पारिवारिक कलह का असर मासूमों पर

पटना के फतुहा हाई स्कूल की टीचर मनीषा गोस्वामी की मौत के बाद पुलिस ने उस के पति रवि गोस्वामी को तो गिरफ्तार कर लिया, पर ससुराल के बाकी आरोपी फरार हो गए और वे मनीषा की बेटियों 2 साल की अंतरा और 10 महीने की विशाखा को भी साथ ले गए. मनीषा के भाई मनीष ने बताया कि मनीषा नौकरी करना चाहती थी, पर रवि मना करता था. यहां तक कि मनीषा को मायके भी नहीं जाने देता था. इस बात को ले कर रवि और मनीषा के बीच आएदिन झगड़ा होता था. गत 13 सितंबर को जब मनीषा मायके जाने की जिद पर अड़ गई, तो रवि ने उसे तीसरे माले से धक्का दे दिया, जिस से उस की मौत हो गई. जबकि रवि ने पुलिस को बताया कि मनीषा मायके जाने की जिद कर रही थी. जब उस ने मना किया तो मनीषा ने खुद ही छत से छलांग लगा दी.

मनीषा की मौत हो गई. उस के पति रवि को पुलिस ने जेल भेज दिया. पुलिस और अदालत अपनीअपनी रफ्तार से काम करती रहेंगी. साल दर साल पुलिस जांच चलती रहेगी और अदालत में तारीख दर तारीख पड़ती रहेगी. इन सब के बीच उन दोनों बच्चों का क्या होगा? इस सवाल पर कानून हमेशा की तरह खामोश है. उन बच्चों की जिंदगी कैसे चलेगी, जिन्हें पता तक नहीं है कि उन के साथ कितना बड़ा हादसा हुआ है? उन के नानानानी, मामामामी आदि कब तक उन का खयाल रखें? उन का पालनपोषण और पढ़ाईलिखाई का क्या होगा? ऐसे कई सवाल हैं, जिन के जवाब न समाज के पास हैं और न ही कानून की मोटीमोटी किताबों में.

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मनोविज्ञानी अजय मिश्रा कहते हैं कि परिवार और मातापिता के झगड़ों के बीच बच्चे पिसते ही नहीं, बल्कि घुटते भी रहते हैं. हजारों ऐसे मामले अदालतों में चल रहे हैं और बच्चे सहमे और घुटते रहते हैं. एक वाकेआ के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि रांची के एक पतिपत्नी की लड़ाई का मामला उन के पास आया था. घर वाले दोनों के झगड़े से तंग आ कर दोनों को काउंसलिंग के लिए मेरे पास लाए थे. उन के 2 बच्चे भी उन के साथ आए थे. सभी से बात करने के बाद जब बच्चों से पूछा गया कि घर में कौन ज्यादा झगड़ा करता है, तो इस सवाल को सुन कर दोनों बच्चे सहम गए और अपने मातापिता को देखने लगे. बच्चों को दूसरे कमरे में ले जा कर पूछा तो 8 साल के बच्चे ने बताया कि मम्मी और पापा हमेशा लड़ाई करते हैं. लड़ाई करने के बाद हम से पूछते हैं कि बताओ तो कौन पहले झगड़ा करता है? मम्मी पूछती हैं कि पापा ज्यादा झगड़ा करते हैं न? पापा पूछते हैं कि मम्मी पहले लड़ाई की शुरुआत करती हैं न? हम क्या बोलेंगे? हमेशा दोनों लड़ाई करते हैं. लड़ाई करने के बाद दोनों सो जाते हैं और उस के बाद मुझे और मेरी बहन को ब्रैड या बिस्कुट खा कर सोना पड़ता है. कई बार तो ऐसा होता है कि मम्मीपापा के बीच 6-7 दिनों तक बोलचाल बंद रहती है और हमें स्कूल नहीं भेजा जाता है. मम्मी खाना भी ठीक से नहीं बनाती हैं.

पुलिस औफिसर आर.के. दुबे कहते हैं कि मातापिता अपने बच्चों की नजरों में हीरो होते हैं. उन की नजरों में वे दुनिया के सब से बेहतरीन इनसान होते हैं. ऐसे में उन के आपस में लड़ने से बच्चों के मन में बनी अपने मातापिता की इमेज गिरती है, जिस से बच्चों को बहुत तकलीफ होती है. उस तकलीफ को बच्चे बयां नहीं कर पाते और मन ही मन घुटते रहते हैं. इस से उन का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है. जिस घर में लड़ाई ज्यादा होती है, उस घर के ज्यादातर बच्चे मानसिक बीमारी और डिप्रैशन के शिकार होते हैं. कई बच्चे तो गुस्सैल स्वभाव और अपराधी बन जाते हैं.

मातापिता की लड़ाई से भौचक बच्चे

मातापिता के झगड़े का सीधा असर बच्चों पर होता है. सब से ज्यादा नुकसान वही उठाते हैं. पटना हाई कोर्ट के वकील अनिल कुमार सिंह बताते हैं कि पतिपत्नी झगड़ा करने के बाद बच्चों की नजरों में खुद को सही साबित करने के लिए एकदूसरे के खिलाफ उन में जहर भरते हैं. लड़ाई के बाद मां अपने बच्चों से कहती है कि उन के पापा ही गंदे हैं. हमेशा लड़ाई करते हैं. पापा से बात नहीं करना वरना तुम्हें भी पीटेंगे. वहीं पिता अपने बच्चों को समझाता है कि उन की मम्मी ही लड़ाई की शुरुआत करती है. उन की मम्मी गंदी है. इस तरह की बातें सुन कर बच्चे दुविधा में पड़ जाते हैं. वे समझ नहीं पाते हैं कि दुनिया के सब से अच्छे उन के मातापिता हैं और वही दोनों एकदूसरे को बुरा ठहरा रहे हैं.

तलाक के बाद सिसकते बच्चे

पटना सिविल कोर्ट के सीनियर वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि मातापिता के तलाक के बाद सब से ज्यादा चुनौती का सामना उन के बच्चों को ही करना पड़ता है. कई केसेज में देखा गया है कि तलाक के मुकदमे में पतिपत्नी दोनों बच्चों को अपने पास रखने की जिद करते हैं. दोनों पक्ष अदालत से बारबार गुहार लगाते हैं कि बच्चों को उन के पास रहने दिया जाए. मां कहती है कि बच्चे पिता के पास नहीं रह सकेंगे, जबकि पिता यह दावा करता है कि वही बच्चों की बेहतर परवरिश कर सकता है. कई बार अदालत दोनों के पास कुछकुछ समय तक बच्चों को रहने का फैसला सुनाती है. ऐसे में बच्चे मातापिता से मिलते तो रहते हैं, लेकिन उन्हें उन का सच्चा प्यार नहीं मिल पाता है. मां खुद को बेहतर साबित करने के चक्कर में बच्चों को नएनए खिलौने और कपड़े देती है, तो पिता उस से बेहतर और कीमती चीज दे कर बच्चों की नजरों में अच्छा पिता बनने की कोशिश करता है. अपनेअपने अहं में डूबे मातापिता यह नहीं समझ पाते हैं कि बच्चों को असली खुशी दोनों के साथ रहने से मिलती है. अलगअलग रह कर दोनों से मिलने और महंगे से महंगे गिफ्ट्स देने से भी उन के मासूम मन को खुशी नहीं मिल सकती.

परिवार के झगड़ों के बीच लाचार बच्चे

संयुक्त परिवार के झगड़ों में सब से ज्यादा बच्चे ही पीडि़त होते हैं. वे अपने मातापिता को अपनों से ही लड़तेझगड़ते और पुलिसकचहरी करते देखते हैं. उन्हें यह समझ नहीं आता है कि उन के पिता और चाचा जो कभी साथसाथ रहते थे, आज आपस में लड़ाई क्यों कर रहे हैं? किस बात को ले कर घर के लोग एकदूसरे के दुश्मन बन गए हैं? परिवार मामलों की वकील सुनीता वर्मा एक केस का जिक्र करते हुए बताती हैं कि पटना के एक परिवार के भाइयों के बीच शुरू हुआ घरेलू झगड़ा मारपीट और पुलिस तक जा पहुंचा. एक भाई ने एफआईआर में भाई और भाभी के साथसाथ उन के 10 साल के बेटे को भी मारपीट करने का आरोपी बना दिया. मामला 6 सालों से कोर्ट में चल रहा है और 10 साल का बच्चा 16 साल का युवा बन गया है. उस के मन में आज भी अपने चाचा के प्रति इतना गुस्सा है कि अकसर कहता है कि कभी न कभी चाचा की पिटाई जरूर करेगा.

इस मामले से साफ हो जाता है कि बड़े झगड़ों और केस कर के अपनेअपने काम में मसरूफ हो जाते हैं, लेकिन मासूमों के मन पर वे सदमे की छाप छोड़ देते हैं और उन्हें गुस्सैल बना देते हैं.

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पिता के जेल जाने पर घुटते

किसी भी अदालत के कैंपस में जाने पर पुलिस वालों, कैदियों, अपराधियों, वकीलों और जजों की भीड़ के बीच कई औरतें और उन के साथ कई बच्चे दिख जाएंगे. बच्चे कभी अपने पिता के हाथों में लगी हथकड़ी देखते हैं, कभी पुलिस वाले को तो कभी अपनी मां के चेहरे को देखते हैं. पटना सिविल कोर्ट के वकील सुबोध गोस्वामी बताते हैं कि पिता को हथकड़ी में जकड़े देख कर मासूम बच्चे के दिमाग पर क्या गुजरती होगी, इस का अंदाजा लगाना मुश्किल है. 10-12 साल तक के बच्चे को तो पता ही नहीं चल पाता है कि उस के पिता ने क्या गुनाह किया है और उन्हें हथकड़ी से बांध कर क्यों रखा गया है? वह बुत बना सभी चेहरों को निहारता रहता है. मां के रोने पर उस के साथ रोने लगता है. सब से ज्यादा तकलीफदेह हालत तो उस मां की होती है जब उस का मासूम बच्चा उस से पूछता है कि उस के पिता उन के साथ घर में क्यों नहीं रहते हैं? पिता को पुलिस वालों ने हथकड़ी से क्यों बांध रखा है? वे घर कब आएंगे? उन्हें जेल में क्यों रखा गया है?

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