किसी ने किसी का रोल नहीं छीना: अमीषा पटेल के रोल छीनने के आरोप पर ईशा देओल

बौलीवुड एक्ट्रेस ईशा देओल ने एक इंटरव्यू के दौरान हैरान होते हुए अमीषा पटेल के रोल छीनने के आरोप पर सफाई देते हुए कहा है कि उनकी जानकारी में उन्होंने किसी का रोल नहीं छीना.

ईशा ने कहा कि ‘हम सब लोग अपने दिए गए काम में बिजी रहते हैं. मेरी कुछ बहुत अच्छी दोस्त हैं और मेरी जानकारी में मैने किसी का रोल नहीं छीना.’

 

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ईशा ने कहा, “हम सभी बहुत अपना काम कर रहे हैं और बहुत सारा काम करना अभी बाकी है. ऐसा नहीं है कि हम लोग बिना काम के बैठे हैं.

दरअसल पिछले साल अमीषा पटेल ने कहा था कि उन्हें इंडस्ट्री में ग्वार समझा गया था क्योंकि वो किसी फिल्मी फैमिली से नहीं थी. जब अमीषा ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था तो उनके साथ कई प्रोड्यूसर्स और स्टार किड्स ने अपने करियर की शुरुआत की थी जैसे करीना कपूर, अभिषेक बच्चन, ऋतिक रोशन, ईशा देओल, तुषार कपूर, फरदीन खान आदि. सब लोग एक दूसरे से जैलेस फील करते थे. अमीषा ने बताया कि उन्होंने एक फिल्म साइन की थी और डेट देदी और जैसे ही शूटिंग का समय आया तो उन्हें पता लगा कि अचानक किसी ने उनकी फिल्म ले ली है.

 

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आपको बता दें कि अमीषा ने इस साल फिल्म गदर 2 में सकीना के रोल में दिखाई दी थी

ईशा देओल-भरत तख्तानी हुए अलग, 12 साल बाद हुआ तलाक

ईशा देओल और भरत तख्तानी ने 7 फरवरी को आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि वे शादी के 12 साल बाद अलग हो रहे हैं. पिछले कुछ हफ्तों से ऐसी अफवाहें चल रही थीं कि दोनों अलग हो गए हैं. हाल ही में ईशा और भरत के अलगाव को लेकर एक पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी. यह पोस्ट इस बात पर आधारित थी कि कैसे ईशा को पिछले कुछ हफ्तों से भरत के बिना सार्वजनिक रूप से देखा गया था.

ईशा देओल और भरत तख्तानी की शादी के 12 साल बाद हुए अलग

शादी के 12 साल बाद ईशा देओल की लाइफ एक नए मोड पर आ गई है. भरत तख्तानी और ईशा देओल की लव स्टोरी के बाद अब उनकी तलाक की खबरें भी काफी सुर्खियां बटोर रही हैं. मीडिया के साथ बातचीत में, ईशा देओल ने कहा, “हम कैस्केड नामक इंटर-स्कूल प्रतियोगिता में मिले थे, जिसे मेरे स्कूल ने आयोजित किया था. मैंने टिशू के एक टुकड़े पर अपना फोन नंबर लिखा और उसे दे दिया. तब मेरे पास ब्रेसिज़ थे. इसलिए, मैं हमेशा कहता हूं कि वह ब्रेसिज़ के साथ मुझसे सच्चा प्यार करता था. उसे मैं बहुत प्यारी लगती थी.”

 

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उन्होंने आगे कहा, “मेरी मां के कमरे में हमारा एक फोन था और उसमें कोई एक्सटेंशन नहीं था. उस समय बात करना बहुत मुश्किल हुआ करता था. उस उम्र में, यह मोह और मासूमियत थी. वह खूबसूरत था. बेशक, हम संपर्क में थे.” कॉलेज में, और फिर 18 साल की उम्र में मेरा कामकाजी जीवन शुरू हुआ. यह ख़त्म हो गया, लेकिन मुझे ख़ुशी है कि हम वापस आ गए, और वह मेरा जीवन साथी है.

REVIEW: दिल को छू लेने वाली कहानी है ईशा देओल की ‘एक दुआ’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः वेंकीस, भारत तख्तानी,  ईशा देओल तख्तानी और अरित्रा दास

निर्देशकः राम कमल मुखर्जी

लेखकः अविनाश मुखर्जी

कलाकारः ईशा देओल, राजवीर अंकुर सिंह, बॉर्बी शर्मा , निक शर्मा व अन्य

अवधिः लगभग एक घंटा

ओटीटी प्लेटफार्मः वूट सेलेक्ट

पुरूष प्रधान भारतीय समाज में आज भी बेटे व बेटी के बीच भेदभाव किया जाता है. अत्याधुनिक युग में भी भ्रूण हत्या की खबरें आती रहती हैं. सरकार इस दिशा में अपने हिसाब से कदम उठा रही है. पर इसके सार्थक परिणाम नही मिल रहे हैं. इसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर फिल्म सर्जक राम कमल मुखर्जी और कहानीकार अविनाश मुखर्जी एक फिल्म‘‘एक दुआ’’लेकर आए हैं,  जिसका निर्माण ईशा देओल तख्तानी व उनके पति  तख्तानी ने  किया है. जो कि 26 जुलाई से ओटीटी प्लेटफार्म ‘वूट ’’पर स्ट्रीम हो रही है.

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कहानीः

फिल्म की कहानी टैक्सी ड्रायवर सुलेमान(राजवीर अंकुर सिंह)के परिवार के इर्द गिर्द घूमती है. सुलमान के परिवार में उनकी मां, पत्नी आबिदा(ईशा देओल तख्तानी),  बेटा फैज(निक शर्मा ) व बेटी दुआ(बार्बी शर्मा )हंै. बेटी दुआ के जन्म से सुलेमान की मॉं खुश नही है और सुलेमान भी अपनी बेटी से कटा कटा सा रहता है. सुलेमान के आर्थिक हालात अच्छे नही है, मगर वह अपने बेटे को स्कूल ख्ुाद छोड़ने जाता है. बेटे के लिए उपहार भी लाता है. सुलेमान बेटी दुआ को पढ़ाना नहीं चाहता. हर जगह उसकी उपेक्षा करता रहता है. लेकिन आबिदा हमेशा अपनी बेटी दुआ का खास ख्याल रखती है. वह बेटी को स्कूल भी भेजती है और बेटेे के साथ ही बेटी को भी बर्फ के गोले भी खिलाती है. ईद आने से पहले वह चुपचाप अपनी बेटी दुआ के लिए उपहार भी खरीद लाती है. जबकि ईद के दिन सुलेमान पूरे परिवार के साथ मस्जिद व दरगाह पर जाता है. सुलेमान ईद के अवसर पर अपनी मॉं के अलावा पत्नी व बेटे को ईदी यानी कि उपहार देता है. मगर वह बेटी दुआ के लिए कुछ नही लाता. यह देख दुआ की आॅंखों से आंसू बहते हैं, पर वह चुप रहती है. लेकिन आबिदा उसे उसकी पंसदीदा फ्राक ईदी यानी कि उपहार में देकर उसके चेहरे पर मुस्कान ले आती है. इस बीच दुआ की दादी सुलेमान से कहती है कि वह दूसरा बेटा पैदा करे. जबकि घर के बदतर आर्थिक हालात को देखते हुए आबिदा ऐसा नही चाहती. मगर मां की इच्छा के लिए सुलेमान पत्नी आबिदा को धोखा देकर उसे गर्भवती कर देता है. दुआ की दादी गभर्वती आबिदा के पेट की सोनोग्राफी के साथ ही लिंग परीक्षण भी करवा देती है, जिससे पता चलता है कि आबिदा बेटी को ही जन्म देने वाली है. अब दुआ की दादी चाहती हैं कि डाक्टर, आबिदा गर्भपात कर दे. मगर डाक्टर ऐसा करने की बजाय सुलेमान व उनकी मॉं को ही फटकार लगाती है. मगर सुलेमान की मां कहां चुप बैठने वाली. वह एक दूसरी औरत की मदद से ऐसा खेल खेलती है कि दूसरी दुआ नहीं आ पाती.

लेखन व निर्देशनः

अविनाश मुखर्जी ने अपनी कहानी में एक ज्वलंत व अत्यावश्क मुद्दे को उठाया है. लेकिन इसे जिस मनोरंजक तरीके से निर्देशक राम कमल मुखर्जी ने फिल्माया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. राम कमल मुखर्जी ने इस फिल्म में लंैगिक समानता, भ्रूण हत्या, नारी स्वतंत्रता व नारी सशक्तिकरण के मुद्दों को बिना किसी तरह की भाषण बाजी या उपेदशात्मक जुमलों के मनोरंजन के साथ प्रभावशली ढंग से उकेरा है. इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि कम संवादों के साथ बहुत गहरी बात कही गयी है. इसमें लिंग भेद व ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’की बात इस तरह से कही गयी है कि उन पर यह आरोप नहीं लग सकता कि इसी मुद्दे के लिए फिल्म बनायी गयी. इतना ही राम कमल मुखर्जी ने अपनी पिछली फिल्मों की ही तरह इस फिल्म में भी रिश्तों को उकेरा है.  इसमें मां बेटी के बीच के रिश्ते की गहराई को उकेरा गया है. तो वही फिल्मकार ने बदलते युग में किस तरह से ‘ओला’ व ‘उबर’की एसी वाली गाड़ियों के चलते दशकों से काली पीली टैक्सी वालों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट पैदा होता जा रहा है, उसे भी बड़ी खूबसूरती से उकेरा है. एक गरीब मुस्लिम परिवार हो या बाजार या स्कूल के सामने का माहौल या दरगाह व उसके अंदर हो रही कव्वाली हो, फिल्मकार ने हर बारीक से बारीक बात को जीवंतता प्रदान करने में कोई कसर नही छोड़ी है. मगर कहीं न कहीं इसे कम बजट में बनाने का दबाव भी नजर आता है. फिल्म की गति थोड़ी धीमी है. फिर भी हर इंसान को सेाचे पर मजबूर करती है.

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गीत संगीत पर थोड़ी सी मेहनत की जाती, तो बेहतर होता.

कैमरामैन मोधुरा पालित बधाई की पात्र हं. उन्होने अपने कैमरे से मंुबई शहर को एक नए किरदार में पेश किया है.

अभिनयः

आबिदा के किरदार में ईशा देओल तख्तानी ने शानदार अभिनय किया है. एक बार फिर उन्होने साबित कर दिखाया कि ग्रहस्थ जीवन या दो बेटियों की मां बनने के बावजूद उनकी अभिनय क्षमता में निखार ही आया है. तो वहीं टैक्सी ड्रायवर सुलेमान के किरदार को जीवंतता प्रदान करने में राजवीर कंुवर सिंह सफल रहे हैं. राजवीर,  मां व पत्नी के बीच पिसते युवक के साथ ही आर्थिक हालात से जूझते इंसान के दर्द को बयां करने में सफल रहे हैं. दुआ के किरदार में बॉर्बी शर्मा बरबस  लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं. वह बिना संवाद के महज अपने चेहरे के भाव व आंखों से ही दर्द, खुशी सब कुछ जितनी खूबसूरती से बयां करती है, वह बिरले बाल कलाकारों के ही वश की बात है. बेटे फैज के किरदार में निक शर्मा ठीक ठाक हैं.

 

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