हर साल महिलाओं के शरीर में किस तरह के होते हैं बदलाव, जानें यहां

जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हमारे जीवन में बहुत सी चीजें बदलती हैं. हमारी सोच बदलती है और हम जब तक जिंदा होते हैं, ये सोच तब तक बदलती रहती है. इसके साथ-साथ हमारे शरीर में भी बदलाव होते रहते हैं. एक महिला का शरीर, प्यूबर्टी से मेनोपॉज के दौर से गुजरता है, कई बार यह धीरे-धीरे होता है और कई बार अचानक ही.

डॉ.मनीषा रंजन, सीनियर कंसल्टेंट, प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा का कहना है कि-

कई बार ऐसा होता है जब एक महिला का शरीर लगातार बदल रहा होता है. एक महिला का शरीर बदलते और कम होते हॉर्मोन, गर्भावस्था, प्रसव और प्राकृतिक उम्र बढ़ने की प्रक्रिया का सामना करता है- और ये ऐसे बदलाव हैं जो केवल महिलाएं अनुभव करती हैं. यह प्यूबर्टी या यौवन से शुरू होता है और मेनोपॉज तक जारी रहता है, कुछ के लिये यह सूक्ष्म और कुछ के लिये यह जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया होती है.

प्यूबर्टी

लड़कियां 8 से 13 साल की उम्र में प्यूबर्टी के दौर में पहुंच जाती हैं. विकसित होना शरीर के लिये एक पीड़ादायक प्रक्रिया हो सकती है. लड़कियों के बाल मोटे होने लगते हैं और ‘ब्रेस्ट बड’ विकसित होते हैं. इसके कुछ समय बाद ही उनकी माहवारी शुरू हो जाती है. यह ऐसा दौर होता है, जिसे हम एक्‍ने और हमारे पहले क्रश के रूप में याद कर सकते हैं. दरसअल, यह महिला बनने की दिशा में शुरू होने वाला एक खूबसूरत सफर होता है.

प्यूबर्टी कब खत्म होती है

प्यूबर्टी शुरू होने के बाद से चार साल तक स्तन पूर्ण रूप से बढ़ते हैं. कुछ लड़कियों में अपर लिप्स पर बालों का उगना सामान्य बात होती है. टीनएज का गुस्सा और सोचने का बदलता तरीका इस स्टेज को बखूबी बयां करता है.

प्रेग्‍नेंसी और मदरहुड

जब महिला का शरीर प्रेग्‍नेंसी के लिये तैयार होता है तो वह कई तरीकों से बदलता है. आपका शरीर यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे को बढ़ने और विकसित होने के लिये पर्याप्त भोजन, जगह और ऑक्सीजन मिल पाए. प्रेग्‍नेंसी कई तरह के बदलाव ला सकती है, जिसमें बालों की मोटाई का बढ़ना, हड्डियों का मुलायम होना और आपकी त्वचा तथा ऑक्सीजन लेवल में बदलाव होना शामिल है.

जन्म देने के बाद आपका शरीर एक और महत्वपूर्ण बदलाव से गुजरता है. जन्म देने के तुरंत बाद आपके एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर काफी बदल जाएगा. बॉन्डिंग हॉर्मोन, ऑक्सीटॉसिन भी शरीर द्वारा अधिक बार निर्मित होता है. इस स्टेज पर, कुछ महिलाएं सामान्य से अधिक चिंतित रहती हैं. मदरहुड के शुरूआती सालों में मानसिक सेहत को सबसे पहली प्राथमिकता देनी चाहिए.

प्रीमेनोपॉज

मेनोपॉज से चार से पांच साल पहले, प्रीमेनोपॉज चरण शुरू हो जाएगा. महिलाएं अपने 40 के दशक में इस चरण से गुजरती हैं और अक्सर उन्हें पता नहीं होता कि क्या हो रहा है. आपका प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन का स्तर महत्वपूर्ण रूप से बदल सकता है. मेनोपॉज के लक्षण जैसे रात को पसीना आना, हॉट फ्लैशेज, वजन बढ़ना और मूड स्विंग होना भी संभव है.

मेनोपॉज

आपके आखिरी माहवारी के एक साल के बाद, मेनोपॉज का चरण शुरू होगा. 50 की उम्र तक, महिलाएं इस स्तर पर पहुंच जाती हैं, जोकि दस साल तक चलती है. मूड स्विंग, हॉट फ्लैशेज, रात में पसीना आना, कम सोना, वजन का बढ़ना और चिड़चिड़ापन, मेनोपॉज के कुछेक लक्षण हैं. मेनोपॉज के सबसे बुरे और नकारात्मक प्रभाव वाले लक्षणों में हॉट फ्लैशेज होते हैं. हॉट फ्लैश अचानक ही होता है, इसमें बहुत ज्यादा गर्मी महसूस होती है और पूरे शरीर में फैल जाती है. हॉट फ्लैशेज की वजह से रात में आने वाले पसीने से आपके नींद का समय भी काफी कम हो सकता है.

प्रैग्नेंसी के बाद ब्रैस्ट में क्यों होते हैं बदलाव

आमतौर पर प्रैग्नेंसी के दौरान और बाद एक महिला के शरीर में कई बदलाव होते हैं. प्रैग्नेंसी के बाद स्तनों में बदलाव होता ही है. क्‍या आप जानते हैं, स्तन लोब्‍युल्‍स से बने होते हैं, जो दूध बनाने वाली ग्रंथियाँ होती है और इनमें नलिकाएँ  हुती हैं, जो दूध को निप्‍पल तक ले जाती हैं और उनके इर्द-गिर्द ग्रंथीय, नसों वाले और चर्बीदार ऊत्‍तक होते हैं. उम्र बढ़ने के साथ ग्रंथीय ऊत्‍तक का आकार घटता है. प्रैग्नेंसी के दौरान स्‍तन का विकास इस प्रक्रिया का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है, क्‍योंकि उसे शिशु के लिये दूध बनाने के लिये बदलाव से गुजरना होता है. प्रैग्नेंसी से पहले के हॉर्मोन स्‍तन के ऊतकों में बदलाव लाते हैं. प्रैग्नेंसी के दौरान मिलने वाले शुरूआती संकेतों में स्‍तनों को संवेदी अनुभव होना शामिल है, जो शरीर में अतिरिक्‍त हॉर्मोन्‍स के बहने से होता है.

डॉ. तनवीर औजला, सीनियर कंसल्‍टेन्‍ट ऑब्‍स्‍टेट्रिशियन एवं गाइनेकलॉजिस्‍ट, मदरहूड हॉस्पिटल, नोएडा की बता रही हैं गर्भावस्था के दौरान स्तनों में क्या बदलाव होते है.

प्रैग्नेंसी के दौरान हमारे स्‍तनों में शिशु को दूध देने के लिये बदलाव होते हैं. प्रैग्नेंसी के दौरान होने वाले इन बदलावों में स्‍तनों का आकार बढ़ना और स्‍तनों तथा निप्‍पल का मुलायम या संवेदनशील होना शामिल है. इसमें निप्‍पलों और एरीयोला का रंग भी बदलता है और मोंटगोमरी ग्रंथियाँ स्‍पष्‍ट और बड़ी दिखाई देती हैं. स्‍तनों में ज्‍यादा खून आने लगता है, जिससे उनकी नसें गहरे रंग की हो जाती हैं. इस अवस्‍था में एस्‍ट्रोजेन और प्रोजेस्‍टेरॉन की मात्रा बढ़ जाती है और इन दोनों हॉर्मोन्‍स के मिलने से दूध बनने लगता है.

प्रैग्नेंसी के बाद प्रोजेस्‍टेरॉन और एस्‍ट्रोजेन का स्‍तर घट जाता है, जो प्रोलेक्टिन हॉर्मोन से संकेत मिलने के बाद होता है और प्रोलेक्टिन ही दूध बनाता है. शिशु के लिये दूध बनाने में आमतौर पर दो दिन लगते हैं. जन्‍म के बाद 3 से 5 दिन में लिम्‍फेटिक फ्लूइड के कारण स्‍तन बड़े हो जाते हैं. लिम्‍फेटिक फ्लूइड से ही स्‍तन की नलिकाएँ बनती हैं.

प्रैग्नेंसी के बाद भी स्‍तनों में बदलाव जारी रहते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-

स्‍तनों के भरने का मतलब प्रैग्नेंसी के बाद सामान्‍य रूप से उनका आकार बढ़ने से है और यह दूध बनने के दौरान होता है. स्‍तनों का भरना कम करने के लिये शिशु को बार-बार दूध पिलाना महत्‍वपूर्ण है, ताकि दूध बच्‍चे की भूख के अनुसार आता रहे.

ब्रैस्टफीडिंग कराते समय निप्‍पल में दर्द होता है, जिससे निप्‍पल कट सकती है या उसमें से खून आ सकता है. निप्‍पल क्रीम या स्‍तन का दूध इस दर्द से राहत देने में मदद कर सकता है. कभी-कभी निप्‍पल के कटने से यीस्‍ट का संक्रमण भी हो जाता है.

जब दूध की नलिकाएँ बाधित होती हैं, तब ‘मेस्‍टाइटिस’ नामक एक संक्रमण हो जाता है. यह एक स्‍तन से दूसरे स्‍तन में भी पहुँच जाता है. स्‍तन की स्किन पर लाल निशान, बाधित नलिका के इर्द-गिर्द स्किन का गर्म होना और स्‍तन में तेज दर्द इसके लक्षण हैं.

अगर उपर्युक्त मेस्‍टाइटिस या संक्रमण का उपचार न हो, तो फोड़ा हो जाता है और मवाद इकट्ठा होने लगता है, जिसके लिये फिर ऐंटीबायोटिक्‍स दिये जाते हैं और मवाद को सुई से निकाला जाता है.

स्‍तनों पर खिंचाव के निशान दिखते हैं, जो गायब होने में कुछ समय ले सकते हैं.

स्‍तनों को पुराने सामान्‍य आकार में ले जाने के लिये प्रभावित करने में शरीर के वजन की महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है. कई महिलाओं को ब्रैस्टफीडिंग और दूध बनने के कारण स्‍तनों में ढीलेपन का अनुभव होता है. इससे बचने के लिये पूरी प्रैग्नेंसी के दौरान और बाद में भी सपोर्टिव ब्रा पहनी जा सकती है और स्‍वास्‍थ्‍यकर आहार की आदत डाली जा सकती है, जो प्रैग्नेंसी के बाद स्‍तन से जुड़ी समस्‍याओं को रोकने में मदद करेगी.

कैसे जानें कि Menstrual Cup भर चुका है?

यदि हाल ही में आपने मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करना शुरू किया है या फिर ऐसा करने के बारे में सोच रही हैं तो आप एक बेहद ही आरामदायक और पर्यावरण के अनुकूल माहवारी की राह पर हैं. लेकिन मैं इस बात को समझ सकती हूं कि आपके दिमाग में कई सारे सवाल होंगे, हालांकि सबसे महत्वपूर्ण होगा लीकेज की चिंता या फिर कितने अंतराल पर कप को खाली करने की जरूरत होती है.

डॉ. तनवीर औजला, वरिष्ठ सलाहकार प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, मदरहुड अस्पताल, नोएडा की बता रही इसके इस्तेमाल के तरीके इसका उपयोग करना पूरी तरह से सुरक्षित है और एक बार ठीक से इंसर्ट होने के बाद, आपके शरीर में कुछ अजीब होने का सवाल ही नहीं पैदा होता.

मेंस्ट्रुअल कप, सिलिकॉन या लेटेक्स रबर से बना एक छोटा, लचीला कप होता है, जिसे माहवारी के दौरान वजाइनल कैनाल में इंसर्ट किया जाता है. चूंकि, मेंस्ट्रुअल कप में माहवारी का रक्त पैड या टैम्पॉन की तरह अवशोषित होने की जगह जमा होता है तो आप इसे इस्तेमाल के बाद खाली कर सकती हैं. यह इस्तेमाल करने वाले की उम्र, सर्विक्स की स्थिति और रक्त के प्रवाह पर निर्भर करता है. ये कप तीन साइज में उपलब्ध हैं: स्मॉल, मीडियम और जाइंट.

कुछ चिंताओं के बावजूद, मेंस्ट्रुअल कप काफी लचीला होता है और इंसर्ट करने के बाद, यह वजाइनल कैनाल के अंदर फैलता है. विशेषज्ञों के अनुसार, इसका उपयोग करना पूरी तरह से सुरक्षित है और एक बार ठीक से इंसर्ट होने के बाद, आपके शरीर में कुछ अजीब होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. आप अपने टैम्पॉन के खिसकने या आपके अंडरवियर पर अपने पैड के गिरने की चिंता किए बिना अपना दिन बिता सकती हैं. कुछ लोग इसके बारे में दावा करते हैं कि रिसाव का कोई खतरा नहीं होता, यात्रा के दौरान इसका उपयोग करना बहुत आरामदायक होता है और यह पर्यावरण के लिये फायदेमंद है.

वहीं दूसरी तरफ, कुछ ऑनलाइन यूजर्स दावा करते हैं कि यह पता लगाना मुश्किल होता है कि कब कप भर गया. कोई भी अलार्म सिस्टम आपको अलर्ट नहीं करता है कि कप फुल हो चुका है और आपके मेंस्ट्रुअल कप इतना उन्नत नहीं है कि आपको एसएमएस कर दे कि कब रक्त का स्तर सही है.

जिस दिन रक्त का बहाव ज्यादा हो आपको हर 3 से 4 घंटे पर यह देखना चाहिए कि कितना रक्त इकट्ठा हो रहा है. मेंस्ट्रुअल कप के आकार और टैम्पॉन के सवाल के आधार पर एक मेंस्ट्रुअल कप आमतौर पर एक टैम्पॉन के मुकाबले दो से आठ गुना अधिक रक्त इकट्ठा करता है. जब भी संदेह हो, कप को हटा लें और कितना भरा है उसकी जांच कर लें. इसे भरने में कितना समय लगता है, यह इस पर निर्भर करता है कि आप कितनी बार कप को हटाती हैं और उसे खाली करती हैं.

चूंकि, इस बात का पता लगाना मुश्किल है कि यह कप कब भरेगा तो इस बात की जांच कर लें कि ज्यादा रक्तस्राव वाले दिन इसे भरने में कितना वक्त लगता है. कम रक्तस्राव वाले दिन आपको कप भरने की चिंता नहीं करनी है, क्योंकि जितनी देर आप कप को अंदर रखेंगी, वह धीरे-धीरे भरता रहेगा.

रक्तस्राव की तीव्रता के अलावा भी आमतौर पर आपको हर 10 से 12 घंटे में कप को निकालना है. कुछ कंपनियां सलाह देती हैं कि 8 घंटे के बाद कप को निकालना, साफ करना और फिर से इंसर्ट करना सबसे सही होता है. लेकिन अध्‍ययनों के मुताबिक कप को 12 घंटे तक लगातार छोड़ देना भी सुरक्षित ही है. इसके साथ ही कप का लीक होने लगना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वह भर चुका है. लेकिन हममें से ज्यादातर इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहेंगे, क्या हम ऐसा करेंगे?

कुछ रिसर्च के मुताबिक, एक कप को 12 घंटे से ज्यादा समय तक रखना, टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (टीएसएस) और अन्य वजाइनल संक्रमणों के खतरे को बढ़ा देता है. लंबे समय तक कप में ठहरा हुआ रक्त बैक्टीरिया के पनपने की जगह बन सकता है, यह बैक्‍टीरिया इन रोगों के होने का कारण बन सकते हैं.

हालांकि, कप के इस्‍तेमाल से जुड़े टीएसएस के केवल दो मामले ही सामने आए हैं. इसके अलावा,  पिछले हफ्‍ते उन महिलाओं में से किसी ने भी अपने कप नहीं हटाए. टीएसएस आमतौर पर टैम्पॉन के इस्‍तेमाल से जुड़ा होता है, लेकिन सामान्य नियम के मुताबिक किसी भी प्रकार के जोखिम को टालने के लिये अपने मेंस्ट्रुअल कप को 12 घंटे से ज्यादा समय के लिये अंदर ना छोड़ने की सलाह दी जाती है.

कप के पूरी तरह भर जाने से लीक होने का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन ऐसा होने के कुछ और भी कारण हो सकते हैं:

बड़े या छोटे साइज का कप लगाने से यदि आईयूडी मौजूद हो, उसका धागा कप के रिम और वजाइनल वॉल में फंस सकता है, जो रक्त के स्राव के लिये जरूरी सक्शन बनने से रोक सकता है.

आपके कप के बाहर स्थित सर्विक्स, जोकि कप के साथ सही तरीक से एक सीध में ना हो.

बाउल मूवमेंट की वजह से आपके कप की पॉजिशन बदल सकती है.

आपके पेल्विक मसल्स इतने मजबूत हों कि उसमें लगभग भरे हुए कप से सक्शन को हटाने की ताकत हो.

जब तब आपका कप भरने के लिये पूरी तरह खाली ना हो, तब तक इंतजार ना करें. यदि आपको 12 घंटे हो चुके हैं तो आप हर 3 से 4 घंटे में इसे फिर से इंसर्ट कर सकती हैं, यह आपके रक्त स्राव पर निर्भर करता है. भले ही आपका कप ना भरा हो, फिर भी आपको इसे हटाना है.

Summer Special: एक्सपर्ट से जानें गर्मियों में कैसे करें स्किन की केयर

गर्मियां आते ही स्किन पर सारे इन्फेक्शन और प्रोब्लम होने का खतरा बढ़ता जाता है. इसलिए गर्मियों के दिनों में स्किन की सही देखभाल बहुत आवश्यक है. चिलचिलाती धूप, पल्युशन, ह्यूमिडिटी और धूल मिट्टी स्किन की नैचुरल ग्लो को खत्म कर देता है. इन सबसे बचने के लिए गर्मियों में हमे एक अच्छे स्किनकेयर टिप्स की आवश्यकता है और आसान से टिप्स बता रहे हैं, डर्मेटोलॉजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन संस्थापक और निदेशक, आईएलएएमईडी के डॉ. अजय राणा.

1. स्किनकेयर के लिए सबसे जरूरी है अपने स्किन को एक्सफोलियट करना. हमारी बॉडी और स्किन हर दिन हजारों की तादाद में डेड स्किन सेल्स शेड करती है. जो स्किन को ड्राई और डल बनाती है. इन डेड सेल्स को गिरने से रोकने के लिए स्किन को एक्सफोलिएट करना बहुत जरूरी है. खासकर गर्मियों के दिनों में चेहरे को एक्सफोलिएट करना न भूले. एक्सफोलियेट करने के लिए एक्सफोलिएटर को सर्कुलर मोशन में मूव करें.

2. गर्मियों में सबसे जरूरी है एक अच्छे सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना. ऐसे सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें जिसकी एसपीएफ रेटिंग 30 या 70 हो. जो स्किन को सूरज की हानिकारक युवी किरणों से बचाता है. हर एक दो घंटे में सनस्क्रीन का दुबारा इस्तेमाल करें.

3. गर्मियों के दिनों में जितना कम हो उतना कम मेक अप यूज करें. क्योंकि मेकअप स्किन के पोर्स को बंद कर देता है. अगर आपको मेकअप यूज करना भी पड़े तो उससे पहले एक अच्छी एसपीएफ का फेस पाउडर का इस्तेमाल करें जिससे स्किन पर इचिंग नहीं होगी.

4. गर्मियों में बॉडी और स्किन को हाइड्रेट रखना आवश्यक है. इसके लिए हर रेगुलर इंटरवल पर पानी पीते रहे. स्किन को हाइड्रेट रखने से स्किन में मौजूद सभी हार्मफुल टॉक्सिन्स निकल जाते है.

5. गर्मियों के दिनों में हमेशा कॉटन और लाईट फैब्रिक के ही कपड़े पहने, जो स्किन को किसी भी प्रकार के इरीटेशन और पसीने के कारण होने वाले इन्फेक्शन से बचाता है. क्योंकि गर्मियों में पसीने के कारण रैशेज और अन्य प्रकार के स्किन कंडीशन के होने के चांसेज ज्यादा होते है.

6. गर्मियों के दिनों में ऐसे स्किनकेयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें जो नैचुरल हो ताकि स्किन ब्रिद कर सकें. इसके लिए लाइटर लोशन्स और सीरम का प्रयोग करना चाहिए. ऐसे किसी भी स्किनकेयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल न करें, को स्किन के पोर्स को बंद कर दें. वॉटर वाले मॉइश्चराइज सबसे बेस्ट होते है. उनका इस्तेमाल करें. ऑइली और एक्ने प्रॉन स्किन के लिए ऐसे मिनरल बेस्ड फेशियल स्प्रे का इस्तेमाल करें.

7. गर्मियों के दिनों में हमें स्पेशल स्किनकेयर रूटीन फॉलो करना चाहिए. ताकि स्किन हाइड्रेट और क्लीन रहे. गर्मियों के दिनों में बहुत सारे लोगों को ब्रेकआउट और एक्ने की समस्या होती है. इसलिए आवश्यक है कि अपनी स्किन को दिन में 3 से 4 बार धोए. सप्ताह में दो बार कम से कम स्क्रब का इस्तेमाल करें.

8. गर्मियों के दिनों में बेसिक स्किनकेयर रुटीन को अपनाए. जो है – क्लीनिंग, टोनिंग और मॉइचराइजिंग. इसका इस्तेमाल हर दिन सोने से पहले करें. पसीने के कारण स्किन के पोर्स खुल जाते है. इसके लिए टोनर का उपयोग करें, यह स्किन के पोर्स को बंद करने में मदद करता है. इन सबके इस्तेमाल से आप गर्मियों में होने वाले रिंकल्स और एजिंग से बच सकते है.

9. गर्मियों के दिनों में जितना हो सके विटामिन सी का प्रयोग करें. वैसे तो विटामिन सी का प्रयोग हर सीजन में अच्छा होता है. पर गर्मियों के दिनों में यह स्किन के लिए सबसे ज़रूरी होता है. विटामिन सी हमें हाइपरपिगमेंटेशन से बचाता है, स्किन पर होने वाले फाइन लाइन्स को कम करता है, और साथ ही साथ कोलेजन के प्रोडक्शन को भी बढ़ाता है.

10. अपनी डाइट में ऐसी चीज़े लें जिसमें विटामिन, न्यूट्रिएंट्स और एंटी ऑक्सीडेंट्स की मात्रा ज्यादा से ज्यादा हो. ज्यादा से ज्यादा फ्रूट्स और सब्जियां खाएं. यह इनफ्लैमेशन को कम करने के साथ साथ स्किन में कोलेजन के प्रोडक्शन को बढ़ाता है और स्किन को अन्य प्रकार के डैमेज से भी बचाता है.

लिया है तो देना पड़ेगा

जीवन एक बाजार है जिस में हर दूसरा जना एक कस्टमर है. आप के रिश्तेदार, दोस्त, बच्चे तक आप के तब तक हैं जब तक आप उन्हें वह दे रहे हैं जो वे चाहते हैं और आप तब तक ही देते हैं जब तक वे उस की कीमत चुकाते हैं. इस जीवन के बाजार में हर चीज पर एमआरपी रुपयों में नहीं लिखी होती. यहां बार्टर सिस्टम चलता है. तुम मेरे लिए करते रहो, मैं तुम्हारे लिए करता रहूं.

बहुत से दुख इसलिए होते हैं कि जीवन के संबंधों में एक जना बारगेन कर के या नाजायज कीमत मांग कर अपना फायदा बढ़ाना चाहता है. यहीं से टकराव शुरू होता है चाहे मांबेटे का रिश्ता ही क्यों नहीं हो. छोटा 5 साल का बेटा मां को ‘आई लव यूं’ कह कर चिपक कर एक सुख देता है और उस के बदले वह मां का प्यार, दुलार, सुरक्षा और जीने की आवश्यक चीजें पाता है.
यह सोचना कि जीवन का व्यापार एकतरफा हो सकता है, सब से बड़ी कठिनाइयां पैदा करता है. इस में शक नहीं कि बाजार में धोखा देने वाले भी सैकड़ों होते हैं जो सुंदर पैकिंग में खाली डब्बा पकड़ा देते हैं. सैकड़ों इस तरह की खरीद के शिकार होते हैं, हर रोज रोतेकलपते नजर आते हैं.

सदियों से धर्म और राजाओं ने बिना कुछ बदले में दिए पैसा, अनाज, जमीन वसूलने का तरीका अपनाया. उन्होंने कहा कि वे लुटेरों से रक्षा करेंगे, आपस में विवादों में न्याय करेंगे, वे जीवन जीने के नियम बनाएंगे, घरों को सही चलाने में सहायता करेंगे, गांवोंशहरों का प्रबंध करेंगे. पर बदले में उन्होंने दूसरों पर फालतू में उस चीज के पैसे मांगने शुरू कर दिए जो दी नहीं गई, दूसरों पर आक्रमण कर के जान मांगनी शुरू कर दी.
जंगली जानवरों, प्रकृति, बीमारियों, बाहरी लुटेरों ने समय से पहले उतनी जानें नहीं ली होंगी जितनी धर्म और राजाओं ने बिना उतना दिए जितना लिया कह कर ली हैं. धर्म ने राजाओं से ज्यादा लिया है, दिया नहीं. धर्मों के दुकानदारों ने घरों में घुस कर स्त्रीपुरुष के बैड पर क्या होगा इस की दलाली कीमतें तय करनी शुरू कर दीं.

घर के बाजार में धर्म और सरकार का कानून एक छिपी जीएसटी के अनेक रूप में छा गया. कब प्रेम किया जाए, कैसे किया जाए, किस से किया जाए, बच्चों को कैसे पाला जाए, भाइयों, बहनों से संबंध कैसे हों, दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ कैसे निभाएं, किन के साथ उठेंबैठें, सब पर नियम लागू कर दिए और प्यार के लेनदेन से आधाअधूरा ही हाथ में बचने लगा.

आम जना अपनी पत्नी, रिश्तेदारों, बच्चों, दोस्तों से परेशान रहता है तो इसलिए कि उन से बाजार वाले नियमों के अनुसार आपसी लेनदेन कर के एक सुखद फैसले पर नहीं पहुंचा जा सकता. औरतों को गुलाम बना कर उन की कीमत घटा दी गई. वे प्यार देती हैं, बच्चे देती हैं, घर चलाती हैं पर उन्हें सुरक्षा नहीं बस जीने भर का एहसास मिलता है. वे बराबर की हकदार नहीं हैं.
जीवन को सुखी रखना है तो जो मिल रहा है, उस की वाजिब कीमत दो, चाहे कुछ दे कर के,
बना कर या कुछ प्यार दे कर.

एक बेटी की करुणामयी पुकार
सुनें, ‘‘मैं अपनी मां से परेशान हूं क्योंकि वे चाहती हैं कि मैं अपनी नौकरी छोड़ कर दूसरी बहन की तरह रिसर्च करूं और अरेंज्ड मैरिज करूं. पर मैं दोनों नहीं करना चाहती. न करने पर मां आपा खो बैठती हैं, सिर पटकने लगती हैं. क्या करूं? बेटी से ज्यादा कीमत वसूलने के चक्कर में मां भी लेनदेन का सिद्धांत भूल गईं.
सैकड़ों परिवारों में बेटे
अपनी पत्नी को ले कर मां को छोड़ कर चले जाते हैं क्योंकि मां द्वारा आपसी लेनदेन सही कीमत पर नहीं देने पर प्यार का बैलेंस बिगड़ जाता है.
संबंध सुधार कर रखने हैं तो इस का ध्यान रखें कि जो चाह रहे हो, उस की सही कीमत दो.

Skin Care Tips: टैटू हटाने के लिए अपनाएं ये आसान उपाय

आजकल के युवाओं में टैटू का क्रेज़ बहुत है. वे जितनी जल्दी टैटू बनवाते है, उतनी हो जल्दी उससे बोर होकर मिटाने की कोशिश करते है. ऐसे में सही जगह की तलाश कर उसे मिटाना सही होता है. गंदे और अनहाइजीनिक स्थान पर जाने से व्यक्ति को लेने के देने पड़ सकते है. इस बारें में एलायन्स टैटू स्टूडियो के सेलेब्रिटी टैटू आर्टिस्ट सनी भानुशाली बताते है कि टैटू का ट्रैंड पिछले कई सालों से हमारे देश में शुरू हुआ है. समय के साथ-साथ इसकी पौपुलैरिटी बढती गई है, ऐसे में वे कई बार बिना सोचे समझे टैटू करवा लेते है और बाद में उसे मिटाने के लिए आसपास के किसी टैटू आर्टिस्ट के पास जाते है, जिससे उन्हें मनचाहा परिणाम नहीं मिलता. टैटू रिमूवल के लिए कुछ बातों पर जरूर ध्यान दें…

1. टैटू रिमूवल के लिए करें रिसर्च

सबसे पहले इस पर रिसर्च कर लें कि कहाँ और कैसे टैटू रिमूव किया जाता हो, कई बार ऐसा करने पर भी धोखा हो जाता है, इसलिए इसे बारीकी से देखें और डौक्टर से कंसल्ट करे और जाने आपकी खोज सही है या नहीं.

2. लेजर रिमूवल है अच्छा औप्शन

लेज़र रिमूवल एक अच्छा विकल्प है, जिसे रिमूव करने में कई सेशन लगते है जो महीनों से लेकर साल तक भी होता है.

3. डौक्टर की एडवाइस से पहनें कपड़े

टैटू रिमूवल महंगा होता है,क्योंकि टैटू बनवाने के बाद उसे रिमूव करना कठिन होता है. यह दर्दनाक भी होता है, रिमूव के बाद डॉक्टर की सलाह के अनुसार कपड़े पहनने की जरुरत होती है,

4. एंटीबायोटिक औइंटमेंट की लेयर लगाना है बेस्ट

कई बार रिमूव किये गए टैटू के उपर पहले तीन दिन जब तक घाव थोड़ी भर न जाय, एंटीबायोटिक औइंटमेंट की एक लेयर लगाना भी अच्छा रहता है. टैटू में प्रयोग किये गए रंग को हल्का कर उसमें कुछ अलग आकृति भी बनायी जा सकती है.

5. टैटू बनवाने से पहले सोच लें

टैटू को रिमूव करने के बाद कई बार सफेद रंग के पैचेस और स्कार्स रहते है, इसलिए टैटू करवाने से पहले ही अच्छी तरह से सोच विचार कर लें,

6. टैटू रिमूव करने से पहले डर्मेटोलौजिस्ट के पास जाएं

किसी भी स्थान पर टैटू रिमूव न करवाएं, किसी भी अच्छे डर्मेटोलौजिस्ट के पास जाएं, जिनके स्किन टोन डार्क है लेज़र रिमूवल से उनके स्किन के जलने का खतरा रहता है.

7. ब्लैक टैटू रिमूव करना रहता है आसान

सभी टैटू को रिमूव करना आसान नहीं होता, काले रंग के टैटू को रिमूव करना चटकदार रंगों की तुलना में आसान होता है, ग्रीन और ब्लू रंग के टैटू को रिमूव करना चुनौतीपूर्ण होता है. इसके आगे सनी कहते है कि टैटू को रिमूव करना बहुत मुश्किल होता है इसलिए अधिक से अधिक कोशिश उसे कवर कर नया रूप देने के बारें में सोचे, ताकि आपको बाद में किसी समस्या का सामना करना न पड़े.

इस दीवाली घर रिनोवेशन का है इरादा तो विशेषज्ञ की सलाह से चुनिए बेस्ट टाइल्स

त्योहारों का सीजन आते ही कुछ अपने घर के इंटीरियर मे भी कुछ नयापन लाने की इच्छा जागने लगती है; कुछ ऐसा, जिससे घर को नया रूप मिल जाए. बात जब घर यानी हमारे रहने की जगह की हो रही हो तो टाइल्स पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. टाइल्स न केवल घर का सौंदर्य बढ़ाती है बल्कि सजावट के पूरे माहौल की भूमिका लिखती है.

ए.वी.मल्लिकार्जुन असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट, सेल्स एंड मार्केटिंग अपर्णा एंटरप्राइजेज लिमिटेड के बता रहे हैं कि अपने घर को चार चांद लगाने के लिए टाइल्स चुनते समय आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.

टाइल्स का आकार

टाइल पसंद करने से पहले यह समझना जरूरी है कि आप जहां उन्हें लगा रहे हैं, वह जगह कैसी है और किस काम आती है. कमरे के आकार, प्रकाश व्यवस्था और मौजूदा सजावट जैसे कारणों पर विचार करें. बड़ी टाइलें किसी भी जगह को विशालता का रूप प्रदान कर सकती हैं, जबकि छोटी टाइलें कॉम्पैक्ट होने का अहसास जगा सकती है.

सटीक सामग्री:

टाइलें विभिन्न सामग्रियों जैसे सिरेमिक, चीनी मिट्टी के बरतन, प्राकृतिक पत्थर सहित कई तरह की सामग्री में उपलब्ध हैं; सभी की अपनी-अपनी खासियत है. जैसे, चीनी मिट्टी की टाइलें बहुत टिकाऊ और वॉटरप्रूफ होती हैं, इन्हें बाथरूम और रसोई के लिए अच्छा माना जाता है. अधिक महंगी लेकिन प्राकृतिक पत्थर की टाइल्स भव्य लगती है, संगमरमर भी सुरुचिपूर्ण और बेजोड़ विकल्प है, क्योंकि यह सुंदरता और भव्यता को उस स्तर तक ले जाता है, जिसे अन्य सामग्रियों से बनी टाइल्स नहीं ले जा सकतीं. ऐसे ही ग्रेनाइट, चूना पत्थर, ट्रैवर्टीन और बलुआ पत्थर जैसी कई टाइल्स हैं, जिससे घर को आलीशान बनाया जा सकता है.

उपयोग का स्थान/क्षेत्र:

घर के विभिन्न क्षेत्रों की अलग-अलग आवश्यकताएं होती हैं. उदाहरण के लिए, बाथरूम और किचन के लिए टिकाऊ और साफ करने में आसान टाइल्स सबसे सही रहेगी. वहीं, लिविंग रूम को शाही और सुरुचिपूर्ण दिखने की आवश्यकता है. दूसरी ओर, आराम करने की जगह बेडरूम के लिए आप आरामदायक महसूस करवाने वाली टाइल्स पसंद कर सकते हैं.

कलर पैलेट और पैटर्न:

टाइल्स की रंग योजना जगह का मूड निर्धारित करती है. हल्के रंग की टाइलें खुला, हवादार अहसास कराती हैं, जबकि गहरे रंग की टाइलें माहौल को आरामदायक बनाती हैं. इसके अलावा, हेरिंगबोन, सबवे या मोजेक जैसे पैटर्न के साथ प्रयोग करना आपके इंटीरियर में एक खास अहसास जोड़ सकता है.

रखरखाव:

टाइल्स के चयन में उनकी मेंटेनेंस महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि कुछ टाइलों को बहुत ज्यादा रखरखाव, नियमित और विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है, खासकर वे जो प्राकृतिक पत्थरों से बनी होती हैं. यदि आप कम रखरखाव वाले विकल्प की तलाश में हैं तो चमकती हुई सिरेमिक टाइलें या चीनी मिट्टी की टाइलें आपके लिए उपयुक्त हो सकती हैं.

मौजूदा सजावट के साथ मिश्रण:

आपको अपने घर के फर्नीचर, दीवारों और अन्य सजावट के रंगों, बनावट पर विचार करना चाहिए और उनके अनुसार टाइल्स का मिलान करना चाहिए। यह आपके घर में सामंजस्यपूर्ण अनुभव लाता है, जिससे लुक अच्छा बनता है.

बजट फ्रेंडली: आपके बजट के अनुसार बाजार में कई तरह के विकल्प हैं। चमकदार या पॉलिश की हुई टाइलें, टेराकोटा टाइलें एक बजट-फ्रेंडली विकल्प हैं जो आपकी जेब को नुकसान पहुंचाए बिना घर में ग्लैमर डालने के लिए परफैक्ट हैं.

पेशेवर सलाह: यदि आप इस बारे में अनिश्चित हैं कि कौन सी टाइल्स आपके घर के लिए सबसे उपयुक्त होंगी, तो किसी पेशेवर से परामर्श करने में संकोच न करें। वे अपने अनुभव और विशेषज्ञता के आधार पर अच्छी राय देंगे जो आपके बहुत काम आएगी.

रिजल्ट का विजुलाइजेशन

अंतिम निर्णय लेने से पहले, यह कल्पना करने का प्रयास करें कि चुनी गई टाइलें जगह पर लगाने के बार कैसी दिखेंगी. कई टाइल निर्माताओं के पास विजुअलाइजेशन टूल हैं, जिनसे आपको टाइल्स लगाने से पहले यह देखने का मौका मिल जाता है कि लगाने के बाद वे कैसी दिखाई देंगी.

घर के रिनोवेशन प्लान में सही टाइल्स का चयन बहुत महत्वपूर्ण है. तो इस त्योहारी सीजन में अपनी पसंद की ऐसी टाइल्स को घर का हिस्सा बनाएं जो घर की सुंदरता और आराम को बढ़ाए, साथ ही आपकी लाइफ स्टाइल की झलक भी पेश करें.

Monsoon Special: मानसून में ब्राइडल लुक के लिए अपनाएं एक्सपर्ट टिप्स

मानसून का मौसम यानी बारिश की ठंडी-ठंडी फुहार का मौसम आ गया है. इस खूबसूरत मौसम में शादी करना रोमांचक हो सकता है तो बस जरूरत है बदलते मौसम के अनुरूप अपनी ड्रेसेज और मेकअप का चुनाव कर अपनी शादी में खूबसूरत दिखने की क्योंकि मौसम कोई भी हो हर दुल्हन अपनी शादी के दिन स्पेशल दिखना चाहती है सीजन के हिसाब से हर साल बदलने वाला मेकअप और फैशन ट्रेंड कैसा हो ये बता रही हैं डिजाइनर सान्या गर्ग. आप इनके बताए आसान टिप्स को फॉलो करें और ड्रेस से लेकर मेकअप तक किसी चीज में कोई कमी नहीं रखे.

1. वेडिंग ड्रेस:

अपनी शादी की ड्रेस को टखने यानी गुटने की लंबाई में रखें, हैवी और गहनों वाली ड्रेस से बचें. ऐसा लहंगा चुनें जो हल्का हो, मखमल, रेशम और ब्रोकेड से बचें. आप शिफॉन, जॉर्जेट, खादी कॉटन, ऑर्गेना या रेयान जैसे गर्मियों में बहुत सारे कूल नेट जैसे फैब्रिक चुनें, जो जल्दी सूख जाते हैं. लहंगे के वर्क के लिए फ्लोरल रेशम धागे की कढ़ाई या हल्का जरदोजी वर्कवाला ले. लहंगे में इम्ब्रायडरी जितनी हल्की होगी आप उतना कंफरटेबल और हल्का फील करेंगी. कलर का चुनाव करना है तो पेस्टल रंग मानसून में अच्छे लगते हैं, आप या तो पेस्टल कलर चुन सकती है या रेड कलर, ये ब्राइडल पर परफेक्ट लगता है.इसके अलावा ब्राइडल ड्रेस में लाइनिंग का खयाल रखना भी बहुत जरूरी है, ठंडी हवाओं में लाइनिंग से गर्माहट तो मिलेगी ही, साथ ही जॉर्जेट और नेट पर यह ड्रेस बहुत ज्यादा खिलेगी.

2.आर्टिफिशियल ज्वैलरी से बचें:

मानसून वेडिंग में आर्टिफिशियल यानी नकली ज्वैलरी से बचें क्योंकि इससे बारिश के पानी के साथ स्किन रिएक्शन हो सकती है. इस लिए गोल्ड ज्वेलरी या गोल्ड प्लेटेड ज्वैलरी चुनें. इसके अलावा, हैवी ज्वेलरी की तुलना में कुछ स्टेटमेंट पीस का विकल्प चुनें. चोकर के बजाय एक लंबे हार पहने मांग टीका अंदर है और आरामदायक भी है.

3. हेयर को लूज न छोड़े:

मानसून के मौसम में ढीले बाल घुंघराले हो सकते हैं. एक्सेसराइज़्ड बन्स और ब्रैड्स जाने का रास्ता हैं. इसके अलावा, ठाठ गन्दा बन्स गाउन के साथ अच्छी तरह से चलते हैं.

4. न्यूड मेकअप:

ब्राइडल अपने नैचुरल लुक से ही खूबसूरत दिखना चाहती हैं. मेकअप तभी खूबसूरत लगता है जब वो जरूरत के मुताबिक हो. और जब बात हो मानसून मेक अप की तो आप मिनिमल या न्यूड मेकअप लुक चुनें और ऐसे मेकअप प्रोडक्ट चुनें जो वाटरप्रूफ हों. इसके अलावा, आंखों और होंठों के लिए हल्के रंगों का प्रयोग करें. हैवी केकी मेकअप गर्म और उमस भरे मौसम में खराब हो जाएगा और लुक को खराब कर देगा.

5. हल्का ब्रीज़ियर दुपट्टा:

मानसून में दुपट्टा ऐसा ले जो वास्तव में हल्का हो इसे टक न करें, इसके बजाय इसे खुला ही छोड़ दें. सिंगल दुपट्टे का ऑप्शन चुनें. जिसे आप आसानी से मैनेज कर सके.

6. हील्स या स्टिलेटोस से बचें:

खासकर अगर शादी बाहर की योजना बनाई गई है, तो यह कीचड़ में डूब जाएगी. साथ ही इस फिसलन भरे मौसम में, वेजेज, जूती या मोजरी पहनना सबसे अच्छा है, ये ट्रेंड में हैं और शादी के आउटफिट के साथ अच्छी तरह से चलते हैं. आप इन्हें अपनी ड्रेस से मैच करवाने के लिए कस्टम डिज़ाइन करवा सकते हैं.

बांझपन के भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक दबाव: इनके साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट के संसाधन

आज के समाज में बांझपन (इंफर्टिलिटी) तेजी से चिंता का विषय बनता जा रहा है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के एक आकलन के मुताबिक, भारत में बांझपन की समस्‍या 3.9% से 16.8% तक है. बांझपन (इंफर्टिलिटी) की बढ़ती वजह आज के दौर लोगों की दबाव से भरपूर जीवनशैली और स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक आदतों से दूर होने को माना जा रहा है. आधुनिक युग में पुरुषों और औरतों पर वर्क-लाइफ संतुलन बनाने का काफी दबाव है, उस पर अल्‍कोहल और कैफीन का अत्‍यधिक मात्रा में सेवन, तथा बढ़ता धूम्रपान भी इंफर्टिलिटी का कारण बन रहा है.

डॉ राम्या मिश्रा, वरिष्ठ सलाहकार- फर्टिलिटी और आईवीएफ, अपोलो फर्टिलिटी (लाजपत नगर) का कहना है

बेशक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई रोग नहीं है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इसकी वजह से प्रभावित व्‍यक्ति की भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक सेहत पर असर पड़ता है. इसके कारण कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक-भावनात्‍मक विकार या साइड इफेक्‍ट्स जैसे कि तनाव, अवसाद, नाउम्‍मीदी, अपरोधबोध, झुंझलाहट, चिंता और जीवन में किसी लायक न होने जैसा भाव पैदा होता है.

एनसीबीआई के मुताबिक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) से जूझ रहे लोग कई बार दु:ख, अफसोस, अकेलेपन जैसी समस्‍याओं के अलावा मानसिक रूप से काफी परेशान भी महसूस करते हैं. इंफर्टिलिटी से गुज़र रहे व्‍यक्ति की सेहत इन तमाम कारणों से काफी प्रभावित हो सकती है, लेकिन इनसे निपटने और सांत्‍वना देने के लिए कई उपाय और सपोर्ट सिस्‍टम्‍स भी हैं, जो मददगार साबित हो सकते हैं.

  1. इंफर्टिलिटी का भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक प्रभाव

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई जीवनघाती समस्‍या नहीं है, लेकिन इसे कपल्‍स के जीवन में तनावपूर्ण स्थिति के रूप में देखा जाता है। चूंकि हमारे समाज में, वैवाहिक जीवन में बच्‍चों का होना काफी महत्‍वपूर्ण घटना मानी जाती है, ऐसे में बांझपन के चलते तनाव की स्थिति काफी बढ़ सकती है. गर्भधारण नहीं कर पाने के चलते कपल्‍स अपरोध बोध, पश्‍चाताप, निराशा, दुख, चिंता और झुंझलाहट जैसी भावनाओं के ज्‍वार से जूझते हैं. उस पर उन्‍हें समाज के दबाव भी झेलने पड़ते हैं, जो उनकी पहले से तनाव की स्थिति को और बढ़ाता है तथा उनके आत्‍म-सम्‍मान की भावना भी घटाता है। इसका परिणाम यह होता है कि वे अपने खुद के महत्‍व को लेकर सवाल करने लगते हैं.

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या से पुरुष और महिलाएं दोनों ही जूझ सकते हैं, लेकिन अक्‍सर समाज में महिलाओं को ही इसके लिए जिम्‍मेदार ठहराया जाता है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का कहना है कि बांझपन झेल रहे कपल्‍स की जिंदगी पर समाज का नकारात्‍मक असर पड़ता है, खासतौर से महिलाओं को इसका दबाव ज्‍यादा सहना पड़ता है और वे कई बार हिंसा, तलाक, सामाजिक तौर पर बेइज्‍़ज़ती, भावनात्‍मक दबाव, निराशा, चिंता तथा आत्‍म-सम्‍मान में कमी जैसी समस्‍याओं को सहने को मजबूर होती हैं.

बांझपन (इंफर्टिलिटी) की वजह से पैदा होने वाला निराशा का भाव आपको अवसाद के गर्त में डुबो सकता है जहां से वापसी या आत्‍म-सम्‍मान वापस प्राप्‍त करना काफी चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है. लेकिन इससे निपटने के कई उपाय हैं और कई तरह के सपोर्ट भी उपलब्‍ध हैं जो कपल्‍स को बांझपन के दबावों से मुक्‍त रखने में मददगार साबित हो सकते हैं.

2. समस्‍या के साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट समाधान

1.सैल्‍फ-केयर

इसमें कोई शक नहीं कि खुद की देखभाल (सैल्‍फ केयर) सबसे बेहतरीन तरीका होता है अपना ख्‍याल रखने का. अपना मनपसंद मील बनाएं, सुकूनदायक संगीत को सुनें, सैर पर जाएं, रिलैक्सिंग स्‍नान करें और अच्‍छी नींद लें. अपने लिए कुछ समय निकालें और अपना ख्‍याल करें.

2. किसी नई हॉबी को अपनाएं

इंफर्टिलिटी से जूझते हुए बेशक, अपनी भावनाओं को समझना और संभावना काफी अहम् होता है, लेकिन लगातार उनके बारे में सोचते रहते से आप तनाव बढ़ाते हैं और एंग्‍ज़ाइटी भी लगातार बढ़ती रहती है. इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने लिए कुछ समय निकालें, अपनी मनपसंद हॉबी को समय दें. कुछ ऐसा करें जिससे आपको सहजता हो और आप खुद को रिलैक्‍स महसूस करें, जैसे कि कुकिंग क्‍लास, म्‍युज़‍िक लैसन या पेंटिंग क्‍लास आदि से जुड़ें.

3. एक्‍सपर्ट की सहायता लें

अगर आपको लगता है कि आपके हालात बेकाबू हो रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप किसी हैल्‍थ प्रोफेशनल की मदद लें जो आपको सही तरीके से अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के उपायों के बारे में बता सकते हैं और आपको खुद को सकारात्‍मक बनाने की दिशा भी दिखा सकते हैं. सच तो यह है कि किसी फर्टिलिटी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट से परामर्श लेना सही फैसला हो सकता है, जो आपको कुछ अन्‍य तरीकों से गर्भधारण के बारे में जानकारी दे सकते हैं.

4. क्‍या करें कि सब ठीक रहे

आज के समय में बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या काफी व्‍यापक हो चली है जिसका लोगों के भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक स्‍वास्‍थ्‍य पर विपरीत असर पड़ता है. इसका नकारात्‍मक असर तनाव, स्‍वभाव में चिडचिड़ापन, नाउम्‍मीदी का भाव, अपरोधबोध, निराशा और एंग्‍जाइटी बढ़ाता है. जब आप खुद को व्‍यस्‍त रखने के लिए किसी नई हॉबी को अपनाते हैं, सैल्‍फ-केयर पर ध्‍यान देते हैं और अपने हालात से निपटने के लिए प्रोफेशनल मार्गदर्शन लेते हैं, तभी आपको इस पूरे हालात के बारे में सकारात्‍मक परिप्रेक्ष्‍य दिखायी देता है.

कैसे बांझपन का कारण बन सकता है गर्भाशय फाइब्रॉयड

अगर गर्भाशय में किसी भी तरह का  सिस्ट या फाइब्रॉएड है तो ऐसी स्थिति में माँ बनना सम्भव नहीं हो पाता . इसके अलावा ओवरी सिंड्रोम, खून की कमी आदि कई ऐसी बीमारियां है जो हमे देखने मे तो छोटी लगती है पर बच्चा पैदा करने के लिए यही सब समस्याएं बहुत बड़ी बन जाती है.

गर्भाशय में विकसित होने वाले गैर-कैंसरकारी (बिनाइन) गर्भाशय फाइब्रॉयड, महिलाओं के बांझपन के सबसे प्रमुख कारणों में से एक हैं. इस बारे में बता रही हैं डॉ रत्‍ना सक्‍सेना, फर्टिलिटी एक्‍सपर्ट, नोवा साउथेंड आईवीएफ एंड फर्टिलिटी, बिजवासन.

गर्भाशय फाइब्रॉयड, फैलोपियन ट्यूब को बाधित करके या निषेचित अंडे को गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने से रोककर प्रजनन क्षमता को बिगाड़ सकता है. गर्भाशय में जगह कम होने के कारण, बड़े फाइब्रॉयड भ्रूण को पूरी तरह से विकसित होने से रोक सकते हैं. फाइब्रॉयड प्लेसेंटा के फटने के जोखिम को बढ़ा सकता है क्योंकि प्लेसेंटा फाइब्रॉयड द्वारा अवरुद्ध हो जाता है और गर्भाशय की दीवार से अलग हो जाता है, जिसकी वजह से भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषक तत्व कम मात्रा में मिलते हैं. इससे, समय से पहले जन्म या गर्भपात की संभावना काफी बढ़ जाती है.

गर्भाशय फाइब्रॉयड, गर्भाशय की मांसपेशियों के ऊतकों के बिनाइन (गैर-कैंसरकारी) ट्यूमर हैं. उन्हें मायोमा या लेयोमायोमा के रूप में भी जाना जाता है. फाइब्रॉयड तब बनते हैं जब गर्भाशय की दीवार में एकल पेशी कोशिका कई गुना बढ़ जाती है और एक गैर-कैंसरयुक्त ट्यूमर में बदल जाती है.

फाइब्रॉयड छोटे दाने के आकार से लेकर बड़े आकार के हो सकते हैं, जो गर्भाशय को विकृत और बड़ा करते हैं. फाइब्रॉयड का स्थान, आकार और संख्या निर्धारित करती है कि क्या वे लक्षण पैदा करेंगे या इलाज कराने की जरूरत है.

गर्भाशय फाइब्रायॅड, उनके स्थान के आधार पर वर्गीकृत किये जाते हैं. फाइब्रॉयड को तीन बड़ी श्रेणियों में विभाजित गया है:

1-सबसेरोसल फाइब्रॉयड:

यह गर्भाशय की दीवार के बाहरी हिस्से में विकसित होता है. इस तरह के फाइब्रॉयड ट्यूमर बाहरी हिस्से में विकसित हो सकते हैं और आकार में बढ़ सकते हैं. सबसेरोसल फाइब्रॉयड, ट्यूमर आस-पास के अंगों पर दबाव बढ़ाने लगता है, जिसकी वजह से पेडू (पेल्विक) का दर्द शुरूआती लक्षण के रूप में सामने आता है.

2-इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड:

इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड गर्भाशय की दीवार के अंदर विकसित होता है और वहां बढ़ता है. जब इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड का आकार बढ़ता है तो उसकी वजह से गर्भाशय का आकार सामान्य से ज्यादा हो जाता है. जैसे-जैसे इन फाइब्रॉयड्स का आकार बढ़ता है, उसकी वजह से माहवारी में रक्तस्राव ज्यादा होता है, पेडू (पेल्विक) में दर्द और बार-बार पेशाब जाने की समस्या हो जाती है.

3-सबम्यूकोसल फाइब्रॉयड:

ये फाइब्रॉयड गर्भाशय गुहा की परत के ठीक नीचे बनते हैं. बड़े आकार के सबम्यूकोसल फाइब्रॉयड, गर्भाशय गुहा के आकार को बढ़ा सकता है और फेलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध कर सकता है, जिसकी वजह से प्रजनन में समस्याएं होने लगती हैं. इससे जुड़े लक्षणों में शामिल है, माहवारी में अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव और लंबे समय तक माहवारी आना.

कैसे पहचान करें-

पेडू की जांच, लैब टेस्ट और इमेजिंग टेस्ट के जरिये गर्भाशय फाइब्रॉयड का पता लगाया जाता है. इमेजिंग टेस्ट का इस्तेमाल, गर्भाशय की असामान्यताओं का पता लगाने के लिये किया जाता है. इसमें पेट का अल्ट्रासाउंड, योनि का अल्ट्रासाउंड और हिस्टेरोस्कोपी शामिल होती है. हिस्टेरोस्कोपी के दौरान हिस्टेरोस्कोप नाम की एक छोटी, हल्की दूरबीन को सर्विक्स के जरिये गर्भाशय में डाला जाता है. स्लाइन इंजेक्शन के बाद, गर्भाशय गुहा फैल जाएगी, जिससे स्त्रीरोग विशेषज्ञ गर्भाशय की दीवारों और फेलोपियन ट्यूब के मुख की जांच कर पाती हैं. कुछ मामलों में एमआरआई जैसे इमेजिंग टूल्स की जरूरत पड़ सकती है.

उपचार

गर्भाशय फाइब्रॉयड की दवाएं,उन हॉर्मोन्स को लक्षित करती हैं जोकि मासिक चक्र को नियंत्रित करता है, ताकि माहवारी के अत्यधिक रक्तस्राव जैसे लक्षण का उपचार किया जा सके. वैसे तो दवाएं, फाइब्रॉयड को हटा नहीं पातीं, लेकिन उन्हें छोटा कर देती हैं. फाइब्रॉयड्स को हटाने की सर्जरी में पारंपरिक सर्जरी की प्रक्रिया और कम से कम चीर-फाड़ वाली सर्जरी शामिल होती है. “लेप्रोस्कोपिक गाइनकोलॉजिक सर्जरी” जैसी सर्जरी न्यूनतम चीर-फाड़ वाली प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें बिना ओपन कट किए, गर्भाशय फाइब्रॉयड को सावधानीपूर्वक निकालने के लिये किया जाता है. कैमरे के साथ एक छोटी-सी ट्यूब वाले लेप्रोस्कोप जैसे सर्जरी के उपकरणों को डालने के लिये एक छोटा-सा चीरा लगाया जाता है. इससे स्त्रीरोग विशेषज्ञ को मॉनिटरिंग स्क्रीन पर गाइनेकोलॉजिक अंगों को हर तरफ से देखने में मदद मिलती है. छोटा-सा चीरा लगाकर लेप्रोस्कोपिक सर्जरी करने से दर्द कम होता है और सुरक्षा बढ़ती है, साथ ही साथ ऑपरेशन के बाद की समस्याएं जैसे संक्रमण का दर कम होता है, खून कम बहता है और कम से कम फाइब्रोसिस का निर्माण होता है. सर्जरी के बाद, रोगियों को गर्भधारण के बारे में सोचने से पहले कम से कम एक महीने तक गर्भनिरोधक गोलियां लेने की सलाह दी जाती है.

गर्भाशय फाइब्रॉयड, उच्च एस्ट्रोजन स्तर, गर्भाशय संकुचन, और ओव्यूलेशन डिसफंक्शन जैसी असामान्यताओं का कारण बनता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि फाइब्रॉयड फैलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध करके और निषेचित अंडे को गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने से रोककर प्रजनन क्षमता को बिगाड़ सकता है. इसलिये, फाइब्रॉयड को खत्म करने के लिये उचित और समय पर उपचार महत्वपूर्ण है.

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