Winter Special: इस तरह करें आंखों की देखभाल

आंखों को स्वस्थ व चमकदार बनाए रखने के लिए उन की नियमित देखभाल जरूरी है. इन की छोटी से छोटी परेशानी भी सीधे हमारी दूर व पास की चीजें देखने की क्षमता को प्रभावित करती है. परिणामस्वरूप हम अपने रोजमर्रा के काम उतनी फुरती और दक्षता से नहीं कर पाते जितना कि पहले कर पाते थे. आंखों की उचित देखभाल न होने पर कुछ लोग अंधेपन के शिकार भी हो जाते हैं.

अगर आप की आंखें पूर्णतया स्वस्थ हैं, तो भी आप को उन की देखभाल करने की जरूरत है ताकि नजर कमजोर होने पर महंगे उपकरणों यानी चश्मा व कौंटैक्ट लैंस वगैरह व महंगे उपचार जैसे कि सर्जरी आदि से बचा जा सके. वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. विष्णु गुप्ता से हुई बातचीत के आधार पर हम आप को नेत्र रोगों से बचने के कुछ टिप्स बता रहे हैं:

पढ़ते समय

पढ़ते समय सब से ज्यादा काम आंखों को करना पड़ता है. इसलिए पढ़ते समय निम्न बातों का ध्यान रखें ताकि आप की आंखों पर अतिरिक्त दबाव न पड़े:

कभी भी कमर के बल सीधे लेट कर या फिर अधलेटी मुद्रा में न पढ़ें. यह पोस्चर हमारी आंखों को प्रभावित करता है.

किताब और आंखों के बीच की दूरी कम से कम 25 सैंटीमीटर होनी चाहिए.

ध्यान रहे, पढ़ने के लिए पर्याप्त रोशनी होनी आवश्यक है. धुंधली रोशनी में पढ़ने का प्रयास न करें. इस से आंखों पर अधिक जोर पड़ता है.

चलती बस या ट्रेन में पुस्तक या अखबार न पढ़ें.

पढ़ते समय हमारी आंखें अधिक सक्रिय रहती हैं. इसी सक्रियता के चलते पढ़ते समय हमारी पलकें झपकने का औसत सामान्य औसत से काफी कम हो जाता है. सामान्य स्थिति में हम प्रति मिनट 22 बार पलक झपकाते हैं, लेकिन पढ़ते समय यह औसत सिर्फ 10-12 ही रह जाता है. पलक झपकाने का औसत घटते ही आंखों में आने वाले आंसुओं की परत उड़ने लगती है और वे सूखेपन का शिकार हो जाती हैं. जिस के परिणामस्वरूप आंखों में खुजली और जलन के साथसाथ पानी आने की शिकायत भी हो सकती है.

अगर आप को लगतार कई घंटे पढ़ना है तो बीचबीच में 5 से 10 मिनट तक पढ़ाई रोक कर आंखों को आराम अवश्य दें. आंखों को कई बार झपकें. आंखों को बंद रखते हुए आईबौल्स (नेत्रगोलक) को गोलगोल घुमाएं.

किसी दूर रखी वस्तु को टारगेट बना कर उसे देर तक देखें, इस से आप की फोकस करने की शक्ति बढ़ेगी.

टैलीविजन देखते समय

टैलीविजन देखने के लिए कम से कम 6 फुट की दूरी पर बैठें.

अगर आप को अधिक समय कंप्यूटर पर काम करना होता है, तो ऐंटीरिफ्लैक्शन कोटेड ग्लासेज का प्रयोग करें. इस से आंखों पर अधिक जोर नहीं पडे़गा.

टैलीविजन देखते व कंप्यूटर पर काम करते समय भी हमारा पलकें झपकाने का औसत बहुत कम हो जाता है, जिस से आंखें सूखेपन का शिकार हो सकती हैं. इस से बचने के लिए खाने में चिकनाई का प्रयोग अधिक करें.

बीचबीच में काम रोक कर आंखें बंद कर थोड़ी देर के लिए उन्हें आराम दें.

दुपहिया वाहन चलाते समय धूल व मिट्टी के कणों व तेज रोशनी से आंखों को बचाने के लिए ऐंटीग्लेयर चश्मा जरूर पहनें.

अगर आप कैमिकल से जुड़ा कोई काम करते हैं, तो काम करते समय अपनी आंखों पर हमेशा गौगल्स पहनें और कैमिकलों के बहुत पास न जाएं.

थकान दूर करने के लिए

दिन में 2-3 बार आंखों पर ठंडे पानी से छींटे मारें.

अपनी दोनों हथेलियों को तब तक रगड़ें जब तक कि वे गरम न हो जाएं और फिर उन्हें 60 सैकंड तक अपनी आंखों पर रखें. इस दौरान अपने मन में 1 से 60 तक गिनती गिनें. इस क्रिया को 2-3 बार दोहराएं. इस से आप की थकी हुई आंखों को राहत मिलेगी.

जब भी घर से बाहर जाएं, हरेभरे पेड़पौधों को एकटक देखें. हरा रंग आंखों को बहुत सुकून देता है.

अगर आप ज्यादा समय तक ऐयरकंडीशन में बैठती हैं तो पानी की कमी से आंखें सूजीसूजी सी लगती हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. दिन में कम से कम 10 गिलास.

हर प्रकार से स्ट्रैस से बचें, क्योंकि यह सीधा आंखों पर असर करता है.

खानपान

आंखों में चमक लाने के लिए भोजन में विटामिन ए, सी और ई अधिक मात्रा में लें. यानी रसदार फल, पपीता, हरी पत्तेदार सब्जियां, टमाटर, गाजर, खीरा, अंडे, मछली, दूध आदि.

खाने में कार्बोहाइड्रेट अधिक मात्रा में लें. कम कार्बोहाइड्रेट वाली डाइट लेने से शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाती है, जिस से आंखों की चमक पर असर पड़ता है. अगर आप कम कार्बोहाइड्रेट वाली डाइट ले रही हैं तो दिन में कम से कम 10 गिलास पानी अवश्य पीएं.

घरेलू नुसखे

आंखों पर कच्चे आलू के गोल टुकड़े रख कर 20 मिनट तक आंखें बंद कर लेटें. इस से आंखों के आसपास के काले घेरे भी दूर हो जाएंगे.

2 वेस्ट टी बैग्स प्रयोग के बाद सुबह काम पर निकलते समय फ्रिज में रख दें. घर लौटने पर उन टी बैग्स को बंद आंखों पर रख कर थोड़ी देर आराम करें, कम से कम 15 मिनट तक.

दिन भर की थकी आंखों को आराम देने के लिए ठंडे दूध में भीगे व निचुड़े हुए कौटन पैड आंखों पर रखें. ठंडे पानी में या फिर कुनकुने पानी में भीगे कौटन पैड भी निचोड़ कर आंखों पर रख सकती हैं.

खीरे के गोल टुकड़े भी 20 मिनट तक आंखों पर रखे जा सकते हैं.

1 चम्मच सूखा आंवला रात भर पानी में भिगो कर रखें और अगले दिन सुबह मलमल के कपड़े से छान कर इस पानी में 1 कप पानी और मिला कर इस पानी से रोज आंखें धोएं.

अगर आप की आंखें सूजी रहती हैं, तो एक आलू को छिलके सहित रगड़ कर बंद आंखों पर 20 मिनट तक रखें.

अगर आप की आंखें लाल हैं और उन में जलन महसूस हो रही है, तो सिर की दही से मालिश करें.

मेकअप

वैसे तो जहां तक संभव हो, आंखों में सुरमा, काजल, आईलाइनर, मसकारा आदि नहीं लगाना चाहिए. लेकिन आजकल तो मेकअप के बिना जैसे जीवन अधूरा है, इसलिए मेकअप का सामान खरीदते व लगाते समय निम्न बातों का ध्यान रखें:  आंखें बहुत संवेदनशील होती हैं, इसलिए आई मेकअप के सामान को ले कर कोई समझौता न करें. हमेशा किसी अच्छी कंपनी का सामान ही उपयोग करें.

परफ्यूम आंखों को नुकसान पहुंचाता है. इसलिए उसे लगाते समय ध्यान रखें कि उस के छींटे आंखों में न पड़ें. कानों के पीछे परफ्यूम का प्रयोग न करें.

सोने से पहले अपने चेहरे को अच्छी तरह से धोएं. ध्यान रहे कि सोते समय आप के चेहरे पर कोई मेकअप नहीं होना चाहिए, क्योंकि मेकअप में प्रयोग क्रीम, आईशैडो, आईलाइनर, काजल आदि हमारी त्वचा व आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए घर पहुंचते ही तुरंत मेकअप को हटा दें. सोते समय चेहरा धोने के बाद सिर्फ अच्छी किस्म की नाइटक्रीम का ही प्रयोग करें.

अन्य ध्यान देने योग्यबातें

आंखों का कोई भी ड्रौप खरीदते समय उस की ऐक्सपाइरी डेट अवश्य चैक करें.

आंखों की दवा की शीशी का प्रयोग खोलने की तिथि से 1 महीने के भीतर ही करें.

अगर आप की आंखें स्वस्थ हैं तब भी साल में 1 बार उन्हें आंखों के विशेषज्ञ से अवश्य चैक करवाएं. अगर आप की दूर की या फिर नजदीक की नजर कमजोर है, आप चश्मे या फिर कौंटैक्ट लैंस का प्रयोग करती हैं तो हर 6 महीने बाद अपनी आंखें टैस्ट करवाएं. नंबर बदलने पर तुरंत चश्मा बदलें.

Eye Sight का गुपचुप चोर ‘ग्लूकोमा’

क्या आपने कभी अपनी आंखों में ऐसा दबाव महसूस किया है, जिससे तेज सिरदर्द हुआ हो और आंखें लाल हो उठी हो?आपने किसी वस्तु को देखते समय उसके चारों ओर इंद्रधनुषी रंग बिखरे देखे है?क्या आँखों पर जोर के साथ आपको मिचली भी आती है? ये ग्लूकोमा के लक्षण हो सकते है,जो दुनिया में अंधेपन का दूसरा सबसे आम कारण है, ऐसा अंधापन जिसे रोका जा सकता है. यह एक ऐसी बीमारी है, जो आईज ऑप्टिक नर्व यानि आंखों की एक ऐसी तंत्रिका को नुकसान पहुंचाती है, जो मस्तिष्क से जुड़ती है और जिससे हमें देखने में मदद मिलती है. ग्लूकोमा आंख में बढ़े हुए दबाव से संबंधित हो सकता है, जिसे इंट्राओकुलर प्रेशर के रूप में जाना जाता है.

ग्लूकोमा के रोगी अधिक

इस बारें में भोपाल के एएसजी आई हॉस्पिटल प्राइवेट लिमिटेड के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ.नेहा चतुर्वेदी कहती है कि बढ़ती उम्र के साथ ये रोग बढ़ता है और 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोग ग्लूकोमा के लिए सबसे अधिक संवेदनशील होते है. यह अनुमान है कि भारत में 40 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 1.1 करोड़ रोगी है, जिसमें वृद्ध लोगों में ग्लूकोमा अधिक दिखाई पड़ा है, वहीं अलग-अलग आयु वालों के लिए इस बीमारी का नाम भी अलग ही है.

  • नवजात शिशु में इस बीमारी के होने पर इसे ’जन्मजात ग्लूकोमा’ कहा जाता है,
  • कम उम्र (3-10 वर्ष) में इसे ’विकासात्मक ग्लूकोमा’ कहा जाता है,
  • ‘किशोर ग्लूकोमा’ 10-40 वर्ष की आयु के बीच के समूह को होने वाले ग्लूकोमा को कहा जाता है. .

होती है कई बार वंशानुगत

डॉ. नेहा आगे कहती है कि कई अन्य बीमारियों की तरह, ग्लूकोमा भी वंशानुगत हो सकता है, सिर या आंख के क्षेत्र में आघात, आंखों में बूंदों या मौखिक दवा के रूप में लंबे समय तक स्टेरॉयड का इस्तेमाल करना भी इस नेत्र विकार का कारण बन सकता है. ग्लूकोमा आमतौर पर कोई चेतावनी वाले लक्षण नहीं दिखाता, यह धीरे-धीरे विकसित होता है और हल्के-हल्के दृष्टि कमजोर करता जाता है. इसलिए, इसे ’आँखों का गुपचुप चोर’ या ‘साइलेंट थीफ ऑफ साइट’ भी कहा जाता है. ग्लूकोमा की वजह से दृष्टि के नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती, ऐसे में हाई रिस्क वाले लोगों के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ से नियमित जांच करवाना बहुत जरूरी हो जाता है. नियमित जांच में ऑप्टिक नर्व स्ट्रक्चर और आई प्रेशर की जांच की जाती है और जरूरी हुआ तो नर्व की टेस्टिंग के लिए कुछ परीक्षणों का सुझाव दिया जाता है. इनमेंविजुअल फील्ड टेस्टिंग,कॉर्नियल मोटाई और ऑप्टिक नर्व की ओसीटी स्कैन शामिल है. ये परीक्षण न केवल ग्लूकोमा के निदान की पुष्टि करने में मदद करते है, बल्कि रोग से होने वाले आँखों की नुकसान की मात्रा निर्धारित करते हुए स्थिति को संभालने में मदद करते है.

एनाटोमिकली अलग संरचना 

हालाँकि प्रत्येक आंख की एनाटोमिकलस्ट्रक्चर अलग होती है, ऐसे में दो प्राथमिक प्रकार के ग्लूकोमा खास तौर पर होते है, ओपन-एंगल ग्लूकोमा (ओएजी), जिसमें धीमी और स्पर्शोन्मुख शुरुआत होती है और एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा (एसीजी), जो ओकुलर दबाव में तीव्र वृद्धि का कारण बनता है.

अपनाएं प्रिवेंटिव तरीका

डॉ मानती है कि वर्तमान में ग्लूकोमा का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है लेकिन रोगी में विजन और फील्ड के अधिक नुकसान को रोकने के लिए विभिन्न उपचारों और थिरेपी के द्वारा नेत्र विकार का प्रबंधन किया जा सकता है. आंखों के दबाव को वांछित स्तर तक कम करने के लिए कई विकल्प उपलब्ध है. रोग शुरुआती चरण में है, तो नियमित रूप से उपयोग करने के लिए कोई आई ड्रॉप निर्धारित कररोग को नियंत्रित किया जा सकता है. जिन्हें इससे भी लाभ नहीं होता है उन रोगियों में आई सर्जरी भी एक विकल्प है, जो रोग के विकास को धीमा करने या रोकने में मदद करती है. ओलोजन इम्प्लांट, वाल्व सर्जरी, मिनिमली इनवेसिव ग्लूकोमा सर्जरी (एमआईजीएस), लेजर सर्जरी के उपयोग के साथ स्टैंडर्ड फिल्टरिंग सर्जरी जैसे सर्जरी के विभिन्न उपचार विकल्प हैं जिन्हें डॉक्टर की सलाह के बाद करवाया जा सकता है.

सुने डॉक्टर की

रोगी और डॉक्टर मिलकर ही ग्लूकोमा का सही इलाज तय कर सकते है.जरुरत के आधार पर उपचार निर्धारित करने के बाद नेत्र रोग विशेषज्ञ आपको जो भी निर्देश दें, उनका लगातार पालन करने की जरूरत होगी. नियमित जांच, सालाना या छह महीने में आंखों की पूरी जांच, एंटीऑक्सीडेंट खाद्य पदार्थों से भरपूर संतुलित आहार खाकर स्वस्थ वजन बनाए रखना, मधुमेह को नियंत्रण में रखना, कैफीन के अधिक सेवन से बचना और धूम्रपान विकार से लड़ने में मदद करने जैसे कुछ एहतियाती उपाय बरतने पड़ते है. इसके अलावाकुछ केसेज में रोगी से शीर्षासन व्यायाम न करने की सलाह दी जाती है और अचानक ज्यादा मात्रा में पानी न पीने की सलाह भी दी जाती है, क्योंकि इससे आंखों पर दबाव बढ़ सकता है.

अंत में यह कहना सही होगा कि आपको जरा सा भी ग्लूकोमा के लक्षण दिखाई पड़ने पर, तुरंत उपचार की कोशिश करें, ताकि आप दृष्टि हानि से बच सकें. इसके लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ के साथ नियमित जांच, निर्धारित दवा को लेना जैसे उपाय आजमाने ही होंगे.इससे  रोगी को स्वस्थ जीवन जीने में मदद मिलेगी. इसके अलावा, स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता भी ग्लूकोमा को नियंत्रित करने की एक कुंजी है.

औनलाइन स्टडी के दौरान बच्चों की आंखों का रखें ख्याल

इन दिनों पॉवर वाले चश्मे पहने बच्चों की बढ़ती संख्या को  देखकर बहुत चिंता होती है. टेक्नोलॉजी हमारी मदद करने और हमारे जीवन को सरल बनाने के लिए होती है, लेकिन बहुत से आविष्कारों ने बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित किया है और उन्हें आलसी बना दिया है. कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन क्लास के लिए गैजेट्स के सामने ज्यादातर बच्चे अपना समय बिता रहे हैं. इसकी वजह से बच्चे बाहर खेलने बहुत कम जा पा रहे हैं. लेकिन यह चीज उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है खासकरके उनकी आंख के लिए यह बहुत खतरनाक है. इसलिए यह जरूरी है कि हम उनके स्क्रीन के सामने बैठने के समय को कम करें और उन्हें ऐसी डाइट दें, जो स्वाभाविक रूप से उनकी आंखों की रोशनी में सुधार करें. उन्हें बैलेंस्ड डाइट देने के अलावा मीडियम एक्सरसाइज और नियमित आंखों की जाँच खराब दृष्टि से निपटने के लिए सरल उपाय होती हैं.

अगर आपका बच्चा खाने के लिए बहुत उधम मचाता है और उसे भोजन के माध्यम से उचित पोषण नहीं मिल रहा हो, तो आपको विटामिन सप्लीमेंट वाली डाइट देनी चाहिए. मल्टी-विटामिन सिरप और अन्य खाद्य सप्लीमेंट जैसे रस और शेक बच्चों के शरीर की पोषण संबंधी जरूरतें और दृष्टि संबंधी समस्यायों को कम करेंगे.

यहां उन चीजों को बताया गया है, जिन्हें आपको अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए:

हरे पत्ते वाली सब्जियां

हरी पत्तेदार सब्जियों में कैरोटिनॉयड प्रचुर मात्रा में होती हैए जो विटामिन ए से भरपूर होते हैं अन्य विटामिन और मिनिरल जैसे कैल्शियम, विटामिन सी और विटामिन बी 12 भी इसमें पाए जाते हैं. इसलिए ब्रोकोली, केल, और कोलार्ड ग्रीन्स अपने बच्चे को खाने के लिए दें. पालक आंख की रोशनी के लिए भी फायदेमंद होता है क्योंकि इसमें  एंटीऑक्सिडेंट जैसे ल्यूटिन और ज़ेक्सैंथिन ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं. हालांकि इन पत्तेदार सब्जियों को ज्यादा नहीं पकाया जाना चाहिए. इसे कच्चा खाने पर यह ज्यादा फायदा करती है.

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नट्स और सीड्स

पिस्ता काजू बादाम अखरोट और मूंगफली विटामिन ई से भरपूर होते हैं और प्राकृतिक रूप से  बच्चों में मायोपिया की संभावना को कम कर सकते हैं. इन नट्स में कुछ मात्रा में ओमेगा-3 फैटी एसिड भी होते हैं. साथ में, ये फैटी एसिड और विटामिन ई इन दिनों ड्राई आईज को रोकते हैं, जो इन दिनों बच्चों में होने वाली आम समस्या है. फ्लैक्स सीड और चिया के बीज भी आंखों से जुड़ी समस्याओं को खत्म कर सकते हैं.

मछली का तेल

मछली का तेल सामन, मैकेरल, और टूना जैसी मछली की किस्मों से प्राप्त किया जा सकता है. हमारे रेटिना में डीएचए होता है जो एक फैटी एसिड होता है यह मछली के तेल में पाया जाता है. रेटिना में डीएचए की कमी से सूखापन हो सकता है और इससे आंखों में समस्या हो सकती है. अपने बच्चे को मछली का तेल देने से आंखों में सूखेपन को रोका जा सकता है और आंखों की समस्याओं की संभावनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है.

फलियां

ज़िंक (जस्ता) फलियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है इससे रेटिना को नुकसान होने से बचाया जा सकता है. बच्चों को स्वस्थ आंखों की दृष्टि के लिए काली आंखों वाले मटर, दाल और किडनी बीन्स जैसे फलियां जरूर खाना चाहिए. हम जानते हैं कि बच्चे फलियां खाना पसंद नहीं करते हैं, लेकिन अपने बच्चे की शिकायतें न सुनें. फलियां आंखों की सेहत के लिए अच्छी होती हैं और आपको जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि आपका बच्चा उन्हें खाएं.

अंडे

अंडे विटामिन ए और प्रोटीन से भरपूर होते हैं. अंडे में ल्यूटिन और एंटीऑक्सिडेंट भी भरपूर मात्रा में होता है. जो अंधापन को रोकता है और मैकुलर डीजेनेरेशन (धब्बेदार अध: पतन) से लड़ता है. अंडे भी नेत्र संरचनात्मक संरचना (ऑक्युलर स्ट्रकचरल इंटीग्रिटी) को बनाए रखते हैं और सुनिश्चित करते हैं आँखें अपना काम उचित रूप से करें. इसलिए, अपने बच्चे को अंडे खाने दें और उनमे आंखों की समस्या दूर रखें.

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फल

आंखों के स्वास्थ्य लिए विटामिन सी बहुत जरूरी होता है. विटामिन सी को संतरे, अमरूद, नींबू, टमाटर आदि जैसे खट्टे फलों से प्राप्त किया जा सकता है. अपने बच्चे को स्ट्रॉबेरी देकर आंखों के संक्रमण और बीमारियों से बचा सकते हैं. नारंगी या आम, पपीता और खुबानी जैसे पीले फल विटामिन ए से भरपूर होते हैं, जो रतौंधी रोकने के लिए महत्वपूर्ण होते है. खुबानी एक सुपर-फल है जो कैरोटिनॉइड, बीटा-कैरोटीन और लाइकोपीन से भरपूर होता है इसे बच्चो को नियमित रूप से देना  चाहिए. ब्लूबेरी और अंगूर एंथोसायनिन से भरे होते हैं जो रात में देखने की क्षमता में सुधार करते हैंए और इस तरह, आंखों को आसानी से अंधेरे में देखने के अनुकूल बनाते है. ब्लूबेरी में रोशनी बढ़ाने वाले फ्लेवोनोइड्स भी होते हैं जैसे रेस्वेराट्रोल, क्वेरसेटिन और रुटिन आदि. इसलिए, अपने बच्चे को रोजाना फल खाने के लिए दें.

मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा, बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट कंसल्टेंट डॉ रमानी रंजन से बातचीत पर आधारित

पढ़ाई और मनोरंजन के लिए मोबाइल के इस्तेमाल से आंखों को नुकसान हो रहा है?

सवाल-

मेरी उम्र 22 साल है. कोविड-19 के कारण लगे लौकडाउन के दौरान मेरा कालेज हमें औनलाइन क्लासेज दे रहा है जिस के लिए मैं लैपटौप का इस्तेमाल करता हूं. इस के बाद मैं मनोरंजन के लिए भी मोबाइल और लैपटौप का इस्तेमाल करता हूं. अब मेरी आंखों में मुझे समस्या होने लगी है जैसे कि दर्द और जलन. मुझे बताएं ऐसा क्यों हो रहा है और इन से छुटकारा कैसे पाऊं?

जवाब-

आप के द्वारा बताई गई समस्या से पता चलता है कि आप को ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या है. लैपटौप की स्क्रीन का ज्यादा देर तक देखने से ड्राई आई यानी कि आंखों में सूखेपन की समस्या होती है.

इस सूखेपन के कारण ही आंखें में खुजली, दर्द और जलन का एहसास होता है. ऐसे में व्यक्ति खुजली दूर करने के लिए आंखों को तेजी से मलने लगता है, जिस से समस्या और अधिक बढ़ती है.

यदि आप को वाकई इस समस्या से छुटकारा पाना है तो सब से पहले तो मोबाइल या लैपटौप का इस्तेमाल कम कर दें. केवल जरूरत पड़ने पर ही इन का इस्तेमाल करें. लैपटौप को चलाते वक्त पलकों की जल्दीजल्दी झपकाएं. बीचबीच में ब्रैक लें और 20 फीट की दूरी पर रखें.

लैपटौप की ब्राइटनैस कम रखें और काम खत्म हो जाने के बाद आंखों पर ठंडे पानी के छींटे मारें. इस के बाद कुछ देर आंखों को बंद करें. इस से आंखों को आराम मिलेगा. अपने खानपान पर ध्यान दें और ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं.

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वर्क फ्रौम होम यानी घर बैठे नौकरी करें. जी हां, कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें घर बैठे किया जा सकता है. आप दुनिया में कहीं भी हों, इंटरनैट और वाईफाई की सहायता से इन कामों को बखूबी कर सकती हैं. इस से काम देने वाले और काम करने वाले दोनों को लाभ है. खासकर ऐसी मांएं या पिता अथवा दोनों के लिए जो अपने बच्चों पर ज्यादा ध्यान देना चाहते हैं. पहले यह सुविधा पश्चिमी विकसित देशों तक ही सीमित थी. मगर अब हमारे देश में इंटरनैट और वाईफाई के विस्तार के कारण वर्क फ्रौम होम यहां भी संभव है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- वर्क फ्रौम होम के फायदे और नुकसान

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