हम सब भी पर्यावरण को बचा सकते हैं बशर्ते प्रवचन देना बंद करके सचमुच कुछ करें

हालां कि पिछले दिनों विष्वव्यापी लाॅकडाउन के चलते काफी हद तक हवा शुद्ध हुई है. नदियों का पानी साफ हुआ है. पक्षियों का जीवन खुशहाल हुआ है और किसी हद तक ओजोन छतरी भी मजबूत हुई है. लेकिन दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने साफ-साफ कह दिया है कि इस सबसे यह न उम्मीद की जाए कि ग्लोबल वार्मिंग को इससे कुछ फर्क पड़ेगा. ग्लोबल वार्मिंग को इन छोटी-छोटी बातों से फर्क तो पड़ेगा, लेकिन जब ये हमेशा के लिए हमारी जिंदगी का, हमारी चेतना के साथ हिस्सा हो जाएं. किसी महामारी के भय से घर में कैद हो जाने से साफ हुई हवा बहुत दिन तक वातावरण को जहर से मुक्त नहीं रख सकती, खासकर तब जबकि लाॅकडाउन खुलते ही दुनिया पहले से भी कहीं ज्यादा तेज रफ्तार से फिर पुराने ढर्रे पर चल पड़ी हो.

सवाल है पर्यावरण कैसे बचेगा? निश्चित रूप से पर्यावरण हम सबकी भागीदारी से बचेगा. अगर विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर हम एक नजर बिगड़ते पर्यावरण की क्रोनोलाॅजी पर डालें तो हमें आश्चर्य होगा कि पिछले लगभग 7 दशकों से हर गुजरते दिन के साथ पर्यावरण बिगड़ रहा है. मगर देखने वाली बात है कि हम यानी पूरी दुनिया कर क्या रही है? बातें, बातें और सिर्फ बातें. पर्यावरण दिवस एक मजेदार रस्म अदायगी का दिन बनकर रह गया है. यह कितनी बड़ी विडंबना है कि पूरी दुनिया बिगड़ते पर्यावरण की भयावहता को समझ रही है और इसके प्रति चेतना जगाने के लिए चीख रही है पर पता नहीं किसके लिए यह सब कुछ किया जा रहा है? क्योंकि हर कोई सिर्फ भयावहता का खाका खींच रहा है. बिगड़ते पर्यावरण की बातें कर रहा है, समझाने का प्रयास कर रहा है मगर पता यह नहीं चल रहा कि समझाया किसको जा रहा है? पर्यावरण की बिगड़ती हालत के साथ सबसे बड़ी विडंबना है कि हर कोई यह बात किसी और को बताना चाहता किसी और को इसकी भयावहता समझना चाहता है पर खुद कोई समझने को राजी नहीं.

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वक्त नाजुक मोड़ पर पहुंच चुका है. तथ्यों, तर्कों से हम बहुत एक दूसरे को डरा चुके अब समय आ गया है कि इस डर की प्रतिक्रिया में वाकई कुछ ऐसा करें कि डर कम हो. क्या कहा आप अकेले कुछ नहीं कर सकते? बहुत खूब बहाना है. यकीन मानो हर किसी का सुरक्षा कवच यही बहाना है. हर कोई यही कह रहा है कि वह अकेले क्या कर सकता है? या उसके अकेले ऐसा करने से आखिर पर्यावरण का कितना भला होगा? यह फिजूल की उलझन है और चालाक सवाल. हर कोई अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए खुद को किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में बता रहा है. पर हम सब याद रखें, हम इस तमाम होशियारी से किसी और को बेवकूफ नहीं बना रहे, खुद के पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं. वक्त आ गया है कि पर्यावरण की चेतना को उसकी विराटता से समझें और उसके संरक्षण में अपने छोटे से छोटे योगदान को भगीरथ प्रयास की गरिमा के साथ नत्थी करें.

पर्यावरण संरक्षण से अभिप्राय सामान्यतः पेड़-पौधों के संरक्षण एवं हरियाली के विस्तार से लिया जाता है. परन्तु वास्तव में यह इतना ही सीमित नहीं है. यह एक विस्तृत अवधारणा है. इसका तात्पर्य पेड़-पौधों के साथ-साथ जल, पशु-पक्षी एवं सम्पूर्ण पृथ्वी की रक्षा से है. ऐसे में जरूरी नहीं है कि हर कोई पर्यावरण को बचाने के लिए या बचाने में अपना योगदान देने के लिए वैज्ञानिक ही बने. जब पर्यावरण की बात हो तो ओजोन परत की छतरी से ही शुरू करे. घर-परिवार सही अर्थों में पर्यावरण शिक्षण-प्रशिक्षण की प्रथम पाठशाला है. यहां पर्यावरण को बिगड़ते भी देखा जा सकता है और कोशिश करें तो उसे बनते हुए भी महसूस किया जा सकता है. पर्यावरण को बचाने, उसे संरक्षित करने और उसके प्रति सजग रहने के लिए जरूरी नहीं है कि हम बहुत बड़े बड़े काम ही करें या तब तक अपनी योगदान को शून्य समझें जब तक हमारे योगदान को नोबेल पुरस्कार के लायक न समझा जाए.

लब्बोलुआब यह कि पर्यावरण को हम सब भी बचा सकते है, बशर्ते हम यह मानें कि हम ऐसा कर सकते हैं और फिर इसकी शुरुआत बिल्कुल शून्य बिंदु से करें. जी, हां आपको भले लगता हो कि यह बहुत थकाऊ, उबाऊ और अनिश्चित सा उपाय है. मगर यकीन मानिए अगर हम सब बहुत छोटी छोटी सजगताओं को अपनी रोजमर्रा की जीवनशैली का हिस्सा बना लें तो धरती पर्यावरण की समस्या से मुक्त हो जायेगी. हवा, पानी, जमीन सब स्वस्थ हो जाएंगे, हवाओं से जहर गायब हो जायेगा और फिजाएं जीवनदायिनी हो जायेंगी. बस हमें बहुत मामूली छोटे छोटे ऐसे कदम उठाने हैं जो हम हंसते, खेलते बिना किसी मुश्किल के या अतिरिक्त प्रयास के उठा सकते हैं.

हां, ये वाकई उपदेश नहीं है ऐसे छोटे छोटे उपाय हमारे पर्यावरण को बचा सकते हैं अगर आप अब भी नहीं समझ पा रहे हैं तो हम बताते है कि ये छोटे छोटे उपाय क्या हैं और क्या हो सकते हैं?

– घर चाहे जितना छोटा हो दो चार पौधे जरूर लगाएं.

– पौधों में इस्तेमाल करने के लिए जैविक खाद अपनाएं.

– शाॅपिंग के लिए प्लास्टिक के थैले की जगह कपडे़ के थैले का इस्तेमाल करें. पोलिथिन व प्लास्टिक को पूरी दृढ़ता से न कहें.

– स्टेशनरी यानी कागज, काॅपी के दोनो साइड्स का इस्तेमाल करें. इससे कागज की खपत में कमी आयेगी मतलब सीधा है, पेड़ बचेंगे, पर्यावरण बचेगा.

– खाने को बरबाद न करें. थाली में जूंठा न छोड़ें जितना खाएं उतना ही लें, चाहे घर हो या पार्टी.

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– हममें से ज्यादातर लोग सिर्फ धुंए को ही प्रदूषण का जरिया मानते हैं. मगर रोशनी भी प्रदूषण का बड़ा जरिया है इसलिए जितना संभव हो कृत्रिम रोशनी का कम इस्तेमाल करें. दिन में सूरज की रौशनी से काम चलायें. रात की अपनी तमाम गतिविधियों को सीमित करके सोने में खर्च करें.

– जरूरी न हो तो बिजली से चलने वाले उपकरणों के स्विच बंद रखें. याद रखें अगर स्विच खुले रहते हैं तो वल्ब न जलने या कोई चीज न चलने के बाद भी बिजली इस्तेमाल होती है. ज्यादा से ज्यादा सीएफएल और एलईडी उपकरणों का उपयोग करके ऊर्जा बचाएं.

– सोलर-कुकर ऊर्जा बचाने का प्रभावी उपाय है इसका अधिकतम इस्तेमाल करें और बिजली जैसी ऊर्जा पर अपनी निर्भरता घटाएं. सौर-ऊर्जा का अधिकाधिक इस्तेमाल करें. यह एक अकेले आपके ही नहीं समूची मानवता के हित में है.

– अपनी लाइफस्टाल को लापरवाही के ठप्पे से बाहर निकालें. ब्रश एवं शेव करते समय बेसिन का नल बंद रखें. फोन, मोबाइल, लैपटॉप आदि का इस्तेमाल पावर सेविंग मोड पर करें. कपड़े धोने के लिए या हर मौसम में नहाने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल न करें. जहां तक हो सके पैदल चलें और पैकिंग वाली चीजों का कम से कम इस्तेमाल करें.

यकीन मानें भले ये उपाय दिखने में छोटे हों मगर एक बार आपने यदि इन्हें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बना लिया तो यकीन मानो पर्यावरण की समस्या के बारे में आप कहेंगे- कहां गए छो?

पर्यावरण बचाना है तो फिर से कहना होगा ‘जीयो और जीने दो’

दुनिया में तमाम खूबसूरती उसकी प्राकृतिक बहुलता और विविधता के कारण है. यह बात सिर्फ निर्जीव प्रकृति पर ही लागू नहीं होती बल्कि जीवित जीवों की दुनिया पर भी लागू होती है. दुनिया में जीवन का जो चक्र है, उसमें हर जीव एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है. कुछ आॅक्सीजन का उत्पादन करते हैं (ध्यान रखिए वनस्पतियों और पेड़ों को भी जीवन का हिस्सा माना जाता है) ताकि किसी भी जीव को सांस लेने में किसी तरह की दिक्कत न हो. कुछ छोटे जीव बड़े जीव प्रजातियों का भोजन बनते हैं ताकि बड़े जीव इन छोटे जीवों को नियंत्रित रखें और धरती में जीवन का अनुपात और संतुलन बना रहे. कहने का मतलब यह कि धरती में जीवन की जो मौजूदगी है, उसके लिए जीवन की यह विविधता ही जिम्मेदार है. इसलिए इस विविधता को बनाये रखना बहुत जरूरी है. अगर जीवन की विविधता नहीं बची तो फिर धरती में जीवन भी नहीं बचेगा.

वैज्ञानिक इसीलिए सबसे ज्यादा चिंतित है. क्योंकि धरती में बहुत तेजी से बायोडायवर्सिटी का क्षरण हो रहा है. सिर्फ जमीन में रहने वाली हजारों जीव प्रजातियां ही पिछले सैकड़ों सालों में नष्ट नहीं हुई हैं बल्कि समुद्र के अंदर की हजारों जीव प्रजातियों को भी या तो इंसानों ने खाकर खत्म कर दिया है या फिर अपनी ऐशपूर्ण जीवनपद्धति के चलते इनकी जिंदगी को खतरे में डाल दिया है. पूरी दुनिया में समुद्र के रास्ते जैविक तेल यानी पेट्रोल, डीजल का एक जगह से दूसरी जगह धड़ल्ले से जाने का नुकसान यह हुआ है कि समुद्र मंे सैकड़ों जीव प्रजातियां खत्म हो गई हैं. इंसान पहले मछली पकड़कर खाता था, फिर वह नदियों, तालाबों और समुद्र से मछलियां पकड़कर अपनी जीविका बनाने लगा और अब तो पिछले 50 सालों में हजारों कंपनियां समुद्र से हर दिन लाखों टन मछलियां निकालकर उन्हें अपने मुनाफे में बदल रही हैं.

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यह अकारण नहीं है कि पिछली सदी के 70 के दशक तक दुनिया की कुल 5 से 10 फीसदी जीव प्रजातियों को ही इंसानी जीवन को सुविधा और स्वादजनक बनाने के कारण अपने आपकी कुर्बानी देनी पड़ी थी. लेकिन पिछले 50 सालों में दुनिया की 50 फीसदी से ज्यादा जैव विविधता खत्म हो गई है तो इसमें इंसान के अलावा किसी और की कोई भूमिका नहीं है. हमने इतने किस्म के स्वाद और इतने किस्म के लालच पाल लिये हैं कि हर दिन समुद्र से इतनी मछली निकाली जाती है कि उसकी एक तिहाई की भी भरपायी नहीं हो पाती. धीरे-धीरे स्थितियां ये हो गई हैं कि समुद्र मछलियों से करीब करीब खाली हो गया है. सिर्फ मछलियां ही नहीं हमने न जाने कितने सीधे-सादे जानवरों को मारकर खा लिया है. आज धरती के हर कोने में हिरणों, नील गायों और हजारों ऐसे ही दूसरे जानवरों के अस्तित्व पर तलवार लटक रही है. इस सबके लिए सिर्फ इंसान ही जिम्मेदार है.

लेकिन कुदरत में कभी भी किसी की हमेशा नहीं चलती. अगर बात सिर्फ इतनी होती कि इंसान प्रकृति को भरपूर रूप से इस्तेमाल करके छोड़ देगा और उसे इसकी जरा भी कीमत नहीं देनी होगी, तो इंसान कभी भी पर्यावरण या जैव विविधता जैसे विचारों और कार्यक्रमों को नहीं जानता और न ही प्रोत्साहित करता. लेकिन इंसान जान गया है कि अगर उसे धरती में प्रलय की आशंकाओं को निर्मूल बनाना है तो उसे न सिर्फ कुदरत के साथ अस्तित्व बनाना होगा बल्कि दुनिया की तमाम जीव प्रजातियों के जिंदा रहने के लिए स्थितियां भी बनाना होगा. दुनिया में इंसान तभी बचा रह सकता है, जब वह इस ध्येय पर चले कि ‘जीओ और जीने दो’. पहले हमने अपनी तमाम बेवकूफाना हरकतों से धरती की हवा खराब की, उसका पानी खराब किया, उसकी मिट्टी खराब की. इससे नतीजा यह हुआ कि जैव विविधता के क्रम में एक तो हम कमजोर हुए और फिर हम अपने आपको बनाये रखने के लिए दुनिया के बाकी जीवों की परवाह नहीं की.

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हम लाखों जीवों को मारकर खा गये और अनगिनत जीवों के लिए अपनी सुख, सुविधाओं के चलते जीना मुहाल कर दिया. यही वजह है कि पिछले 50 सालों में 50 फीसदी से ज्यादा जैव विविधता का अंत हुआ है. अगर इस हरकत को जल्द से जल्द नहीं रोका गया तो धरती में इंसान का अस्तित्व बस कुछ ही दशकों तक सीमित रहेगा. आज दुनिया में जो 20 से ज्यादा जानलेवा वायरस मौजूद हैं, उन सबका कहीं न कहीं रिश्ता इस जैव विविधता से भी है. लोगों ने अपने पेट और स्वाद के लिए ऐसे ऐसे जानवरों को खाना शुरू कर दिया, जिनकी पहले से ही धरती में बहुत कमी थी. नतीजा यह हुआ कि वे प्रजातियां या तो नष्ट हो गईं या कहें अपने अस्तित्व से लड़ रही हैं. इन्हीं जानवरों से तमाम वायरस विकसित हुए हैं, जिनमें कोरोना भी है. हमें इन डराने वाली आपदाओं और महामारियों का कारण बनने वाले वायरसों से अगर बचना है तो हर हाल में दुनिया की बायोडायवर्सिटी को बचाना होगा.

फूलों से दें पूरे घर को नैचुरल लुक

घर के माहौल को साफ सुथरा, ताजगी भरा बनाए रखने के लिए फूलों को बतौर साज-सज्जा मे इस्तेमाल करने का चलन दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है. आप  घर को एग्जॉटिक, एलीगेट व नैचुरल लुक देने के लिए एनथूरियम, बर्डस ऑफ पैराडाइज, ओरियन्टल लिलि जैसे फूलों से सजा  सकते है , ये फुले आपके बजट मे भी फिट बैठते है  और घर को भी खूबसूरत लुक देते है .

एनथूरियमज् देखने मे बहुत ही खूबसूरत फूल जो हथेलियों के आकार व हार्ट शेप के पत्ते जैसा होता है. इस फूल की लाइफ करीब 20 से 30 दिन की होती है जो रेड, पिंक और व्हाइट रंग मे आता है. पत्तेदार लुक और रंग बिरंगा होने से यह घर के साथ-साथ मन को भी शांति का अहसास देते है . इसकी कीमत 25 रुपये से लेकर 50 रुपये प्रति फूल होती है. बर्डस ऑफ पैराडाइजज् इसे क्रेन फ्लावर से भी जाना जाता है जो देखने मे लंबे पक्षी की तरह होता है. इसे एग्जॉटिक फ्लावर मे शुमार किया जाता है. हरे पत्तों के बीच हार्ट शेप के रेड, पिंक व व्हाइट फूल लगे होते है. इसे किसी लंबे वास मे रखे या फिर बालकनी मे एक साथ ढेरों लगाकर अच्छे से अरेज करे.

 

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WORKSHOPS POSTPONED❗️ As the BC government announced the latest COVID-19 regulations yesterday to ban all gatherings until Nov 23, we’re very bummed to decide to postpone all the workshops in the next two weeks to December. We’re still planning for the next step and will keep everyone posted once the new workshop dates are out. If you have any questions or concerns, feel free to give us a shout🙂 At the same time, let’s check out this beautiful dried centrepiece made by a student. This mix of orange, brown and creamy tones really brings out the warm yet uplifting autumn vibes! – #floraldesign#floralart#floralarrangement#flowers#flowersofinstagram#flowerstagram#flowerporn#flowerarrangement#floweroftheday#flowerlovers#flowermagic#flowerpower#florist#vancouver#vancouverbc#burnaby#flowerdecor#flowerdecoration#driedflower#driedflowers#driedflorals#autumnflowers#fallflowers

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यदि आप इसे अपने बेडरूम या सोफे के पास टेबल पर रखेगी तो लगेगा जैसे टेबल लप रखा हो जिसमे से नारंगी, पीला व लाल रोशनी की किरण आपके कमरे मे बिखर रही हो. इसे घर मे सजाने के अलावा किसी को बुके गिफ्ट भी कर सकती है. एक फूल की कीमत 40 से 90 रुपये होती है. काल्ला लिली और ओरियंटल लिलीज् खूबसूरत काल्ला लिली जितनी नैचुरल दिखती है, उतनी ही सॉफ्ट, ग्रेसफुल होती है. यह वास फ्लावर के लिए बढ़िया ऑप्शन है. यह काफी डेलिकेट होती है जो किसी भी फूल वाले के पास मिल जाएगा.

ओरियन्टल लिली भी बेहद खूबसूरत होते है और इनके शेडस टेक्सचर व गरेस इतने अच्छे होते है कि बिना लिए आपका दिल नहीं मानेगा. सबसे फेमस ओरियन्टल लिली ‘स्टार गेजर’ है जिसकी पंखुड़ियां स्टार की तरह दिखती है. इसकी कीमत 45 से 85 रुपये और काल्ला लिली की 25 से 50 रुपये होती है. स्टार गेजर की पंखुड़ियां गुलाबी व किनारा सफेद रंग का होता है. ये सभी फूल लाइट व डार्क पिंक, पर्पल, व्हाइट कलर्स मे आते है. इसे डाइनिंग व सेट्रल टेबल पर रख अपने मेहमानों का दिल खुश कर सकती है. हेलिकोनियाज् रंगज्बिरंगा हेलिकोनिया को लिविंग रूम के किसी कोने मे रख कर देखे. ऐसा लगेगा जैसे लंबी माला टंगा हुई है. इसे लॉबस्टर क्लॉ, वाइल्ड प्लांटेन या फॉल्स बर्ड ऑफ पैराडाइज भी कहा जाता है. केकड़ों मे आगे की ओर दो लंबेज्लंबे क्लॉ होते है, ये इसी तरह दिखते है.

मल्टी कलर और भिन्नज्भिन्न आकार वाले इस फूल से घर मे आकर्षक फ्लावर अरेजमेट कर सकती है. खासकर पार्टी, फंक्शन आदि के दिनों मे. वैसे फूल तो बड़े नाजुक व हल्के होते है पर हेलोकोनिया ऐसा नहीं. यह थोड़ा हेवी होता है. इसकी कीमत 65 से लेकर 90 रुपये तक होती है. एमैरिलिसज् यह फूल कुछ हद तक ओरियन्टल लिली की तरह दिखता है. इसे रोमांटिक फ्लावर के तौर पर भी माना जाता है, इसलिए अपने बेडरूम मे इसे सजाकर अपने रूठे साथी को खुश कर सकती है. यह लाल रंग के चेरी शेड, पिंक, नारंगी, सफेद और नारंगी व सफेद के कॉम्बिनेशन मे आता है. इसकी कीमत 15 से 25 रुपये होती है. इसमे नीचे पतली सी हरी डंडी और ऊपर की ओर फूल लगा होता है.

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पॉलिसी में पर्यावरण की अहमियत सबसे ऊपर होने की जरुरत – भारती चतुर्वेदी

लॉक डाउन की वजह से लोगों को समस्याएं तो बहुत आई, लेकिन पर्यावरण को साफ़ होने में इससे काफी हद तक मदद मिली, इस काम के लिए सरकारों ने करोड़ों रुपये बजट में हर साल गवाएं, पर वे इस मुहिम में सफल नहीं हो सकें. लॉक डाउन ने इसे सफल कर दिखाया है. सड़कों पर वाहनों और फैक्ट्रियों के न चलने से धूएँ कम हुएं, निर्माण काम कम होने से धूल का कम होना और विषैले पदार्थो के जलाशयों में न फेकें जाने की वजह से वातावरण ने राहत की सांस ली है. जीव जंतु जो सालों से अपनी आज़ादी को भूल चुके थे वे इस माहौल में खुश होकर अपनी आज़ादी का भरपूर फायदा उठा रहे है. जानकारों की माने तो सल्फर डाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि के स्तर में भी काफी गिरावट आई है. ये सही है कि पिछले 4 दशक से व्यक्ति जीवन की आपाधापी में पर्यावरण का ख्याल रखना भूल चुका था, जिसे कोरोना वायरस ने याद दिलाया. पूरे विश्व में वैज्ञानिक भी इसी विषय पर लगातार काम कर रहे है, क्योंकि पर्यावरण प्रदूषण से केवल मानव ही नहीं, बल्कि पूरे सृष्टि को खतरा है.

डिस्कवरी चैनल पर द वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे पर ‘द स्टोरी ऑफ़ प्लास्टिक में प्लास्टिक्स की बढते प्रयोग की वजह से केवल धरती ही नहीं, बल्कि जन्तु जानवर भी खतरे में है. इस बारें में एनवायरनमेंटलिस्ट भारती चतुर्वेदी से बात हुई, पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-स्टोरी ऑफ़ प्लास्टिक क्या बताने की कोशिश कर रही है?

प्लास्टिक की पहले और बाद की कहानी दोनों ही भयानक है. जिस आयल से प्रोसेस के बाद प्लास्टिक निकलता है, उसको धरती में गलाना बहुत मुश्किल होता है इसलिए वह धरती के लिए हानिकारक होती है. अम्फान साइक्लोन भी इसी का एक रूप है, जिससे इतनी तबाही हुई है. ध्यान न रखने पर आगे ऐसी कई तबाही होने का डर है, इसलिए हमारी पृथ्वी को बचाना बहुत जरुरी है.

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सवाल-प्लास्टिक हमारी जिंदगी में शामिल हो चुकी है, लोग इसे छोड़ने में असमर्थ है, ऐसे में किस तरह की प्लास्टिक्स का प्रयोग करना सही होता है

ये सही है कि लोगों को प्लास्टिक की आदत पड़ चुकी है लोग छोड़ नहीं सकते है, लेकिन ये भी जानना जरुरी है कि पब्लिक की मांग के आधार पर चीजे बनायीं जाती है. मैं चाहती हूं कि ऐसी चीजे मार्केट में लायी जाय, जो कैरी करने में आसान हो और बहुत दिनों तक चले, अधिक दिनों तक कोई भी चीज चलने पर लोग उसकी मांग कम करेंगे. इसके अलावा चॉइस कम होने चाहिए, जो प्लास्टिक की सामान सही पैमाने के आधार पर बनती हो, उसे ही मार्केट में लाने की इजाजत मिलनी चाहिए. आजकल सूती कपडे बाज़ार में अधिक नहीं मिलते. पोलिएस्टर के कपडे अधिक बिकते है, जो देखने में आकर्षक होते है, जिसे लोग खरीदते और पहनते है. इस बारें में सरकार को भी सोचने की जरुरत है. इसके अलावा कबाड़ी वाले ही अधिकतर प्लास्टिक उठाते है उनके बगैर ये काम नहीं हो सकता. इसलिए इकट्ठा किये गए कबाड़ी के प्लास्टिक को रखने के लिए जगह देना, उनके लिए पहचान पत्र बनाना, उनके काम का सही दाम देना और जमा किये गए प्लास्टिक का सही तरह से रिसायकिल करना जरुरी है. इस दिशा में बहुत अधिक काम करने की आवश्यकता है.

सवाल-लॉक डाउन से हमारी पृथ्वी काफी हद तक प्रदूषण रहित हो चुकी है, इस बारें में आप क्या सोचती है? कैसे प्रदूषण को बिना लॉक डाउन के भी कम किया जा सकता है?

प्रकृति  के खपत को कम करने की जरुरत है. नदियाँ कब तक लोगों का साथ दे सकेगी,पता नहीं. यही वजह है कि नदियों ने या तो अपना रास्ता बदल दिया है या सूख चुकी है. नदियों में अभी भी कुछ जगहों पर फैक्टरियां गंदे पानी डाल रही है. लोगों को अपनी जरूरतों को स्टैण्डर्ड और कम मात्रा में करने की जरुरत है. बायोडिग्रेडेबल सामान अधिक उपयोग में लायी जानी चाहिए. इसके अलावा माइंड सेट को बदलना, कुछ समय के लिए पहाड़ों पर जाकर भीड़भाड़ से दूर समय बिताना, ताकि शहरों पर प्रदूषण का भार कम हो, ये सबकुछ करने की जरुरत है.

सवाल-आपकी संस्था चिन्तन एनवायरनमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप पर्यावरण के क्षेत्र में क्या कर रही है?

ये हर तरह के पर्यावरण से जुड़े काम करती है. दिल्ली में मेरी संस्था प्लास्टिक पर बहुत अच्छा काम कर रही है. कूड़े वालों के साथ मिलकर हमने एक एक सर्विस शुरू की है, जिसके तहत फ़ोन करने पर प्लास्टिक उठाकर ले जाया जाता है और उसका रिसायकिल किया जाता है. इसके अलावा हिमालय पर प्लास्टिक कम हो उसके लिए लोगों को जागरूक करना, घर से निकले कूड़े का खाद बनाने के तरीके को बताने की कोशिश करना आदि कई काम किये जाते है.

सवाल-इस काम में समस्या क्या आती है?

सबसे बड़ी समस्या किसी भी सरकार का पर्यावरण से सम्बंधित निर्णय लेने से है. उसे अमल करने से पहले ही वे कम्प्रोमाइज कर लेती है. पिछले कई सालों से मैंने देखा है और बहुत ख़राब लगता है. साल 2015 में चेन्नई में फ्लड आने की वजह जंगलों को काटकर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स बनाये जाने से था. अभी जंगल काटने का समय चला गया है. जंगल और नदियों को हमें बचाने की आवश्यकता है, क्योंकि ये रीन्यू नहीं हो सकता. जंगल काटकर हाईवे बनाना या कुछ और विकास करना सही नहीं है.  पॉलिसी में पर्यावरण की अहमियत सबसे ऊपर होने की जरुरत है.

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सवाल-इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली? परिवार का सहयोग कितना रहा?

मुझे बचपन से पेड़, पक्षी, जानवरों से बहुत लगाव था. मुझे इसी क्षेत्र में काम करने की इच्छा थी, ताकि इन्हें सुरक्षित रखने में मेरा भी हाथ हो. दिल्ली में मैं बड़ी हुई हूं, मैंने भोपाल गैस ट्रेजिडी को देखा है. गरीब और गरीबी को नजदीक से महसूस किया है. मैं पर्यावरण और गरीबी के ऊपर काम करना चाहती थी. मैंने पर्यावरण से जुड़े विषयों पर पढाई भी की है. ये बहुत ही सुंदर काम है. परिवार का सहयोग है, पर न भी होता तो भी मुझे यही करना था और करती रहूंगी.

सवाल-वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे पर क्या मेसेज देना चाहती है?

सभी को अपनी जरुरत के अनुसार प्रयोग किये जाने वाले सामान खरीदने की जरुरत है. जितना कम सामान आप नियमित प्रयोग में लायेंगे, उतना ही हमारा पर्यावरण क्षति होने से बचेगा. इसकी प्रतिज्ञा सबको करने की जरुरत है.

पर्यावरण को हानि पहुंचाने का हक नहीं

केरल के अर्नाकुलम शहर में समुद्र के किनारे बने 343 बहुमंजिला फ्लैट किसी के लिए भी ईर्ष्या का मामला था. इन 343 फ्लैट्स में समुद्र की ठंडी हवा थी, दूर तक विहंगम नजारा था, बेहतरीन सुविधाएं थीं और 3 बिल्डरों द्वारा बनाए गए ये टौवर केरल की शान थे. बुरा हो पर्यावरणवादियों का कि उन्हें पता चल गया कि ये फ्लैट्स

तो उस जमीन पर बने हैं जहां कुछ भी निर्माण नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सख्ती दिखाई और घर वालों की न सुनते हुए पर्यावरण के साथ समझौते से इनकार कर दिया. फ्लैट्स जितने में भी बिके हों, जितनी भी आज उन की कीमत हो, सिर्फ क्व25 लाख पकड़ा कर खरीदारों को बाहर निकाल दिया गया है और शायद 10-20 दिनों में फ्लैट्स को टौवर को कंट्रोल्ड विस्फोट से गिरा भी दिया जाए.

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एक टौवर का नाम था होली फेथ अपार्टमैंट, एक का गोल्डन कायालोरम और एक जैंस कोरल केव. नाम से फ्लैट्स के टौवरों के धर्मजाति का भी पता चल रहा था. हरेक अपने ही इलाके में रहें, यह भी सुनिश्चित कर लिया गया था.1 से डेढ़ एकड़ में बनी बहुमंजिला इमारतें पानी को छूती हुई हैं. इन में कार पार्किंग है, जिम है, क्लब हाउस है, पौवर बैकअप, सुंदर बाग हैं, स्वीमिंग पूल हैं. 2013 के आसपास बने ये फ्लैट्स अब भी डेढ़दो करोड़ में बिक रहे थे.

देशभर में जंगलों, नदियों, खेतों, समुद्र के पास बने मकानों की मांग बढ़ रही है. शहरों की घिचपिच से उबे लोग पर्यावरण की चिंता करे बिना अपने लिए जंगलों में मकानों को बनाने का रिस्क ले रहे हैं. नेता, अफसर और लोकल लोग इन्हें वरदान समझते हैं, क्योंकि उन की कौडि़यों की जमीनें महीनों में लाखों की हो जाती हैं.

पर्यावरण के लिए ये हथौड़े सारे देश में पड़ रहे हैं और अकेली सुप्रीम कोर्ट मामले को संभाले हुए है. हर सरकार, चाहे किसी भी पार्टी की हो, अनुमति देरसबेर दे ही देती है. हर अनुमति में या तो पैसा मिल जाता है या सहमति देने पर 1-2 फ्लैट मुफ्त में मिल जाते हैं. आम आदमी 200 फुट की जगह के लिए तरसता है तो तरसे, खासों के लिए देशभर में ताजा साफ हवा और गाड़ी से पहुंच वाले घर मौजूद हैं.

यह कहना कि गलती सिर्फ  बिल्डर्स की है गलत है. आमतौर पर खरीदारों को एहसास होता है कि वे जो खरीद रहे हैं उस में कहीं कुछ कमी है. पर बहुत तो यही सोचते हैं कि यदि 10-20 साल निकल जाएं तो क्या बुरा है. इन फ्लैट्स को गिराने से किसी को भी बेघर न होना पड़ेगा यह पक्की बात है. हरेक के पास यह अकेली छत नहीं होगी.

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पर्यावरण से खिलवाड़ कुछेक के लिए गलत होगा. चाहे रिजौर्ट बन रहे हों, अपार्टमैंट बन रहे हों या सफारियां चल रही हों, जंगलों, नदियों और समुद्रों को अपने हाल पर छोड़ देना चाहिए. प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना है तो लोग कुछ घंटों के लिए मीलों चल कर जाएं. उन्हें जंगली पशुपक्षियों या पेड़पौधों को हानि पहुंचाने का कोई हक नहीं, चाहे कितना ही पैसा क्यों न हो.

हां, इस मामले में न सबरीमाला छोड़ा जाए न गंगा. पर्यावरण को आज अमीर लोगों के सुख के लिए ही नहीं पंडों की खातिर भी ज्यादा नष्ट करा  जा रहा है पर उस ओर भक्ति रस में डूबी सरकार व कोर्ट की आंखें बंद हैं.

विश्व पर्यावरण दिवस: शिक्षक ज्ञान नहीं देता, करके भी दिखाता है

आज सुबह जब मैं रनिंग के लिए टाउन पार्क गया तो देखा कि 4-5 स्कूली बच्चे कुछ पोस्टर लिए वाकिंग ट्रेक पर चल रहे थे. सब से आगे चल रहा बच्चा गिटार पर कोई धुन बजा रहा था.

वे पोस्टर ‘पर्यावरण बचाओ’ से जुड़े थे जिन में लोगों को प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करने और इस से धरती को होने वाले संभावित खतरों के बारे में बताया गया था. फिर याद आया कि देश आज ईद की छुट्टी तो मना रहा है पर यह भूल गया है कि आज ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ भी है.

उन बच्चों के साथ एक टीचर भी थीं जो अपने होनहारों के साथ जनता में पर्यावरण को ले कर जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रही थीं. फरीदाबाद के एसओएस हर्मन्न ग्मेंएर स्कूल में एकॉनोमिक्स की उन टीचर गुरजीत कौर ने बताया, “आज पर्यावरण दिवस पर हमारी यह छोटी सी पहल है जिस में हम लोगों को आने वाले समय में पर्यावरण से जुड़े खतरों से आगाह करना चाहते हैं. इस में प्लास्टिक से बनी चीजों का सब से अहम रोल होगा और अगर लोग कम से कम एक पेड़ लगाएं और एक दिन के लिए ही सही प्लास्टिक से बनी चीजों को न इस्तेमाल करें तो हमारी इस मुहिम को बल मिलेगा.

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“हम लोगों को यहांवहां कूड़ा फेंकने से होने वाले नुकसान के बारे में भी बताना चाहते हैं कि इस से हमारा शहर तो गंदा होता ही है, नई पीढ़ी को भी हम अच्छी सीख नहीं दे पाते हैं.

“अगर हम सब यह सोच मन में बैठा लेंगे कि बिजली और पानी हमारे लिए अनमोल हैं और इन्हें ज्यादा से ज्यादा समय तक बनाए और बचाए रखने की जिम्मेदारी भी हमारी है तो हम नई पीढ़ी को बहुतकुछ दे पाएंगे.”

16 साल के आदित्य नौटियाल को अपने भविष्य की चिंता है. डायनेस्टी स्कूल के 11वीं क्लास के छात्र का मानना है, “हर मातापिता यह कहते हैं कि वे अपने बच्चों से सब से ज्यादा प्यार करते हैं पर वे ही प्राकृतिक संसाधनों का बिना सोचेसमझे दोहन कर रहे हैं, धरती को नुकसान पहुंचा रहे हैं, फिर वे कैसे कह सकते हैं कि अपने बच्चों से सब से ज्यादा प्यार करते हैं जबकि आने वाले समय में उन के बच्चों को ही पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं का सब से ज्यादा सामना करना पड़ेगा.

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“आज मैं 16 साल का हूं और जब मैं 25 साल का हो जाऊंगा तो मैं कभी नहीं चाहूंगा कि दूषित हवा में सांस लूं या दूषित पानी का सेवन करूं. आज की यह जागरूकता मैं अपने कल के लिए फैला रहा हूं.”

एसओएस हर्मन्न ग्मेंएर स्कूल में 12वीं क्लास के लखन का कहना था,”आज से 10-12 साल बाद पर्यावरण की समस्या और भी गंभीर हो जाएगी. गरमी इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी कि कहींकहीं पर पारा 55 डिगरी से भी ऊपर चला जाएगा. अगर हम आज से ही ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की सोचेंगे तो आगे जीने के लिए उम्मीद की कोई किरण दिखेगी.”

इसी स्कूल के 11वीं क्लास के कमल की चिंता है, “अगर इसी तरह हम जंगलों को काटते रहेंगे, पानी को बरबाद करेंगे तो भविष्य में हम खुद ऐसी मुसीबतों में घिर जाएंगे जो हमारी धरती के लिए खतरे की वजह बन जाएंगी. अगर हमें अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का सोचना है तो आज से ही पर्यावरण को बचाने की कोशिश करनी होगी.”

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इन बच्चों और इन की टीचर की चिंता जायज है क्योंकि अपनी नासमझी और लालच का पत्थर हम सब ने इतनी जोर से आसमान में उछाला है कि ओजोन परत में ही छेद कर दिया है, जिस से धरती का तापमान बड़ी तेजी से बढ़ रहा है. इस के बावजूद हम सिर्फ अपने बारे में सोच रहे हैं, जो खतरे की बड़ी घंटी है. समय रहते चेत जाने में ही भलाई है इसलिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाइए, प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें और पानी को बचाएं. अपनी नहीं तो इन छात्रों की खातिर ही सही.

Edited by Rosy

जरूरतमंद लोगों की मदद कर पर्यावरण को बचा रही हैं अमायरा दस्तूर

हम प्रभावित करने वालों और मशहूर हस्तियों को अनगिनत प्रयोजनों के लिए काम करते हुए देखते हैं. लेकिन वास्तव में समाज या पर्यावरण के लिए काम करने की कोशिश कर रही व्यक्ति बहुत ही दुर्लभ  है.

अमायरा दस्तूर, राजमा चावल और आगामी कंगना रनौत और राजकुमार राव की मेंटल है क्या जैसी फिल्मों में भूमिका निभाते हुए नजर आएँगी , बल्कि एक सामाजिक पुनर्जागरण लाने और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए उनके समर्पण के लिए भी कार्यरत हैं.

अमायरा  नहीं बोल सकने वाली  प्रजातियों का बचाव और पोषण करने वाले ‘वर्ल्ड औफ एनिमल्स’ नामक एक गैर-लाभकारी संगठन के साथ जुड़कर अपना योगदान देने के लिए जुडी है. अपना अच्छा काम करने के लिए अमायरा की यात्रा यहीं नहीं रुकी. एक अन्य विषय जिस पर लंबे समय से अमायरा का ध्यान है, वह खाद्य अपव्यय का मुद्दा भी है.

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हालांकि हर व्यक्ति यह जानता है कि बड़े पैमाने पर भोजन बर्बाद हो रहा है और रोजमर्रा के आधार पर, अमायरा का लक्ष्य इस चिंता को अधिक सय्यम से निपटाना है. अभिनेत्री ने अब यह जीत की स्थिति बनाने के लिए बड़े खाद्य ब्रांडों के साथ जुड़ी है, जिनकी ज़रूरत है. खाद्य ब्रांड खाद्य पदार्थों के ढेर को बर्बाद कर देते हैं क्योंकि वे अगले दिन के लिए फिर से उपयोग नहीं कर सकते हैं. दूसरी ओर, गरीब पौष्टिक भोजन खरीदने का नहीं  सकते हैं.

अमायरा का इरादा इन दोनों बाजुओं के साथ जुड़ना है और जरूरत के हिसाब से एक संतुलन बनाना है. वह पहले से ही विभिन्न ब्रांडों और संस्थाओं के साथ विलय करके इस पहल की दिशा में कदम उठा रही है. इस तरह, दोनों जगह कम  लागत से प्रभावी तरीके से हल हो जाएगी. वह सलाह देती है कि सीएसआर के एक हिस्से के रूप में, बड़ी संस्थाएं वंचित और दुर्भाग्यपूर्ण वर्ग को अपव्यय से अधिक मूल्य के  भोजन वितरित कर सकती हैं जो की उसका सही उपयोग होगा और भोजन व्यर्थ जायेगा.

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अमायरा कहती हैं, “” मेरी मां वह है जो हमेशा समाज को वापस देने पर जोर देती है. मैं बस यह स्पष्ट करना चाहती हूं कि यह दान नहीं है लेकिन कम भाग्यशाली और हमारे पर्यावरण को एक ही समय में मदद करने के लिए एक कदम आगे का है और मैं सीधे उस स्रोत तक जा रहा हूं जो खाद्य ब्रांड है. इन ब्रांडों के साथ जुड़कर, उन्ह कम भाग्यशाली लोगों की बहुत गंभीरता से मदद करने के लिए प्रयत्नशील हु और उन्हें भोजन की आपूर्ति करने के लिए विभिन्न दान और आश्रयों के साथ असोसिएट कर रहे हैं जिसका उपयोग नहीं किया है या अतिरिक्त है उसे फेकने  बजाय उसे सभी जरूरतमंद लोगो तक पहुंचाना चाहिए. भारत एक ऐसा देश है जो अभी भी अकाल और कुपोषण की समस्याओं का सामना करता है, मेरा उद्देश्य इन श्रेणियों में संख्या को कम करना है जितना संभव हो सके. “

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