संघर्ष है.  जबकि हिंदुस्तान इस धरती की जन्नत है.

तभी शैबानी खान (डिनो मोरिया) की तरफ से धमकी भरा पत्र आता है. और कई लोग गद्दारी कर शैबानी खान की मदद करते हैं, तथा बाबर के पिता मारे जाते हैं.  जिसके चलते 14 वर्ष की उम्र में बाबर को उनकी नानी अर्थात शाह बेगम (शबाना आजमी) फरगना के तख्त पर बैठा देती है. पर शैबानी खान की नजरें समरकंद के बाद फरगना पर भी हैं. बाबर अमन पसंद है.  उसे परिवार तथा आवाम की चिंता है.  वह खून-खराबा नहीं चाहता.  उसे पिता का दिखाया ख्वाब भी याद है.  बाबर, शैबानी खान के सामने प्रस्ताव रखता है कि अगर उसे परिवार और शुभचिंतकों समेत किले से निकल जाने दे,  वह हमेशा के लिए चला जाएगा.  शैबानी मान जाता है मगर इस शर्त पर कि बाबर अपनी खूबसूरत बहन खानजादा (दृष्टि धामी) वहीं उसके पास छोड़ जाए. बाबर अपनी बहन खानजादा को शैबानी खान का गुलाम बनाकर अपने खानदान व विश्वास पात्र लोगों के साथ दर दर भटकता है. उसके साथ उसका दोस्त कासिम भी है और बहन के गम में अपने शरीर पर कोड़े बरसाने व शराब पीने लगता है. अंततः रानी, वजीर खान उसे उसका मसकद याद दिलाते हैं. फिर बाबर धीरे धीरे अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने लगते हैं. पहले माहम से विवाह करते हैं, फिर काबुल की शहजादी से विवाह कर काबुल के बादशाह बना जाते हैं. अलग अलग रानियों से हुमायंू व कामरान सहित तीन बेटों के पिता बनते हैं. फिर पिता की बात याद कर इब्राहिम लोधी को हरकार हिंदुस्तान की सल्तनत पर काबिज होेते हैं. पर घर की कलह और अपनी विरासत दो काबिल बेटों,  हुमायूं और कामरान में से किसे सौंपे की चिंता अंततः उन्हे मौत तक ले जाती है.

लेखन व निर्देशनः       

वेब सीरीज में बाबर की जिंदगी के उतार-चढ़ाव और संघर्षों का चित्रण है. जिसमें राजनीतिक व पारिवारिक संघर्ष भी है. तो वहीं बाबर की जिंदगी पर उनकी नानी के अलावा बहन खानजादा और बेगमों के असर का भी चित्रण है. तो वहीं बाबर और कासिम के बीच ‘गे’सबंध पर भी हलका सा इशारा है. सीरीज में बार-बार बाबर के साथ उसकी किस्मत का भी जिक्र होता है.  इस सीरीज में बाबर को खून का प्यास नही बल्कि नर्मदिल,  विचारवान और दार्शनिक व्यक्ति की तरह पेश किया गया है.

इसका हर एपीसोड भव्यता के साथ बनाया गया है. कास्ट्यूम वगैरह पर भी खास ध्यान दिया गया है. मगर इतिहास पर गहराई से ध्यान नही दिया गया. बतौर निर्देशक मिताक्षरा कुमार ने कहानी को इतिहास के नजदीक रखने के बजाय भावनाओं के करीब रखा है.  युद्ध के दृश्यों को आकर्षक और भव्य ढंग से शूट किया गया है.  पहले दो एपीसोड जिस तरह से फिल्माए गए हैं, वह काफी कुछ भ्रमित करते हैं. पहले दो एपीसोड मेंे उर्दू के कठिन शब्द वाले संवाद भी हैं. जिसके चलते दर्शक अगले एपीसोडों की तरफ बढ़ने से पहले सोचने पर विवश हो जाता है. तीसरे एपीसोड से पटकथा सही ढर्रे पर चलती है. लेकिन कहानी कई बार 10 से 18 साल आगे बढ़ी , पर फिल्मकार बता नही पाए कि यह वक्त कैसे गुजरा?1526 में शुरू हुई कहानी 30 से 40 वर्ष पीछे जाती है. इन तीस वर्षों की कथा का सही अंदाज में चित्रण नहीं किया गया है. तीस वर्ष का समय बीतता है, मगर किरदारों के चेहरे से उम्र में बदलाव नही आता. जवानी व चमकदमक ज्यो की त्यों बरकरार रहती है. यह सब अखरता है. यह निर्देशक की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है.

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अभिनयः

खूंखार व निर्दयी शैबानी खान के किरदार को डिनो मोरिया ने बड़ी मश्क्कत के साथ चित्रित किया है. बाबर के किरदार में कुणाल कपूर का अभिनय शानदार है. कई जगहों पर उनके भावुक दृश्य बढ़िया हैं. बाबार की बहन खानजादा के किरदार में दृष्टि धामी सुंदर दिखने के साथ खानजादा को अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. दृष्टि धामी लोगों को याद रह जाती हैं. वह अपनी चैड़ी आँखों से काफी कुछ कह जाती हैं. सख्त दिल और अपने मकसद को पूरा कराने वाली नानी के किरदार में शबाना आजमी अपना प्रभाव छोड़ती हैं. वैसे भी शबाना आजमी एक बेहतरीन अदाकारा हैं, इसमें कोई दो राय नही है. राहुल देव,  इमाद शाह,  आदित्य सील (हुमायूं) समेत अन्य कलाकारो का अभिनय ठीक ठाक है.

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