5 टिप्स: एग्जाम टाइम में घबराएं नही और रहें टेंशन फ्री

बोर्ड ने कुछ दिन पहले ही सीबीएसई के दसवीं, 12वीं कक्षा के बोर्ड एग्जाम की परीक्षा के लिए की तारीखों की घोषणा की. शिक्षा मंत्री ने बताया कि बोर्ड परीक्षा 4 मई से शुरू होकर 10 जून तक चलेगी. इस घोषणा के बाद से ही देश के लाखों छात्र बोर्ड परीक्षा के तारीखों इंतज़ार कर रहे हैं. साथ है परीक्षा के तैयारी को ले कर तनाव में है.

लाखो परीक्षार्थी इस परीक्षा में बैठने वाले है , जिनमे कई हजारो विधार्थी घबराए है तो हजारो परीक्षार्थी तनाव से घिरे हुए है. तो आईये जानते है , इम्तिहान के इस दौर में आप अपने आपको कैसे तनावमुक्त और मस्त रखा सकते है.

घबराने से काम नही चलेगा

इम्तिहान का दौर शुरू हाने वाला है उससे पहले बनायें एक रूटीन जो आपको सफलता अवश्य ही दिलाएगा सभी कहते है कि इम्तिहान का सामना मस्ती से करें. इम्तिहान को अपने उपर हावी न होने दें. छोटी छोटी बातो को ध्यान में रखकर तैयारी करे.

दसवी और बारहंवी के र्बोड के इम्तिहान शुरू होने वाले है ऐसे मे आपकी तैयारी पूरी नही है ,तो घबराने से काम नही चलेगा. आज से ही कुछ बातो को ध्यान में रखकर पढाई शुरू कर दें.

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सारी उम्र हम मर मर के जी लिए यह गाना तो सभी ने सुना होगा हम साल भर पढाई कें लगे रहते है लेकिन एग्जाम के पास आते ही सब की सिटटी पिटटी गुल हो जाती है लेकिन हमें एग्जाम से घबराना नही चाहिए क्योकि इम्तिहान केवल स्कूल में ही अगली क्लास में जाने के लिए ही नही होते बल्कि हर किसी को किसी न किसी रूप में इम्तिहान देना ही पडता है और उसी का नाम जिंदगी हैं.

इम्तिहान को हंसते – हंसते दें पूरे आत्मविश्वास के साथ साथ एग्जाम दें.

1. टाईम टेबल से पढे

इम्तिहान ही नही किसी भी काम को करने से पहले टाईम मेनेजमेट बहुत जरूरी है तभी मजिल तक पहुचने मे आसानी होगी.अपनी दिनचार्य का एक टाईम टेबल बनाए 24 घटो में से सोने खाने खेलने के घटें बाट लें और बाकी का समय पढाई को दें आप जिस विषय में कमजोर है या वीक हैं पहले उसकी तैयारी कर लें अपने बनाये टाईम टेबल से रोजाना पढें ऐसा नही की किसी विषय का समय कम करके मस्ती में लग जायें हर विषय को समय से पढें.

2. खान पान का रखे ध्यान

इम्तिहान के दिनो में खाने का ध्यान अवश्य रखें कोइ भी गरिष्ठ भोजन न करें यानि तले या अधिक घी वाले भोजन से परहेज करें क्योकि ऐसा भोजन आलस्य लाता है.अच्छा होगा कि आप दूधए मेवाए सूप आदि हल्का भोजन ही खाने में लें क्योकि एग्जाम के दिनो मे हमे ताकत की जरूरत होती है चाट पकौडी जैसी चीजो का सेवन ना करें चाकलेट फायदेमद होती है एक साथ खाना खाने से अच्छा है कि थोडे थोडे अतंराल पर खाना खाये अधिक खाने से सुस्ती आती है जो कि नींद का कारण बनती है नींद आये तो अपनी स्टेडी टेबल से उठकर थोडा इधर उधर घुमें और ताजा कटे सलाद का सेवन करें.

3. दोस्तो के साथ करें पढाई

अपने ऐसे दोस्त के साथ पढाई करे जो बाते कम करता हो और पढता ज्यादा हो दोस्त के साथ पढने से जल्दी प्रश्न हल होते है और समय भी कम लगता है दोस्त से कम्पटीशन के चक्कर मे पढाई भी अधिक होती है एक दुसरे को सुनाने से याद भी ज्यादा होता है.

4. नोटस करें तैयार

पढाई करते समय जो भी आप याद कर रहे है उसके छोटे छोटे नोटस बना लें जिससे एग्जाम के दोरान आप अपने नोटस को दोहराए तो सब आसानी से याद आ जाए. पढाई रटटा मार कर न करें क्योकि रटा हुआ हम एकाकए भुल जाते है.

टी वी देखे और खेले भी जरूर एग्जाम के दिनो में टी वी देखना बंद न करे अधिकतर अभिभावक एग्जामस मे केबल कटा देते है लेकिन हमे अपने को खुश और तरोताजा रखने के लिए थोडा एन्टरटेन जरूरी है एगजाम को होवा न बनाए और अपने श्डयुल में खेलने का समय अवश्य ही रखें.

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5. अलार्म घडी करेगी अलर्ट

जब भी आप भुल जाते है की आपके एग्जाम चल रहें है और आप बातो में व्यस्त हो तो अर्लाम घडी आपको चेतायगी की पढाई का वक्त हो गया है हर काम के लिए आप अर्लाम का प्रयोग करें जिससे आपका टाईम टेबल मैनेज रहेगा.अगर विद्यार्थि इन सभी बातो को ध्यान में रखकर एग्जाम की तैयारी करा है तो वह कभी भी मात नहीं खा सकता.

बच्चों की परीक्षा मांओं की अग्निपरीक्षा

देश में 12वीं की परीक्षा किसी के भी भविष्य को बनाने और बिगाड़ने का इकलौता मील का पत्थर होती है. इसे सही ढंग से पार कर लिया तो जीवन में कुछ बन सकते हैं, नहीं तो सारा जीवन आधाअधूरा मुंह छिपाए रहना होता है. मांओं के लिए बड़े होते बेटेबेटियों की 12वीं की परीक्षा एक अग्निपरीक्षा होती है और उस में हर मां को ऐसे ही झुलसना होता है जैसे सीता को जलना पड़ा था. परीक्षा चाहे बेटेबेटियों की हो, कम अंक आने पर मांओं का ही मुंह लटका रहता है.

पूरे साल मांओं को यह परीक्षा देनी होती है. पैसा हो तो कोचिंग क्लासों में भेजना, रिपोर्टें चैक करना, भारी भरकम किताबें खरीदना, घूमने-फिरने के कार्यक्रम त्यागना, बेटे-बेटी से पहले उठ कर उन के लिए खाना बनाना, रिश्तेदारों के यहां जाना बंद करना पड़ता है. उस के बाद अगर कहीं ऐसे अंक आए जिन का आज के युग में कोई मोल नहीं तो मुंह छिपाए घूमना मां को ही पड़ता है.

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यह हमारी सरकार की नीतियों की देन है कि शिक्षा का आज कोई वजूद नहीं रह गया. अति योग्य और साधारण तो हमेशा ही होते थे पर पहले हरेक को अपने स्तर के अनुसार जीवन बनाने का अवसर मिल जाता था. पर जब से 12वीं में 98 और 99.5% अंक एक के नहीं कईयों के आने लगे हैं, पूरे देश में 90% से कम अंक लाने वाले बेकार कूड़ा बन गए हैं और उन की मांओं को असफल और निकम्मा घोषित कर दिया गया है.

90% से ज्यादा वालों को भी आज भरोसा नहीं है कि उन्हें मनमरजी की पढ़ाई का रास्ता मिल सकेगा. वैसे भी 12वीं की परीक्षा के साथ नीट, जेईई जैसी बीसियों परीक्षाएं देनी होती हैं ताकि कोई कैरियर बन सके. वरना लगता है अमेजन और फ्लिपकार्ट वालों के बैग पीठ पर लादे घरघर सामान डिलीवर करने का काम ही बचेगा.

देश को अगर कुशल डाक्टरों, कुशल वैज्ञानिकों, कुशल इंजीनियरों, कुशल प्रबंधकों की जरूरत है तो काम चलाऊ लोगों की भी जरूरत है. पर 12वीं की परीक्षा ऐसा बैरियर बन गया है जो चीन की दीवार की तरह ऊंचा और लंबा है और उसे पार नहीं करा गया तो वापस लौट जाना तय समझो. हर युवा को लाखों की नौकरी बीए, एमबीए, एमबीबीएस, आईआईटी करने के बाद भी मिल जाए जरूरी नहीं. पर कुछ तो मिले ताकि मां ढंग से संतोष कर सके कि उस ने अपने बच्चों के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है.

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अगर 90% से ज्यादा लाने वालों की मांएं भी चिंतित दिखें और 90% से कम लाने वाली मांएं भी रोतीपिटती दिखें तो यह एक अन्याय है जो समाज, सरकार, व्यवस्था, बाजार मिल कर औरतों के साथ कर रहे हैं. बेरोजगारी चुनावी मुद्दा रहा इस बार पर केवल विपक्ष के लिए. नरेंद्र मोदी का तो कहना था कि सर्जिकल स्ट्राइक बालाकोट में कर दी, गाएं कटने से बचवा दीं, भारत माता की जय बुलवा दी तो मांओं के कष्ट समाप्त हो गए समझो.

देश और समाज यह भूल रहा है कि 12वीं की परीक्षा में सफलता का सेहरा सिर्फ कोई बेटी के सिर पर नहीं बंधता है, मां के सिर पर भी बंधता है. मां को ही मालूम होता है कि इस बैरियर को अगर ढंग से पार नहीं किया गया तो न घर में शांति रहेगी, न बेटेबेटी का विवाह होगा, न कमाई होगी, न इज्जत रहेगी.

असल में 12वीं के बाद सैकड़ों विकल्प खुल जाने चाहिए. जिन के 90 से 99.5% अंक आए हैं यदि उन के लिए रास्ते हैं तो दूसरों के लिए संकरे, कम पक्के पर फिर भी कहीं सही जगह ले जाने वाले रास्ते होने चाहिए. आज शिक्षा को सुधारने के नाम पर इन छोटे रास्तों को प्लग करा जा रहा है, उन्हें बदनाम करा जा रहा है.

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जिन्हें पहले से आभास हो जाए कि वे 90-99 की गिनती में नहीं हैं वे अपना रास्ता पहले चुन सकें. यह प्रबंध मां नहीं कर सकती, यह तो समाज और सरकार को ही कर के देना होगा.

योग्यता केवल एक परीक्षा पर निर्भर नहीं रह सकती. 17 साल के युवा से अगले 70 साल का रास्ता खोजने को कहना ही गलत है. अगर सैकड़ों विकल्प होते तो हर जना अपनी योग्यता, अपनी इच्छा का रास्ता अपना सकता, सिर उठा कर, मां को साथ में ले कर.

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