Best Family Drama : कुहरे में लिपटी एक नई सुबह नए जीवन में नूपुर का स्वागत कर रही थी. खेतों की तरफ किसान राग मल्हार गाते चले जा रहे थे. गेहूं और सरसों की फसलें फरवरी की इस गुलाबी ठंड में हलकीहलकी बहती शीतल, सुगंधित बयार के स्पर्श को पा कर खिलखिलाने लगी थीं. नूपुर की आंखें नींद से मुंदी जा रही थीं. इन सब के बीच 2 मन आपस में चुपकेचुपके कार की पहली सीट पर लगे बैक मिरर में एकदूसरे को देख आंखों ही आंखों में बतियाने का प्रयास कर रहे थे. शरीर थकान से टूट रहा था, विदाई का मुहूर्त सुबह का ही था. ससुराल में पहला दिन था उस का. टिटपुट रीतिरिवाजों के बाद उसे कमरे में बैठा दिया गया था. उस की आंखें उनींदी हो रही थीं. कितने दिन हो गए थे उसे मन भर सोए हुए. सोती भी कैसे घर रिश्तेदारों से जो भरा हुआ था.
‘‘नूपुर. सो जा वरना चेहरा सोयासोया लगेगा. फोटो अच्छे नहीं आएंगे,’’ कहते सब जरूर थे पर कैसे? इस बात का किसी के पास कोई जवाब नहीं था. जिसे देखो वही हाथ में ढोलक ले कर उस के सिर पर आ कर बैठ जाता.
‘‘इन्हें देखो महारानी की खुद की शादी है और यह फुर्रा मार कर सो रही हैं. अरे भाई शादीब्याह रोजरोज थोड़े होता है. अभी मजे ले लो फिर तो बस यादें ही रह जाती हैं.’’
मन मार कर उसे भी शामिल होना ही पड़ता. अभी तो ससुराल के रीतिरिवाज बाकी थे.
उस ने खिड़की के बाहर झंक कर देखा, सड़कें सो रही थीं और वह जाग रही थी. दबेदबे पांवों से वह हौलेहौले एक नई जिंदगी में प्रवेश कर रही थी. एक ही मासमज्जा से बने हर इंसान की देह में एक अलग खुशबू होती है जो उसे दूसरों से अलग करती है. शायद घरों की भी अपनी एक देह और एक अलग खुशबू होती है जो उन्हें दूसरों से अलग करती है. नूपुर इस खुशबू से बिलकुल अपरिचित और अनजान थी. उस के घर खुशबू उस के पीहर से बिलकुल अलग थी जिसे उसे अपनाना और अपना बनाना था.
‘‘अरे भई कोई अपनी भाभी का सामान कमरे में पहुंचा दो,’’ सासूमां ने आवाज लगाई.
नूपुर की आंखें तेजी से अपने सामान को ढूंढ़ रही थीं. कल रात से 15 किलोग्राम का लहंगा पहनेपहने अब तो उस का शरीर भी जवाब देने लगा था. कितने शौक से लिया था उस ने.
‘‘जितना तेरा खुद का वजन नहीं है जितना लहंगे का है. कैसे संभालेगी?’’ पापा ने चिंतित स्वर में कहा था.
‘‘अरे पापा लेटैस्ट फैशन है.’’
‘‘लेटैस्ट… यह भी कोई रंग है. मरामरा सा रंग लाई हो. अरे लेना ही था तो लालमैरून लेती, दुलहन का रंग. तुम्हारी मां ने भी अपनी शादी में लाल रंग की साड़ी पहनी थी,’’ पापा ने मुंह बनाते हुए कहा.
‘‘अब ये सब रंग कौन पहनता है… यह एकदम लेटैस्ट और ट्रैडी कलर है. आलिया भट्ट ने भी यही रंग अपनी शादी में पहना था.’’
‘‘वे सब हीरोइनें हैं, कुछ भी पहनें सब अच्छा लगता है पर अपने समाज में तो दुलहन का रंग वही सब माना जाता है.’’
‘‘पापा शादी कोई रोजरोज थोड़ी होती है.’’
‘‘मैं भी तो नहीं कह रहा हूं कि शादी रोजरोज होती है. कम से कम शादी के दिन सुहाग का रंग तो पहनना चाहिए.’’
‘‘इतना महंगा लहंगा सिर्फ एक दिन के लिए तो नहीं खरीद सकती थी. ऐसा रंग लिया है कि आगे भी यूज में आ जाए,’’ नूपुर ने दलील दी.
‘‘सुन रही हो नूपुर की मां तुम्हारी बिटिया की पंचवर्षीय योजना है. यहां जिंदगी का भरोसा नहीं और यह आगे तक की योजना बना कर चल रही है.’’
मम्मी चुपचाप बापबेटी की चिकचिक सुनती रही. जानती थी कुछ भी बोलने का कोई फायदा नहीं है. अभी आपस में लड़ेंगे, बहस करेंगे और फिर खुद ही एक हो जाएंगे और वह विलेन बन कर रह जाएगी.
तभी किसी के कदमों की आहट से नूपुर का ध्यान टूटा. उस के दोनों देवर हाथ में ब्रीफकेस ले कर कमरे में घुसे.
‘‘कितना भारी है भाभी, पत्थर भर कर लाई है क्या?’’
नूपुर मुसकरा दी. क्या कहती महीनों से खरीदारी की थी. कहांकहां से ढूंढ़ढूंढ़ कर सामान इकट्ठा किया था. उस ने तेजी से सामान को
गिनना शुरू किया. 3 ब्रीफकेस, 1 एअर बैग और 1 वैनिटी बैग और वह गुलाबी वाला ब्रीफकेस. वह नदारद था. पापा से कहा तो था कि उसे भी अपने साथ ले कर जाएगी. जीवन की नई शुरुआत हुई थी, हर तरह के रंग और स्वाद से भर गई थी उस की जिंदगी. सबकुछ तो ले कर आई थी वह पर क्या सबकुछ पीछे बहुत कुछ छूट गया था.
‘‘भैया एक पिंक कलर का ब्रीफकेस भी होगा.’’
‘‘पिंक?’’
छोटे देवरों के चेहरे पर शरारत उभर आई,
‘‘आप को भी पिंक कलर पसंद है? वह तो पापा की परियों को पसंद होता है?’’
‘‘तुम लोग फिर से शुरू हो गए,’’ मम्मीजी ने दोनों की मीठी ?िड़की देते हुए कहा.
‘‘भाभी. उस पर बार्बी डौल बनी हुई थी क्या?’’
‘‘हांहां वही. देखा क्या आप ने?’’ उस की आंखों में जुगनू चमक उठे.
‘‘कब से पूरे घर में टहल रहा था समझ ही नहीं आ रहा था कि पता नहीं किस का सामान भाभी के सामान के साथ चला आया है.’’
‘‘जी, वह मेरा ही है,’’ नूपुर ने संकुचाते हुए कहा.
वे दोनों उस भीड़ में कहीं खो गए और थोड़ी देर में अलादीन के चिराग की तरह उस का वह पिंक ब्रीफकेस ले कर हाजिर हो गए.
‘‘यह लीजिए आप की अमानत और कोई आदेश?’’ दोनों ने सीने पर हाथ रख बांएं पैर को पीछे मोड़ सिर को हलका सा झुका कर बड़ी अदा से कहा.
‘‘भाभी को बड़ा मक्खन लगाया जा रहा है. इन की सेवा करोगे तभी तुम्हारा कल्याण होगा,’’ सिद्धार्थ ने कमरे में घुसते हुए कहा.
वैसे तो सिद्धार्थ से शादी से पहले नूपुर की 2-4 बार ही मुलाकात और टेलीफोन पर बातें हुई थीं पर उन अनजान चेहरों के बीच नूपुर को वह चेहरा बहुत अपना सा लगा.
‘‘अपनी भाभी को कुछ खाने को पूछा या बस बातें ही बना रहे हो,’’ सिद्धार्थ ने शेरवानी उतारते हुए कहा, ‘‘इन से बातें बनवा लो, काम धेले भर का नहीं करते.’’
मम्मीजी ने कहा, ‘‘नूपुर तुम जल्दी से नहा लो. मेहमानों का आना शुरू हो जाएगा, कुछ रीतिरिवाज भी करने हैं और यह मायके से जो तुम्हारे लिए सामान आया है उसे भी दो.’’
‘‘क्या मां आप से कहा था न मुझे यह सब पसंद नहीं. उस का सामना है, किसी से क्या मतलब है. नूपुर के घर वालों ने दिया उस ने लिया, उस से हमें क्या?’’ सिद्धार्थ के चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी.
नुपुर चुपचाप मांबेटे की बहस सुन रही थी. ‘‘बात तुम्हारी पसंद या नापसंद की नहीं, परंपरा की है. तुम्हारी दादी और बूआ को तुम्हारी बातें समझ आएंगी. कौन नूपुर से कुछ ले लेगा, बस मान देने की बात है. नूपुर तुझे कोई दिक्कत तो नहीं? यह तो कुछ समझता ही नहीं. चार अक्षर क्या पढ़ लिए मां को ही पढ़ाने लगे.’’
नूपुर ने मम्मीजी की आवाज में एक खलिश महसूस की थी. वह समझ नहीं पा रही थी. वह अपनी नईनवेली सास और नएनवेले पति के बीच फंस गई थी.
‘‘नूपुर, इस की छोड़ इसे दुनियादारी समझ नहीं आती. तू तो समझदार है तुझे कोई दिक्कत तो नहीं?’’
‘‘जी कोई बात नहीं,’’ नूपुर ने मद्धिम स्वर में कहा.
सिद्धार्थ नूपुर के इस फैसले से कुछ खास खुश नजर नहीं आ रहा था. बोला, ‘‘जो मन में आए करो फिर मुझ से कोई कुछ मत कहना.’’
‘‘नूपुर मैं सब को इसी कमरे में बुला लूंगी, तुम नहाधो कर तैयार हो जाओ. रात में रिसैप्शन भी है. सिद्धार्थ तू मेरे कमरे में नहा ले, बहू को तैयार होने दे,’’ मम्मीजी कमरे से बाहर जाने लगी, तभी उन्हें कुछ याद आया. बोली, ‘‘आज दिनभर पूजापाठ और रीतिरिवाज में ही निकल जाएगा. हलवाई को अभी सब का नाश्ता बनाने में समय लगेगा. तुम कुछ खा लो, तुम्हारे लिए चायनाश्ता भेजती हूं.’’
‘‘जी,’’ नूपुर ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.
अब कमरे में सिद्धार्थ और नूपुर ही रह गए थे. उस की चूडि़यों की खनखनाहट के अलावा कोई आवाज नहीं आ रही थी. नूपुर ने पर्स खोला और ब्रीफकेस की चाबी निकाली.
‘‘मैं कुछ मदद करूं?’’ सिद्धार्थ ने कहा.
नूपुर कुछ कहती उस से पहले ही सिद्धार्थ ने ब्रीफकेस उठा कर बैड पर रख दिया. नूपुर ने ब्रीफकेस खोला और घाटचोला की साड़ी, उसी का मैचिंग ब्लाउज और पेटीकोट निकाला. फिर उस ने धीरे से सिद्धार्थ की ओर देख कर वाशरूम पूछा.
सिद्धार्थ ने उंगली से इशारा किया. वाशरूम से ताजा पेंट और सीमेंट की खुशबू आ रही थी. उस ने वाशरूम में कदम बढ़ाया ही था कि सिद्धार्थ ने पीछे से आवाज दी, ‘‘एक मिनट रुको,’’ सिद्धार्थ ने उस का रास्ता रोक लिया और वाशरूम में घुस गया, ‘‘नूपुर इधर आओ यह गीजर का पौइंट है, यहां से औन होगा.’’
सबकुछ नयानया सा लग रहा था जिसे नूपुर को अपना बनाना था. नया टूथपेस्ट, 2 टूथब्रश, शैंपू, तेल की शीशी, क्रीम, कपड़े धोने और नहाने के नए साबुन के पैकेट. उस ने हाथ में पकड़े शैंपू और साबुन के पैकेट को अपने कपड़ों में छिपा लिया, मैं ने 1-1 चीज याद करकर के रखी है. ससुराल में किस से मांगने जाएगी, खुद इंतजाम कर के चलो. धीरेधीरे जब समझ में आने लगेगा, तब मंगवा लेना.’’
मां ने 1-1 चीज वैनिटी बौक्स में कितने जतन से सजो कर रखी थी. मां को याद कर उस का मन भारी हो गया. नए घर में अपना कहने वाला कोई नहीं था पर उन नए लोगों को अब अपना बनाना था.
‘‘तुम जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं भी नहा कर आता हूं. कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लेना कोई तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करेगा,’’ सिद्धार्थ ने बड़ी सहजता से कहा.
नूपुर के चेहरे पर एक मुसकान आ गई. उस ने दरवाजा बंद करने के लिए ऊपर की ओर हाथ बढ़ाया. वहां चिटकनी नहीं थी. ओह, आदत भी कितनी खराब चीज है… नूपुर तू ससुराल में है उस ने आप से कहा. सागौन की पौलिश से दरवाजे पर औटोमैटिक लौक लगा हुआ था. एक, दो और तीन उस ने 3 बार उस के कान उमेठ दिए और बैड पर आ कर बैठ गई. कितनी देर से गला सूख रहा था. रात में खाना खाते वक्त ही पानी पीया था. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई, बैड के सिरहाने जग और स्टील के
2 गिलास उलटे रखे थे. बहुत तेज प्यास लगी थी. उस ने गिलास को झट से भर लिया और होंठों को तेजी से लगाया. जितना तेजी से उस ने होंठों को गिलास से लगाया था उतनी ही तेजी से उस ने गिलास से हटा भी लिए. उस के चेहरे का रंग बदल गया था, ‘‘कैसा स्वाद है इस का.’’
2 घूंट पानी पीने के बाद नूपुर ने गिलास वैसे ही छोड़ दिया. जीवन के साथसाथ अब उसे उस पानी के साथ भी एडजस्ट करना था. उस ने कपड़े समेटे और वाशरूम की ओर बढ़ गई.
नूपुर ने वाशरूम में कपड़े टांगने के लिए खूंटी ढूंढ़ी, किसी नामी कंपनी की रैक वाली स्टील की खूंटी टाइल्स पर चमचमा रही थी. ऊपरी हिस्से पर नरम, नए और मुलायम 2 तौलिए रखे थे. उसे अपना वाशरूम याद आ गया, बुध बाजार से वह पूरे घर के वाशरूम के लिए कार्टून और दिल के आकार की कई चिपकाने वाली खूंटियां ले आई थी तब पापा ने कितना डांटा था, ‘‘ताड़ की तरह बड़ी हो गई पर अभी बचपना नहीं गया. तुम ही लगाओ अपने वाशरूम में कीड़ेमकोड़े वाली खूंटियां हमारे लिए तो ये स्टील वाली ही ठीक हैं.’’
न जाने क्या सोच कर नूपुर की आंखें मुसकराने लगीं. अब सिद्धार्थ की पसंद ही उस की पसंद है. एक अपरिचित लड़के का हाथ पकड़ेपकड़े वह दूसरे संसार में प्रवेश कर गई थी इस उम्मीद के साथ कि अब जीवन भर उस के साथ रहना है. उस के सुख और दुख मेरे होंगे और मेरे सुख और दुख उस के वह शावर के नीचे खड़ी हो गई. शावर की तेज धार से उस के मनमस्तिष्क की सारी उलझनें सुलझती चली गईं.
अब यही घर उस का है. अब इस घर में ही उसे रहना है और इस घर को भी उस घर की तरह अपनाना, सजाना और संवारना है. कमरे में ड्रैसिंग टेबल रखी थी. उस पर गिनती का कुछ सामान था. उस के चेहरे पर मुसकान आ गई. सिद्धार्थ भी और लड़कों की तरह ही थे. एक महीन दांत वाली कंघी, एक डिओड्रैंट, क्रीम और तेल की शीशी उन के वैनिटी बौक्स के नाम पर बस इतनी ही जमा पूंजी थी.
वह सोच रही थी कि शृंगार के नाम पर उस ने न जाने कितनी चीजें जुटाई थीं इन 6 महीनों में. लिपस्टिक के न जाने कितने शेड और न जाने कितने प्रकार थे. उस की पिटरिया में लिक्विड, मैट, पैंसिल, क्रीम बेस्ड. इसी तरह कंघियां भी विभिन्न प्रकार और साइज की थीं. महीन दांत वाली, बाल सुलझने के लिए चौड़े दांत वाली ब्रश, रोलर और नोक वाली.
नूपुर ने ड्रैसिंग टेबल के शीशे के सामने अपनेआप पर एक भरपूर नजर डाली. मांग में लाल सिंदूर चमक रहा था. कितनी सुंदर दिख रही थी वह शायद यह सिंदूर का ही कमाल था. खिड़की पर मोटेमोटे परदे पड़े थे. नूपुर ने इधरउधर देखा और परदे को खींच कर एक तरफ कर दिया. खिड़की के शीशों पर हलकी गुलाबी धूप चमक रही थी. उस ने हाथों का दबाव दे शीशे को पीछे की तरफ धकेल दिया. शायद खिड़कियां काफी दिनों से नहीं खुली थीं.
कमरे की खिड़कियों को खोल उस ने धूप को आने दिया जैसे वह अपने हिस्से की धूप को इकट्ठा कर लेना चाहती हो. कहीं न कहीं जिंदगी का फलसफा भी तो नहीं है. खुशियां भी तो कुछ ऐसी ही होती हैं अपनेअपने हिस्से की खुशियां. उस ने एक गहरी सांस ली और साफ हवा को अपने मनमस्तिष्क में भरने दिया. कितनी अलग थी इस कमरे की दीवारें एकदम शांत नए रंगरूटों की तरह जिन की उंगलियां कुछ करने को छटपटा रही हों.
नूपुर ने दीवारों पर हाथ फेर कर अपनेपन की खुशबू को महसूस करने की कोशिश की. कितना अलग था उस का यह कमरा उस के पीहर के कमरे से. उस ने औनलाइन अपने कमरे की दीवार के लिए स्टिकर मंगवाए थे. पिंजरे से निकल कर उड़ती ढेर सारी चिडि़यांएं. अजीब सी खुशी मिलती थी उसे उन्हें देख कर. पापा हमेशा कहते हैं लड़कियां भी तो चिडि़यों की तरह होती हैं. एक दिन उड़ जाती हैं. तू भी उड़ जाएगी इन की तरह छत पर रेडियम के चमकते सितारे अंधेरे में कितने टिमटिमाते थे मानो खुले आसमान के नीचे सो रहे हों. कभीकभी लगता जैसे वह खुली आंखों से सपने देख रही हो.
नूपुर ने एक गहरी सांस ली. पीछे बगीचा था. हलवाई के बरतनों के आवाज उसे अब साफसाफ सुनाई दे रही थी. उस ने खिड़की को खुला ही रहने दिया और परदों को खींच कर हलका बंद कर दिया.
तभी दरवाजे पर किसी ने धीरे से खटखटाया, ‘‘नूपुर… नूपुर.’’
‘‘कौन?’’ नूपुर ने पूछा और यह सवाल कर के वह खुद ही अचकचा गई. वह इस वक्त सिद्धार्थ के घर में थी और वह उन्हीं से पूछ रही थी.
‘‘नूपुर मैं हूं सिद्धार्थ,’’ एक भारी आवाज आई. आवाज में नूपुर के लिए हक था.
‘‘जी, आती हूं,’’ वह खुद ही कह कर शरमा गई, उस ने अपनेआप को समझाया कि अब उसे इन सब चीजों की आदत डालनी होगी.
‘‘तैयार हो गई तुम?’’ सिद्धार्थ ने एक भरपूर नजर उस पर डाली. उस की आंखों में ऐसा कुछ था कि नूपुर की आंखें नीचे गईं.
‘‘ये परदे किस ने खोल दिए?’’ सिद्धार्थ का ध्यान परदों की ओर गया.
‘‘वह बड़ा स्फोकेशन हो रहा था. मैं ने खिड़कियां खोल दी थीं. औक्सीजन कैसे मिलेगी, क्रौस वैंटिलेशन भी तो जरूरी है. मुझे उलझन होने लगती है,’’ नूपुर एक सांस में बोल गई.
‘‘तुम दोनों तैयार हो गए? लो जल्दीजल्दी नाश्ता कर लो दादी और बूआजी तुम लोगों को पूछ रही थी,’’ मम्मीजी हाथ में चायनाश्ते की ट्रे ले कर कमरे में घुसीं, ‘‘कुछ हुआ है क्या? तुम दोनों ऐसे शांत क्यों खड़े हो?’’
‘‘कुछ नहीं मम्मी नूपुर को बंद कमरे में उल?ान हो रही थी. उस ने खिड़की खोल दी, कह रही थी औक्सीजन कैसे मिलेगी, क्रौस वैंटिलेशन भी तो जरूरी है. उसे उलझन होने लगती है.’’
मम्मी ठहाका मार कर हंस पड़ी, ‘‘अब इस घर में एक नहीं 2 लोग हो गए खिड़की खोल कर सोने वाले मैं और नूपुर.’’
नूपुर को मांबेटे की बात समझ नहीं आ रही थी.
‘‘जानती हो नूपुर सिद्धार्थ और उस के पापा को खिड़की खोलना बिलकुल पसंद नहीं कहते हैं बाहर का शोर अंदर आता है. मुझे तो बंद कमरे में बिलकुल नींद नहीं आती. लगता है सांस घुट रही है. अब तो तेरी बीवी भी मां के रंग में रंगी आ गई है. अब तू क्या करेगा सिद्धार्थ?’’ मम्मी मंदमंद मुसकरा रही थी और उन की बात सुन नूपुर भी मुसकराने लगी.
‘‘चलो अब समय बरबाद मत करो और जल्दी से नाश्ता कर लो. तेरी बूआ और दादी भी उठ गए हैं. तुम लोग कमरा ठीक कर लो. मैं भी काम देख कर आती हूं, हलवाई ने नाश्ता बनाना शुरू किया या नहीं.’’
‘‘मम्मी आप ने नाश्ता किया या नहीं. अभी बीपी लो हो जाएगा, तबीयत खराब हो जाएगी,’’ सिद्धार्थ के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ पढ़ी जा सकती थीं.
‘‘सुन रही हो नूपुर इस की बात. अभी पूरा घर मेहमानों से भरा पड़ा है और सब से पहले मैं ही नाश्ता करने बैठ जाऊं लोग क्या कहेंगे.’’
सिद्धार्थ ने मम्मीजी का हाथ पकड़ कर उन्हें जबरदस्ती अपने पास बैठा लिया, ‘‘कोई कुछ नहीं कहेगा. नूपुर तुम भी जल्दी से नाश्ता कर लो. मम्मी तुम भी साथ खा लो, कौन देखने आ रहा है सब सो रहे हैं.’’
मम्मीजी ने कैशरोल से पोहा निकाल कर प्लेट में परोस दिया और सिद्धार्थ ने चाय का प्याला नूपुर की ओर बढ़ा दिया. नूपुर बैड के एक कोने में बैठ चाय पीने लगी.
‘‘चाय ठीक बनी है न? मीठा ज्यादा तो नहीं हो गया? इतना सामान फैला हुआ है कुछ मिल ही नहीं रहा था.’’
‘‘जी ठीक है मैं थोड़ा चीनी हलकी पीती हूं,’’ कहने को तो नूपुर ने कह दिया पर वह कशमकश में पड़ गई कि पता नहीं उसे यह बात कहनी भी चाहिए थी या नहीं. मम्मी ने कितनी बार समझाया था वह ससुराल है कुछ भी मुंह में आए तो बोल मत देना पर वह भी तो आदत से मजबूर थी. कहने से पहले एक बार भी नहीं सोचती.
‘‘ओह? मुझे पता नहीं था बेटा दूसरी बना देती हूं.’’
‘‘नहींनहीं आंटीजी. इस की कोई जरूरत नहीं है.’’
‘‘आंटी नहीं मम्मी कहना सीखो,’’ मम्मीजी की आवाज में एक मनुहार के साथ एक आदेश भी था. नूपुर का चेहरा उतर गया. बोली, ‘‘मुश्किल है पर धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी,’’ मां के अलावा कभी किसी को मां नहीं कहा तो़…’’ मां को याद कर उस की आंखें सजल हो आईं.
‘‘समझ सकती हूं कि इतना आसान नहीं है पर धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी,’’ मम्मीजी ने धैर्य बंधाया, ‘‘तुम लोग जल्दी से नाश्ता खत्म कर लो और अपना सामान बैड पर सजा दो. मैं पहले देख लूंगी, उस के बाद दादी और सारे लोगों को भी बुला कर दिखा देती हूं.’’
सिद्धार्थ के चेहरे पर अभी भी नाराजगी थी पर अब वह इस विषय में कुछ भी कहना नहीं चाह रहा था.
‘‘सिद्धार्थ जरा नूपुर की मदद कर दे, मुझे और भी काम हैं.’’
सिद्धार्थ की मदद से नूपुर ने सारे ब्रीफकेस के सामान को बैड पर सजा दिया.
‘‘नूपुर, क्या इस अटैची का सामान भी सजाना है?’’ सिद्धार्थ ने पिंक ब्रीफकेस की ओर इशारा करते हुए कहा.
नूपुर समझ नहीं पा रही थी सिद्धार्थ की बात का वह क्या जवाब दे.
उसे असमंजस में देख सिद्धार्थ ने कहा, ‘‘क्या हुआ कुछ खास है क्या इस में कुछ कीमती?’’
‘‘खास. मेरे दिल के बहुत करीब है पर क्या इसे भी लगाना जरूरी है?’’
तभी मम्मीजी ने कमरे में प्रवेश किया, ‘‘क्या हुआ सब लगा दिया न बेटा?’’
‘‘मम्मी बस यह एक ब्रीफकेस रह गया है. शायद कुछ पर्सनल सामान है नूपुर का.’’
‘‘नहीं पर्सनल जैसा कुछ भी नहीं है पर…’’ नूपुर की आवाज में संकोच उभर आया.
मम्मीजी की आंखों में प्रश्न तैर रहे थे. नूपुर समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे. शायद इसी स्थिति से बचाने के लिए पापा ने उसे इस ब्रीफकेस को ले जाने के लिए मना किया था. क्या नए घर में नए लोगों के बीच इस ब्रीफकेस को खोलना ठीक होगा पर अगर नहीं खोला तो उन की आंखों में उग आए प्रश्नों के जवाब उन्हें कैसे मिलेंगे.
‘‘मम्मी रहने दो. अगर नूपुर नहीं चाहती है कि इस ब्रीफकेस को खोला जाए तो हरज क्या है?’’
मम्मीजी खुद असमंजस की स्थिति में थीं. बात बिगड़ते देख नूपुर ने उस ब्रीफकेस को खोल दिया और एक किनारे खड़ी हो गई. अटैची में कुछ किताबें, हाथ से बनी हुई गुडि़या, टैडी बियर, दिल के आकार का पैन स्टैंड, मम्मीपापा का फोटो, कुछ गुलाबी लिफाफे और एक फीरोजी दुपट्टा मुसकरा रहा था.
सिद्धार्थ उस के सामान को देख कर हंसने लगा, ‘‘बहुत कीमती सामान है इस में, सच कहा था तुम ने.’’
मम्मीजी घुटने के बल बैठ गईं और उन्होंने उस सामान पर बड़े प्यार से हाथ फेरा. वे भी तो अपने ब्याह के समय एक ऐसा ही ब्रीफकेस ले कर आई थीं.
‘‘सिद्धार्थ सचमुच बहुत कीमती सामान है
इस अटैची में. इस में नूपुर की नादानियां हैं, खामियां हैं, चुलबुलापन है. बेबाकपन है और हां अल्हड़पन है. सच कहूं तो वह इस ब्रीफकेस में अपने साथ अपने अंदर की लड़की को ले कर भी आई है. नूपुर अपने हिस्से की धूप ले कर आई है,’’ मां बोली.
नूपुर की आंखों में खुशी के आंसू थे. खुली खिड़कियों से धूप बैडरूम के फर्श पर दस्तक दे रही थी. धूप की इस कुनकुनी गरमाहट में सारे सवाल और गलतफहमियां भाप बन कर उड़ रही थीं.