ऐंडोमैट्रिओसिस से बढ़ता बांझपन का खतरा

ऐंडोमैट्रिओसिस गर्भाशय से जुड़ी एक समस्या है. यह समस्या महिलाओं की प्रजनन क्षमता को सर्वाधिक प्रभावित करती है, क्योंकि गर्भधारण करने और बच्चे को जन्म देने में गर्भाशय की सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. कई महिलाओं में यह समस्या अत्यधिक गंभीर हो शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करती है. वैसे आधुनिक दवा और उपचार के विभिन्न विकल्पों ने दर्द और बांझपन दोनों से राहत दिलाई है. ऐंडोमैट्रिओसिस का यह अर्थ नहीं है कि इस से पीडि़त महिलाएं कभी मां नहीं बन सकतीं, बल्कि यह है कि इस के कारण गर्भधारण करने में समस्या आती है.

क्या है ऐंडोमैट्रिओसिस

ऐंडोमैट्रिओसिस गर्भाशय की अंदरूनी परत की कोशिकाओं का असामान्य विकास होता है. यह समस्या तब होती है जब कोशिकाएं गर्भाशय के बाहर विकसित हो जाती हैं. इसे ऐंडोमैट्रिओसिस इंप्लांट कहते हैं. ये इंप्लांट्स आमतौर पर अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब्स, गर्भाशय की बाहरी सतह पर या आंत और पैल्विक गुहा की सतह पर पाए जाते हैं. ये वैजाइना, सरविक्स और ब्लैडर पर भी पाए जा सकते हैं. बहुत ही कम मामलों में ऐंडोमैट्रिओसिस इंप्लांट्स पैल्विस के बाहर लिवर पर या कभीकभी फेफड़ों अथवा मस्तिष्क के आसपास भी हो जाते हैं.

ऐंडोमैट्रिओसिस के कारण

ऐंडोमैट्रिओसिस महिलाओं को उन के प्रजनन कालके दौरान प्रभावित करता है. इस के ज्यादातर मामले 25 से 35 वर्ष की महिलाओं में देखे जाते हैं. लेकिन कई बार 10-11 साल की लड़कियों में भी यह समस्या होती है. मेनोपौज की आयु पार कर चुकी महिलाओं में यह समस्या बहुत कम होती है. विश्व भर में करोड़ों महिलाएं इस से पीडि़त हैं. जिन महिलाओं को गंभीर पैल्विक पेन होता है उन में से 80% ऐंडोमैट्रिओसिस से पीडि़त होती हैं. इस के वास्तविक कारण पता नहीं हैं. हां, कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि ऐंडोमैट्रिओसिस की समस्या उन महिलाओं में अधिक है, जिन का बौडी मास इंडैक्स (बीएमआई) कम होता है. बड़ी उम्र में मां बनने वाली या कभी मां न बनने वाली महिलाओं में भी यह समस्या हो सकती है. इस के अलावा जिन महिलाओं में पीरियड्स जल्दी शुरू हो जाते हैं या मेनोपौज देर से होता है, उन में भी इस का खतरा बढ़ जाता है. इस के अलावा आनुवंशिक कारण भी इस में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

ऐंडोमैट्रिओसिस के लक्षण

ज्यादातर महिलाओं में ऐंडोमैट्रिओसिस का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता, लेकिन जो लक्षण दिखाई देते हैं उन में पीरियड्स के समय अत्यधिक दर्द होना, पीरियड्स या अंडोत्सर्ग के समय पैल्विक पेन ऐंडोमैट्रिओसिस का एक लक्षण है. लेकिन यह सामान्य महिलाओं में भी हो सकता है. इस दर्द की तीव्रता हर महीने बदल सकती है और अलगअलग महिलाओं में अलगअलग हो सकती है.

पैल्विक क्षेत्र में दर्द होना यानी पेट के निचले भाग में दर्द होना और यह दर्द कई दिनों तक रह सकता है. इस से कमर और पेट में दर्द भी हो सकता है. यह पीरियड शुरू होने से पहले हो सकता है और कई दिनों तक चल सकता है. मल त्यागने और यूरिन पास करने के समय दर्द हो सकता है. यह समस्या अधिकतर पीरियड्स के समय अधिक होती है. पीरियड्स के समय अत्यधिक रक्तस्राव होना, कभीकभी पीरियड्स के बीच में भी रक्तस्राव होना, यौन संबंध के दौरान या बाद में दर्द होना, डायरिया, कब्ज और अत्यधिक थकान होना. छाती में दर्द या खांसी में खून आना अगर ऐंडोमैट्रिओसिस फेफड़ों में है, सिरदर्द और चक्कर आना अगर ऐंडोमैट्रिओसिस मस्तिष्क में है.

रिस्क फैक्टर

कई कारक ऐंडोमैट्रिओसिस की आशंका बढ़ा देते हैं जैसे:

  1. कभी बच्चे को जन्म न दे पाना.
  2. 1 या अधिक निकट संबंधियों (मां, मौसी, बहन) को ऐंडोमैट्रिओसिस होना.
  3. कोई और मैडिकल कंडीशन जिस के कारण शरीर से मैंस्ट्रुअल फ्लो का सामान्य मार्ग बाधित होता है.
  4. यूरिन की असामान्यता.

ऐंडोमैट्रिओसिस और इनफर्टिलिटी

जिन महिलाओं को ऐंडोमैट्रिओसिस है, उन में से 35 से 50% महिलाओं को गर्भधारण करने में समस्या होती है. इस के कारण फैलोपियन ट्यूब्स बंद हो जाती हैं, जिस से अंडाणु और शुक्राणु का निषेचन नहीं हो पाता है. कभीकभी अंडे या शुक्राणु को भी नुकसान पहुंचता है. इस से भी गर्भधारण नहीं हो पाता. जिन महिलाओं में यह समस्या गंभीर नहीं होती है. उन्हें गर्भधारण करने में अधिक समस्या नहीं होती है. डाक्टर सलाह देते हैं कि जिन महिलाओं को यह समस्या है उन्हें बच्चे को जन्म देने में देर नहीं करनी चाहिए, क्योंकि स्थिति समय के साथ अधिक खराब हो जाती है.

पहली बार ऐंडोमैट्रिओसिस का पता ही तब चला जब कुछ महिलाएं बांझपन का उपचार करा रही थीं. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 25 से 50% बांझ महिलाएं ऐंडोमैट्रिओसिस की शिकार होती हैं, जबकि 30 से 50% महिलाएं, जिन्हें ऐंडोमैट्रिओसिस होता है वे बांझ होती हैं. सामान्य तौर पर संतानहीन दंपतियों में से 10% का कारण ऐंडोमैट्रिओसिस होता है. बांझपन की जांच करने के लिए किए जाने वाले लैप्रोस्कोपिक परीक्षण के समय ऐंडोमैट्रिअल इंप्लांट का पता चलता है. कई ऐसी महिलाओं में भी इस का पता चलता है, जिन्हें कोई दर्द अनुभव नहीं होता. ऐंडोमैट्रिओसिस के कारण महिलाओं की प्रजनन क्षमता क्यों प्रभावित होती है, यह पूरी तरह समझ में नहीं आया है, लेकिन संभवतया ऐनाटोमिकल और हारमोनल कारणों के कारण यह समस्या होती है. संभवतया हारमोन और दूसरे पदार्थों के कारण अंडोत्सर्ग, निषेचन और गर्भाशय में भू्रण के इंप्लांट पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

ऐंडोमैट्रिओसिस और कैंसर

कुछ अध्ययनों के अनुसार जिन महिलाओं को ऐंडोमैट्रिओसिस होता है उन में अंडाशय का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. यह खतरा उन महिलाओं में अधिक होता है जो बांझ होती हैं या कभी मां नहीं बन पाती हैं.

अभी तक ऐंडोमैट्रिओसिस और ओवेरियन ऐपिथेलियल कैंसर के मध्य संबंधों के स्पष्ट कारण का पता नहीं है. कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि ऐंडोमैट्रिओसिस इंप्लांट ही कैंसर में बदल जाता है. यह भी मानना है कि ऐंडोमैट्रिओसिस आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारणों से भी संबंधित हो सकता है. ये महिलाओं में अंडाशय का कैंसर होने की आशंका भी बढ़ा देते हैं.

डायग्नोसिस

ऐंडोमैट्रिओसिस का पता लगाने के लिए ये टैस्ट किए जाते हैं:

  1. पैल्विक ऐग्जाम: इस में डाक्टर हाथ से पैल्विक का परीक्षण करता है कि कोई असामान्यता तो नहीं है.
  2. अल्ट्रासाउंड: इस से ऐंडोमैट्रिओसिस होने का पता तो नहीं चलता है, लेकिन उस से जुड़े सिस्ट की पहचान हो जाती है.
  3. लैप्रोस्कोपी: यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐंडोमैट्रिओसिस है एक छोटी सी सर्जरी की जाती है, जिसे लैप्रोस्कोपी कहते हैं. इस में ऊतकों के सैंपल भी लिए जाते हैं, जिन की बायोप्सी से पता चल जाता है कि ऐंडोमैट्रिओसिस कहां स्थित है.

उपचार

पीरियड्स के दौरान होने वाले रक्तस्राव और दर्द भरे संभोग को गंभीरता से लें. स्थिति और अधिक गंभीर होने से पहले फर्टिलिटी विशेषज्ञ से मिलें. इस के उपचार के लिए दवा और सर्जरी का उपयोग किया जाता है. हारमोन थेरैपी भी इस के उपचार के लिए उपयोग की जाती है, क्योंकि मासिकधर्म के दौरान होेने वाले हारमोन परिवर्तन के कारण भी यह समस्या हो जाती है. हारमोन थेरैपी ऐंडोमैट्रिओसिस के विकास को धीमा करती है और ऊतकों के नए इंप्लांट्स को रोकती है. ऐंडोमैट्रिओसिस के कारण होने वाले दर्द की समस्या के लिए डाक्टर सर्जिकल उपचार बेहतर मानते हैं तथा बांझपन की समस्या के लिए आईवीएफ तकनीक की सलाह दी जाती है ताकि सामान्य से अधिक नुकसान होने से पहले संतान प्राप्ति की जा सके.

महिलाओं में दिख रहे ऐसे लक्षण तो डॉक्टर से करें संपर्क, हो सकती है एंडोमेट्रियोसिस नामक गंभीर बीमारी

महिलाएं अपनों का ध्यान रखने में इतनी डूब जाती हैं कि वो खुद का ख्याल रखना भूल जाती हैं. परिवार के सभी सदस्यों को तो हेल्थ चेकअप के लिए समय समय पर याद दिलाती रहती हैं, लेकिन जब बात खुद की होती है तो कई बार नजरअंदाज करती हुई भी नजर आती हैं. ऐसी अनदेखी कई दफा भरी पड़ जाती है. कई महिलाओं को हार्मोनल डिसीज से भी जूझना पड़ता है. हार्मोनल डिसीज बॉडी में अपनी जड़े मजबूत करती रहती हैं, लेकिन महिलाओं को इसके बारे में भनक भी नहीं लगती. इस आर्टिकल में एक ऐसे बीमारी के बारे में बताने वाले हैं, जिसको जानना बेहद जरूरी है। क्योंकि ये बीमारी उनसे ही जुड़ी हुई है. इसके लक्षण के बारे में भी बताएंगे.

डॉ. जगतजीत सिंह, बेबी जॉय आईवीएफ के सह-संस्थापक का कहना है कि एंडोमेट्रियोसिस है. यह एक ऐसा डिसऑर्डर है जो महिला के गर्भाशय की लाइनिंग बनाने वाले टिशु से मिलने के साथ ही टिशु यूटेराइन कैविटी से बाहर डेवलप होने लगता है. यह कोई छोटी-मोटी बीमारी नहीं है. इसको आम बोल चाल की भाषा में समझें तो इस बीमारी से महिलाएं बांझपन का शिकार हो सकती हैं. लेकिन इसका अच्छे से इलाज हो जाए तो महिला को गर्भधारण करने में समस्या कम हो सकती है.

एंडोमेट्रियोसिस बीमारी के लक्षण

  1. क्रोनिक पेल्विक पेन

जब किसी महिला को एंडोमेट्रियोसिस की बीमारी होती है तो उसके पेल्विक हिस्‍से में दर्द होने लगता है. इस बीमारी में महिला को मासिक धर्म के दौरान दर्द हो सकता है. इतना ही नहीं मासिक धर्म से पहले और दौरान पेट के निचले हिस्‍से में दर्द का सामना करना पड़ता है. माहवारी के एक या दो हफ्ते के आसपास ऐंठन हो सकती है. महिला को माहवारी के बीच में ब्‍लीडिंग या पीरियड्स में ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने की संभावना बढ़ जाती है. इनफर्टिलिटी, सेक्‍स के दौरान असहनीय दर्द होता है. पेशाब करने के दौरान भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

  1. असहनीय पीड़ा

मासिक धर्म में महिलाओं को दर्द का सामना करना पड़ता है. लेकिन जब कोई महिला एंडोमेट्रियोसिस की बीमारी से जूझ रही होती है तो उसको असहनीय पीड़ा होती है. पेट में दर्द होता है. ऐसी स्थिति में उस महिला को डॉक्टर से बातचीत करनी चाहिए.

  1. मेनोरेजिया या मेट्रोरहागिया

जब किसी महिला को एंडोमेट्रियोसिस की बीमारी होती है तो भारी या अनियमित मासिक धर्म का भी सामना करना पड़ता है। मासिक धर्म के दौरान ब्लड के प्रवाह में उतार-चढ़ाव हो सकता है। खून के थक्कों में इंटरमेंस्ट्रुअल स्पॉटिंग देखने को मिल सकते हैं, ऐसी स्थिति में डॉक्टर से मिलना चाहिए।

  1. डिस्पेर्यूनिया

सेक्स के दौरान असहनीय पीड़ा होना:

अगर कोई महिला एंडोमेट्रियोसिस की बीमारी से पीड़ित है तो डिस्पेर्यूनिया को तेज कर सकता है. सेक्स के दौरान या बाद में महिला को असहनीय पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है. इस तरह के लक्षण में महिला को डॉक्टर से जल्द से जल्द मिलना चाहिए.

  1. बांझपन या बाधित गर्भाधान

एंडोमेट्रियोसिस की बीमारी से पीड़ित महिला बांझपन का शिकार हो सकती है. अगर एक साल से ज्यादा समय होने के बाद भी प्रेग्नेंसी में प्रॉब्लम हो तो तत्काल डॉक्टर से मिलना चाहिए. अगर शुरुआत में एंडोमेट्रियोसिस की बीमारी पता चलता है तो इसका इलाज संभव है.

6. आईवीएफ और फर्टिलिटी मैनेजमेंट

एंडोमेट्रियोसिस-संबंधित बांझपन पर नियंत्रण ऐसे मामलों में जहां एंडोमेट्रियोसिस को बांझपन के लिए एक महत्वपूर्ण  कारक के रूप में जाना जाता है, प्रजनन विशेषज्ञ सफल  गर्भधारण के लिए  महिलाओं को इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) जैसी सहायक प्रजनन तकनीकों की सिफारिश  करते हैं. आईवीएफ प्रजनन तकनीक  में अंडाशय से अंडे प्राप्त करना, उन्हें प्रयोगशाला में शुक्राणु के साथ निषेचित करना और फिर निर्मित भ्रूण को गर्भाशय में स्थानांतरित करना शामिल है. यह प्रक्रिया एंडोमेट्रियोसिस द्वारा उत्पन्न संभावित अवरोधों, जिसके कारण गर्भाधान की संभावना बढ़ जाती है,  से महिलाओं को निजात दिला देती है.

एंडोमेट्रियोसिस से संबंधित बांझपन से जूझ रहे महिलाओं के लिए, आईवीएफ एक आशा की किरण है. प्रजनन विशेषज्ञों के सलाहों पर अमल कर, महिलाएं व्यक्तिगत  रूप से उपचार के सन्दर्भ में विचार कर सकती हैं जो उनकी गर्भधारण की इच्छा को पूरा करती है. इस  प्रक्रिया में ओव्यूलेशन को विनियमित करने के लिए हार्मोनल दवाएं, एंडोमेट्रियल ऊतक को हटाने के लिए सर्जिकल उपचार, या प्रजनन क्षमता को अनुकूलित करने जैसी कई अन्य  प्रक्रियाएँ शामिल हो सकती हैं.

आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान,  प्रजनन विशेषज्ञ  डॉक्टर से परामर्श और उसका अनुपालन महत्वपूर्ण हैं. वे भ्रूण  के विकास को ट्रैक करेंगे, नियमित अल्ट्रासाउंड करेंगे, और स्वस्थ अंडा उत्पादन के लिए अंडाशय को उत्तेजित करने के लिए दवाएं देंगे. एक बार अंडे को  प्राप्त करने के बाद, उन्हें प्रयोगशाला में निषेचित किया जाता है, और परिणामस्वरूप भ्रूण को गर्भाशय में स्थानांतरित करने से पहले गुणवत्ता के लिए सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाता है.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आईवीएफ की सफलता दर विभिन्न कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है, जिसमें एंडोमेट्रियोसिस की गंभीरता, व्यक्ति की आयु और उसकी समग्र प्रजनन स्वास्थ्य शामिल है. हालांकि, प्रौद्योगिकी और प्रजनन उपचार में प्रगति के साथ एंडोमेट्रियोसिस से संबंधित बांझपन का सामना करने वाले महिलाओं  के लिए, आईवीएफ एक विश्वसनीय विकल्प है.

एंडोमेट्रियोसिस बीमारी के संकेतों को समझना महत्वपूर्ण है. क्योंकि कम उम्र में भी ऐसे लक्षण मिलते हैं। इसके संकेतों को कोई अगर समझना चाहे तो क्रोनिक पेल्विक पेन, डिसमेनोरिया, मेनोरेजिया या मेट्रोरेजिया, डिस्पेर्यूनिया, और प्रेग्नेंट होने में समस्या का सामना करना पड़ता है. अगर किसी महिला में ऐसे लक्षण हैं तो उसको कतई नजरअंदाज न करें. बॉडी में आने वाले ऐसे संकेतों को गंभीरता से लेना चाहिए. डॉक्टर से मिलकर ऐसे संकेतों के बारे में बात करें. जिससे कि ऐसे लक्षणों वाली महिला को प्रेग्नेंट होने में समस्या न हो.

2 महीने बाद मेरी शादी है, लेकिन मुझे ऐंडोमिट्रिओसिस है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मुझे ऐंडोमिट्रिओसिस है. 2 महीने बाद मेरी शादी है. क्या इस वजह से मुझे गर्भधारण करने में समस्या आएगी?

जवाब-

ऐंडोमिट्रिओसिस गर्भाशय से जुड़ी एक समस्या है. यह समस्या महिलाओं की प्रजनन क्षमता को सर्वाधिक प्रभावित करती है, क्योंकि गर्भधारण करने और बच्चे को जन्म देने में गर्भाशय की सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. ऐंडोमिट्रिओसिस के 4 ग्रेड होते हैं, मिनमल, माइल्ड, मौडरेट और सीवियर. ज्यादातर

कोई परेशानी होती है, पहले वाली 2 स्थितियों में गर्भधारण करने में कोई परेशानी नहीं होती है, लेकिन अगर समस्या 3 और 4 ग्रेड तक पहुंच गई है तो गर्भधारण मुश्किल हो सकता है. शादी के बाद 6 महीनों तक प्रयास करें. अगर आप गर्भधारण नहीं कर पाएं तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाएं. उपचार कराने में देरी न करें.

-डा. वैशाली शर्मा

सीनियर आईवीएफ ऐक्सपर्ट, मिलन फर्टिलिटी सैंटर, नई दिल्ली

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खानपान, शिफ्ट वाली नौकरी और रहन-सहन में आए बदलाव के कारण जहां एक तरफ लाइफस्टाइल पहले से अधिक बढ़ गया है, वहीं दूसरी तरफ टैकनोलौजी से भी कई हेल्थ प्रौब्लम बढ़ गई हैं. अब बढ़ती उम्र के साथ होने वाले रोग युवावस्था में ही होने लगे हैं. इनमें एक कौमन प्रौब्लम है युवाओं में बढ़ती इन्फर्टिलिटी. दरअसल, युवाओं में इन्फर्टिलिटी की समस्या आधुनिक जीवनशैली में की जाने वाली कुछ आम गलतियों की वजह से बढ़ रही है.

1. खानपान की गलत आदतें

इन्फर्टिलिटी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार होती है खानपान की गलत आदतें. समय पर खाना नही, जंक व फास्ट फूड खाने के क्रेज का परिणाम है युवावस्था में इन्फर्टिलिटी की प्रौब्लम. फास्ट फूड और जंक फूड खाने में मौजूद पेस्टीसाइड से शरीर में हारमोन संतुलन बिगड़ जाता है, जिसके कारण इन्फर्टिलिटी हो सकती है. इसलिए अपने खानपान में बदलाव का पौष्टिक आहार का सेवन करें. हरी सब्जियां, ड्राई फ्रूट्स, बींस, दालें आदि ज्यादा से ज्यादा खाएं.

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